राजनैतिक चक्रव्यूह में फंसते मुलायम सिंह यादव

mulayamअरविन्द विद्रोही 

देश को गैर कांग्रेस – गैर भाजपा गठबंधन के स्थान पर एक नया धर्मनिरपेक्ष समाजवादी मोर्चे का विकल्प देने के लिए प्रयासरत समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव भारतीय लोकतान्त्रिक राजनीति में एक ऐसी राजनैतिक शख्सियत हैं जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन के प्रत्येक मोड़ – अवसर पर संघर्ष के बलबूते ही खुद को साबित कर दिखाया है । समाजवादी मूल्यों – संकल्पों , डॉ लोहिया के विचारों के प्रति समर्पण ,लोकनायक जय प्रकाश नारायण के संघर्ष के अनुपालन ,चौधरी चरण सिंह की कर्मठता ,राजनारायण का जुझारूपन ,कर्पूरी ठाकुर सा कार्यकर्ताओं के प्रति स्नेह-लगाव को अपने राजनैतिक ही नहीं व्यक्तिगत जीवन का अभिन्न अंग बना चुके मुलायम सिंह यादव की अपनी राजनैतिक जीवन की यात्रा में उनका सबसे ज्यादा साथ दिया है तो उनकी खुद की राजनैतिक दृढ़ता , उनकी सांगठनिक छमता और उनके जिद्दी माने जाने वाले त्वरित दृढ़ निश्चय कर उसपर कायम रहने वाले स्वभाव ने ।

मुलायम सिंह यादव आगामी लोकसभा आम चुनावों में देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद पर समाजवादियों – किसानों-मजदूरों के हितैषियों के कब्जे की मंशा को सार्वजनिक कर ही चुके हैं । उत्तर-प्रदेश विधान-सभा 2012 के आम चुनावों में सत्ता मद में चूर तत्कालीन बसपा सरकार को धूल चटा कर प्रचण्ड बहुमत से समाजवादी पार्टी उत्तर-प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार का गठन कर एक वर्ष पूरा कर ही चुकी है । मुख्यमंत्री के पद पर युवा अखिलेश यादव की ताजपोशी करके सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने भविष्य के समाजवादी नेतृत्व को पुख्ता करने का काम किया है । लोहिया-जे पी के देहावसान के पश्चात् समाजवादी दल में बीसों वर्ष जो बिखराव का दुखद क्रम चला उसको समाप्त करके 1992 में छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र के निर्देशानुसार एक सूत्र में समाजवादी पार्टी का गठन कर पिरोने का सराहनीय कार्य मुलायम सिंह यादव ने किया था । सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र के आदेशानुसार ही कन्नौज सीट से अपने पुत्र अखिलेश यादव को लोकसभा चुनाव लड़ाया था । छोटे लोहिया चाहते थे कि भविष्य में समाजवादी आन्दोलन में बिखराव ना पैदा हो ,शून्यता ना उत्पन्न हो इसीलिए उन्होंने  शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् संघर्ष की राजनीति करने को अखिलेश यादव को भी प्रेरित किया था , यह छोटे लोहिया की ही अदम्य इच्छा थी कि अखिलेश यादव को राजनीति में संघर्ष के पथ पर उतारने को मुलायम सिंह यादव को विवश होना पड़ा था । मुलायम सिंह यादव पर अखिलेश यादव को राजनीति में आगे बढ़ाने पर उनको परिवारवादी कहने वालों को छोटे लोहिया की वो बात याद करनी चाहिए जो उन्होंने पत्रकारों के सवाल के जवाब में स्पष्टरूप से कहा था ,उन्होंने कहा था ,–” यह सत्ता का परिवारवाद नहीं है यह संघर्ष का परिवार वाद है । ” बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं अखिलेश यादव को मुलायम सिंह यादव के पुत्र होने के कारण विशेष अवसर की प्राप्ति हुई परन्तु ध्यान देने की बात यह भी है कि अवसर मिलने के पश्चात् संगठन में युवा प्रभारी , प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका में अपने मेहनत के बलबूते खुद को खरा साबित करने में अखिलेश यादव ने तनिक सी कसर न छोड़ी और अब बतौर मुख्यमंत्री अपने को खरा साबित करने की चुनौती का सामना कर ही रहे हैं ।

अब आज की तारीख में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पर चौतरफा प्रहार आखिर क्यूँ होने लगे ? समाजवादी विचारधारा के प्रति बढ़ते जन रुझान को भांपकर ही एक सुनियोजित राजनैतिक षड़यंत्र के तहत राजनैतिक चक्रव्यूह की रचना समाजवादी विचारधारा के सबसे बड़े संगठन व जनाधार वाले नेता सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को फंसाने के उद्देश्य से उनके राजनैतिक विरोधियों ने रच रखी है । इन राजनैतिक विरोधियों में कांग्रेस-भाजपा के तमाम नेता तो शामिल हैं ही , मुलायम सिंह यादव की बदौलत राजनैतिक पदों को पाने वाले वर्षों उनके सहयोगी रहे बेनी प्रसाद वर्मा , अमर सिंह हमलावर की भूमिका में हैं । 1989 में बुरी तरह राजनैतिक शिकस्त खा कर औंधे मुँह गिर चुके चौधरी अजित सिंह भी मुलायम विरोधी बयान जारी करने का कोई मौका नहीं गंवाते । और तो और पुराने समाजवादी नेता रघु ठाकुर भी अपनी व्यक्तिगत खीज – पीड़ा मिटाने के लिए मुलायम सिंह के खिलाफ जारी जुबानी जंग में शामिल हो चुके हैं । चौधरी चरण सिंह के पुत्र होने के बावजूद चौधरी अजित सिंह को उत्तर-प्रदेश की जनता ने नकारते हुए वर्षों पहले ही मुलायम सिंह यादव को चौधरी चरण सिंह का राजनैतिक वारिस स्वीकार लिया था , यही पीड़ा चौधरी अजित सिंह को शायद प्रति पल कचोटती रहती है । उत्तर प्रदेश के प्रत्येक इलाके में प्रतिबद्ध समाजवादी कार्यकर्ता मुलायम सिंह यादव की राजनैतिक छमता -ताकत के परिचायक हैं वहीँ दूसरी तरफ चौधरी अजित सिंह चंद जनपदों में सिमट कर कभी कांग्रेस कभी भाजपा जिसकी भी सरकार बने उसमे मंत्री बने रहने की जुगत की राजनीति करते हैं । बाराबंकी निवासी – वर्तमान में गोंडा से कांग्रेसी सांसद बेनी प्रसाद वर्मा ( इस्पात मंत्री ) जो कि कभी मुलायम सिंह यादव की प्रतिछाया हुआ करते थे अब विगत दिनों मुलायम सिंह यादव पर तीखे आरोप लगाते नज़र आये और सिर्फ सभा-सड़क व प्रेस वार्ता में ही नहीं इन आरोपों की गूंज लोकसभा में भी हुई । बकौल सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी (कारागार मंत्री -उत्तर प्रदेश )—” बेनी प्रसाद वर्मा अपने पुत्र राकेश वर्मा की लगातार हार से बौखला गए हैं और अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं इसीलिए अनाप-शनाप बक रहे हैं । बेनी प्रसाद वर्मा की पीड़ा का कारण मुलायम सिंह यादव का व्यापक जनाधार ,बढ़ता राजनैतिक कद और उनके पुत्र अखिलेश यादव का मुख्यमंत्री बन जाना है । यही पीड़ा अजित सिंह को है । “

सपा मुखिया खुद स्पष्ट कह चुके हैं कि कांग्रेस दबाव की राजनीति कर रही है और सी बी आई का बेजा इस्तेमाल कर रही है । दरअसल कांग्रेस के मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा कांग्रेस को समर्थन दे रहे सपा मुखिया पर तीखे व्यक्तिगत प्रहार कांग्रेस आलाकमान की एक सोची समझी राजनैतिक रणनीति का हिस्सा ही हैं । यह मुलायम सिंह का बढ़ता प्रभाव ही है कि जब वो गैर कांग्रेस वाद को स्वरुप देने के लिए तीसरे मोर्चे की बात करते हैं तो भाजपा नेताओं को पीड़ा होती है और वो भी कांग्रेसी नेताओं की तर्ज़ पर मुलायम सिंह यादव और सपा पर हमलावर हो उठते हैं । उत्तर प्रदेश के भाजपा नेताओं की आँख अभी भी नहीं खुली है और भाजपा खुद बुरी तरह से आपसी कलह की शिकार है । यह तो मुलायम सिंह यादव का डॉ लोहिया के विचारों के प्रचार-प्रसार एवं प्रतिबद्धता की ही परिणति है कि क्या कांग्रेस और क्या भाजपा सभी डॉ लोहिया और समाजवाद की चर्चा कर रहे हैं और डॉ लोहिया के विचारों के अनुपालन करने का दावा कर रहे हैं । जिन डॉ लोहिया के चित्र-जिक्र को लगभग विस्मृत सा कर दिया गया था उन डॉ लोहिया को , उनके विचारों को , उनके संघर्षों को उत्तर-प्रदेश के करोड़ों – करोड़ नौजवानों ,किसानों ,मजदूरों ,आम जन तक पहुँचाने का पुनीत कार्य अगर किसी ने किया है तो वो धरतीपुत्र माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने ही किया है । यह कहना अतिश्योक्ति ना होकर सत्य ही है कि जनाधारविहीन तमाम नेता अपनी-अपनी व्यक्तिगत कुंठा व मुलायम सिंह यादव से व्यक्तिगत द्वेष – जलन के चलते ही मिथ्या आरोप लगाकर उनके द्वारा तीसरे मोर्चे के गठन की राह में कांग्रेस-भाजपा दोनों के इशारे पर बाधा खड़ी करने का दुष्प्रयास कर रहे हैं ।

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अरविन्‍द विद्रोही
एक सामाजिक कार्यकर्ता--अरविंद विद्रोही गोरखपुर में जन्म, वर्तमान में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में निवास है। छात्र जीवन में छात्र नेता रहे हैं। वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं। डेलीन्यूज एक्टिविस्ट समेत इंटरनेट पर लेखन कार्य किया है तथा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा लगाया है। अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 1, अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 2 तथा आह शहीदों के नाम से तीन पुस्तकें प्रकाशित। ये तीनों पुस्तकें बाराबंकी के सभी विद्यालयों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ्त वितरित की गई हैं।

5 COMMENTS

  1. वक्त के साथ मुलायम सिंह ने दोस्ती ओर दुश्मनी बनाई सिदांतविहीन राजनिति की ;
    उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी भाता दे के नवजवानों की सोंच को सिमित कर दिया
    ओः उतम प्रदेश

    मुलायम जिन्दा बाद .धरती पुत्र मुलालम जिन्दा बाद

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  2. Mulayam aay से adhik मामले से डरकर उप सरकारको सपोर्ट देकर कूद को अवसरवादी साबित kr रहे हैं.

  3. डॉ लोहिया के नाम लेने से मुलायम पर कठोर आरोप मुलायम नहीं हो जाते. स्वर्गीय सुदार्शंजीने मुझे उनके विरुद्ध में कई प्रसंग रखे थे पर एक काम मुलायम ने जरूर अच्छा किया था सोनिया को पहली बार प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया था और परमाणु डील में भी .वह हिन्दी के समर्थक हैं विदेशी पिनजी के विरोधी हैं, गरीब भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे ये अच्छी बात है ,,वैसे समाजवाद का अंत जातिवाद में होता है और साम्यवाद का पूंजीवाद में यह मेरी व्यक्तिगत धारणा है फिर भी क्षत्रीय दलों और वामपंथियों के साथ के इस गठजोड़ कोभाजपा को भी बहार से समर्थन दे कांग्रेस को रोकना चाहिए तीसरी बार सत्ता मे आने से. यदि सत्ता से तीसरी बार भी बाहर रहती है तो यह शुभ होगा उसका कचडा बाहर चला जाएगा- एकाध प्रान्त सरकारें(karnataka) का जाना तय है और यह शुभ ही है . वैसे भाजपा ईमानदार ममता या पटनायक या हिंदुविरोधी नहीं जयललिता वा को समर्थन कर प्रधानमंत्री बना सके तो और भी अछ्छा होगा. नीतीश के बजे ये नाम अच्छे हैं राजनीतिक रूप से क्योंकि इन प्रान्तों में भाजपा को कुछ खोना नहीं है – नीतीश चन्द्रशेखर या देवेगौडा बनाने का प्रयास करें तो उनका उत्तर मुलायम समेत इन तीनोमे कोई एक है .

  4. अरविंद विद्रोही जी,मुलायम सिंह का गुणगान तो आपने बहुत किया,पर उनके व्यक्तिगत ईमानदारी के बारे में आपका क्या ख्याल है?

  5. Mulayam Singh has nothing to do with principles of Lohiya, Jayaprakash narayan and other leaders you have quoted . Mulayam Singh is neither Mulayam nor Singh.
    He is mulla + alam= mulayam.He is most opportunist and has fooled the people of Uttarpradesh that is a tragedy because he has been able to win again on the evil policy of vote bank politics that is why Uttarpradesh is most backward state in the country and it would remain so .
    He is most corrupt and has enormous wealth and is under Sonia’s thumb so that CBI does not take any action.
    This is the reason he supports Congress otherwise he would in jail or would be disqualified from public office.
    He talks of third front and it is nothing but to confuse people for his own hidden desires to play bigger corruption.
    Uttarpradesh is a lawless state, and present government is incompetent and engaged in appeasement of Muslims only to have some more seats in Loksabha in 2024 general elections.
    Arvind Vidrohi jee should through some more light on dark side Mulayam and his son to liberate people from their corrupt practices.
    Vandebharatmataram

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