राहुल गांधी में आजकल कौन चाबी भर रहा है, पता नहीं। आजकल कोई उनको उल्टी पट्टी पढ़ा रहा है। वह राहुल पर राहुल से ही आक्रमण करवा रहा है! औरंगाबाद की एक सभा में राहुल ने कह दिया कि भाजपा की सारी सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित होती जा रही है। नाम लिये बिना उन्होने नरेंद्र मोदी का नाम ले लिया। लगभग यही बात, ऐसा माना जाता है कि एक अंतरंग बैठक में लालकृष्ण आडवाणी ने भी पिछले हफ्ते कही थी। यदि आडवाणीजी यह बात कहते हैं तो उसका कारण समझ में आता है लेकिन राहुल यही कहे तो आप हंसने के अलावा क्या कर सकते हैं?
भारत की सबसे पुरानी, सबसे बड़ी और सबसे महान पार्टी को अपनी पारिवारिक जागीर बनाने वाला जवान जब भाजपा पर ‘एकचालकानुवर्तित्व’ (एक संचालक का आज्ञापालन) का आरोप लगाए तो ऐसा लगता है जैसे कोई बिल्ली नौ सौ चूहे मारकर हज को चली है। क्या सचमुच नरेंद्र मोदी भाजपा के एकछत्र नेता बन गए हैं? इसमें शक नहीं कि इस समय चुनाव-प्रचार के एक मात्र सितारे वही हैं। प्रधानमंत्री एक ही हो सकता है, इसलिए उस पद के एक मात्र उम्मीदवार भी उन्हें ही बनाया गया है। लेकिन भाजपा में आंतरिक लोकतंत्र या खुलापन अभी भी पूरी तरह बरकरार है। अलग-अलग प्रांतों की समितियां उम्मीदवारों के नाम-सूची भेज रही हैं।
आगे केंद्रीय चुनाव समिति खुले विचार-विमर्श के बाद टिकिट तय करेगी। जैसे कांग्रेस आज एक मां-बेटा पार्टी बन गई है वैसे ही भाजपा कोई मोदी-पार्टी नहीं बन गई है। यदि प्रधानमंत्री बनने के बाद उसे लोग मोदी-पार्टी बनाने की कोशिश करेंगे तो वे मुंह की खाएंगे। मां-बेटा पार्टी तो बिना किसी विचारधारा के भी जिंदा है लेकिन जिस दिन भाजपा व्यक्ति-आधारित पार्टी बनी, उसी दिन उसका विखंडन शुरु हो जाएगा।
राहुल ने कहा कि भाजपा के हिंदुत्ववादी नेताओं ने गीता नहीं पढ़ी। अगर पढ़ी होती तो वे कुछ और ही होते। क्या खुद राहुल गीता पढ़ सकते है और पढ़कर उसे समझ सकते है? 10 साल से वह राजनीति पढ़ रहे है और अभी तक उन्होने उसका क ख ग भी नहीं सीखा है। यदि कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं होती तो इस नादान नौजवान को कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का ‘आचार्य’ कौन नियुक्त कर सकता था? यह नौजवान पहले सिर्फ कांग्रेसियों को उपदेश देता था, अब वह अपने ज्ञान का प्रसाद भाजपाइयों को भी बांट रहा है। कांग्रेस का यह ‘सर्वेसर्वा’ नेता नाम लिए बिना मोदी की तुलना हिटलर से कर रहा है। मोदी अभी तो प्रधानमंत्री भी नहीं बने है, लेकिन अभी से प्रधानमंत्री का सपना लेने वालों के दिन में उनकी दहशत बैठ गई है।
राहुल इस प्रकार के बयां दे कर अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हैं. उनके भाषण लेखक भी शायद अज्ञानी ही हैं, न ही जिनमें कोई राजनीतिकं सोच है या फिर राहुल लिख कर दिए भसनों ko एक तरफ रख कर अतिउत्साह में ऊलजुलूल भाषण दे देते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता कि क्या बोल रहे हैं. आखिर सीखापढ़ा कर खड़ा किया नेता कर भी क्या सकता है इसके सिवाय यह तोअब देश समझ चूका है कि राहुल में कोई विशेष योग्यता नहीं सिवाय नेहरू खानदान से होने के अलावा , और गांधी सर नाम के अलावा.जब वे बोलते हैं तो लगने लगता है कि वे हांफ .रहे हैं.
कुल मिला कर लगता ये है कि वह टीम के वो सदस्य हैं , जो खुद अपने ही पाले में गोल कर देता है, करता रहता है.