माँ तुम्हारा स्वागत करते तुम्हारे भक्त बनकर
सिंह की सवार बनकर,रंगों की फुहार बनकर
पुष्पों की बहार बनकर,सुहागन का श्रंगार बनकर
खुशियों की अपार बनकर,रसोई में प्रसाद बनाकर
रिश्तो में प्यार बनकर,समाज में संस्कार बनकर
आने पर सभी दुःख चले जायेगे वे काल बनकर
माँ तुम लक्ष्मी बनकर आओ हमारे कुबेर बनकर
माँ तुम जल्दी आओ,हम खड़े तुम्हारे दास बनकर
माँ दुर्गे के नो रूप,वो नो दुर्गे कहलाती
हर रात्रि को वे नया रूप लेकर ही आती
इसलिए इन दिनों को नव रात्री कहलाये
माँ के अनेक रूप जग जननी कहलाये
आर के रस्तोगी
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