मिसाइल के क्षेत्र में महाशक्ति बना भारत

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agni 4संदर्भ- सेना के लिए अग्नि-चार का परीक्षण

प्रमोद भर्गाव
अग्नि-5 और आकाश मिसाइल के बाद अग्नि-4 के परीक्षण ने भारत को मिसाइल के क्षेत्र में पांचवीं बड़ी शक्ति बना दिया है। एक साल के भीतर किए गए ये तीनों परीक्षण स्वदेशी तकनीक का कमाल है। अग्नि-5 में 85 प्रतिशत और आकाश में 92 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक अपनाई गई थी,जबकि अग्नि-4 में शत-प्रतिशत स्वदेशी तकनीक प्रयोग में लाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया‘ परिकल्पना इन मिसाइलों में फलीभूत हुई है। अग्नि-4 की मारक क्षमता 4000 किमी है। साथ ही यह परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है। अग्नि-5 जहां तीन हजार डिग्री तपमान सहने की क्षमता रखती थी,वहीं अग्नि-4,4000 डिग्री तक का तपमान सह सकती है। 20 मीटर लंबी और 17 टन वजनी इस बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण ओडिशा के बालासोर समुद्र तट के अब्दुल कलाम द्वीप पर किया गया। इस मिसाइल के अचूक निशाने की जद में चीन और पाकिस्तान के प्रमुख शहर आ गए हैं।
भारत अत्याधुनिक मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में लगातार शक्ति संपन्न होता जा रहा है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में मिसाइलों का निर्माण द्रुत गति से हो रहा है। अग्नि-4 के कुछ माह पहले ही आकाश मिसाइल का परीक्षण ग्वालियर की धरती से किया गया था। इस परीक्षण में सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि देश को पहली स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली तकनीक से निर्मित ‘आकाश मिसाइल‘ मिल गई है। यह मिसाइल थल और वायु सेना दोनों के ही बेड़े में शामिल कर दी गई है। रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने वाली इस मिसाइल के कल-पूर्जों का 92 फीसदी निर्माण स्वदेशी तकनीक से किया गया था। इसके हरेक पूर्जे पर ‘मेक इन इंडिया‘ अंकित है। इसके पहले बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 के निर्माण में 85 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक की भागीदारी थी। आकाश मिसाइल सरकारी व निजी साझेदारी से तैयार की गई थी। इससे रक्षा के क्षेत्र में निजी पूंजी निवेश की सार्थकता भी सिद्ध हुई थी। इस मिसाइल की खासियत यह है कि यह सभी मौसमों व विपरीत परिस्थितियों में भी एक से अधिक लक्ष्य साधने में सक्षम सुपरसोनिक मिसाइल है। 25 से 30 किलोमीटर की दूरी तक यह अचूक निशाना साधने एवं हवा में भी मारक क्षमता में परिपूर्ण है। भारत,आकाश की सफलता के बाद आकाश-2 के निर्माण की तैयारी में लग गया है। इसकी मारक क्षमताएं आकाश-1 से दोगुना होंगी। साथ ही इसमें शूट एंड फायर सिस्टम मिसाइल में ही जुड़े होंगे। इसलिए यह लक्ष्य को और प्रभावी ढंग से भेदने में सफल होगी।
भारत मे रक्षा उपकरणों की उपलब्धता की दृष्टि से प्रक्षेपास्त्र श्रंृखला प्रणाली की अहम भूमिका है। आकाश से पहले तक भारत के पास पृथ्वी से वायु में और समुद्र्री सतह से दागी जा सकने वाली मिसाइलें ही उपलब्ध थीं। इसके बाद अग्नि-5 मिसाइल थी। यह ऐसी अद्भुत मिसाइल है जो सड़क और रेलमार्ग पर चलते हुए भी दुश्मन पर हमला बोल सकती है। इसके निर्माण में कैनेस्तर तकनीक का इस्तेमाल किए जाने से इसकी खूबी यह भी है कि जासूसी उपकरण और उपग्रह भी यह मालूम नहीं कर पाएगें कि इसे कहां से दागा गया है और यह किस दिशा में उड़ान भर रही है। इसलिए दुश्मन देश को इसे बीच में ही नष्ट करना नामुमकिन है। अग्नि-5 की विशेषता है कि इसे एक बार छोड़ने के बाद लक्ष्य साधने वाले सैनिक व वैज्ञानिक भी रोक नहीं सकते। 50 टन वजनी इस मिसाइल में एक हजार किलोग्र्राम परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता है। अमेरिका को छोड़कर शेष यूरोप, संपूर्ण एश्यिा और अफ्रीका इसकी मारक क्षमता के दायरे में है। भारत को बार-बार आखें दिखाने वाले चीन की राजधानी बीजिंग ही नहीं चीन का उत्तर में सबसे दूर बसा नगर हार्बिन भी इसकी मार की जद में है।
अग्नि-4 समुद्री सतह से वायु में उड़ान भरके निशाना साधने वाल ऐसी विलक्षण मिसाइल है,जो उड़ान के दौरान यदि कोई व्यवधान उत्पन्न होता है या मार्ग में भटक जाती है तो खुद ही सही मार्ग ढूंढने में सक्षम है। समुद्र से वायु के अलावा यह जमीन से जमीन पर भी मार्ग करने की अदभूत क्षमता रखती है। इसमें एक के बाद एक दो चरणों में मार करने वाले खतरनाक परमाणु हथियार रखने की क्षमता है। इस मिसाइल की एक अन्य विशेषता यह है कि यह 4000 डिग्री तक की गर्मी झेल सकती है। इस नाते यह दुनिया की विलक्षण मिसाइलों में से एक है। इसमें रिंग बेस्ड इनर्शियल रिडंडेंट नेवीगेशन सिस्टम और हाइली रिलायबल रिडंडेंट माइक्रो नेविगेशन सिस्टम की मदद से यह मिसाइल निशाने पर सटीक बैठती है।
रक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देने की दृष्टि से भारत में एकीकृत विकास कार्यक्रम की शुरूआत 1983 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य देशज तकनीक व स्थानीय संसाधनों के आधार पर मिसाइल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इस परियोजना के अंतर्गत ही अग्नि, पृथ्वी, आकाश और त्रिशूल मिसाइलों का निर्माण किया गया। टैंको को नष्ट करने वाली मिसाइल नाग भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है। पश्चिमी देशों को चुनौती देते हुए यह देशज तकनीक भारतीय वैज्ञानिकों ने इंदिरा गांधी के प्रोत्साहन से इसलिए विकसित की थी,क्योंकि सभी यूरोपीय देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक देने से इंकार कर दिया था। भारत द्वारा पोखरण में किए गए पहले परमाणु विस्फोट के बाद रूस ने भी उस आरएलजी तकनीक को देने से मना कर दिया, जो एक समय तक मिलती रही थी। किंतु एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिभा और सतत सक्रियता से हम मिसाइल क्षेत्र में मजबूती से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते रहे। सिलसिलेवार मिसाइलों के सफल परीक्षण के कारण ही वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को ‘मिसाइल मेन’ अर्थात ’अग्नि – पुत्र’ कहा जाने लगा था।
उनकी सेवानिवृत्ति के बाद इस काम को गति दी महिला वैज्ञानिक टीसी थाॅंमस ने। श्रीमती थाॅंमस आईजीएमडीपी में अग्नि 5 अनुसंधान की परियोजना निदेशक रही हैं। उन्हें भारतीय प्रक्षेपास्त्र परियोजना की पहली महिला निदेशक होने का भी श्रेय हासिल है। 23 साल पहले टीसी थाॅंमस ने एक वैज्ञानिक की हैसियत से इस परियोजना में नौकरी की शुरूआत की थी। अग्नि-5 से पहले उनका सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख अनुसांधन ’री एंट्री व्हीकल सिस्टम’ विकसित करना रहा है। इस प्रणाली की विशिष्टता है कि जब मिसाइल वायुमण्डल में दोबारा प्रवेश करती है तो अत्याधिक तापमान 3000 डिग्र्री सेल्सियस तक पैदा हो जाता है। इस तापमान को मिसाइल सहन नहीं कर पाती और वह लक्ष्य भेदने से पहले ही जलकर खाक हो जाती है। आरवीएस तकनीक बढ़ते तापमान को नियंत्रण में रखती हैं, फलस्वरुप मिसाइल बीच में नष्ट नहीं होती। अग्नि 4 और 5 इस आरवीएस तकनीक से संपन्न हैं। इस तकनीक के आविष्कार के बाद से ही टीसी थांमस को ’मिसाइल लेडी’अर्थात् ’अग्नि – पुत्री’ कहा जाने लगा है। श्रीमती थांमस को रक्षा उपकरणों के अनुसांधन पर इतना नाज है कि उन्होंने अपने बेटे तक का नाम लड़ाकू विमान ’तेजस’ के नाम पर तेजस थाॅंमस रखा है। वे मिसाइल अनुसांधन में लगे 400 वैज्ञानिक के समूह का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने में लगी हैं। डाॅ कलाम और श्रीमती थाॅमस ने नितांत मौलिक चिंतन से जुड़ी इन समस्याओं के समाधान देशज सोच से विकसित किए और आत्मनिर्भर हुए। जबकि हमारे नवउदारवादी नेता इन समस्याओं के हल निजीकरण की कुंजी और अंग्रेजी शिक्षा को बेवजह बढ़ावा देने में तलाशते रहे हैं। वैसे भी हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को पहले ही बाजार के हवाले कर दिया गया है। नतीजतन शिक्षा मौलिक सोच और गुणवत्ता का पर्याय बनने की बजाए,डिग्री हासिल कर केवल वैभव और विलास का जीवन व्यतीत करने की पर्याय भर रह गई है। ये हालात प्रतिभाषाली व्यक्ति के मौलिक चिंतन और शोध की गंभीर दृष्टि व भावना को पलीता लगाने वाले हैं। यहां हमें गौर करने की जरुरत है कि डाॅ अब्दुल कलाम बेहद गरीबी की हालत में सरकारी पाठशालाओं से ही शिक्षा लेकर महान वैज्ञानिक बनकर पूरी दुनिया में मिसाइल मेन के नाम से जाने जाते हैं। यही नहीं उनकी माध्यमिक तक की शिक्षा मातृभाषा में हुई है। लिहाजा डाॅ कलाम और श्रीमती थाॅमस इस बात के प्रतीक हैं कि वैज्ञानिक उपलब्धियां शिक्षा को बाजार के हवाले कर देने से कतई संभव नहीं हैं ? इन्हें देशज तकनीक और मौलिक सोच के वातावरण में विकसित करने की जरुरत है।

प्रमोद भार्गव

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