आखिर क्यों हांफ गई आस्ट्रेलियन डिग्री सैफई के बाजार में?

**महागठबंधन की विफलता के लिये माया भी बराबर की जिम्मेदार

डॉअजय खेमरिया

 मायावती कह रही है कैडर के अलावा केवल मुसलमानों ने हमारा साथ दिया यादवों ने भितरघात किया इसलिये महागठबंधन को फिलहाल समाप्त किया गया है।इस घोषणा के बाद अखिलेश यादव ने भी एक बयान में 2022 में समाजवादी सरकार के लिये अपने कार्यकर्ताओं से तैयार रहने का आह्वान कर दिया यानि यूपी की सियासत में महागठबंधन एक सुपर फ्लॉप शो साबित हुआ है मायावती ने जिस शालीनता से यादव जाति को निशाना बनाया है वह गहरे निहितार्थ लिए हुए है मायावती ने डिम्पल यादव सहित अक्षय औऱ धर्मेंद्र यादव की पराजय को अलग से रेखांकित कर यह साबित करने का ही प्रयास किया है कि अखिलेश  अच्छे भतीजे हो सकते है लेकिन वे राजनीति के नोसीखिये ही है उनकी आस्ट्रेलियाई तालीम सैफई के समाजवादी थ्योरी के आगे कोई काम की नही है और सियासत निर्मम गलियों में सिर्फ ताकत की पूछ परख होती है शालीनता की नही ।यानी अखिलेश को सीधा सन्देश की वे राजनीति के अनफिट खिलाड़ी है और मायावती के लिये वे राजनीतिक रूप से अभी कोई महत्व के नही है। अब अखिलेश को भी 360 डिग्री से खुद का आत्मावलोकन करना होगा कैसे प्रोफेसर रामगोपाल की सलाहें उन्हें लगातार राजनीति के मैदान में मात खाने को मजबूर कर रही है।पहले राहुल गांधी के साथ यूपी को ये साथ पसन्द है का असफल प्रयोग हुआ औऱ अब महागठबंधन ने उनकी जमीनी समझ और पकड़ की कमजोर इबारत को ही लिखने का काम किया है इन दोनों ही निर्णयों में प्रोफेसर रामगोपाल की भूमिका प्रमुख रही है और लगभग पूरा सैफई परिवार खिलाफत में था ।आज सपा जिस दौर में खड़ी है उसके लिये सीधे तौर पर अखिलेश यादव को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा क्योंकि सपा के चरित्र के उलट फैसले लेने का काम हर बार अखिलेश का ही था, मायावती के सामने जिस निरीह अंदाज में अखिलेश पूरे  चुनाव में नजर आए वह उनका एक तरफा समर्पण ही था ।जिस रौब औऱ ठसक से सपा को मुलायम और शिवपाल ने चलाया उसकी परिछाई भी पूरे लोकसभा चुनाव में नजर नही आई।करीब 30 साल की राजनीतिक कड़वाहट औऱ सदियों की जातीय वैमनस्यता को अखिलेश अपनी एमबीए की पढ़ाई के मार्केटिंग फंडे से जिताऊ प्रोडक्ट की तरह मार्केट में लांच कर रहे थे लेकिन वे भूल गए कि इस हिंदुस्तान में प्रबन्धन के नुस्के डिग्रियों के भरोसे कभी नही रहे है दो औऱ दो चार अगर गणित में होते है तो इसी गणित में  दो और दो बाइस भी नजर आते है जनता ने महागठबंधन के चार के आगे 22 बना दिये क्योंकि बुआ बबुआ का जोड़ चाइना मेड नजर आ रहा था  अभी भी हमारे यहां चाइना मेड आइटम को लोग टिकाऊ मानकर नही खरीदते है लेकिन फूलपुर,कैराना, औऱ गोरखपुर में चली चाइना मेड दोस्ती को पूरे यूपी के लिये जनता ने नकार दिया।असल मे माया औऱ अखिलेश का मेल सिर्फ वोटों के प्लस माइनस पर टिकाऊ था मुलायम सिंह अच्छी तरह से जानते थे कि ये जमीन पर उतरना संभव नही है क्योंकि यूपी की सामाजिकी इस बात की गारंटी ही नही देती है माया औऱ आस्ट्रेलिया रिटर्न अखिलेश सही मायनों में जमीनी सच्चाई से वाकिफ आज भी नही है क्योंकि दोनों का संगठन और सामाजिक संघर्स से कोई सीधा रिश्ता रहा ही नही है अखिलेश को विरासत में मुलायम और शिवपाल की मेहनत मिली और मायावती को कांशीराम की पुण्ययाई।मायावती उस जाती की नेता है जिसके लोग आज भी सही मायनों में दलित ही है लेकिन वे अभी भी अपनी जातीय अस्मिता के नाम पर मायावती के साथ जुड़े है।यूपी की राजनीतिक जमीन पर पिछले 3 दशक से जिन दो जातियों का दबदबा है वे यादव और जाटव ही है ये वर्चस्व एक दूसरे की कीमत पर है लिहजा इस बादशाहत की  आपसी जंग को एकीकृत करने का प्रयास महज मोदी को रोकने के आधार पर संभव नही था।मुलायम सिंह के दौर की सपा में सिर्फ यादव नही थे  उसमे जनेश्वर मिश्रा, मोहन सिंह,रेवतीरमण सिंह,राजेन्द्र चौधरी जैसे लोग भी थे लेकिन आज मायावती ने सपा की सीमा खिंचते हुए उसे सिर्फ यादवों की पार्टी निरूपित किया और अखिलेश को एक तरह से अपमानित करते हुए तंज भी कसा है कि वे अपनी पत्नी और भाईयो की हार भी नही बचा पाये।असल मे मायावती शुरू से अंत तक इस चाइना मेड दोस्ती में हावी रही वैसे भी मायावती का स्वभाव किसी के साथ चलने या समन्वय का कभी नही रहा है वे अपनी शर्तों पर राजनीति करती है उनके फोटो फ्रेम में किसी दूसरे की कोई जगह नही होती है यही कारण है कि यूएस रिटर्न  अजीत   सिंह को मंच पर अपने जूते उतारकर ही मायावती के पास बैठने की इजाजत होती थी जाटों के इस दिग्गज परिवार का यह समर्पण भी अखिलेश की तरह ही अनावश्यक साबित हुआ क्योंकि मायावती ने अजीत सिंह को कभी नेता की तरह अधिमान्यता दी ही नही।ये भी जाट बनाम जाटव के अस्वाभाविक एकीकरण का एक प्रयास था लेकिन जमीनी सरंचना इससे काफी दूर थी।इस महागठबंधन के प्रयोग की विफलता के लिये मायावती एक तरफा अखिलेश पर ठीकरा फोड़कर खुद के कैडर को मजबूत बनाये रखना चाहती है जबकि ईमानदारी से देखा जाए तो मायावती की अतिशय मुस्लिम जाटव परस्त नीति और बयानों ने ही इस प्रयोग की हवा निकालने का काम किया है।खुलेआम मुस्लिम वोटर्स से उनकी अपील ने पश्चिम यूपी में जाटों के उन ज़ख्मो को हरा कर दिया जो 2013 में दंगो ने दिए थे और उस समय सरकार में अखिलेश में थे नतीजा वेस्टर्न यूपी से सबका सफाया हो गया यहाँ तक चौधरी चरण सिंह की विरासत भी दफन हो गई।डिंम्पल ने सार्वजनिक रुप से मायावती के पैर छुए इसे भी उस पीढ़ी के यादवो ने सही नही माना जो मुलायम और शिवपाल के दौर से सपा से जुड़े थे अखिलेश की मनमानी के बाबजूद वे यादव जोड़ से सपा के साथ खड़े थे  फिर मैनपुरी में माया औऱ मुलायम के सयुंक्त शो ने इस बड़े वर्ग को सोचने पर विवश कर दिया कि  उनका यादव होना क्या सिर्फ सैफई के कुनबे को जिताने के लिये ही है इसीलिए यादव बाहुल्य इलाकों में भी सपा को शिकस्त झेलनी पड़ी।फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा,कन्नौज,बदायूंसे लेकर पूर्वांचल के यादवों में यह भावना साफ थी कि अखिलेश ने जरूरत से ज्यादा माया के आगे सरेंडर कर दिया है।यूपी की एक दूसरी सामाजिक राजनीतिक तस्वीर भी है गैर यादव गैर जाटव।इस तस्वीर को राजनीतिक विश्लेषक बहुत गंभीरता से नही लेते है इस तस्वीर में जाटव नही है लेकिन पासी है,खटीक,है बाल्मीकि है,परिहार खंगार,शाक्य,बरार है ये सब दलित है जो जाटव सम्पन्नता से परेशान है इसी तरह यादवों की जगह मौर्या, लोधी,कुर्मी,कोइरी,कुशवाह, राजभर,भोई निषाद,केवट,प्रजापति,सेन,धोबी,जैसे जातिवर्ग भी है ये भी पिछड़े है पर ये यादवों की तरह सम्पन्न नही है न राजनीति में इनकी कोई चर्चा करता था मोदी अमित शाह की एंट्री से पहले यूपी में।बीजेपी ने सही मायनों में अर्थमेटिक को कास्ट केमेस्ट्री से मात दे दी है और इसके लिये प्रयोगशाला उपलब्ध कराई मोदी से भयभीत माया अखिलेश औऱ अजीत ने।

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  1. अखिलेश स्वयं चाहे खुद को बड़ा राजनीतिज्ञ मानते हों लेकिन वे मुलायम व् शिवपाल के सामान नहीं हो सकते , रामगोपाल की तो नाव इन दोनों की वजह से तैर रही थी वरना उनकी कोई औकात तो कभी कोई रही ही नहीं , मायावती अखिलेश को चाहे कितना ही कोसें लेकिन यह भी सच है कि उन्हें खुद के जाटव समाज के वोट भी नहीं मिले वे भी कुछ वोट भा ज पा को शिफ्ट हुए , अब वह समय नहीं रहा किlog आँख मींच कर नेताओं के पीछे चल पड़े , खैर कुल मिला कर माया ने भतीजे को गॉड में बिठा कर उसकी मीठी गोलियां खुद हजम कर लीन और फिर उतार कर खेलने भेज दिया इस आश्वासन के साथ कि कुछ और ले कर आ फिर तुझे गॉड में बैठाऊंगी

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