पर्यावरण विश्ववार्ता

कोपनहेगन सम्मेलन का अर्थ और उसके परिणाम

globalwm2_fix-1_1251910811_mकभी महात्मा गाँधी ने कहा था- इंसान की जरुरतों को प्रकृति तो पूरा कर सकती है लेकिन इंसान के लालच को नहीं। आज इंसान का लालच सभी सीमाओं को लांघ चुका है। इस लालच पर किस तरह से लगाम लगाया जाये, यही है इस सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा।

192 देश के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में भागीदारी करने के लिए आ रहे हैं। सभी मिल-बैठकर विचार करेंगे कि कैसे इस पृथ्वी को ग्रीन हाउस गैस के खतरों से बचाया जाय?

पर्यावरण के प्रति गहन चिंता का कारण

धीरे-धीरे ग्रीनहाउस गैस ने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया है। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता चला जा रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। सागर के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। समंदर से सटे निचले इलाकों की बस्तियां या तो जल समाधि ले चुकी हैं या लेने के कगार पर हैं। मौसम का मिज़ाज़ पूरी तरह से बदल चुका है। फसल बर्बाद हो रहे हैं। सुनामी और साइक्लोन आज एक आम बात बन चुकी है। समग्रत: इंसान का जीना बदस्तूर मुहाल होता चला जा रहा है। शायद इसलिए लगभग सभी देश इस समस्या से इत्तिफ़ाक रखते हुए इस सम्मेलन में आज से शिरकत करेंगे।

समाधान

समस्या का कारण है- वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस की अधिकता। अस्तु इस गैस की मात्रा में कमी लाकर इस समस्या से निदान पाया जा सकता है।

क्या समस्या का समाधान आसान होगा?

शायद समस्या का समाधान इतना आसान नहीं है। विकास का कार्य भविष्य में भी चलता रहेगा। कल-कारखाने बंद नहीं किये जायेंगे। गाड़ियों का भी सड़क पर दौड़ना बंद नहीं होगा।

एक बीच का रास्ता है कि घातक गैसों के उत्सर्जन में कमी लाया जाये। उर्जा के उपयोग में कमी और उसकी बर्बादी को रोकने की दिषा में सकारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं। ऐसे भी रास्ते अपनाये जा सकते हैं जिससे ग्रीन हाउस गैस का जमावाड़ा वायुमंडल में न हो सके। इस दिशा में पेड़-पौधे हमारी मदद कर सकते हैं। कम-से-कम हम इनकी मदद से कार्बन डाईआक्साईड पर काबू तो जरुर पा सकते हैं।

कोपनहेगन सम्मेलन के बाद क्या फ़र्क आ सकता है ?

इस सम्मेलन में सभी देश एक ऐसी संधि पर हस्ताक्षर करेंगे, जिसके बाद सभी देश ग्रीन हाउस गैस की मात्रा में निश्चित प्रतिशत तक कटोती 2020 तक करने के लिए बाध्य होंगे। खासकर के विकसित देश। उल्लेखनीय है कि वायुमंडल में एकत्र 80 फीसद एकत्र ग्रीन हाउस गैस की मात्रा के लिए ये विकसित देश ही जिम्मेदार हैं।

पुनश्‍च यहाँ यह रेखांकित करना जरुरी होगा कि इस सम्मेलन के पूर्व क्योटो सम्मेलन में भी इस तरह की संधि पर हस्ताक्षर किये गये थे, परन्तु उसके परिणाम बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहे है, जबकि क्योटो सम्मेलन का लक्ष्य 5.2 फीसद ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को 1990 के लेवल से 2012 तक कम करना था। ऐसा मानना है कि कोपनहेगन सम्मेलन में इससे कहीं बहुत बड़े लक्ष्य को 2020 तक पा्रप्त करने की मंशा भागीदार देशों की है।

अमीर देशों पर ज्यादा दबाव क्यों?

विकसित देश ही ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को ज्यादा बढ़ाने के जिम्मेदार हैं। चूँकि विकसित देश पूरी तरह से कल-कारखानों से लैश है। लिहाजा सबसे अधिक गैसों का उत्सर्जन यहीं होता है और भविष्य में भी स्थिति में कोई बदलाव आने की संभावना नहीं है। आश्‍चर्यजनक रुप से केवल 30 विकसित देश 50 फीसद ग्रीन हाउस गैस की मात्रा का उत्सर्जन करते हैं। इनका प्रति देश गैस उत्सर्जन की मात्रा विश्‍व औसत से दोगुना और भारत से दस गुना है।

बाली सम्मेलन

बाली सम्मेलन के अनुसार सभी देशों खासकर के विकसित देशों को उर्जा के उपयोग में कमी लानी चाहिए। फिर भी विकसित देश बाली सम्मेलन के निहितार्थों पर पानी फेरने पर तुले हुए हैं। इस सम्मेलन में विकासशील देशों को राहत देते हुए कहा गया था कि वे उर्जा के उपयोग और ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं रहेंगे, क्योंकि विकासशील देश मूल रुप से अपने देशवासियों की आधारभूत जरुरतों को पूरा करने में ही असमर्थ हैं। गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी इत्यादि इन देशों की मुख्य समस्या है और स्वाभाविक तौर पर इनकी चिंता का विषय भी यही है। लिहाजा विकासशील देश चाहते हुए भी विकास से मुख नहीं मोड़ सकते।

संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की चिंता कितनी वाजिब है

सैद्वांतिक तौर पर सभी देश इस विषय पर एकमत लगते हैं। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। विकासशील देश चाहते हैं कि विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में अधिक से अधिक की कटौती करे और साथ ही साथ उन्हें तकनीकि और आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवाये। वहीं विकसित देश इस मामले में तनिक भी गंभीर नहीं है।

कोपनहेगन सम्मेलन के परिणाम

कोपनहेगन सम्मेलन को बाली सम्मेलन के दूसरे चरण के रुप में नहीं देखा जा सकता है। बावजूद इसके सभी देश एक निश्चित फीसद तक ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को कम करने का वायदा तो इस सम्मेलन में जरुर कर सकते हैं। कुल मिलाकर हमारा विनाश तय है।

-सतीश सिंह