कविता

मधुसूदनजी की कविता: मास्‍को में बारिश, मुंबई में छाता

बिन बादल,

बिन बरसात,

बिना धूप,

सर पर छाता!

एक लाल मित्र मुम्बई में मिले।

पूछा, भाई छाता क्यों, पकडे हो?

बारिश तो है नहीं?

तो बोले,

वाह जी,

मुम्बई में बारिश हो,

या ना हो, क्या फर्क?

मास्को में तो, बारिश हो रही है।

१० साल बाद।

जब मास्को से भी कम्युनिज़्म

निष्कासित है।

अब भी वे मित्र, बिन बारिश

छाता ले घूम रहे हैं।

हमने किया वही सवाल–

कि भाई छाता क्यों खोले हो?

अब तो मास्को में भी बारिश बंद है?

तो बोले देखते नहीं

अब तो जूते बरस रहें है।

{सूचना: आज कल चीन में वर्षा हो रही है।}