मिर्जापुर -भदोही : मंडल -कमंडल की लड़ाई में पिछड़ती गई कांग्रेस

प्रभुनाथ शुक्ल

भदोही, 22 मई । मिर्जापुर -भदोही संसदीय सीट पर कांग्रेस का अपना जमाना था। कांग्रेस यहाँ से छह बार अपना परचम लहराया। लेकिन मण्डल -कमण्डल की लड़ाई में कांग्रेस पिछड़ती गई।1894 में पंडित उमाकांत मिश्र पार्टी के अंतिम सांसद हुए। राष्ट्रव्यापी मंडल -कमंडल की सियासी जंग में स्थानीय मुद्दे गायब हो गए। राजनीति और चुनाव की दशा बदल गई। अब चुनाव की दिशा जाति -धर्म, अगड़ा -पिछड़ा, दलित -अल्पसंख्य की तरफ मुड़ गई है।

इंदिरा विरोधी लहर में पराजित हुईं कांग्रेस

मिर्जापुर भदोही संसदीय सीट से पंडित उमाकांत मिश्र कांग्रेस के अंतिम संसद साबित हुए। 1984 से 1989 तक वह यहाँ के सांसद रहे। 1989 के बाद कांग्रेस यहाँ दोबारा पैर नहीं जमा पाई। कांग्रेस से यहां

दो ब्राह्मण सांसद हुए जिसमें पंडित श्यामधर मिश्र भदोही और उमाकांत मिश्र मिर्जापुर से रहे। हालांकि कांग्रेस को अपने दौर में भी जय पराजय की चक्की में पिसना पड़ा। 1967 में यहां से जनसंघ के वंश नारायण सिंह विजयी हुए  जबकि 1977 में इमरजेंसी के आसपास इंदिरा विरोधी लहर में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। उस दौरान यहां भारतीय जनता लोकल से 1977 में फकीर अली अंसारी सांसद निर्वाचित हुए।

पंडित श्यामधर मिश्र ने किए बड़े विकास कार्य

भदोही-मिर्जापुर में जो बड़े विकास कार्य हुए वह कांग्रेस के दौर में ही हुए। मिर्जापुर और भदोही को जोड़ने वाला गंगा पर बना शास्त्री सेतु पंडित श्यामधर मिश्रा की देन थी। पूर्वांचल के दूसरे जनपद और  शक्तिपीठ विंध्याचल को जोड़ने में इसकी अहम भूमिका है। पूर्वांचल की पहली इकलौती दी काशी  सहकारी चीनी मिल, गोपीगंज में स्थित कमल फैक्ट्री,

ज्ञानपुर नहर पंप कैनाल यह, भदोही इंदिरा वूलेन मिल पंडित श्यामधर मिश्र और कांग्रेस की धरोहर थीं। लेकिन  फिलहाल अब सभी बिक चुकी हैं या बंद हैं। देश के प्रथम केंद्रीय सिंचाई मंत्री रहे पंडित श्यामधर मिश्र ने भदोही में 400 नलकूपों की स्थापना कराई। लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता कांग्रेस के पतन के बाद लोगों के दिमाग से उसका विकास भी गायब हो गया। क्योंकि कांग्रेस को न जानने वाली एक पूरी युवापीढ़ी उससे अनभिज्ञ है।

मण्डल -कमण्डल की लड़ाई में पिछडी कांग्रेस

मंडल कमंडल के जंग में मिर्जापुर भदोही जैसा मजबूत कांग्रेस का किला ढहता गया। मंडल लहर में जब देश में विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई में तीसरा मोर्चा बना तो 1989 में जनता दल से युसूफ बिग यहां के सांसद चुने गए। फिर राम लहर का दौर जब उफान पर आया तो भाजपा से बलिया के वीरेंद्र सिंह मस्त लोगों के दिलों पर राज किया।

मुलायम सिंह ने फूलन को उतार किया नया प्रयोग

उत्तर प्रदेश में मंडल कमंडल की राजनीति के बाद जब आरक्षण की आग देश में फैली है तो  यह लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़े की हो गई। फिर समाजवादी पार्टी की अपनी पकड़ मजबूत हुईं। मुलायम सिंह यादव मिर्जापुर -भदोही संसदीय सीट पर आरक्षण की आग में जातिवादी लामबंदी की नई राजनीति की शुरुआत कर दिया। उन्होंने दास्यु सुंदरी  फूलन देवी को चुनावी मैदान में भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त के सामने उतार दिया। मुलायम सिंह का यह सियासी प्रयोग सफल रहा और फूलन देवी 1996 और 1999 में यहां से सांसद चुनी गई।

बसपा के उभार के बाद कांग्रेस से कटे दलित

फिर मंडल-कमंडल की इस लड़ाई में मायावती दलित विमर्श नया एजेंडा लेकर आई। उनकी अगवाई में उत्तर प्रदेश में दलित जातियां इकट्ठा हो गई। उन्होंने अगड़े और पिछडों के खिलाफ दलित जातियों को एक मंच के नीचे लाने का काम किया। 2000 के दशक में मायावती का यहां अंगूठा प्रयोग था। फिर यहां से 2004 में नरेंद्र कुशवाहा और उपचुनाव 

रमेश दुबे बसपा से सांसद निर्वाचित हुए। भाजपा, सपा और बसपा के उभार के बाद कांग्रेस का मूल कैडर वोटर रहा ब्राह्मण, ठाकुर दलित और ओबीसी सम्बंधित दलों में चला गया। फिर कांग्रेस उत्तर प्रदेश से फिसलती गई और पंजे की पकड़ ढीली पड़ गई।

मोदी लहर में भजपा का जलवा कायम

2008 भदोही लोकसभा स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आयी। इसके पहले सांसद बसपा से पंडित गोरखनाथ पांडेय हुए। 2014 पूरे देश में मोदी लहर में वीरेंद्र सिंह मस्त भदोही से निर्वाचित हुए। फिर भजपा नए जातिय प्रयोग की तरफ बढ़ी और 2019 में रमेश बिंद भदोही से निर्वाचित हुए। लेकिन 1984 से लेकर 2019 तक कांग्रेस यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई। इसकी वजह रही की 40 साल के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस हासिए पर है। अब कांग्रेस के दिन कब लौटेगें यह वक्त बताएगा।

 मिर्जापुर -भदोही से कब-कब जीती कांग्रेस

1952-57 -जाॅन एन विल्सन- कांग्रेस 

1957-62 – जाॅन एन विल्सन- कांग्रेस 

1962-67- पं श्यामधर मिश्र- कांग्रेस 

1971-77- अजिज इमाम- कांग्रेस 

1980-84- अजिज इमाम- कांग्रेस 

1984-89- उमाकांत मिश्र-कांग्रेस

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