सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को लेकर भ्रामकता सही नहीं है’

~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
मध्यप्रदेश के पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनावों में बगैर ओबीसी आरक्षण के निर्वाचन सम्पन्न कराने एवं अधिसूचना जारी करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया है। किन्तु इस पर राजनैतिक गिद्ध दृष्टि गड़ाने वाले इस निर्णय को भी निराशापूर्ण बताते हुए अपनी वोटबैंक की राजनीति सिद्ध करना चाह रहे हैं। ये राजनैतिक दल और उनके नेतागण जो हमेशा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्वागत योग्य बताने में लगे रहते हैं। वहीं अब सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को लेकर ओबीसी वर्ग की रहनुमाई का दिखावा करते हुए नेतागणों की प्रेस विज्ञप्तियां , सोशल मीडिया में बयान व भाषणों की रफ्तार तेज होनी शुरु हो गई है। वे अब इस निर्णय पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने पर जुटे हुए हैं। क्या यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के अन्तर्गत नहीं आता है ?

जब पंचायती राज व्यवस्था में ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई प्रावधान ही नहीं है,तब राजनीति की चौसर में विद्वेषपूर्ण राजनैतिक रोटियां सेंकने से राजनैतिक दल और उनके नेतागण बाज क्यों नहीं आ रहे हैं ? वैसे जो हर पल संविधान की कसमें खाते रहते हैं और संविधान को ही धर्म बताते हैं। तब वे सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर विरोध जतलाते हुए क्या हासिल करना चाह रहे हैं ? क्या इसे ही सामाजिक न्याय कहते हैं?

आखिर! जनमानस के मध्य न्यायपालिका के निर्णय के विरूद्ध भ्रामकता फैलाने पर क्यों जुटे हुए हैं ? क्या राजनैतिक दल और उनके नेतागण सर्वोच्च न्यायालय से बड़े हो गए हैं? याकि जानबूझकर न्यायपालिका की अवमानना करने का एजेंडा शुरु कर दिया गया है। जिस सामाजिक न्याय की रट लगाते हुए ये जनमानस को वोटबैंक के लालच में बरगलाने पर जुटे हुए हैं। आज तक इन राजनैतिक दलों , नेताओं और उन वर्गों के तथाकथित ठेकेदारों ने उन वर्गों का कितना भला किया है?

जातियों और वर्गों की ठेकेदारी करने वाले इन सत्तालोभियों ने अब तक केवल अपना घर परिवार ही अकूत संपत्तियों से भरा है‌ ‌। ये जिन वर्गों के नाम पर राजनीति की ठेकेदारी करते हैं,उसके वंचित आमजन का जीवन आज भी बदहाली का शिकार है। लेकिन मजाल क्या कि ये अपनी बेशुमार दौलत को उन वर्गों के उत्थान के लिए खर्च कर दें। इन ठेकेदारों का एक ही फण्डा है ,वह यह कि बरगलाइए,उन्माद फैलाइए और अपने लिए वोटबैंक का ध्रुवीकरण करते हुए वारा – न्यारा करिए।

अपने गिरेबान में झांकने के बजाय वोटबैंक की राजनीति चमकाने के लिए ये खुलेआम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रति अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं‌। तो क्या यह इनकी संवैधानिक अनास्था को व्यक्त नहीं करता है ? देश और समाज को वोटबैंक के तौर पर बनाने और उसका ध्रुवीकरण करते हुए वैमनस्य फैलाने के कारण ही देश विकास कार्यों में इतना पीछे चला जा रहा है। संवैधानिक स्थिति के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी वर्ग में जातियों या समूहों को शामिल करने , हटाने को लेकर कोई स्पष्ट मापदंड नहीं बना है। ऐसे में आधिकारिक तौर पर ओबीसी वर्ग की गणना का निर्णय भी सुस्पष्ट नहीं है।

वहीं जब न्याय के रखवाले सुप्रीम कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव करवाने के लिए निर्णय दिया है,तब उसे लेकर राजनैतिक वितण्डा खड़ा करना व उसके विरोध में राजनैतिक टीका-टिप्पणियां करना‌ । यह निश्चय ही राजनैतिक दलों और उनके राजनेताओं की संविधान के प्रति अनास्था का सूचक व न्यायिक अवमानना के अन्तर्गत ही माना जाना चाहिए। हालांकि न्यायिक अवमानना का निर्धारण न्यायपालिका ही करती है‌ । फिर भी जिस प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरोध में राजनीति की शतरंजी चाल खेली जा रही है। वह राष्ट्र की न्यायपालिका की शाख को विधायिका द्वारा बट्टा लगाया जाना ही है।

अगर वोटबैंक के जहर को इसी तरह से राजनैतिक दल और उनके नेता परोसते रहे तब देश किस दिशा में जाएगा,इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। और राजनैतिक तुष्टिकरण की यह विषबेल विभीषक वर्ग संघर्ष की चिंगारी को सुलगा देगी। अभी समय है कि राजनैतिक दल और नेतागण अपनी यह प्रवृत्ति त्यागें और जनकल्याण के प्रति निष्ठावान बनें।

ऐसे में राजनैतिक दलों और उनके नेतागणों को चाहिए कि अपने वौटबैंकीय राजनैतिक स्वार्थ को साधने के चक्कर में जनमानस के मध्य सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रति भ्रामकता न फैलाएं और न ही जनमानस को बरगलाएं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का पालन करते हुए निर्वाचन सम्पन्न कराएं ताकि व्यवस्थाएं दुरुस्त हों और जनकल्याण के कार्य सुचारू रुप से गति पकड़ सकें!

~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here