आंदोलन के पर्याय बनते शिक्षक और सरकार मूक दर्शक

Mridul C Srivastava
इलाहाबाद हाई-कोर्ट के एक फैसले ने उत्तर प्रदेश के प्राइमरी शिक्षकों में हड़कम्प मचा रखा है वाजिब भी है हाई कोर्ट ने #अपेयरिंग,#परस्यू पास अनुमानतः 50 से 60 हजार शिक्षकों को बाहर निकाल दो जैसा निर्णय दिया है ।
सरकार इस निर्णय को लागू कर पायेगी ऐसा किसी भी हाल में सम्भव नही दिखता क्योंकि 1 लाख 72 हजार शिक्षा मित्र आंदोलन कर रहे और यदि कुछ ऊंच नीच हुआ तो इन आंदोलनकारी शिक्षकों में लगभग 60 हजार की संख्या और जोड़ लीजिये,2011 बैच के कुछ शिक्षक अभी भी अपनी नियुक्ति के लिए सरकार से मांग कर रहे कुल मिला कर उत्तर प्रदेश में शिक्षक का अर्थ है आंदोलन कारण सरकार की गलत नीतियां सबसे अधिक जिम्मेदार हैं एवं कोर्ट ने इन सरकारी गलतियों का न्यायपूर्वक दण्ड शिक्षकों को देने में कोई कोताही नही की है । करे कोई भरे कोई वाला फार्मूला यहां बखूबी लागू होता है ।
देश मे बदहाल शिक्षा व्यवस्था की स्थिति से हर कोई वाकिफ है,
देश में करीब 1,05,630 प्राथमिक और माध्यमिक सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक टीचर ही स्कूल चला रहा है। इस मामले में सबसे खराब स्थिति मध्य प्रदेश की है जहां ऐसे स्कूलों की संख्या 17,874 है। यह सरकारी आंकड़े हैं असल स्थिति इस से भी बदतर हो सकती है.

एक टीचर के भरोसे चल रहो स्कूलों में दूसरे नंबर पर है उत्तर प्रदेश जहां 17,602 स्कूल ऐसे हैं। उसके बाद राजस्थान है जहां 13,575 स्कूल एक टीचर से चल रहे हैं। संसद में यह रिपोर्ट केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने रखी. पूरे देश में ऐसा कोई भी राज्य नहीं है जहां ऐसी हालत न हो (2016)
फिरभी 8 वी तक के लगभग 50% बच्चे इन्ही सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए बाध्य है क्योंकि वह मंहगे प्राइवेट स्कूलों की फीस नही भर सकते ऐसे में प्रदेश में एक वर्ष पूर्व “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा” के मुँह चिढ़ाते स्लोगन के साथ एक नई सरकार आई जिसके काल मे पहले 1 लाख 72 हजार शिक्षा मित्र बाहर हुए और अब हाल ही के निर्णय से लगभग 60 हजार शिक्षक शिक्षण कार्य करें या नौकरी बचाएं के अंतर्द्वंद्व से बाहर नही निकल पा रहे है ।
वैसे बड़ा आसान सा लगता है यह कहना निकाल दो,बाहर करो आदि आदि शायद कुर्सी के रौब को बढ़ाता हो व्यक्तिगत रौब को संतुष्ट करता हो पर उन 50% बच्चों के लिए यह निर्णय उनका भविष्य बर्बाद करदेने वाला भी हो सकता है जो मजबूरी में बेहतर सरकारी शिक्षा के शायद दिवा स्वप्न को सजाएं हैं जबकि स्मरण रहे कि इन बच्चों या भारत के सभी 5 से 14 वर्ष के बच्चे के लिए शिक्षा एक मौलिक अधिकार है और जब सरकारी स्कूलों में अध्यापक ही नही होंगे तो इन मौलिख व्यवस्था वाले अनुच्छेद 21(A) को किस तुगलकी फरमान के जरिये लागू कराया जाएगा ।
मौलिक अधिकारों के संगरक्षण के लिए स्वतः हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उत्तरदायी है किन्तु जैसा निर्णय 30.05.2018 को आया उससे यह अधिकार कहीं से मजबूत होता नजर नही आ रहा हाँ 1 शिक्षकों के भरोसे चल रहे स्कूलो के क्रम में शायद अपना उत्तर प्रदेश अब पहले स्थान पर विराजमान हो चुका है।
इस त्रुटिपूर्ण निर्णय के विरुद्ध सरकार को तुरंत सर्वोच्च न्यायालय जाना चाहिए और इस फैसले पर अविलम्ब रोक लगनी चाहिए क्योंकि कोई भी अभ्यर्थी किसी परीक्षा को देने से पूर्व उसकी न्यूनतम योग्यता धारण करने के लिए ही उत्तरदाई हो सकता है बाद में इस निर्णय में कोई छेड़-छाड़ होती है तो यह निहायत ही दुखद विषय है ।
NCTE को सहायक अध्यापको की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता तय करने का कानूनी अधिकार है और शिक्षक उस योग्यता में पूर्ण आस्था रखते हुए इसे TET उत्त्तीर्ण करने शिक्षक जो कई वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहें है सरकार इस शिक्षक आंदोलन के फैलते जा रहे आग पर यदि समय रहते काबू नही पाती तो यह आग उसके खुद के वजूद को भी खाक कर सकती है ।

 

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