माया “फोबिया” से पीड़ित राहुल

संजय सक्सेना

बड़ा अटपटा लगता है।कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के विचार सुनकर और तेवर देख कर। क्रांतिकारी विचारों के साथ कांग्रेस के युवराज उत्तर प्रदेश में बदलाव के लिए ताल ठोंक रहे हैं।उनकी बातों से ऐसा लगता है कि उन्हें “फोबिया” हो गया हैं,जिसमें अपने आप को छोड़कर सब कुछ गलत लगता है।विरोधी पार्टियां ही नहीं उत्तर प्रदेश की जनता भी उन्हें भिखारी लगती है।यूपी की जनता पंजाब और महाराष्ट्र जाकर काम करती है,यह बात राहुल को अच्छी नहीं लगती तो यह उनका नजरिया है,भारतीय संघीय व्यवस्था में किसी को भी कहीं जाकर काम करने की छूट है।उनकी नजर में यूपी वालों का पंजाब और महाराष्ट्र में जाकर काम करना भीख मांगना हो सकता है लेकिन सच्चाई यह है कि यूपी वाले कई राज्यों में अपने दिमाग के बल पर न केवल उच्च स्थानों पर काबिज हैं,बल्कि अपनी लगन और योग्यता के बल पर ऐसे राज्यों की आर्थिक व्यवस्था मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

राहुल की बातों पर यकीन कर भी लिया जाए तो भी कांग्रेस के युवराज को समझना चाहिए कि “भीख”मजबूरी का नाम होता है,जिस देश के नेता नैतिक जिम्मेदारी को तिलांजलि दे देते हैं उस देश का हाल ठीक वैसा ही होता है जैसा आजकल भारत का हो रहा हैं।राहुल को यूपी वालों के दिल्ली,मुम्बई,पंजाब आदि राज्यों में जाकर भीख मांगने की तो चिंता है लेकिन उनका ध्यान एक बार भी इस ओर नहीं गया कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। आजादी के बाद करीब चालीस सालों तक उत्तर प्रदेश पर राज करने वाली कांग्रेस के कारण ही प्रदेश का यह हाल हुआ है। उसने यहां जातिवाद के बीज बोए?हिन्दू-मुसलमान की राजनीति की?आरक्षण के नाम पर देश को बांटा ?दलितों-ब्राहमणों-ठाकुरों सबको आपस में लड़वाया?बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विवाद को बढ़ावा देने और उसके बल पर रोटियां सेंकने की शुरूआत कांग्रेस शासन में ही हुई थी ।राजनीति में अपराधीकरण की शुरूआत कांग्रेस काल में हुई,भले ही बाद में अन्य राजनैतिक दलों ने भी इसे अपना लिया हो ?परिवारवाद तो कांग्रेस का जन्मसिद्ध अधिकार रहा है।इतिहास उठा कर देखा जाए तो कांग्रेस को देश की बर्बादी के लिए 75 प्रतिशत से अधिक नंबर मिलेगें।

अफसोस होता है जब राहुल जनता का ध्यान हटाने के लिए बिना सिर-पैर की बातें करते हैं। जनता के हितों की कांग्रेस और उनके युवराज राहुल गांधी को इतनी ही चिंता होती तो आज कई ऐसे कानून बन चुके होते जिससे लोकतंत्र सच्चे मायनों में मजबूत होता।आज देश की करीब सवा अरब आबादी के लिए काला धन ,मंहगाई,भ्रष्टाचार,बेरोजगारी,आर्थिक अपराध,काला बाजारी जीवन-मरण का सवाल बन गया है,लेकिन राहुल का ध्यान इस और क्यों नहीं जाता।जनता को उसके अधिकार नहीं मिल रहे।आज मजबूत जन लोकपाल और सिटीजन चार्टर लागू किए जाने की मांग भले ही अन्ना हजारे की टीम और काला धन वापस लाने के लिए कानून बनाने की बात बाबा रामदेव जैसे लोग कर रहे हों लेकिन यह मांग दशकों पुरानी है।केन्द्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार जब कहती है कि हमें मालूम हैं कि किस-किस नेता या अधिकारी का विदेश में खाता(पैसा जमा) है,लेकिन हम बता नहीं सकते।तो बढ़ा आश्चर्य होता है,परंतु राहुल कभी इस पर कुछ नहीं बोले।अगर,वह तमाम ऐसी बातों और आरोपों का भी जबाव दे देते जो केन्द्र सरकार पर लग रहे हैं तो जनता की नजर में वह हीरो बन जाते,लेकिन राहुल तो “फोबिया”ग्रस्त हैं। न उन्हें अपनी कमी दिखती है न पार्टी में कोई घोट।

कांग्रेस में राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री की उपाधि मिली है।कहा यह भी जाता है कि 2014 के आम चुनाव के बाद राहुल की ताजपोशी प्रधानमंत्री के लिए हो जाएगी,लेकिन राहुल ने कभी यह जरूरी नहीं समझा कि वह कहें कि नहीं,पार्टी में उनसे भी योग्य नेता बैठे हैं जो इस जिम्मेदारी को बखूबी ओढ़ सकते हैं।कभी उन्होंने यह नहीं सोचा जब उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री कहा जाता है तो उनकी ही सरकार के वर्तमान प्रधानमंत्री की दशा क्या होती होगी।वह अपने आप को”केयर टेकर”प्रधानमंत्री नहीं समझते होंगे,जिसका काम 2014 में राहुल को सत्ता की बागडोर सौंप कर खत्म हो जाएगा।ऐसे में कोई प्रधानमंत्री कैसे सहजता पूर्वक काम कर सकता है।

कांग्रेस के युवराज क्या बोल रहे हैं और क्यों बोल रहे हैं शायद उनको भी इस बात का गम्भीरता से अहसास नहीं है।इसी लिए उनको वाहवाही से अधिक आलोचना झेलनी पड़ रही है।बिहार के चुनाव से इतर उत्तर प्रदेश में राहुल के भाषणों की”स्क्रिप्ट”बेहद धमाकेदार लिखी जा रही है।इसकी वजह वहां(बिहार में)अपनी बात को सीधे-साधे लहजे मे कहने वाले राहुल का”सिक्का”नहीं चल पाना हो सकता है।राहुल के ऊपर बिहार में कांग्रेस की असफलता की बदमानी का दाग लगा हुआ है।बिहार में कांग्रेस राहुल को आगे करके जीत हासिल करना चाहती थी,वहां की नाकामयाबी के बाद अगर उत्तर प्रदेश में भी राहुल नहीं चल पाए तो नेहरू-गांधी परिवार के सहारे चलने वाली कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

उत्तर प्रदेश की बर्बादी के लिए सपा-बसपा को कोसने वाले राहुल गांधी कहते हैं कि कब तक राज्य की जनता सपा या फिर बसपा के बीच झूलती रहेगी,लेकिन इसका जबाव शायद उनके पास नहीं है कि अगर कांग्रेस ही इतनी अच्छी होती तो ऐसे दलों का उदय ही न होता। जनता जब कांग्रेस शासन से बुरी तरह ऊब गई थी,तब उसने गैर कांग्रेसी दलों की तरफ देखना शुरू किया।आज भी कांग्रेस हासिए पर है तो इसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। कांग्रेसी बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन जनाधार के नाम पर करीब-करीब सभी जगह शून्य नजर आता है। इसी परम्परा को राहुल आगे बढ़ा रहे हैं।उनको समझना होगा कि जनता नेताओं को अपने बीच टहलते हुए नहीं देखना चाहती है,वह उनसे काम की उम्मीद रखती है और काम चाहती है।राहुल प्रदेश के दौरे पर हैं,यह उनका अधिकार है,लेकिन ऐसे मौकों पर दौरों का कोई औचित्य नहीं बनता जब संसद चल रही हो। जहां सिर्फ उत्तर प्रदेश नहीं पूरे देश के हालात पर चिंतन हो रहा है। राहुल अपनी बात वहां रखते तो ज्यादा उचित होता।राहुल को अपनी बातों में गम्भीरता लाना है तो वह जब प्रदेश में मनरेगा और केन्द्रीय योजनाओं में बंदरबॉट की बात कहते हैं तो उन्हें केन्द्र के घोटालों पर भी दुख जताना चाहिए।विकास का पूरा पैसा जनता तक नहीं पहुंचता।राहुल का यह कहना सच है लेकिन बातों के बताशे नहीं बनाए जाते। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी अक्सर कहा करते थे कि विकास का पैसा जनता तक नहीं पहुंचता है,लेकिन इसके लिए सख्त कानून तो केन्द्र को ही बनाना है,इस बात को कैसे अनदेखा किया जा सकता है।जहां आज भी कांग्रेस की सरकार है और अन्ना हजारे जैसे समाजसेवी को जनता के हक की लड़ाई उनकी ही सरकार से लड़ना पड़ रही है।सपा-बसपा पर उंगली उठाने वाले राहुल गांधी को यह भी सपष्ट करना होगा कि अगर दोनों ही दल इतने खराब हैं तो कांग्रेस केन्द्र में उसका समर्थन क्यों लिए है।

राहुल के तेवर चाहें जितने भी तीखे दिख रहे हों लेकिन उनकी बातों में दुराव है।यही वजह है जनता ही नहीं कांग्रेसी भी उनसे दूर होते जा रहे है।राहुल ने पांच दिनों तक कई जगह संपर्क अभियान के तहत अपनी सभाएं की। फूलपुर की रैली में अन्ना समर्थकों और छात्रों का विरोध,राजधानी में अपनी ही पार्टी के लोगों द्वारा विरोध,कांग्रेस,सांसदों वाले क्षेत्रों में भीड़ न जुटना और बस्ती में मंच से केंद्रीय मंत्री के बोलने का विरोध,डुमरियागंज,बांसी जहां कांग्रेस ने पार्टी से परम्परागत रूप से जुड़े लोगों को प्रत्याशी बनाया,वहां दो-ढाई लोगों का भी नहीं जुटना,क्रांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी को आईना दिखा गया।डुमरियागंज में कई जगह राहुल के विरोध के पोस्टर भी दिखे। यह तब हुआ जब जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए महात्मा गांधी ,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत के फ्लैक्स भी,मॉ,बेटा और बापू महान,देश पर हो गए बस कुर्बान,शीर्षक के साथ जगह-जगह दिखाई दे रहे थे।संपर्क अभियान के तहत बहराइच के कार्यकर्ता सम्मेलन में भाग लेने गए राहुल वहां भीड़ नदारत देखकर दंग रह गए। बमुश्किल हजार लोग जुड़े़ होंगे।राहुल ने यहां संवेदनाएं बटोरने की कोशिश की और कहा, यही से मेरे पिता राजीव जी ने 18 साल के युवाओं को वोट का अधिकार देने का एतिहासिक फैसला किया था।यहां घोषित प्रत्याशी चंद्रशेखर और जिलाध्यक्ष जितेन्द्र बहादुर िसंह के समर्थक खुले विरोध पर आमादा थे।यह असंतोष राहुल के सामने शेरो-शायरी के माध्यम से उभरा।

प्रदेश में कांग्रेस की जमीन तैयार करने निकले राहुल के सपा-बसपा की खामियां गिनाने और झुग्गी झोपड़ियों में जाने के बावजूद उनकी सभाओं में भीड़ न जुटना कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता । फूलपुर की रैली के बाद राहुल द्वारा जहां से जनसंपर्क अभियान शुरू किया गया और जहां उनके अभियान का समापन है। उन क्षेत्रों में पड़ने वाले सभी संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस के ही सांसद हैं। इनमें से दो तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं।बावजूद इसके राहुल के रोड शो को उनकी अपेक्षा के अनुरूप जनमर्थन नहीं मिला। सूबे के जिम्मेदार नेताओं की पेशानी पर बल देखा जा सकता है। हालांकि उस धड़े को काफी तसल्ली है जिनका टिकट कटा या फिर जिन्हें संगठन में हाशिए पर रखा गया है। टिकट बंटवारे को लेकर इस समय सबसे ज्यादा विरोध के स्वर कांग्रेस में ही मुखर है।कई बार तो राहुल के सामने ही पार्टी के लोग भिड़ जाते हैं लेकिन राहुल कभी इतने परिपक्त नहीं दिखाई दिए जिसके सहारे वह विरोध की आग को वह ठंडा कर दें।सपा और बसपा पर उंगली उठाने वाले राहुल पर भी उंगलिया कम नहीं उठ रही है।मिशन 2012 को पूरा करने के लिए पार्टी ने अपने लोगों से ज्यादा दलबदलुओं और आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों पर भरोसा किया।वैसे कांग्रेस में इस तरह का प्रयोग कोई नया नहीं है। ऐसा प्रयोग प्रदेश कार्यकारिणी के गठन में भी हुआ लेकिन राहुल कभी इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।राहुल बातें के बताशे चाहें जितने बनाएं लेकिन हकीकत यही है कि आज कांग्रेस के पास दमदार प्रत्याशी ही नहीं हैं जिनके सहारे वह चुनावी बैतरणी को पा कर सके।कांग्रेस द्वारा अभी तक घोषित 213 प्रत्याशियों में करीब 35 प्रतिशत प्रत्याशी ऐसे हैं जो हाल-फिलहाल में अलग-अलग दलों से आकर कांग्रेस में (टिकट की चाहत में) शामिल हो गए थे।

फिर भी उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के पौने पांच साल के कार्यकाल को कुशासन बताने वाले राहुल गांधी को यहां अच्छे परिणाम मिलने की अपेक्षा है तो इसके बारे में कोई क्या कह और कर सकता है ।ऐसा नहीं है कि राहुल जानते नहीं है कि केन्द्र के भ्रष्टाचार और मंहगाई,उत्तर प्रदेश कांग्रेस में विरोधी तेवर के अलावा अन्ना इलफेक्ट भी कांग्रेसियों की दुश्वारियों का सबब बनेगा। राहुल गांधी यदि मायावती सरकार को हर मोर्चे पर विफल बताते हुए यूपी में उनके खिलाफ जनमत तैयार करने में लगे हैं मायावती का जनता से कटा नेता बताने का ढिंढोरा पीट रहे हैं तो जवाब में बसपा भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है। बसपा भी कह रही है कि राहुल झूठ बोलने में माहिर हैं।चुनाव के समय ही कांग्रेस को गरीब याद आते हैं। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या ने तो राहुल को पूरी तरह से झूठा और आधारहीन तथ्य पेश करने में माहिर करार देते हुए कहा राहुल अपनी तुलना मायावती से न करें,मायावती ने प्रदेश का जितना दौरा किया है राहुल उसका मुकाबला कभी कर ही नहीं सकते।बसपा की रैलियों में जुटे हुजूम को राहुल ने ध्यान से देखा होता तो वह ऐसी बात सोचने की भी हिम्मत नहीं करते। मौर्या ने राहुल को लैपटाप का नेता बताते हुए बहनजी को जमीन से जुड़ा नेता करार दिया।उनका कहना था, बहनजी की रैलियों में भीड़ लाखों में होती है,जबकि कांग्रेस के युवराज की रैली में कुछ सौ लोग भी मुश्किल से जुटाए जाते हैं। मौर्या ने राहुल को बसपा का इतिहास पढ़ने की नसीहत दी।राहुल की टिप्पणी,‘लखनऊ में जो हाथी बैठा है,वह आप लोगों का पैसा खा जाता है को अशोभनीय करार दिया बसपा ही नहीं समाजवादी पार्टी भी राहुल के बयानों से खुश नहीं है।केन्द्र में कांग्रेस को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने काफी समय बाद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर जबर्दस्त हमला बोला।मुलायम ने कांग्रेस की फटकार लगाते हुए कहा कि वह देश को गर्त में ले जा रही है।

लोकसभा चुनाव संपन्न हुए और केंद्र में यूपीए गठबंधन को सत्तारूढ़ हुए ढाई साल से ज्यादा का समय बीत चुका है,लेकिन इन सबके बावजूद प्रदेश में कांग्र्रेस को अपने पक्ष में बात बनती नहीं दिख रही है। इन दोनों की सारी कवायद पर भाजपा नेतृत्व पानी फेरे हुए है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही कहते हैं कि कांग्रेस ओर बसपा सहयोगी दल हैं। केंद्र में बसपा समर्थन कर रही है और कांग्रेस की ओर से समर्थन लिए जाने की बात नहीं की गई। ऐसे में भाजपा के इन आरोपो को बल मिलता है कि दोनों ही प्रदेश में नूराकुश्ती कर रहे हैं । दिल्ली में दोस्ती और लखनऊ में कुश्ती यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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