मोदी शासन और सोनिया परिवार

ऐसा प्रतीत हो रहा हैं कि  2014 के बाद 2019 में और अधिक बहुमत से विजयी हुए  “मोदी शासन” को गिराने के लिये सोनिया गांधी परिवार किसी विशेष गुप्त एजेण्डे पर कार्य कर रहा हैं। मोदी शासन को अस्थिर करने के लिये सोनिया, राहुल व प्रियंका सहित कुछ और मुख्य कांग्रेसी देश में अराजकता व उग्रवाद फैलाने के लिये नित्य नये-नये हथकण्डे अपना रहे हैं। इनके ऐसे व्यवहार के कारण भारत विरोधी शक्तियों का मनोबल बढता जा रहा है।

इसकी पृष्ठभूमि में कुछ निम्न बिन्दुओं को समझना भी उचित रहेगा_

_लोकतान्त्रिक देश के इकलौते राजपरिवार की महारानी को महलों का सुनापन और सत्ता हीनता की पीड़ा क्यों कर सुहाती होगी?

_चाटूकारों और दलालों की लम्बी-लम्बी पंक्तियां देखने को तरसती आंखे टूटते अहंकार के कारण और सुर्ख हो रही होगी।

_दशकों से मायके वालों को राजपरिवार का आतिथ्य व घोटालों का मिलने वाला लाभ अब कैसे सम्भव होगा?

_स्व.राजीव गांधी काल से चल रहें ईसाई मिशनरियों के षडयंत्रों की रक्षा कौन करेगा?

_ स्व.राजीव गांधी काल के भारत महोत्सव व बोफोर्स घोटालों आदि पर आंच नहीं आने देने वाली सोनिया को देश में 2004 से  2014 तक के खरबो रुपयों के घोटालों के कारण नींद भी नहीं आती होगी।

_अरबों की संपत्ति का मालिक बना दामाद व चिदंबरम कब क्या राज उगल दे इसका विचार भी मन्द बुद्धि संतानों के कारण सोनिया गांधी को ही स्वयं करना होगा।

  अत: सोनिया परिवार मोदी शासन के अस्तित्व में आने और उनके अथक प्रयासों से भारत विश्व में अग्रिम पंक्ति में स्थान बनाने की ओर निरन्तर गति से बढने के कारण बहुत चिंतित व घबराया हुआ है। इसके साथ ही पाकिस्तान व चीन भी मोदी शासन से संतुष्ट नहीं होने के कारण विचलित हो रहे है। स्मरण रखना होगा कि विगत वर्षों से चीन भी भारत के अनेक टुकड़े करने की दूषित सोच से निकल नहीं पाया हैं। जबकि पाकिस्तान 1971 से ही ऐसे ही षडयंत्रों को उकसाने का दु:साहस करता आ रहा है।

सोनिया गांधी परिवार को ऐसा क्या हुआ था जब फरवरी 2016 में जेएनयू आदि विश्वविद्यालयों में “देश की बर्बादी तक जंग जारी” और “भारत तेरे टुकडे होंगे” आदि देशद्रोही नारे लगे थे और ऐसे में राहुल गांधी इनके पक्ष में खड़े हो जाते है और कहते हैं कि “वह लोग ज्यादा राष्ट्र विरोधी है जो जेएनयू में छात्रों की आवाज को दबा रहे हैं।”  जेएनयू के ऐसे राष्ट्रद्रोहियों को उकसाना क्या संदेश देता है?

नागरिक संशोधन बिल (CAA) के विरोध की आड़ में  14 दिसम्बर 2019 को दिल्ली के रामलीला मैदान  “भारत बचाओ रैली” में सोनिया गांधी के कथन  “लोकतंत्र की रक्षा में हम कुछ भी कुर्बानी देने को तैयार है” व प्रियंका के बोल  “यदि अब भी हम चुप रहे तो संविधान नष्ट हो जाएगा” आदि भडकाऊ भाषणों के कारण ही जामिया नगर व शाहीनबाग आदि क्षेत्रों में लगने वाले भारत विरोधी नारे व आगजनी इसी का दुष्परिणाम माना जाय तो अनुचित नहीं होगा। इस विरोधी अभियान में अराजकता फैला कर व्यवस्था को बाधित करने का कांग्रेस के अतिरिक्त कुछ अन्य विरोधी दलों व कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का भी अवसर मिल गया था। यहां यह स्पष्ट होना चाहिये क्योंकि यह अधिनियम राष्ट्र विरोधी घुसपैठियों के विरुद्ध जाएगा इसलिये सभी ने अपने अपने निहित स्वार्थो के लिये  मिलकर देश में अराजकता फैलाने वालों व धरना आदि प्रदर्शनकारियों को दुसाहसी बना दिया था। परन्तु कोरोना महामारी के कारण  लगभग 100 दिन बाद इस शासन विरोधी धरनों पर नियन्त्रण हो पाया था।

यह भी सोचने को विवश करता है कि जब-जब पाकिस्तान व चीन आक्रमक होते है और भारत उसका प्रबल विरोध करता है तो सोनिया परिवार यथासंभव विरोधी तेवर अपनाते हुए उनके साक्ष्य व अन्य गुप्त सूचनाओं की मांग करने लगता है। जिससे ऐसा संदेह स्वाभाविक होने लगता है कि क्या दशकों तक सत्ता सुख भोगने वाला परिवार आज इतना अधिक घृणित कार्य करने को विवश हो जायेगा कि वह शत्रुओं को भी दु:साहसी बना दे। आज चीन की आक्रामकता के कारण सारा देश चिन्तित व दुखी हैं फिर भी सोनिया व राहुल  बार-बार अपने भ्रमित बयानों से शासन को ही घेरने में लगे हुए है। राहुल गांधी तो इतना अधिक पीड़ित है कि बार-बार शिष्टाचार की सीमाओं को लाँघते हुए देश के प्रधानमंत्री से अत्यंत अभद्रता से पूछता है कि लद्दाख की गलवान घाटी में कल क्या हुआ? क्यों हुआ? हमारे जवान क्यों मारे गए?सैनिकों को निहत्था क्यों भेजा? हमारी जमीन लेने की चीन की हिम्मत कैसे हुई? प्रधानमन्त्री चुप क्यों है,कहां छुप गए हैं,चीनी अतिक्रमण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया हैं,केंद्र सरकार सो रही हैं इत्यादि।जबकि पिछ्ले वर्ष डोकलाम विवाद के समय राहुल गांधी स्वयं चीनी राजदूत से क्यों मिले और इस मुलाकात को छिपाने का प्रयास क्यों किया गया, अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ हैं?

क्या ऐसा करने के पीछे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से अगस्त 2008 में कांग्रेस के साथ बीजिंग में हुए समझौते की कोई भुमिका हैं या कुछ ओर ? स्मरण रहे कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के तत्कालीन महासचिव व कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी ने मिलकर एक एमओयू (MOU) पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें दोनों राजनैतिक पार्टियों ने परस्पर सहयोग करने का निश्चय किया था। इस अवसर पर कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी और सीसीपी के नेता शी जिनपिंग (चीन के वर्तमान राष्ट्रपति) भी उपस्थित थे। समाचारों से यह ज्ञात होता है कि इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से पूर्व सभी ने व्यक्तिगत हितों की ध्यान में रखकर लम्बी चर्चा की थी। इस प्रकार दो देशों की राजनैतिक दलों के मध्य कोई ऐसा समझौता जो महत्वपूर्ण क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर आधारित हो,क्या उचित है? क्या यह राष्ट्र के साथ विश्वासघात नहीं था। आज 12 वर्ष बाद भी इस समझौते के प्रारुप को देश से क्यों  छिपाया हुआ है?

राष्ट्र व समाज की उन्नति व सुरक्षा के लिए किये जाने वाले शासकीय कार्यों में अवरोध बना कर देशवासियों को भ्रमित करते रहने से ऐसा प्रतीत होता है कि सोनिया परिवार मोदी शासन के प्रति दुर्भावना से ग्रस्त होकर शत्रुता पूर्ण मनोवृत्ति बनाये हुए है। क्या गांधी परिवार सत्ता से बाहर होने की पीड़ित मानसिकता से अभी तक उभरा नहीं है? क्या विपक्ष में बैठ कर जनादेश का सम्मान करना कांग्रेस के हाईकमान की राजशाही प्रवृत्ति को ठेस पहुंचा रही है ? यह कैसी अज्ञानपूर्ण महत्वाकांक्षा है जो किसी अन्य को राज सत्ता में देखकर वैमनस्यपूर्ण व्यवहार के लिए प्रेरित करती आ रही है?

आज प्रत्येक भारतीय इस बात का स्पष्टीकरण मांग सकता है कि राहुल गांधी जैसे मन्द बुद्धि व स्वयं के जन आधार न होने पर भी कांग्रेसियों ने उसे अपना नेता क्यों स्वीकार किया हुआ है? क्या केवल राजीव-सोनिया का बेटा होना ही राजनेता की पहचान हैं तो फिर लोकतंत्र की दुहाई क्यों दी जाती हैं? सबसे बडी विडम्बना यह है कि  लाखों कांग्रेसियों को कोई लज्जा क्यों नहीं आती जबकि वे ऐसे अयोग्य नेतृत्व को वर्षो से झेल रहे हैं? क्या भारत के कांग्रेसियों का स्वाभिमान इतना अधिक गिर चुका है कि वे सोनिया गांधी परिवार को अपनी मातृभूमि से भी श्रेष्ठ मानने लगे हैं? जबकि आज मोदी शासन की सफलताओं और विपरीत स्थितियों में भी धैर्य के साथ संघर्षशील बने रहना एक सशक्त शासन का बोध कराती हैं।

विनोद कुमार सर्वोदय

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