वफ़ा के लिए तड़पते मर्द
पारसमणि अग्रवाल
जब भी कोई रिश्ता टूटता है, समाज बिना सुने, बिना समझे और बिना परखे सीधे लड़के को कठघरे में खड़ा कर देता है। लड़की रोती है, वो मासूम है। लड़का चुप है – वो गुनहगार है। लड़की रिश्ता तोड़े – स्वतंत्रता की मिसाल। लड़का रिश्ता छोड़े – बेवफा। यह कैसा इंसाफ है? क्या किसी रिश्ते की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ पुरुष के कंधों पर डाल दी गई है?
प्यार, यह शब्द सुन के जहन रोमांचित हो उठता है क्योंकि प्यार एक आस होती है, एक विश्वास होता है, दो दिलों का अटूट मिलन होता है, दोनों एक दूजे के लिए खास होते है, हर सुख दुःख में साथ होते है पर मौजूदा परिवेश में प्यार समानता की चौखट पर बेदम होकर रिश्तों की अदालत में सिर्फ पुरुष को क्यों फांसी देता प्रतीत हो रहा है। हर बार जब कोई रिश्ता खत्म होता है तो समाज का पहला सवाल होता है – “लड़के ने क्या किया?” कभी पूछा है किसी ने – “लड़की ने क्या किया?” कभी-कभी तो लड़की ही होती है जो धोखा देती है, दोहरी ज़िंदगी जीती है, झूठ बोलती है, फिर भी समाज उसे मासूम मानता है। क्यों? सिर्फ इसलिए कि वो औरत है? क्या औरतें इंसान नहीं जो गलतियाँ नहीं कर सकतीं? यहाँ सिर्फ रिश्ता टूटा नहीं बल्कि फांसी पर सिर्फ लड़का चढ़ा। समाज के इस चेहरे से तो आप परिचित होंगे क्योंकि उसी समाज के आप भी हिस्सा है। एक लड़की ब्रेकअप करे तो उसके लिए तर्कों की झड़ी लग जाती है और कहा जाताहै कि उसे उसकी आज़ादी चाहिए थी, लड़का टॉक्सिक था. उसके पैरंट्स को पसंद नहीं था लेकिन जब लड़का ब्रेकअप करे तो वो तुरंत बेवफा, मतलबी, खिलवाड़ करने वाला और न जाने क्या-क्या बन जाता है। लड़का अपनी मेहनत, समय, पैसा और भावनाएँ लगाता है। वो घंटों फोन पर बात करता है, मीटिंग्स छोड़कर मिलने जाता है, अपनी ज़रूरतें किनारे रखकर लड़की की ख्वाहिशें पूरी करता है। फिर भी उसे क्या मिलता है? शक, तिरस्कार और अंत में बेवफा का टैग। जो रिश्ता लड़के ने सींचा, उसी में उसे जहर घोलने वाला कहा गया।
सम्भवतः समाज की दकियानूसी सोच में यह बात पूरी तरह घुल चुकी है कि हर हर्ट ब्रेक की जड़ में लड़का ही होता है। सिर्फ इतना ही नहीं, जब कोई सोशल मीडिया पर ब्रेकअप स्टोरी आती है तो बिना तथ्यों के ही लड़के को गालियाँ पड़ती हैं। लड़की के आँसू देखकर जजमेंट पास कर दिया जाता है। इसके साथ ही यदि कई लड़कियाँ जानबूझकर लड़कों की भावनाओं का उपयोग करती हैं। रिश्ते का दिखावा करके उनसे गिफ्ट्स लेना,पैसे खर्च करवाना,उनका समय और मानसिक ऊर्जा खींचना, फिर किसी बेहतर विकल्प के आते ही रिश्ता तोड़ देना और ऊपर से समाज क्या कहता है? शायद लड़की मजबूर रही होगी। एक लड़का अगर दो लड़कियों से बात कर ले तो समाज उसे चरित्रहीन कह देता है लेकिन अगर लड़की दो लड़कों से एक साथ डेटिंग कर रही हो, तो लोग कहते हैं – वो तो अपने ऑप्शन एक्सप्लोर कर रही है।
ये कैसी मानसिकता है जिसमें वही काम लड़की करे तो मॉडर्न और लड़का करे तो गुनहगार? आजकल सोशल मीडिया पर ब्रेकअप्स की कहानियाँ वायरल होती हैं। लड़कियाँ लड़कों की फोटो, चैट्स और पर्सनल बातें सार्वजनिक कर देती हैं। उनका चरित्र हनन कर देती हैं। और लड़के? नौकरी खो बैठते हैं, मानसिक तनाव से जूझते हैं, कई बार आत्महत्या तक कर लेते हैं फिर भी दुनिया चुप रहती है। लड़का एक बार सच में किसी लड़की से प्यार करता है, तो वो सब कुछ दांव पर लगा देता है। परिवार से बगावत, करियर से समझौता, खुद की खुशियों का त्याग। लेकिन बदले में अगर उसे धोखा मिले, तो वह कहीं जाकर अपने दर्द को किसी अंधेरे में छुपा लेता है क्योंकि उसे समाज से सहानुभूति नहीं मिलती। अगर मिलती है तो सिर्फ चुप्पी और उपहास, जो सबसे ज्यादा प्यार करता है, वही सबसे ज्यादा टूटता है लेकिन दिखावा नहीं करता। कहा जाता है न कि पाँचो अंगुलियां एक सी नहीं होती .ऐसे ही हर प्रेम कहानी में ऐसा नहीं होता लेकिन 99 प्रतिशत कहानियों में दोषी सिर्फ लड़का ठहराया जाता जबकि कड़वा सच तो ये है कि हर ब्रेकअप में लड़का गलत नहीं होता। हर आँसू सच्चे नहीं होते। हर आरोप की सच्चाई नहीं होती।
अब ज़रूरत है कि समाज आँख खोले। लड़कों के दर्द को, उनकी भावनाओं को, उनकी वफ़ा को पहचाने। क्योंकि वफ़ा किसी जेंडर की जागीर नहीं, यह इंसानियत का एहसास है। लड़के प्यार में बेवफा नहीं. वो बस टूट जाते हैं और बोलने की हिम्मत नहीं बचा पाते। रिश्तों के कटघरे में लड़कों पर बेवफा होने का दाग कब तक रहेगा ,ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बार चिंतन जरूर कीजिए कि ऐसी घटनाओं में क्या वाकई झूठे आंसू सच को धो जाते है।
पारसमणि अग्रवाल