भारत के लिए G7 शिखर सम्मेलन के मायने

डॉ. संतोष कुमार

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने G-7 (ग्रुप ऑफ सेवन) के तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन में जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ के विशेष निमंत्रण पर हिस्सा लिया। जर्मनी जो की G-7 का अध्यक्ष होने के नाते इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी कर रहा हैं।G-7 शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रित करना, भारत और जर्मनी के बीच मजबूत और घनिष्ठ साझेदारी और उच्च-स्तरीय कूटनीतिक सम्बन्धो को दर्शाता भी हैं। G-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधान मंत्री मोदी ने दो सत्रों को संम्बोधित किया, जिसमें  पर्यावरण और जलवायु से जुड़े हुए विभिन्न पहलू, ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और लोकतान्त्रिक मूल्यों पर जोर दिया। इस बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडू सहित कई अन्य राष्ट्रो के प्रमुखों ने हिस्सा लिया। इसके अतिरिक्त इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी ने अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्षो के साथ द्विपक्षीय बैठक भी की। जो भारतीय प्रधानमंत्री की भारत को एक वैश्विक शक्ति बनाने की मंशा को दर्शता है। साथ ही साथ  यह भारतीय विदेश नीति के वसुदेवकुटुम्कम के सिद्धांत का एक हिस्सा भी है। 

क्या है G-7: G-7  विश्व के प्रमुख औद्योगिक देशों का एक अनौपचारिक संघठन है, जिसमें  कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटैन  और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। इसके साथ साथ यूरोपियन यूनियन के प्रतनिधि भी G-7 के शिखर सम्मेलनों में हिस्सेदारी करते आये हैं।  ग्रुप ऑफ़ सेवन की स्थापना ग्रुप ऑफ सिक्स के रूप 1975 में फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विभिन्न प्रकार के आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने और औद्योगिक लोकतंत्रों के लिए एक सामान्य मंच प्रदान करने के  मकसद से की गई थी। उसके बाद सन 1976 में कनाडा के शामिल होने से इसे ग्रुप सेवन के नाम से जाना जाने लगा। सन 1998 में रूस के शामिल हो जाने से इसे G-8 के नाम से जाना जाता रहा हैं। किन्तु 2014  में रूस के यूक्रेन में दखल अंदाज़ी की वजह से रूस को G-8 बाहर कर दिया गाय और यह ग्रुप पुनः G7 के नाम से जाना जाने लगा। G-7 देश ग्लोबल पापुलेशन का 10%, ग्लोबल जीडीपी का 31% हिस्सा साझा करते हैं। G-7 देश दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक होने के साथ साथ G7 देश विश्व में सर्वाधिक परमाणु ऊर्जा का उत्पादन भी करते हैं।

भारत के लिए G-7 के मायनें: सर्वप्रथम अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2020 में G-7 शिखर सम्मेलन में भारत समेत ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया और रूस को पुनः इस मंच  में शामिल करने का प्रस्ताव किया था। जिसका कारण भारत एक बढ़ी और उभरती हुई अर्थव्यवस्था वताया गया था। इसके अतिरिक्त भारत G-7 देशों के लिए बड़ा बाज़ार भी है। दूसरा भारत G-7 में इसलिए शामिल होना चाहता हैं ताकि भारतीय उद्योगों को यूरोपीय बाजार में रियायत मिल सके। मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से, वह तीसरी बार G7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। भारत को 2019 में G-7 फ्रेंच प्रेसीडेंसी द्वारा G-7 शिखर सम्मेलन में ” सदभावना भागीदार” के रूप में आमंत्रित किया गया था और प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु और जैव विविधता, और डिजिटल परिवर्तन पर हुए सत्रों में भाग लिया था। इससे पहले ड़ॉ मनमोहन सिंह G-7 शिखर सम्मेलनों में पांच बार हिस्सा लिया था। भारत ग्लोबल स्तर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृतत्व में विभिन्न मंचो पर चाहे वह क्वैड हो या ब्रीक्स और सयुंक्त राष्ट्र संघ और उसकी सहयोगी एजेंसी क्यों न हो बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा हैं। यह भारत की अंतरास्ट्रीय स्तर उभरती हुई शक्ति को दर्शता हैं। 

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र होने के साथ साथ रीजनल स्तर पर और ग्लोबल स्तर पर हर प्रकार की भूमिका निभा रहा है। जिससे भारत G-7 देशों के लिए एक आदर्श भागीदार बनकर उभरा हैं। यही कारण हैं कि 2010 के बाद लगभग प्रत्येक G-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहा है।G-7 शिखर सम्मेलन वर्तमान जर्मन प्रेसीडेंसी के तहत भारत को निवेश, टेक्नोलॉजी और क्लाइमेट चेंज के अतिरिक्त फंडिंग जुटाने के साथ साथ G7 देशों के साथ नई साझेदारी बनाने के अवसर भी प्रदान करेगा।

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