एक नवल तेज, अविकल करदे |
माँ सरस्वती आ, कंठ समा,
मन-मस्तक को अविरल करदे |
वाणी में मधु की, धार बहा |
हो सृजनशील, मस्तिष्क महा |
हर शब्द बने, मानक जग में,
हर रचना को, इतिहास बना |
जन की जिव्हा पर, नाम चढ़े,
इतना मधुमय, अविचल करदे |
माँ सरस्वती आ, कंठ समा,
मन मस्तक को अविरल करदे |
हो सृजित नया, जन के मन का,
हर शब्द लगे, नव उपवन का |
परिपूरित, अद्भुत गंधों से,
वैकुण्ठ लोक के, मधुवन सा |
रचना में, श्रेष्ट समन्वय हो,-
हर शब्द दिव्य-परिमल करदे |
माँ सरस्वती आ, कंठ समा,
मन मस्तक को अविरल करदे |
-डा. राज सक्सेना
उत्कृष्ट सरस्वती वंदना.