उम्मीद की किरण ‘मोदी’

-निर्भय कुमार कर्ण-
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सच ही कहा गया है कि यदि आपके अंदर इच्छाशक्ति और अपने आप पर विश्वास हो तो कुछ भी किया जा सकता है और इस बात को नरेंद्र मोदी ने सोलहवीं लोकसभा चुनाव में में कर दिखाया। अब बारी है उन वादों-इरादों की पूरा करने और जनता के उम्मीदों पर खरा उतरने की भी जिसे उन्होंने चुनावों के दौरान भारतीय जनता से किया था। लोकसभा चुनाव से लेकर बहुमत तक लोगों की उम्मीद मोदी से आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ने लगी और हो भी क्यों न आखिर जनता ने उन पर विश्वास कर रिकार्ड जीत दिलवाया, ऐसे में भारतीय जनता की ही उम्मीद नहीं बंधी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय नजरें भी उन पर आकर टिक गयी। ऐसे में यह शंका भी उत्पन्न होती रहती है कि आखिर ढेर सारी उम्मीदों पर मोदी और उनकी सरकार कैसे खरा उतर पाएगी। मुश्किलें कम नहीं है, लेकिन असंभव कुछ भी नहीं। इतिहास को देखें तो मोदी की हिम्मत और विश्वास का जलवा गुजरात में लोग देख चुके हैं और बिना थके अनवरत वह लड़ते-संघर्ष करते रहे हैं। गुजरात के भुज में भूकंप आने के बाद पूरा राज्य अस्त-व्यस्त हो चुका था। किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि गुजरात फिर से इतना जल्दी उठ खड़ा होगा और तेजी से दौड़ने लगेगा। लेकिन नरेंद्र मोदी ने गुजरात को इतना तेजी से विकसित किया कि लोग आश्चर्यचकित रह गए। वहीं 16वीं लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी के भाषण में जो विश्वास और दृढ़निश्चय झलक रहा था, वह न केवल काबिले तारीफ रहा बल्कि आश्चर्यजनक भी था।

मोदी सरकार बनने के बाद जिन-जिन इलाकों में समस्याओं का पहले से अंबार लगा हुआ था, वहां के लोग भाजपाई नेताओं और समर्थकों पर व्यंग्य कसते हुए आसानी से नजर आते हैं। उनका कहना होता है कि मोदी चुनाव से पहले कहते फिर रहे थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं। आखिर अच्छे दिन अब कब आएंगे अब तो मोदी जी की सरकार है। इसी दौरान एक व्यंग्य बड़ा ही रोचक लगा जो हमारे सहयोगी के द्वारा सुनने को मिला। दिल्ली के नांग्लोई इलाके में पानी की समस्याएं गर्मी के दिनों में प्रत्येक वर्ष बढ़ जाती है। ऐसे में जब मोदी सरकार बनने के बाद वह सज्जन वहां का दौरा किए तो कुछ महिलाएं बाल्टी लेकर पानी के लिए बाहर जा रही थी, उसी दौरान भाजपाई समर्थकों पर व्यंग्य कसा गया कि आखिर ऐसा कैसा अच्छा दिन आया है कि अब पानी के लिए महिलाओं को घरों से बाहर निकलना पड़ रहा है। जबकि हकीकत यह है कि प्रत्येक वर्ष दिल्लीवासियों को पानी की किल्लत से दो-चार होना पड़ता है और पानी के लिए घरों से बाहर निकलना पड़ता है। वैसे भी किसी भी समस्या को दूर करने के लिए समय और धैर्य रखने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा दिल्ली में पानी की समस्या के पीछे और भी कई कारण हैं। वैसे गौर किया जाए तो नरेंद्र मोदी ने शपथ लेते ही कड़ा और स्पष्ट संदेश दिया कि अफसर सहित मंत्री, सांसद आदि को जनता के लिए ईमानदारी से काम करना होगा और मेहनत से काम करने के लिए हमेशा तत्पर रहें। वाकई तब से प्रशासनिक कामों में सुधार भी देखा जा रहा है। कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की जा चुकी है और जो लगातार जारी रहने का अनुमान है। महंगाई से निपटने के लिए मोदी सरकार दिन-रात उपाय करने में जुटी है लेकिन इतना आसान भी नहीं कि महंगाई को नियंत्रित किया जा सके। फिर भी यदि प्रबंधन सही प्रकार से किया जाए तो सभी को नियंत्रित किया जा सकता है और यह बात मोदी अच्छी तरह से जानते हैं।

वाराणसी सीट से जीतकर नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मुझे तो गंगा मैया ने बुलाया है और मैं गंगा की सेवा करने आया हूं। इस बात को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने इसकी जिम्मेदारी उमा भारती को देकर एक कदम आगे बढ़ाया। यह विदित है कि देश में नदियों की साफ-सफाई और जीर्णोद्धार के लिए कई सारी परियोजनाएं पूर्व से ही चल रही थी और उस पर करोड़ों रूपए अब तक खर्च हो चुके हैं। वास्तव में नदियों के जीर्णोद्धार पर कुछ न कुछ तो काम हुआ लेकिन कुछ विशेष सफलता हाथ नहीं लगी। दिल्ली की यमुना नदी की हालत हो या फिर विभिन्न जगहों की गंगा लगभग सभी नदियों की हालत चिंताजनक बनी रही। गंगा-यमुना को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की किरकिरी कई बार हो चुकी है। लेकिन जिस प्रकार अब नए सिर से नदी परियोजनाएं पर काम चल रहा है, उससे ऐसा आभास होने लगा है कि गंगा नदी सहित देश की विभिन्न नदियों का कायाकल्प जरूर होने जा रहा है।

वैसे तो मोदी सरकार के पास समस्याओं का अंत नहीं है चाहे भ्रष्टाचार हो या फिर विदेश मामले या फिर घर के अंदर नक्सलवाद-उग्रवाद आदि समस्याएं। लेकिन सबसे पहले मूल चीजों को दुरूस्त करते हुए एक-एक कर समस्याओं से उन्हें पार पाना होगा। अविकसित तो अविकसित देश विकसित देश भी मोदी की ओर नजर लगाए बैठे हैं। उनकी मंशा है कि हमारे साथ भारत के संबंध अच्छे हो जिससे उनके देश का भी विकास हो सके और एक उन्हें उड़ान मिल सके। ढ़ेर सारी उम्मीदें एक तरफ है और मोदी सरकार एक तरफ। एक तरफ समस्याओं का ढ़ेर तो दूसरी तरफ उम्मीदों का अंबार, फिर भी पहले की तरह इच्छाशक्ति और हौसला रहे तो पहाड़ जैसी उम्मीदों को पूरा करना या उसके इर्द-गिर्द पहुंचना कोई कठिन नहीं होगा।

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