एक छोर –
26 मई 2014 को मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के बाद विशिष्ठ अतिथियों को जलपान आदि के लिए राष्ट्रपति भवन में अंदर ले जाया गया। वहां पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ ने नरेंद्र मोदी कुछ व्यक्तिगत बात कही।… उन्होंने बताया कि जब आप (मोदी) अपनी माँ से मिलने गए थे और जब आप की माँ ने आप को लड्डू खिलाया, आप का मुंह अपने आँचल से साफ़ किया, आप को आशीर्वाद दिया और दिए 101 रुपये। उस दृश्य को मेरी माँ ने देखा था और वो उस समय बहुत ही भावुक हो गयी थी। श्री शरीफ ने बताया कि उस समय मैं अपनी माँ के पास ही था – रावलपिंडी में। उन्होंने यह भी बताया की वे हर हफ्ते अपनी माँ से मिलने रावलपिंडी जाते हैं। उन की बात सुनकर नरेंद्र मोदी भी भावुक हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी मां से अलग रहते हैं। मोदी की मां गांधीनगर में छोटे बेटे के साथ रहती हैं। मोदी जी ने नवाज़ शरीफ की माँ के लिए एक शाल भेंट स्वरुप भेजा । यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित कर बेहतर रिश्ते करने के संकेत दिए।
दूसरा छोर –
इस्लामाबाद में गत 2 जून को पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने पाकिस्तान के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में अभिभाषण दिया। मैं यह मानता हूँ की भारत की ही तरह यह अभिभाषण उन की सरकार अर्थात उन के मंत्रिमंडल अर्थात प्रधानमंत्री द्वारा ही तैयार अथवा अनुमोदित होता होगा। इस में सत्ताधीश सरकार अपनी उपलब्धियों को गिनवाती है और आगामी वर्ष के अपने एजेंडे का प्रतिपादन करती है। अतः इसी पृष्ठभूमि से इस अभिभाषण को देखना होगा, क्योंकि हुसैन साहब ने भी नवाज़ शरीफ सरकार की उपलब्धियों की विशद चर्चा की है। लेकिन साथ ही इस में एक बार फिर कश्मीर राग अलापा गया है। पाक राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने कहा है कि उनका देश संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीर के लोगों की आकांक्षा के अनुसार कश्मीर मुद्दे को हल करना चाहता है। पाक राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र से कश्मीर मसले पर हस्तक्षेप करने की बात कही है। उन्होंने कहा की गत सप्ताह पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत गए थे। उन के अनुसार पाकिस्तान पड़ोसी मुल्क यानी भारत के साथ शांति और अमन स्थापित करने को इच्छुक है। वर्तमान राष्ट्रपति ममनून हुसैन का यह पहला भाषण है। संविधान के तहत, हर नए संसदीय वर्ष की शुरुआत देश के शीर्ष नेता यानी राष्ट्रपति के संबोधन से होती है। हुसैन ने यद्यपि देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के अलावा आतंकवाद को खत्म करने की कसम भी खाई। उन्होंने बीते साल की पीएमएलएन सरकार की उपलब्धियां भी गिनाईं।
तीसरा छोर –
तीसरा छोर है पाकिस्तान सेना। पाकिस्तान की सेना नहीं चाहती कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तरह की शांति बने। कश्मीर मुद्दे का हल निकालने के वह बिल्कुल भी पक्ष में नहीं है। वह इस मसले को बनाए रखना चाहती है। क्योंकि इसी से उस का अस्तित्व है। अगर कहीं इस क्षेत्र में शांति हो जाती है तो इससे न केवल उसके अस्तित्व वरन पाकिस्तान के राजनीतिक ढांचे पर उसके प्रभुत्व को गंभीर चुनौती पैदा हो जाएगी। यह लिखा है क्रिस्टीन फेयर ने अपनी ताज़ा पुस्तक में। अमेरिकी लेखिका सी क्रिस्टीन फेयर ने अपनी हाल ही में प्रकाशित किताब Fighting to the End and War with Pakistan में पाकिस्तान की सेना के बारे में खुलासा किया है कि पाकिस्तान सेना कश्मीर का समाधान नहीं चाहती। सेना क्यों उस प्रक्रिया को आगे बढ़ने देगी जो उसकी खुद की राजनीति को बेकार कर दे? उस के अनुसार भारत के लिए सबसे अच्छा यह है कि वह यथास्थिति बरकरार रहने की उम्मीद करे। क्रिस्टीन ने आगाह किया है कि पाकिस्तान सेना दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों (भारत और पाकिस्तान) के बीच शांति की किसी भी नई पहल को फिर से बाधित करने की कोशिश करेगी ।
क्रिस्टीन ने लिखा है, ‘सेना नवाज शरीफ के प्रयासों में सेंध लगा सकती है, इसके लिए उसे कुछ खास नहीं करना होगा, सिर्फ लश्कर-ए-तैय्यबा का एक हमला करवाना होगा। उन्होंने कहा कि नवाज शरीफ भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना चाहते हैं लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं है कि वो इन जिहादी समूहों की गतिविधियों को बंद करना चाहते हैं। कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद आसानी से कम नहीं हो सकता है क्योंकि कश्मीर पर सिर्फ सीमा विवाद नहीं है, कहीं उससे भी ज्यादा है। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान का लक्ष्य भारत की स्थिति को कमजोर करना भी है। इस काम में उसे बहुत से सैनिकों की जान गंवानी पड़ सकती है, लेकिन वो भारत को आसानी से स्वीकार नहीं सकता। ऐसा करना पाकिस्तान सेना के लिए पूरी तरह हार जैसा होगा।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि क्रिस्टीना फेयर अमेरिकी महिला है लेकिन इन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशियाई संस्थाओं और राजनीति का गहन अध्ययन किया है। इनकी पीएचडी शोध का विषय था- दक्षिण एशियाई भाषा और संस्कृति। इस के लिए इन्होंने भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश में काफी लम्बा समय बिताया। इन्हें हिंदी, उर्दू, और पंजाबी तीनों भाषाओं को लिखने, पढ़ने और बोलने पर समान अधिकार है। अतः क्रिस्टीना की यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस पुस्तक का विमोचन गत बुधवार 4 जून को वाशिंगटन में किया गया। लेखिका ने कहा कि कहा, ‘मुझे इस बातचीत से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। इसे ऑक्सफोर्ड यूनिवसिईटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस के कवर बदल कर इसका पाकिस्तान संस्करण भी लाया जा रहा है।
इसी दौरान परिस्थिति में कुछ नए बदलाव आये हैं। नवाज़ शरीफ ने अपनी भारत यात्रा के सन्दर्भ में मोदी जी को धन्यवाद का पत्र भेजा और उसमें दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारने की आशा भी व्यक्त की। मोदी जी ने भी अपने प्रत्युत्तर में इस आशा को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया है। लेकिन साथ साथ यह भी सूचना आयी है कि सीमा पार से पाकिस्तान की सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी है।
इन तथ्यों को देखते हुए कुछ प्रश्न सामने आते हैं कि क्या नवाज़ शरीफ अपने राष्ट्रपति के अभिभाषण के माध्यम से कोई दूसरा सन्देश देना चाहते हैं? क्या वह अभिभाषण नवाज़ शरीफ सरकार की ने नहीं तैयार किया था ? उनकी मानसिकता क्या है? क्या ये पत्र लिखना और लिखना एक औपचारिकता मात्र है ? क्या नवाज़ शरीफ की सरकार का अपनी सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है अथवा उनकी सेना द्वारा किसी नए कारगिल की संभावना है? क्या वास्तव में पाकिस्तान भारत के साथ शांति नहीं चाहता? क्या वह अपना विकास नहीं चाहता? क्या वहां का नेतृत्व सेना के सामने विवश है? क्या वहां लोकतंत्र के प्रति इतनी अधिक अरुचि है?
संतोष की बात यह है की प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि खुली है वह अर्जुन की दृष्टि की तरह मात्र घूमती हुई मछली तक ही सीमित नहीं है, वह चारों तरफ से खुली और सजग हैं। आज (13 जून को) उन का अचानक रक्षा मंत्रालय में जाना और रक्षा मंत्री सहित सेना अधिकारियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ लम्बी मीटिंग करना इस बात का प्रमाण है। उन्होंने अजीत डोवाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया है जिन्होंने पाकिस्तान में लम्बा वक्त गुजारा है। उन्हें गुप्तचर रूप में काम करने का लंबा तजुरबा है।
गोयल जी ने, इस आलेख में पाकिस्तान के अलग अलग बलों के अस्तित्व का वर्णन और उनकी आपसी खिंचतान का चित्र प्रस्तुत किया है।
पाकिस्तान नियम या विधिनिष्ठ देश नहीं है। वहाँ, प्रत्येक इकाई अपना अस्तित्व सुरक्षित रखने अपने देशका कल्याण(?) भी दाँव पर लगा सकती है। आप ने इंगित की अराजकता यह ऐसे अनेक परिबलों की परिणति है। नवाज़ शरीफ़ कितने क्यों न गम्भीर हो, उनका अपना रास्ता उनका अपना पद टिकाकर ही निकालना होगा।
भारत के लिए इनसे कुछ करने, करवाने की आशा रखने के लिए शरीफ़ की सदिच्छा बिना, अन्य कोई कारण दिखाई नहीं देता। शरीफ़ को भी सत्ता में बना रहनेकी विवशता या लोभ अवश्य मानकर व्य़ूह रचना होगा।