श्री प्रणव मुखर्जी दुनिया के श्रेष्ठतम राष्ट्र-अध्यक्ष.

श्रीराम तिवारी

भारत के 13 वें महामहिम राष्ट्रपति चुने जाने से भारत में अधिकांस नर-नारी [जो राजनीती से सरोकार रखते हैं] खुश हैं। मैं भी खुश हूँ। इससे पहले कि अपनी ख़ुशी का राज खोलूं उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने यह सुखद अवसर प्रदान किया।

सर्वप्रथम में भारतीय संविधान का आभारी हूँ जिसमें ऐसी व्यवस्था है कि सही आदमी सही जगह पर पहुँचने में जरुर कामयाब होता है।सही से मेरा अभिप्राय उस ’सही’ से है जो भारत के बहुमत जन-समुदाय की आम समझ के दायरे में हो। हालाँकि इस ’सही’ से मेरे वैयक्तिक’ सही’ का सामंजस्य नहीं बैठता।वास्तव में मेरा सही तो ये है कि कामरेड प्रकाश करात ,कामरेड वर्धन,कामरेड गुरुदास दासगुप्त,कामरेड सीताराम येचुरी ,कामरेड बुद्धदेव भटाचार्य में से या वामपंथ की अगली कतार में से कोई इन्ही कामरेडों के सदृश्य अनुभवी व्यक्ति राष्ट्राध्यक्ष चुना जाता। लेकिन ये भारत की जनता को अभी इस पूंजीवादी बाजारीकरण के दौर में कदापि मंजूर नहीं। भारत की जनता को ये भी मंजूर नहीं कि घोर दक्षिण पंथी -साम्प्रदायिक व्यक्ति या उनके द्वारा समर्थित’ हलकट’ व्यक्ति भारत के संवैधानिक सत्ताप्र्मुख की जगह ले। भारत की जनता को जो मंजूर होता है वही इस देश में होता है। भले ही वो मुझे रुचकर लगे या न लगे।भले ही वो उन लाखों स्वनामधन्य हिंदुवादियों,राष्ट्रवादियों और सामंतवादियों को भी रुचिकर न लगे। ये हकीकत है कि इस देश की जनता का बहुमत जिन्हें चाहता है उन्हें सत्ता में पदस्थ कर देता है।यह भारतीय संविधान के महानतम निर्माताओं और स्वतंत्रता के महायज्ञं में शहीद हुए ’धर्मनिरपेक्ष-समाजवादी-प्रजातांत्रिक’ विचारों के प्रणेताओं की महती अनुकम्पा का परिणाम है। में इन सबका आभारी हौं।

में आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने यूपीए ,एनडीए ,वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे के दायरे से बाहर आकर राष्ट्र हित में श्री प्रणव मुखर्जी को भारत का ’राष्ट्रपति चुनने में अपना अमूल्य वोट दिया। में आभारी हूँ भाजपा के उन महानुभावों का जिन्होंने ’नरेंद्र मोदी’ को एनडीए का भावी नेता और भारत का प्रधान मंत्री बनाए जाने का प्रोपेगंडा चलाया,जिसकी वजह से एनडीए के खास पार्टनर [धर्मनिरपेक्ष] जदयू को खुलकर श्री मुखर्जी के पक्ष में आना पडा।में आभारी हूँ शिवानन्द तिवारी जी ,नीतीशजी ,बाल ठाकरेजी,मुलायम जी,वृंदा करात जी,प्रकाश करातजी,सीताराम येचुरीजी,विमान वसुजी,बुद्धदेव भट्टाचार्य जी,मायावती जी,येदुराप्पजी और ज्ञात-अज्ञात उन सभी राजनीतिक दलों,व्यक्तियों ,मीडिया कर्मियों और नीति निर्माण की शक्तियों का जिन्होंने कांग्रेस को,श्रीमती सोनिया गाँधी को प्रेरित किया कि देश के 13 वें राष्ट्रपति के चुनाव हेतु प्रणव मुखर्जी को उम्मीदवार घोषित करें ताकि ’सकारण’ किसी अन्य ’गैर जिम्मेदार ’ व्यक्ति को इस पद पर आने से रोका जा सके।

में आभारी हूँ सर्वश्री अन्ना हज़ारेजी,केजरीवाल जी,रामदेवजी ,सुब्रमन्यम स्वामी जी,रामजेठमलानी जी नवीन पटनायक जी,जय लालिथाजी,जिहोने एनडीए के साथ मिलकर एक बेहद कमजोर और लिजलिजे व्यक्ति को उम्मेदवार बनाया ताकि ’नाम’ का विरोध जाहिर हो जाए और ’पसंद’ का व्यक्ति याने ’प्रणव दा ’ ही महामहिम चुने जाएँ। संगमा को जब लगा कि ईसाई होने में फायदा है तो ईसाई हो गए।जब लगा की कांग्रेसी होने में फायदा है तो कांग्रेसी हो गए।जब लगा कि राकपा में फायदा है तो उसके साथ हो लिए।

जब लगा कि एनडीए के साथ फायदा है तो उनके साथ हो लिए इतना ही नहीं जिस आदिवासी समाज को वे पीढ़ियों पहले छोड़ चुके थे क्योंकि तब आदिवासी होने में शर्म आती थी।अब आदिवासी होने के फायदे दिखे तो पुनह आदिवासी हो लिए। उनकी इस बन्दर कूदनी कसरत ने इस सर्वोच्च पद के चुनाव में विपक्ष की भूमिका अदा की सो वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।देश उनका आभारी है।

विगत 19 जुलाई को संपन्न राष्ट्र्पति के चुनाव में श्री प्रणव मुखर्जी की भारी मतों से जीत- वास्तव में उन लोगों की करारी हार है जो उत्तरदायित्व विहीनता से आक्रान्त हैं।अन्ना हजारे,केजरीवाल ,रामदेव का मंतव्य सही हो सकता है लेकिन अपने पवित्र[?] साध्य के निमित्त साधनों की शुचिता को वे नहीं पकड सके और अपनी अधकचरी जानकारियों तथा सीमित विश्लेशनात्म्कता के कारण सत्ता पक्ष से अनावश्यक रार ठाणे बैठे हैं।उन्हें बहुत बड़ी गलत फहमी है क़ि देश की भाजपा और संघ परिवार तो हरिश्चंद्र है केवल कांग्रेसी और सोनिया गाँधी ,दिग्विजय सिंह तथा राहुल गाँधी ही नहीं चाहते क़ि देश में ईमानदारी से शाशन प्रशाशन चले। इन्ही कूप -मंदूक्ताओं के कारण ये सिरफिरे लोग प्रणव मुखर्जी जैसे सर्वप्रिय राजनीतिग्य को भी लगातार ज़लील करते रहे।श्री राम जेठमलानी और केजरीवाल को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। उन्होंने मुखर्जी पर जो बेबुनियाद आरोप लगाये हैं उससे भारत की और भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को भारी ठेस पहुंची है।

श्री प्रणव मुखर्जी की जीत न तो अप्रत्याशित है और न ही इस जीत से कोई चमत्कार हुआ है, पी ऐ संगमा भले ही अपने आपको कभी दलित ,कभी ईसाई,कभी अल्पसंख्यक और कभी आदिवासी बताकर बार-बार ये सन्देश दे रहे थे कि ’अंतरात्मा की आवाज’ पर लोग उन्हें ही वोट करेंगे और रायसीना हिल के राष्टपति भवन की शोभा वही बढ़ाएंगे।उन्हें किसी सिरफिरे ने जचा दिया कि नीलम संजीव रेड्डी को जिस तरह वी।वी गिरी के सामने हारना पड़ा था उसी तरह संगमा के सामने मुखर्जी की हार संभव है।और लगे रहो मुन्ना भाई की तरह संगमा जी भाजपा के सर्किट भी नहीं बन सके।प्रणव दा के पक्ष में वोटों का गणित इतना साफ़ था कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और उसके अलायन्स पार्टनर्स इसी उहापोह में थे कि काश कांग्रेस ने उनसे सीधे बात की होती।

प्रणव दा को कमजोर मानने वालों को आत्म-मंथन करना चाहिए कि वे वैचारिक धरातल के मतभेदों को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर चुके हैं जहां से भविष्य की राजनीती के अश्वमेध का घोडा गुजरेगा। बेशक कांग्रेस ,सोनिया जी और राहुल को इस मोड़ पर स्पष्ट बढ़त हासिल है और ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं क्योंकि प्रणव दादा के हाथों जब विरोधियों का भला होता आया है तो उनका भला क्यों नहीं होगा जिन्होंने उनमें आस्था प्रकट की और विश्वास जताया .अब यदि 2014 के लोक सभा चुनाव में गठबंधन की राजनीती के सूत्र ’दादा ’ के हाथों में होंगे तो न केवल कांग्रेस न केवल राहुल बल्कि देश के उन तमाम लोगों को बेहतर प्रतिसाद मिलेगा जिन्हें भारतीय लोकतंत्र ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता और श्री प्रणव मुखर्जी पर यकीन है।

अंत में अब में अपनी ख़ुशी का राज भी बता दूँ कि मैंने जिस केन्द्रीय पी एंड टी विभाग में 38 साल सेवायें दी हैं प्रणव दा ने भी उसी विभाग में लिपिक की नौकरी की है।देश के मजदूर कर्मचारी और मेहनतकश लोग आशा करते हैं की उदारीकरण ,निजीकरण, और ठेकेकरण की मार से आम जनता की और देश की हिफाजत में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी उनका उसी तरह सहयोग करेंगे जैसे की कोई बड़ा भाई अपने छोटे भाइयों की मदद करता है। श्री मुखर्जी का मूल्यांकन केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए। श्री मुखर्जी को चुना जाने पर न केवल कांग्रेस बल्कि विपक्ष को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। वे राष्ट्रीयकरण के पोषक हैं। श्री मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते हुए सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश नहीं होने दिया इसलिये अमेरिकी-नीतियों के भी कोप-भाजन बनें। मजदूर-

कर्मचारी हितों की रक्षा करने वाले ऐसे राष्ट्रपति से हमें काफी अपेक्षा रखते हैं।

22 COMMENTS

  1. आदरणीय भाई तिवारी जी ,
    शब्दों का प्रयोग एक विद्वान के नाते ज़रा सोच-समझ कर करेंगे, ऐसी आशा आपसे की जाती है. महामहिम राजेन्द्रप्रसाद, डा. राधाकृष्ण, डा अब्दुल कलाम की तुलना में आप प्रणव जी को सर्वश्रेष्ठ कहेंगे तो दो भाव पाठकों के मन में आने से आप रोक नहीं सकते. (१) लेखक का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया है. (२) या फिर चापलूसी की हद कर दी. …. जनाब आपका अपमान करने का मेरा लेशमात्र भी इरादा नहीं. पर कृपया सार्वजनिक कथन, लेखन ज़रा विवेक पूर्वक करें तो पाठकों के ऐसे तीखे बाण नहीं सहने पड़ेंगे. प्रणव जी के प्रति आपका श्रधा, प्रेम आपका व्यक्तिगत मामला है. आप उसे दूसरों पर जबरन थोंपेगे तो भुगतना ही पड़ेगा न ? उनका आज तक का आचरण भारतीयों के मन में उनकी ( वर्तमान राष्ट्रपति की ) एक छाप बना चुका है. उसे और बिगड़ना या सुधारना तो उन्ही के बस में है. चाहें तो एह सर्वेक्षण ( सैंपल सर्वे ) इस पर करवा लें कि डा. अब्दुल कलाम और इनको भारत की जनता कितना पसंद करती है. समृद्ध भारतीय संस्कृति के लिए श्रधा रखने वाली उनकी छवि हम भारतीयों के मन में नहीं बनी है. और भी बहुत कुछ है जो अब कहना उचित नहीं.
    फिर भी मेरी शुभकामनाये हैं कि वे एक सफल राष्ट्रपति सिद्ध हों. देशवासियों का प्यार और श्रधा अपने आचरण, निर्णयों और व्यवहार से भरपूर प्राप्त करे. इसीमें उनका और देश का भला है.

  2. तिवारी जी श्रेष्ठतम के लिए कुछ तो नियम मर्यादाएं होंगी ? यहाँ तो कुछ भी नहीं दिखाई देता है. अगर आप ने ये कलाम साहब के लिए बोली होती तो जरूर हम मान जाते. और आपने जिस अंग्रेजी कहावत का जिक्र किया है उसका हिंदी अनुवाद मेरे हिसाब से “बेपेंदे का लोटा” कहते हैं जिधर देखा फायदा उधर लुढ़क गया, दूसरे शब्दों में कहें तो “थाली का बैंगन” . और किस बामपंथ के इतिहास की बात कर रहे हैं आप? जरा अपने बामपंथ की खुद ही समीक्षा करें. शर्म से डूब मंरने के सिवाय कुछ नहीं है बामपंथ के इतिहास में. चीन के चरणों में बैठने को इतिहास नहीं कहते हैं. पश्चिम बंगाल की माली हालत और केरल की स्वीकरोक्ति, सिर्फ गाल ही बजा सकते हैं और कुछ नहीं.

  3. सिंह साहब===>
    जुलाई २५ की मेरी निम्न, टिपण्णी देख ले|
    आप मेरी ही बात कह रहे हैं|
    ====>
    क्या राष्ट्र पति को राष्ट्र भाषा हिंदी या संस्कृत आती है?
    कभी बोलते सुना या पढ़ा नहीं|
    आप में से किसी ने सूना हैं?
    मुझे संदेह है|

  4. मैं हिंदी भाषी हूँ ,अतः मेरा हिंदी के प्रति झुकाव लाजमी है,पर मैं यह नहीं मानता की
    तमिलनाडु का एक नेता जो हिंदी नहीं जानता उसे भारत का राष्ट्रपति बनने का अधिकार नहीं है.भारत के संविधान में हिंदी को वरीयता अवश्य दी गयी है,पर उसे भारत की संविधान द्वारा मान्य भाषाओं में से एक माना गया है. डाक्टर राधा राधाकृष्णन और डाक्टर कलाम संस्कृत के विद्वान रहे हैं ,पर दोनों में से कोई भी हिंदी का ज्ञाता नहीं था या नहीं है.तो भी राष्ट्रपतियों के रूप में उनका स्थान बहुत ऊपर है.वह इस कारण भी नहीं है की उनको कम से कम संस्कृत का ज्ञान तो था.रह गयी बात अंगरेजी की तो इसे तो १९४७ में ही रास्ता दिखा देना चाहिए था,पर अब तो यह ऐसा अनचाहा बोझ है जिसे भारत की एकता के लिए ढोना ही पड़ेगा.

  5. (अंग्रेजी में एक कहावत है ” If you can ‘t defeat you join them” ) तिवारी जी की ये टिप्पणी उनके पुरे लेख पर भारी है, तो तिवारी जी तृणमूल कब ज्वाईन कर रहे है

    • अभी तृणमूल से हमने हार नहीं मानी है. जनता ने ३५ साल तक लगातार एक ही विचाधारा की पार्टी का शाशन देखा था .उसे परिवर्तन का शौक चर्राया तो वामपंथ को विपक्ष में बिठा दिया.अब ममता और उनकी तृणमूल को पूरे ५ साल तो दीजिये ऐसी भी क्या जल्दी है?५ साल बाद तृणमूल रुपी काठ की हांड़ी द्वारा नहीं चढ़ पायेगी. खुदा न खास्ता अगर कांग्रेस और तृणमूल की एकता भंग नहीं हुई तो वाम को विपक्ष तो है ही किन्तु भाजपा या एनडीए तो आजादी के ६६ साल बाद भी उधर खता नहीं खुलवा पाए हैं.

  6. क्या प्रणव मुख़र्जी वास्तव में सोनिया गाँधी की पसंद थे या मजबूरी . यदि राष्ट्रपति चुनाव से पहले के घटनाक्रम को गौर से देखा जाय तो लगता है ये सारा गेम प्लान ममता बनर्जी और प्रणव मुख़र्जी का था.मुलायम ममता मुलाकात के तुरंत बात प्रेस कांफ्रेंस और ममता द्वारा ऐसे तीन नाम बताना जो सोनिया को किसी भी की कीमत पर मंजूर नहीं और अंत में कांग्रेस द्वारा प्रणव मुख़र्जी को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना.वास्तव में ये सारी बातें किसी गेम प्लान की और ही संकेत करती हैं और फिर शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए प्रणव द्वारा ममता के लिए विवेश विमान भेजना एवं ममता द्वारा प्रणव को बंगाल आने का निमंत्रण देना .और अंत में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्वारा ये कहना की मैं संविधान की रक्षा करूंगा.लगता है कांग्रेस से सारा हिसाब चुकता करने वाले हैं.शायद तिवारी जैसे भाटों को कोई इस से विपरीत लेख लिखना पड़े.

  7. अगर प्रणव मुखर्जी इसलिए दुनिया के श्रेष्ठतम राष्ट्र-अध्यक्ष. है ,क्योंकि वे श्री श्रीराम तिवारी के मित्र हैं या उनके सहकर्मी रहे हैं,तो मुझे आगे कुछ नहीं कहना.किसी अन्य मापदंड पर तो भारत के किसी राष्ट्राध्यक्ष का दुनिया के सन्दर्भ में कोई महत्त्व नहीं है तो फिर प्रणव मुखर्जी के बारे में क्या कहना?दुनिया में शायद ही कोई ऐसा राष्ट्र हो जहाँ इस तरह का आलंकारिक या सजावटी राष्ट्रपति का पद हो,उस हालत में दुनिया अन्य राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों से भारत के राष्ट्रपति की तुलना करना अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं.मैं इस बात से कतई सहमत नहीं कि भारत के राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री के लिए हिंदी या संस्कृत का ज्ञान होना आवश्यक है..श्री श्री राम तिवारी का इस सम्बन्ध में तर्क तो और हास्यास्पद है.दुर्गापूजा में पढ़े जाने वाले कुछ श्लोकों को कंठस्त कर लेना संस्कृत ज्ञान का कोई प्रमाण नहीं है.
    मुझे महामहिम का भारत की जनता के प्रति कृतज्ञता वाला भाषण भी हास्यास्पद लगा.उन्हें जनता ने तो राष्ट्रपति बनाया नहीं ,अतः उन्हें धन्यबाद करना चाहिए था सोनिया गाँधी का और उन सांसदों और देश के अन्य चुने हुए सदस्यों का जिन्होंने उन्हें इस पद पर बैठाया.प्रणव मुखर्जी एक लिपिक से राष्ट्रपति बन गए,यह अवश्य प्रशंसनीय है,पर यह भी उन्हें इस योग्य नहीं बनाता की भारत के अब तक के राष्ट्रपतियों में भी निम्नतम स्तर से ऊँचा स्थान दिया जाए.अन्ना टीम ने शायद ठीक ही कहा है की अगर सशक्त लोकपाल होता तो प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति भवन के बदले तिहाड़ में होते.मैं यह तो नहीं कहता कि वे तिहाड़ में होते या नहीं,पर उन आरोपों पर कार्रवाई अवश्य आरम्भ हो जाती और वे राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ पाते.प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के पहले मैं ज्ञानी जेल सिंह और प्रतिभा सिंह पाटिल को राष्ट्रपतियों के पादान में सबसे नीचे रखता था,पर मेरे विचार से प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद स्वत उनका स्थान थोडा ऊपर उठ गया है.

    • आर सिंह साहब–
      आपके विचार में, राष्ट्रपति को, भारतीय जनता से किस भाषा में वैचारिक आदान प्रदान सही समझा जाएगा?
      गुलामी की भाषा, अंग्रेज़ी तो अभी अभी की जनगणना में, १ % से भी कम (.०२१ %) जनता ने उनकी बोलचालकी भाषा के नाते निर्देशित की है।
      और राजभाषा का पद तो हिन्दी को, मिल ही चुका है।
      उनके पद की गरिमा आप ना भी माने, तो भी क्या आपके कुछ निकष है? या कोई निकष नहीं है? स्पष्ट करने की कृपा करें।

  8. तिवारी जी के अनुरोध पर आलेख दुबारा पढ़ा.
    कौन से निकष पर आप इन्हें सर्व श्रेष्ठ राष्ट्राध्यक्ष घोषित करेंगे?
    (१) जो राष्ट्र का जानकार हो.
    (२) पक्ष से ऊपर उठा हो.
    (३) नीतिमान हो.
    (४) राष्ट्र की अस्मिता का संरक्षक हो.
    (५) राष्ट्र भाषा का उपयोग करता हो.
    (६) देश के इतिहास-पुराण से परिचित हो.
    (७) वह किसी भी पार्टी से भले चुना जाए, पर चुनने के बाद, पार्टी से ऊपर हो|
    (८) उदाहरण: निर्लिप्त, निस्वार्थी, राष्ट्र लक्षी, आदर्श चरित, सर्व हितकारी चारित्र्य वाला,
    (९) नेतृत्व यानी नेत्रों से दूर और निकट भविष्य में –राष्ट्र के लिए क्या हितकारी है, यह जानकर उसी प्रकार निर्णय लेने की क्षमता वाला हो.
    वह बंगाल में जन्मा हो सकता है| पर बंगाली, कांग्रेसी,पार्टी की, या किसी व्यक्तिकी इमानदारी करना उसके लिए अनुचित है|
    ऐसे निकष और अन्य निकष, भी मेरे सामने आते हैं, आप ऐसे निकष लगा कर प्रमाणित करते तो आपका लेख मान लेता.
    वे किस तरह चुने गए यह बिंदु गौण मानता हूँ, जो आपने पूरे आलेख में वर्णित किए हैं|
    बंधू भाव सहित|

  9. अंग्रेजी में एक कहावत है ” If you can ‘t defeat you join them” शेलेन्द्र जी और ठाकुर जी,प्रोफ़ेसर मधसूदन जी,शिवेंद्र मोहन जी,मारवाह जी को स्मरण हो कि श्री प्रणव मुखर्जी तब भी पश्चिम बंगाल कांग्रेस के एक छत्र नेता थे, जब वाम मोर्चा सत्ता में नहीं था और तब भी वे कभी चुनाव नहीं हारे जब काम. ज्योति वसु जैसे दिग्गज नेता के नेत्रत्व में सीपीएम ने लगातार३५ साल तक पश्चिम बंगाल पर एकछत्र राज किया. जब सीपीएम सत्ता से बेदखल की गई तब भी श्री मुखर्जी न केवल पश्चिम बंगाल से सांसद चुने गए बल्कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी और यूपीए के तथाकथित संकटमोचक बनकर देश और दुनिया में अपनी यश पताका फहराते रहे. में तो कांग्रेस और प्रणव मुखर्जी दोनों का जन्मजात ‘वर्ग शत्रु’ ठहरा किन्तु जब राष्ट्रीय परिप्रेक्ष में बेहतर से बेहतर नेत्रत्व की आकांक्षा ने रूप और आकर गृहण किया तो श्री प्रणव मुखर्जी राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित किये गए.अब मेरे सामने दो विकल्प थे; एक ये कि में आप लोगों के स्वर में स्वर मिलकर झूंठ मूंठ का अरण्यरोदन करते हुए अपने ही देश के राष्ट्रपति का अवमूल्यन करूँ या सत्य को स्वीकार करूँ. आप सभी से निवेदन है कि मेरा आलेख एक बार पुन; गौर से पढ़ें और अंतरात्मा से समीक्षा करें. जहां तक मेरे वाम समर्थक होने के वाबजूद श्री प्रणव मुखर्जी की तारीफ़ का सवाल है तो यह तो सीपीएम और वामपंथ के प्रति मेरी जबाबदारी होगी? आप लोगों इसमें क्या परेशानी है. सीपीएम या वामपंथ यदि मुझसे सवाल करेगा तो मेरा उत्तर भी हाज़िर है कि चुनाव में जिन प्रणव मुखर्जी को उन्होंने जितवाया या वोट दिया वे मुखर्जी अब निंदा के पात्र हैं या प्रशंशा के. में तो वोटर भी नहीं हूँ फिर भी तारीफ के दो शब्द वो भी सच्चाई के साथ लिख दिए तो क्या गुनाह किया? आलेख के शीर्षक में जरुर थोड़ी गड़बड़ हो गई,शीर्षक के अंत में पढ़ें” सिद्ध होंगे”

  10. श्री राम जी,
    मैं राष्ट्रपति पद के लिए लड़ नहीं रहा था. मुझे हिंदी या संकृत आए ना आए कोई अंतर नहीं पड़ता|
    ==>पर, मानता हूँ कि, भारत के सारे राष्ट्र-पति. हिंदी में बोलने वाले होने चाहिए| ऐसा मेरा दृढ मत है|
    ***मैं ने मुखर्जी को दूर दर्शन पर, हिंदी में बोलते सूना, या ऐसा समाचार में, पढ़ा नहीं है|
    (१)आपने मुखर्जी को हिंदी में बोलते सुना है क्या?
    मुझे इसका अनुभव नहीं|
    (२) और मैं जानना चाहूंगा, कि आपने आपकी दृष्टी में इस श्रेष्ठ तम राष्ट्रपति, मुखर्जी के बारे में पहले भी कोई लेख डाला अवश्य होगा|
    ==>तो उसका दिनांक सहित सन्दर्भ देने की कृपा करें|
    (३) मैं किसी कि वकालत नहीं करता, अब्दुल कलाम, या संगमा या प्रतिभा पाटिल| आप किस तर्क से, ऐसा मान रहें हैं?
    भारत का राष्ट्रपति देश की बहुसंख्य जनता की भाषा हिंदी बोलता नहीं|
    –इसके पहले उनकी प्रशंसामें आपका लिखा लेख उद्धृत करें|
    संस्कृत के पाठ प्रात: कर देने से संस्कृत का ज्ञान मान लेना पर्याप्त नहीं है|

  11. भाई तिवारीजी,लोकतंत्र में सबको अपना मत व्यक्त करने की आज़ादी है. प्रणब दा कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे ये तो केवल भविष्य ही बताएगा.शंकराचार्य से अच्छी संस्कृत प्रणब दा को आती है ये रहस्योद्घाटन अच्छा लगा. वास्तविकता क्या है ये तो या प्रणब दा को पता होगा या फिर आपको. देशवासियों के लिए उनका हिंदी और संस्कृत का ‘उच्च’ कोटि का ज्ञान एक सुखद जानकारी है.लेकिन मधुसुदन जी ने सही कहा है की किसी ने उन्हें सार्वजनिक रूप से हिंदी या संस्कृत बोलते नहीं सुना है. फिर भी हमारी शुभकामना है की प्रणब दा का कार्यकाल उन्हें यशस्वी करे और उनके द्वारा देश का कल्याण हो और दुनिया में माँ भारती का सम्मान बढे.

  12. मैं तिवारीजी की कई बैटन का समर्थन भी किया है पर अभी कलम से क्यों तुलना(वैसे मैं किसी राजनेता के ही राष्ट्रपति बनाए का पक्षधर हूँ – कलाम वा सहगल की लड़ाई बेकार थी)
    हिंदी और संस्कृत की बात बेकार उठी लेकिन ‘जितनी आपको(मधुसूदनजी) आती और किसी शंकराचार्य को नहीं आती उतनी प्रणव दा को १२ साल की उम्र में आने लगी थी कहना अतिरंजना है
    .दुर्गापूजा के अवसर पूरे सप्तशती का मुखाग्र वाचन व्बही कर सकता है जो सब दिन उसे करता है – प्रारंभिक अर्गला, कील कवच बहुतों मेरे जैसे सब दिन करते हैं और मुखाग्र रहता है
    भाई ‘सप्तपदी’ तो विवाह के बाद होता ? हर पूजा में हर साल ?
    कोई बात नहीं ऐसा चलता है – जादू वह जो सर चढ़ बोले..आप अच्छा बोले प्रणव दादा का पक्ष में पर मेरे बहिनोई मने को तोयर नहीं थे आपके प& टी की लीपक बाले बात पर- वे कब , कान्हा, कितने दिन थे..

  13. आदरणीय प्रोफ़ेसर मधुसूदन जी को मालूम हो कि श्री मुखर्जी को कलाम साहेब से १० गुना अच्छी और संगमा से १०० गुना अच्छी हिंदी आती है.
    रही बात संस्कृत की तो जितनी आपको नहीं आती और किसी शंकराचार्य को नहीं आती उतनी प्रणव दा को १२ साल की उम्र में आने लगी थी.दुर्गा पूजा के अवसर पर ‘सप्तपदी’ और शप्तशती का वे मुखाग्र ही वाचन किया करते हैं.
    और इसके वावजूद आपका प्रश्न आपके स्तर का कतई नहीं है.आपको तो यह स्मरण करना चाहिए था कि –
    मोल करो तलवार का ,पडी रहन दो म्यान……

  14. चारण और भाटों की परंपरा को आगे बढ़ाता हुआ लेख. क्या खूब कसीदे काढें तिवारी जी ने कांग्रेस के लिए. अपना उल्लू सीधा करना कोई इन रीढ़ विहीन बामपंथियों से सीखे.

  15. इतिहास यदि ये सावित कर दे कि श्री प्रणव मुखर्जी न केवल भारत अपितु दुनिया के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्राध्यक्ष हैं तो इसमें किस देशभक्त के पेट में दर्द होने वाला है? ये तो खास तौर से इस उत्तर आधुनिक एवं भूमंडलीकरण की मर्मान्तक चुनौतियों के दौर में नितांत आवश्यक भी है कि इस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का राष्ट्र अध्यक्ष ‘सर्वश्रेष्ठ’ हो. अब अदि मेरी सकारात्मक सोच है कि श्री मुखर्जी सक्षम सावित होंगे और मेरी यह सदिच्छा पूर्ण होती है तो मेरे विद्द्वान साथियों को मेरे आलेख से इतनी वेदना क्यों हो रही है? श्री मुखर्जी यदि सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होंगे तो पूरे देश को इसका श्रेय मिलेगा किन्तु सोनिया जी,कांग्रेस ,बाल ठाकरे, नितीश,शिवानन्द ,मुलायम मायावती और वामपंथ को निसंदेह सर्वाधिक प्रशन्नता होगी क्योंकि श्री मुखर्जी को अनन्य सहयोग देने वाले ये सभी दल और व्यक्ति सफल सिद्ध हुए है. स्वयम मुखर्जी का व्यक्तित्व इस सर्वोच्च पद के काबिल था और उनकी तारीफ वे व्यक्ति और दल भी करते आये हैं जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया .याद कीजिये यशवंत सिन्हा जी का और आडवानी जी का वो बयान जो विगत बज़ट सत्र में इन लोगों ने श्री मुखर्जी की प्रशंशा में दिया था.यदि उन लोगों ने मुखर्जी कि तारीफ कि थी तो क्या वि चरण वंदना थी?उसी तरह यदि मेने श्री मुखर्जी पर विश्वाश व्यक्त किया तो यह चरण वंदना केसे हो गई? बेशक यूपीए , कांग्रेस ,सोनिया जी,राहुल जी, दिग्विजय सिंह जी और मनमोहन सिंह जी इत्यादि कि नीतियाँ और कार्यक्रम से देश का कल्याण नहीं हो सकता और उनकी विनाश कारी आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ वामपंथ की लड़ाई बंगाल,केरल,त्रिपुरा समेत पूरे देश में चल रही है देश का मेहनतकश ,मजदूर,किसान ,नौजवान
    लाल झंडे के नीचे संगठित होकर लगातार संघर्ष कर रहा है ,दुनिया जानती है कि बढ़ती महंगाई के खिलाफ निरंतर संघर्ष , नरेगा योजना ,वनवासी विकाश योजना ,भूमिहीनों को जमीन के मालिकाना हक़ कि लड़ाई’ आपरेशन वर्गा’ इत्यादि अनेक जनकल्याणकारी जनहितकारी संघर्षों की फेहरिस्त .वामपंथियों के नाम दर्ज है .राष्ट्रपति के चुनाव में वामपंथ ने जो भूमिका अदा की वो वेमिशाल है. वामपंथ ने कांग्रेश का नहीं देश का साथ दिया है. याद कीजिये अभी दो दिन पहले दिवंगत हुई ‘केप्टन लक्ष्मी सहगल’ को राष्ट्रपति पद के लिए १० साल पहले कलाम साहब के खिलाफ किसने उम्मीदवार बनाया था? वामपंथ ने.तब कांग्रेस और भाजपा ने कलाम साहब को एकजुट समर्थन दिया था इसका क्या मतलब? जब १२३ एटमी करार पर २८ जुलाई -२००८ को यूपीए प्रथम से वाम मोर्चे ने समर्थन वापिस लिया तो इन्ही मनमोहन सिंह को बचाने के लिए भाजपा और एनडीए के कर्णधारों ने क्या भूमिका अदा की थी? क्या इसे कांग्रेस की चरण वंदना कहेंगे या राजधर्म.

  16. श्रीराम तिवारी ने अपने वामपंथी परिचय के औरूप लेख नहीं लिखा हाई वल्कि विरुदावली चरण भाटों की भाषा में गया है जो एक लेखक के लिए सर्वथा अनुचित है

    जिस तरह से अब महामहिम राष्ट्रपति चुने जाने हैं उन कतारमे लगे लोगों में प्रणव बुरे नहीं हैं
    आशा है की तिवारी जी भारतीय संविधान की कभी आलोचना नहीं करेंगे,
    आपके वैयक्तिक’ सही’ में नामजद कामरेड लोगों की कतार से प्रणव अधिक अछे जरूर हैं जो दुगा जी की पूजा बतौर पंडी टी हर साल करते हैं जिसे कोई प्रतिक्रियावादी अछा समझ सकता पर आप वामपंथी कैसे? आपकी पार्टी का बंगाली क्षेत्रीयता चलते समर्थन मिला ममता की तरह.
    Thakre जैसे हिंदुवादियों,राष्ट्रवादियों की पसंद के आप दीदार हैं क्या खूब?
    इस राष्ट्र हित में ’नरेंद्र मोदी’ का सपना आपको क्यों परेशां करता है? जदयू को खुलकर श्री मुखर्जी के पक्ष में आना पडा क्योंकि वह चद्रशेखर को दुहराना चाहते हैं यदि कोई मोर्चा असफल रहता तो
    जो बाल ठाकरेजी,मुलायम जी,मायावती जी,येदुराप्पजी के शुक्रगुजार हैं भगवन उन्हें राजनीतिक दलदल में फंसने से बचावे
    ,श्रीमती सोनिया गाँधी अब ’गैर जिम्मेदार ’ नहीं रही आपको धन्यवाद्
    आदिवासी विरोधी वामपंथी चिन्तक वा प्रणव की विरुदावली गायकी आपकी महिमा अपरम्पार है
    चलिए आपने ।अन्ना हजारे,केजरीवाल ,रामदेव का मंतव्य सही हो सकता है यह तो मना लेकिन अपने पवित्र[?] साध्य के निमित्त साधनों की शुचिता को कबसे वामपंथी विचारक मानने लगे?
    आपको भी बहुत बड़ी गलत फहमी है क़ि केवल कांग्रेसी और सोनिया गाँधी ,दिग्विजय सिंह तथा राहुल गाँधी ही चाहतेहैं क़ि देश में ईमानदारी से शाशन प्रशाशन चले। पता नहीं आपके वामपंथी करत आदि को यह जूमला कितना अच्छा लगेगा
    बेशक कांग्रेस ,सोनिया जी और राहुल को इस मोड़ पर स्पष्ट बढ़त हासिल है और ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं क्योंकि प्रणव दादा के हाथों जब विरोधियों का भला होता आया है तो राहुल के लिए बरं खान की तरह परवरिश करने का समय चला गया आब तो राजतिलक के लिए बचे रोड़े प्रणव को रायसीना भेज हे एडिया है – देखें आगे का खेल फर्रुखाबादी
    बिलकुल मेकाले की लिपिक मानसिकता में आपने यह लेख लि८खा है दोष मेकाले का है आपका थोड़े है?
    अपने लेख की एक प्रति महामहिम को भेज दें संभव है वहां प्रेस बिभाग में कोई खाली जगह भी हो?

  17. क्या राष्ट्र पति को राष्ट्र भाषा हिंदी या संस्कृत आती है?
    कभी बोलते सुना या पढ़ा नहीं|
    आप में से किसी ने सूना हैं?
    मुझे संदेह है|

  18. श्रीराम जी आपके लेख से ये तो तय है की वामपंथी कांग्रेस के छाया दल है, अपनी लेखनी से आपने ये साबित कर दिया है की वामपंथियों से अच्छी चरण वंदना कोई नहीं कर सकता पुरे लेख में कांग्रेस, प्रणव मुखर्जी, सोनिया गाँधी के साथ (चमचागिरी की हद) राजनीती में अब तक पूर्ण रूप से असफल और देश की जनता द्वारा नकारे जा चुके राहुल बाबा का नाम भी लिया है हा हा हा हा ………….

  19. तिवारी जी …
    ये तो आप भी जानते है की प्रणब जी किसकी पसंद है !! सोनिया गाँधी की पसंद को पुरे भारत की पसंद कहना उचित नहीं … प्रणब के लिए बंगाल और उत्तर प्रदेश दोनों को आर्थिक पैकेज के नाम पर भारी रिश्वत दी गयी है …
    ये प्रणब ही थे जो आपातकाल के वक़्त राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवा कर लाये थे .. और जहा तक मुझे लगता है ( कोई साक्ष्य नही केवल विचार ) अगले लोकसभा चुनाव में अगर कोंग्रेस को मामला बिगड़ता दिखा तो आपातकाल फिर से हो सकता है वेसे भी अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलन कांग्रेस की साख पर गहरे सुराख़ कर चुके है है
    दूसरी बात राहुल बाबा के लिए रास्ता साफ करने के लिए भी प्रणब की विदाई जरूरी थी

    तो देखते जाइये क्या होता है आगे …!!!

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