मुहिम २०१९ की!


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मंत्रिमण्डल में तीन साल में तीसरा विस्तार आवश्यकता का पुख्ता आधार तो दर्शता ही है यह भी बताता है  कि मोदी सिर्फ  अपनी अथवा औरों मसलन पार्टी अध्यक्ष/संघ प्रमुख की वफ ादारी की योग्यता मानकर शांत बैठने वाले नहीं है।
निश्चित ही तीसरे फ ेरबदल में २०१९ के आम चुनाव को पूरी तरह ध्यान में रखा गया है पर वरीयता योग्यता/कर्मठता को ही दी गई है। मोदी के चौकाने वाले निर्णयों की फ ेहरिश्त में ताजा निर्णय देश के इतिहास में पहली बार किसी महिला को स्वतंत्र रूप से रक्षामंत्री का कार्यभार सौपा जाना है।

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने तीन साल की अपनी सरकार में रविवार को जो तीसरा फ ेर बदल किया है उसकी नितांत आवश्यकता भी थी। श्री मोदी ने इस    फ ेरबदल में वो सब कुछ किया है जिसके तार २०१९ के आम चुनाव से सीधे जुड़ते नजर आते है।
मंत्रिमंडल के ताजे फ ेरबदल में जहां राजनीतिक समीकरणों को साधने की मजबूरी दिखती है वहीं योग्यता व कर्मठता को प्राथमिकता देने की प्रधानमंत्री की वरीयता भी। यदि ऐसा न होता तो कई मंत्रियों की कुर्सियां न छिनती, कई मंत्रियों को प्रोन्नत न मिलती और नये चेहरों को सरकार में कुछ कर दिखाने का मौका न हासिल होता।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जिन छ: मंत्रियों से कुर्सी छीन ली है उनमें सर्वश्री कलराज मिश्र, राजीव प्रताप रूडीं, बंडारूदत्तात्रेय, फग्गन सिंह कुलस्ते, डॉ० संजीव बालियान और महेन्द्र नाथ पाण्डेय शामिल है। पता चला है कि इनकी जहां काम-काज की रपट कतई संतोषजनक नहीं पाई गई है वहीं ये अन्य समीकरणों पर भी खरे नहीं उतर सके। ७७साला श्री कलराज मिश्र का ओवर एज होना भी कुर्सी छिनने का एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है।
जिन मंत्रियों को प्रधानमंत्री ने उनकी योग्यता/कर्मण्ठता के चलते प्रोन्नत दी है यानि वे राज्य से कै बिनेट मंत्री बनाये गये है उनमे श्रीमती निर्मला सीता रमण, श्री पियूष गोयल, श्री मुख्तार अब्बास नकवी एवं श्री धर्मेन्द्र प्रधान के नाम प्रमुखता से शामिल है। इनके काम न केवल प्रधानमंत्री की कसौटी पर खरे उतरे है वरन् जनता की राय में भी इनके काम-काज को संतोष जनक पाया गया है।
इसी कड़ी में श्री राज्यवर्धन राठौड़ और श्री संतोष गंगवार व श्री गिरिराज सिंह को प्रोन्नत मिलना भी उनके काम-काज का बेहतर होना माना जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार यदि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने रेलमंत्री श्री सुरेश प्रभु से रेलमंत्रालय छीनकर उन्हे व्यापार व वाणिज्य मंत्रालय सौपने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई तो यह सिद्ध करता है कि श्री मोदी काम के आगे वफ ादारी को नगण्य मानते है। कौन नहीं जानता श्री प्रभु हमेशा से श्री मोदी की पसन्द व भरोसे के नेता रहे हंै। इसी तरह यदि सुश्री उमाभारती से जलसंसाधन व गंगा सफ ाई छीनकर उन्हे पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय सौपा गया तो साफ  है कि उनकी संघ के प्रति वफ ादारी काम नहीं आई। कारण कि वह भी अपने काम-काज की कसौटी पर कतई खरी नहीं उतरी है। गंगा सफ ाई को लेकर सिवाय जुबानी जमा खर्च व दौरों के वे तीन सालों में तीन कदम भी नहीं बढ़ सकी। गंगा की दुर्दशा जस की तस बरकरार है। ऐसे ही श्री विजय गोयल व श्री अर्जुन राम मेघवाल भी वफ ादारी की बजाय काम-काज की कसौटी पर कसे गये और खरे न उतरने पर उनके मंत्रालय बदल दिये गये।
सूत्रों के अनुसार सरकार में पहली बार जिन ९ नये लोगो को शामिल किया गया है उनमें छ: राजनेता व तीन पूर्व नौकरशाह शामिल है। जिन छ: राजनेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया यकीनन उनसे चुनावी गणित भी साधने की कोशिश की गई है। यदि उत्तर प्रदेश से श्री शिव प्रताप शुक्ल को वित्त राज्य मंत्री बनाया गया तो साफ  है कि उन्हे हटाये गये ब्राह्मण मंत्री श्री महेन्द्र नाथ पाण्डेय के बदले ही जगह दी गई है। इससे खासकर पूर्वी क्षेत्र के ब्राह्मणों का भाजपा के प्रति रूझान और मजबूत होगा। इसी तरह बिहार में ब्राह्मणों को रिझाने के लिये ब्राह्मण नेता श्री अश्विनी कुमार चौबे को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री बनाया गया है। यदि निष्क्रियता के चलते श्री राजीव प्रताप रूड़ी को हटाया गया है तो क्षत्रियों में गलत संदेश न जाये इसीलिये पूर्व नौकरशाह आर.के. सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हे ऊर्जा एवं नवीकरणीय तथा अक्षय ऊर्जा के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का दायित्व सौपा गया है।
बुंदेलखंड से दलित नेता श्री वीरेन्द्र कुमार को महिला एवं बालविकास राज्य मंत्री बनाकर जहां बुंदेलखंड के लोगो को विकास का भरोसा दिया गया है वहीं दलितों के बीच भी सकारात्मक संदेश दिया गया है। ऐसे ही राजस्थान से श्री गजेन्द्र सिंह शेेखावत को कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री बनाकर राजस्थान के राजपूतों के बीच पैठ और मजबूत करने का प्रयास किया गया है। कर्नाटक के श्री अनंत कुमार हेगड़े की कौशल विकास राज्य मंत्री के रूप में ताजपेशी को यदि कर्नाटक में जल्द ही होने वाले विधानसभा के चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है तो उचित ही है।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चार पूर्व नौकरशाहों को मंत्रिमंडल में शामिल कर स्पष्ट कर दिया है कि उन्हे सरकार के बेहतर प्रदर्शन की चिंता भी कम नहीं है। जिन चार पूर्व नौकरशाहों सर्वश्री राजकुमार सिंह, हरदीप पुरी, अल्फ ोस कन्नन थनम और श्री सत्यपाल सिंह को मंत्री बनाया गया है, उनका अपने-अपने क्षेत्र में काम-काज का रिकार्ड उत्कृष्ट रहा है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी की हमेशा की तरह इस बार भी देशवासियों को चौकाने वाली रणनीति सामने आई है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने देश के इतिहास में पहली बार किसी महिला को पूर्ण रूप से रक्षामंत्रालय की जिम्मेदारी सौपकर सबको चौका दिया। भाग्यशाली महिला है श्रीमती निर्मला सीतारमण। अभी तक उनके पास व्यापार व वाणिज्य मंत्रालय का बतौर राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार था। ऐसे में उन्हे न केवल राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया वरन् रक्षामंत्रालय का कार्यभार सौपना दर्शाता है कि श्री मोदी की दूरदर्शी सोच का कोई मुकाबला नहीं है।
ज्ञात रहे आजाद भारत के इतिहास में महिला के रूप में प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के पास ही दो बार रक्षामंत्रालय का कार्यभार अतिरिक्त प्रभार के रूप में ही था।  रक्षामंत्रालय बेहद अहम मंत्रालय माना जाता है अमूमन प्रधानमंत्री इसे अपने विश्वस्त मंत्री को ही सौपते रहे है।

कौन बचायेगा भारत की आध्यात्मिक गरिमा को!
कभी भारत अपनी महान आध्यात्मिक शक्तियों के चलते ही विश्व गुरू कहलाता था। दुनिया के सभी धर्मो/पंथो का जनक भारत का वैदिक धर्म ही रहा है। इतिहास गवाह है कि दुनिया के जितने महान पैगम्बर/धर्मगुरू चाहे वो ईसा मसीह हो और चाहे मोहम्मद साहब सभी का भारत के अध्यात्म से गहरा जुड़ाव रहा है।
भारत के अध्यात्म के बल पर ही नामालूम कितने ऋषियों/मुनियों, संतो, महात्माओं ने दुनिया को ईश्वर से साक्षात्कार कराने व सच्चा जीवन जीने का मार्ग बताया/दिखाया।
भारत के महान सम्राटों/राजाओं की सत्ता चूंकि धर्म केन्द्रित हुआ करती थी। अतएव प्रजा सदैव सुसम्पन्न व खुशहाल रहती थी।
शने:-शनै: तपस्वी ऋ षियों/मुनियों, सच्चे संतो, महात्माओं का ज्यों-ज्यों लोप होना शुरू हुआ त्यों-त्यों पाखण्डी साधू संतो का उदय व प्रभाव बढऩा शुरू हो गया। पहले राजाओं/महाराजाओं फि र सरकारों ने स्वार्थवश इन्हे प्रश्रय देना शुरू कर दिया। इनकी ताकत/शोहरत मेें चार-चांद लगने लगे। ऐसे में आमजन का इन पर भरोसा बढऩा कोई आश्चर्य की बात कैसे कही जा सकती है।
वैसे मानव स्वभाव सदैव सुखी जीवन जीने के लिये लालायित रहता है। अतएव वो बेहद आसानी से संतो/महात्माओं पर अंधविश्वास करके उनके कहे पर चलने लगता है। ऐसे में उसे उस संत महात्मा की अच्छाईयां/बुराईयां जानने/समझने की जरूरत ही नहीं महसूस होती। नतीजतन वो शोषण होने पर या तो उसे भगवान का शाप मान लेता है अथवा अपनी तकदीर का लेखा।  अधिसंख्य भक्तों की यही सोच भी पाखण्डियों की ताकत को बढ़ाने का काम करती है।
विडम्बना तो यह देखिये कि ढोंगी/पाखण्डी संतो/महात्माओं का शिकार केवल गैर पढ़े लिखे अथवा कम पढ़े लिखे अंध श्रद्धालु ही नहीं होते वरन् सुसभ्य समाज के प्रतीक नेता, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, शिक्षक, पत्रकार एवं उद्योगपति तक इनके दरबारों की शोभा बढ़ाने में पीछे नहीं रहते। यह बात दीगर है कि बाबा का आर्शीवाद पाने हेतु इनकी प्राथमिकतायें कुछ और रहती हैं।
अहम सवाल यह है कि इन पाखण्डी बाबाओं की बढ़ती जमात को नंगा कर इन्हे हतोत्साहित करने की जिम्मेदारी जिन कंधो पर रही है उन्होने अपने दायित्वों का निर्वहन क्यों नहीं किया?
देश में हिन्दु धर्म के रक्षक व सचेतक माने जाने वाले शंकराचार्यो की फ ौज कहां है? कदाचित इनकी शिथिलता/अकर्णमयता का नजीता रहा कि समाज में पाखण्डी बाबाओं का जाल फ ैलता गया। कभी भोग से योग की संस्कृति का जन्मदाता रजनीश देश/विदेश में पूज्य बन जाता है तो कभी भोगी बाल ब्रह्मचारी का डंका बजता है। कभी बाबा धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसा हथियारों का सौदागर इन्दिरा गांधी जैसी सशक्त प्रधानमंत्री का चहेता बन जाता है। कभी तांत्रिक चंद्रास्वामी जैसा बाबा नरसिम्हा राव जैसे प्रधानमंत्री का सलाहकार बन जाता है तो कभी होटल का गार्ड इच्छाधारी बाबा नागिन डांस करता है। तो कभी नौकरी छोड़ बाबा रामपाल बड़ी भीड़ को अपने इशारों पर नचाता नजर आता है तो कभी आसाराम कथावाचक बेटे सहित धर्म के नाम पर महिलाओं की इज्जत से खेलता है तो कभी हाईस्कूल      फ ेल गुरूमीत रामरहीम बनकर अय्याशी का अड्डा चलाता है और फि र धर्म भीरू जनता शंकराचार्यो को छोड़ इनके पीछे होती चली जाती है। नतीजा सामने है।
कहां है महान धर्म सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज के अलम्बरदार। यदि इन लोगो ने भी कभी पाखण्डी बाबाओं के विरूद्ध आदंोलन चलाया होता तो शायद तस्वीर इतनी घिनौनी न हो पाती।
सरकारों व सरकारों के उन नुमाइंदो ने यदि राज धर्म का यथेष्ट पालन किया होता तो न तो पाखण्डियों को फ ूलने फ लने का मौका मिलता और न ही लोगो की जाने जाती व अरबों की सम्पत्तियां अराजकता की भेंट चढ़ती।
देश की धर्मभीरू जनता यदि कम से कम कर्मयोगी कृष्ण के महान संदेश ‘कर्मण्ये वा धिकारस्ते मां फ लेष्ुा कदाचनÓके उस महान संदेश का ही पालन करे तो उसे अनेक कष्टों से छु टकारा मिलना तय है। वैसे भी उसे याद रखना चाहिये कि कर्म फ ल ही मनुष्य को धन-धान्य पूर्ण, यशस्वी व पूज्य बना सकता है। कोई साधू-संत, धर्म-सम्प्रदाय नहीं। धर्म का अर्थ भी यही है कि हम अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी से पालन करें।

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