बीजेपी में मुरली मनोहर जोशी के नाम से हडकंप है। हड़कंप क्यों है क्योंकि जोशी का कद बढ़ना अमेरिका को मंजूर नहीं। क्यों मंजूर नहीं..संसद में 5 मार्च 2010 को दिया गया ये भाषण बता रहा है कि असल में मुरली मनोहर जोशी की कैफियत क्या है। क्यों आडवाणी समेत तमाम नेताओं को जोशी हमेशा से चुभते रहे हैं। बीजेपी में उसकी घोषित विचारधार को आगे बढ़ाने की समझ अगर किसी नेता के पास है तो वो जोशी है, लेकिन 20 साल से जोशी को किसी ख़ास योजना के तहत दरकिनार किया गया। 1993 के बाद दोबारा अध्यक्ष की कुर्सी नहीं मिली। हवाला के आरोप में आडवाणी संसद से बाहर थे, उस वक्त 13 दिन के लिेए वाजपेई की सरकार बनीं, जोशी को वाजेपेई ने मंत्रिमंडल में नंबर दो की हैसियत देते हुए होम मिनिस्टर बनाया, लेकिन जब सरकार 1998 में बनीं जो जगह आडवाणी ने हथिया ली..जोशी ने वित्त मंत्रालय मांगा ताकि मनमोहन..मोंटेक की नीतियों में सुधार लाते हुए उसे इंडिया सेंट्रिक बनाया जाए लेकिन बीजेपी नेताओं ने मांग मंजूर नहीं की, आखिर क्यों? क्योंकि बीजेपी में और देश में स्वदेशी आंदोलन की पैरोकारी अगर किसी ने की तो जोशी ने…लेकिन सरकार बनीं तो स्वदेशी को भी बीजेपी ने झटका और जोशी को भी। लेकिन दाद देनी पड़ेगी..इस आदमी की डटा रहा…आडवाणी खेमे से डटकर लोहा लिया…निजी वजहों के लिए नहीं…बल्कि विचारधारा और देश के लिए….झुक जाता…आडवाणी की शरण ले लेता तो शायद विदेश..रक्षा या कोई और अहम मंत्रालय मिलता लेकिन नहीं…क्या दिया…एचआरडी मंत्रालय…खैर जोशी ने वहां भी विचारधार और भारतीयता को बढ़ावा देना शुरु किया जिसे बाद में यूपीए सरकार ने उलटने का काम किया..। 2004 में जोशी चुनाव हार गए…किसी तरह से राज्यसभा मिली…बीजेपी में सबसे वरिष्ठ थे, बावजूद इसके राज्यसभा में नेता विपक्ष नियुक्त करने का सवाल आया तो आडवाणी ने जसवंत सिंह को पद दिलवा दिया…अब कहां जसवंत…कहां जोशी…। आडवाणी ने जिन्ना को सेकुलर बताया तो जसवंत ने पूरी किताब लिख मारी…। लिहाजा़ भागवत का गुस्सा फूट पड़ा….राजनाथ ने नागपुर का संकेत पाते ही पार्टी से निकाल बाहर किया लेकिन वाह री किस्मत…आडवाणी जी की दोस्ती की बदौलत फिर से बीजेपी में आ गए। अमेरिका से लगाव जग जाहिर है..बीजेपी में बतौर अमेरिकी एजेंट कई लोग घुसे हुए हैं…उनमें जसवंत का नाम भी जानकार लेते रहते हैं। यही वजहें हैं कि आडवाणी से कभी जोशी की पटरी नहीं बैठी…लिहाज़ा आज तक जोशी किनारे पड़े हैं..। टीम आडवाणी ने विचारधारा से जुड़े हर नेता को या तो मटियामेट किया या उसके पतन का पथ तैयार किया…..उमा भारती, गोविंदाचार्य, कल्याण सिंह, सुदर सिंह भंडारी, संघप्रिय गौतम, तपन सिकदर, जना कृष्णमूर्ति, कुशाभाऊ, केशुभाई, संजय जोशी…नाम गिनते जाइए….अंतहीन सीरीज है…..अगर एक नेता है जो आज भी ताल ठोंक रहा है अमेरिका परस्त केंद्रीय नीतियों और एनडीए सरकारा के दौरान उसके पैरोकार रहे बीजेपी नेताओं के खिलाफ….तो सिर्फ जोशी है। बीजेपी ने उसे हर मौके पर पीछे रखा है…क्यों? जबकि जोशी ने बतौर कॉमर्स की स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष रहते हुए खुदरा व्यापारियों के हक को महफूज़ किया, बतौर पीएसी चेयरमैन जिसने पीएमओ से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों की भूमिका को लपेटे में लिया…जिसे खारिज कराने के लिए पीएसी की कार्रवाई के वक्त पूरी यूपीए सरकार मैंदान में उतर गई….लेकिन बीजेपी नेताओं की हरकत देखिए…..संसद में पीएम ने जब कहा कि टूजी घोटाले की जांच पीएसी से करा लेते हैं…..बीजेपी ने जेपीसी की मांग उठा दी…क्यो? क्योंकि पीएसी जांच करती तो जोशी को अहमियत मिल जाती। और क्या हुआ जेपीसी का….किसी को कुछ पता नहीं…सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीएम और चिदंबरम को घेरने की सारी कोशिश पर पानी पड़ गया…..। और तो और, यही बीजेपी नेता, जो यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान अंशुमान मिश्र के भाई राजीव मिश्र को देवरिया से चुनाव लड़ने का टिकट देते हैं…उसे झारखंड से राज्यसभा में भेजने का जुगाड़ बनाते हैं….जोशी के विरोध के बाद उसे मोहरा बनाकर कीचड़ भी उछलवाते हैं….कि जोशी ने बलवा से , अंबानी से मुलाक़ात की….। समझ में नहीं आता कि मुलाक़ात तो पीएसी बैठकों में टाटा, राडिया समेत तमाम आरोपियों से हुई…लेकिन क्या जोशी ने रिपोर्ट में किसी को बख्शा….बख्शा होता तो समूचा कॉरपोरेट वर्ल्ड और यूपीए सरकार पीएसी की रिपोर्ट खारिज कराने नहीं बैठी होती…..विचारधारा के लिए और देश के गरीब गुरबों के लिए राजनीति करने वाले ये शख्स दोबारा बीजेपी को और देश को मिलेगा…..पता नहीं। लेकिन बीजेपी नेता जोशी को रास्ते से हटाने के लिए फिर से खेमेबंदी में जुट गए हैं क्योंकि नागपुर में सुगबुगाहट सुनी जा रही है। हो सकता है कि टीम आडवाणी अपनी योजना में सफल हो जाएं ।.संसद में जोशी के इस भाषण को पढ़िए….समूची बीजेपी आडवाणी को माननीय कहती है….जोशी उन्हें श्रीमान आडवाणी कहते हैं….नहीं बनती तो नहीं बनती…., अमेरिकी परस्त नीतियों और नेताओं को झकझोर सकता है ये भाषण…..।
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(५ मार्च २०१० को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जोशी के भाषण का पूरा हिस्सा)
THE MINISTER OF PARLIAMENTARY AFFAIRS AND MINISTER OF WATER RESOURCES (SHRI PAWAN KUMAR BANSAL): After this item gets over, because today is Friday, instead of taking up the ‘Zero Hour’ at the end of the day, you may take up the ‘Zero Hour’ before taking up Private Members’ Business.
MADAM SPEAKER: Okay, we will take up the ‘Zero Hour’ after lunch.
डॉ. मुरली मनोहर जोशी (वाराणसी): अध्यक्ष महोदया, महामहिम राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर जो कुछ चर्चा हुई, उसे मैंने बहुत ध्यान से सुना। उनके भाषण को भी बहुत ध्यान से पढ़ा। उसमें उन्होंने बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये हैं, जिनकी विस्तारपूर्वक चर्चा बहुत से विषयों पर हो चुकी है और शायद बहुतों पर बजट के समय की जा सकेगी। लेकिन कुछ खास बातें जो उन्होंने अपने कई अभिभाषणों में कही हैं, उसमें से एक जो उन्होंने जून, 2009 के भाषण में भी कही थीं, वह यह है कि मेरी सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम नामक एक नया कानून बनाने का प्रस्ताव करती है, जो एक ऐसे ढांचे के लिए सांविधिक आधार मुहैया करायेगा, जिसमें सभी के लिए खाद्य सुरक्षा का आश्वासन हो। अभी दोबारा भी उन्होंने इस बात को फिर से दोहराया है और कहा है कि —
“In the longer term our food security can be ensured only through sustained efforts. My Government is committed to bring in legislation to ensure food security. ”
It has also been said:
“My Government continues to accord highest importance to ensuring relief to the aam aadmi on food prices. ”
हमारे वित्त मंत्री महोदय ने भी अपने भाषण में ‘कौटिल्य’ का उदाहरण देते हुए कहा कि “इस प्रकार, एक बुद्धिमान महा समाहर्ता राजस्व संग्रहण का कार्य इस प्रकार करेगा कि उत्पादन और उपभोग अनिष्ट रूप से प्रभावित न हों। लोक सम्पन्नता, प्रचुर कृषि उत्पादकता और अन्य बातों के साथ वाणिज्यिक समृद्धि पर वित्तीय सम्पन्नता निर्भर करती है।” इसका अर्थ यह है कि पिछले और उससे पहले के बजट में भी इसी प्रकार की बातें कही गयी हैं। खाद्य सुरक्षा महामहिम राष्ट्रपति जी के अभिभाषणों का सारांश है, जिसे मैंने आपके सामने रखा। खाद्यान्नों के मूल्यों पर भी नियंत्रण रखने की बात कही जा रही है और ये घोषणाएं की जा रही हैं कि ये बहुत जल्दी नियंत्रित हो जायेंगी। लेकिन आज भी समाचार-पत्रों में है कि 18 प्रतिशत की दर से खाद्यान्नों के मूल्य बढ़े हैं और ये रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। महामहिम राष्ट्रपति जी जो कह रहे हैं, जो आपको संकेत दे रहे हैं, सरकार की नीतियों के बारे में बराबर कह रहे हैं, उनका अनुपालन, मैं समझता हूं कि यह सरकार करने में असमर्थ रही है। अब जरा देखें कि खाद्य सुरक्षा की जो बात कही जा रही है, इसके निहितार्थ क्या हैं? बहुत पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक वाक्य कहा था कि “Everything can wait but not agriculture.” सब चीजें रुक सकती हैं, लेकिन कृषि नहीं रुक सकती। मुझे देखकर अफसोस हुआ कि आजकल हमारी सरकार की तरफ से अमेरिका के साथ हमारी खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित रखने के लिए जो बातें हो रही हैं, तो वहां का क्या रूख है? Mr. Earl Butz, the former Agriculture Secretary of USA had made a statement. In that he said: “Food is a weapon. It is now one of the principal tools in our negotiating kit.” वह अनाज को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं और कर रहे हैं। जिन देशों में अनाज कम होता है, उनके ऊपर दबाव डाल रहे हैं और उनकी आर्थिक और राजनीतिक नीतियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए खाद्य सुरक्षा बहुत आवश्यक चीजें हैं यानी खाद्य के मामले में हमें पूरे तौर पर आत्मनिर्भर होने की जरूरत है।
लेकिन हो क्या रहा है? मैंने इस मामले में कुछ बजट प्रावधानों को देखा, मैं ज्यादा की चर्चा नहीं करूंगा, लेकिन एक बहुत महत्वपूर्ण बात की ओर आपका ध्यान दिलाउंगा। यह कहा जाता है कि कृषि के लिए हमें बहुत कुछ करना है और किसानों के लिए हमने इतना दे दिया है, किसानों के लिए हम यह कर रहे हैं, लेकिन जरा उसकी गहराई में जाइए, जो किसानों को ऋण और सहायता देने की नीति है, जरा उसके पेंच को समझिए। There is a four-pronged strategy for agriculture. The first of these are: agricultural production. It could mean anything for anybody. The other three are: gold mine for large corporations, but not for the farmers. जो कुछ और किया जा रहा है, बड़े पूंजीपति, बड़े उद्योगपति के लिए है, छोटे किसाने के लिए नहीं है। आप देखे कि एक नीति बनाई गयी है, रिडक्शन इन वेस्टेज ऑफ प्रोडय़ूश और यह कहा गया है कि इसमें हम उन सारी चीजों के लिए ऋण देंगे, जो इस वेस्टेज को रोकेंगे यानि कोल्ड स्टोरेज बनाएंगे या दूसरे इस तरह के कार्य करेंगे। इसमें कहा गया है कि 25 करोड़ रूपए तक एग्रीकल्चरल क्रेडिट के रूप में दिए जाएंगे। 25 करोड़ रूपए ऋण लेने वाले कितने किसान हैं, यह मैं कृषि मंत्री जी से पूछूंगा और वित्त मंत्री जी से भी कहूंगा कि जरा इसका हिसाब दें कि 25 करोड़ रूपए के ऋण कितने किसानों ने लिए है जो वास्तविक खेती करते हैं? छोटे किसान को 25,000 रूपए लेना मुश्किल है, लेकिन 25 करोड़ रूपए किसको मिल रहे हैं? एग्रीकल्चरल लोन के नाम पर किसी भी उद्योगपति को मिल सकते हैं जो यह कहेगा कि मैं कोल्ड स्टोरेज बना रहा हूं, जो कहेगा कि मैं एक रेफ्रिजरेटेड यातायात बना रहा हूं। उस कंपनी को ये 25 करोड़ रूपए मिल जाएंगे और यह एग्रीकल्चरल लोन उन टर्म्स पर मिलेंगे, जो किसान के नाम पर मिल रहे हैं।…( व्यवधान)
श्री मुलायम सिंह यादव (मैनपुरी): किसान को 10,000 रूपए कर्ज लेने पर 2,000 रूपए खर्च करने पड़ते हैं।…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी (वाराणसी) : हाँ, वहां ऋण लेना पड़ता है और यहां अगर 25 करोड़ रूपए लीजिए तो शायद इसके लिए कमीशन भी दिया जाएगा कि आप 25 करोड़ रूपए ले लीजिए। यह कैसी खाद्य सुरक्षा की बात है? यह किस किसान के लिए आप बात कर रहे हैं? आप आगे देखिए, इसमें कहा गया कि किसान बाहर से भी खेती के लिए ऋण ला सकते हैं। कौन लाएगा? केवल बड़े कारपोरेशन्स लाएंगे, छोटा किसान तो नहीं ला सकता है। यह कौना से एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट के लिए, खाद्य सुरक्षा को ठीक रखने के लिए आपने नीतियां बनाई हैं? किसानों को जो कर्ज दिए गए हैं, एग्रीकल्चरल क्रेडिट के रूप में, जो 10 करोड़ रूपए से ज्यादा हैं, 25 करोड़ रूपए तक हैं या 25 करोड़ रूपए से ज्यादा हैं, वे किसके पास हैं। उनकी एक सूची इस सदन के सामने आ जाए तो पता लग सकेगा। इसमें एक और तमाशा हुआ है कि सालों में 25,000 रूपए ऋण लेने वाले किसानों की तादाद घटी है और 10 करोड़ रूपए से 25 करोड़ रूपए तक कर्ज लेने वाले एग्रीकल्चरल लोनर्स की तादाद बढ़ी है। मैं नहीं समझ पाता हूं कि किस तरह इससे कृषि उत्पादकता बढ़ेगी और इससे किस प्रकार से आप खेती को आगे ले जा सकेंगे।
आप बार-बार यह कहते हैं कि हमने 70,000 करोड़ रूपए किसानों को दे दिया। यह पैसा आपने एक बार दिया, लेकिन आप बड़े कारपोरेशन्स को कितना माफ करते हैं? अगर आप देखें, कभी 80,000 करोड़ रूपए, कभी 70,000 करोड़ रूपए, कभी 60,000 करोड़ रूपए हर साल दिए जा रहे हैं। मैं चाहूंगा कि प्रधानमंत्री जी या वित्त मंत्री जी सदन को यह अवगत कराएं कि पिछले पांच सालों में हर वर्ष कितने ऐसे बड़े कारपोरेशन्स को लोन्स माफ किए गए हैं या रिलीफ दिया गया है, चाहे वह टैक्स के द्वारा हो, एक्साइज के द्वारा या अन्य किसी माध्यम से दिया गया हो। अगर आप वह 60,000 या 70,000 करोड़ रूपए हर साल उनको दे रहे हैं और एक बार आपने किसान को 70,000 करोड़ रूपए दे दिए, वह भी किसान को नहीं, किसान के नाम पर बैंकों को दे दिया, तो मैं नहीं समझता कि उससे आप किसान का कोई भला कर रहे हैं। मेरी समझ में नहीं आता है कि आप कैसे इस काम को कर रहे हैं? अभी भी हालत यह है कि किसान आत्महत्या कर रहे हैं और अभी दो-चार दिन पहले उड़ीसा में 50 हंगर किल्स किसानों ने किए हैं, लेकिन पिछले सालों के जो आंकड़े हैं, करीब-करीब 1.5 लाख किसानों ने पिछले सालों में आत्महत्या की है। हर साल किसानों द्वारा आत्महत्या हो रही है, अभी भी इसमें कमी नहीं आई है। 15,000-16000 किसान हर साल आत्महत्या कर रहे हैं। यह क्या स्थिति है? किसी-किसी राज्य में तीन हजार-चार हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सबसे अधिक अफसोस की बात यह है कि माननीय कृषि मंत्री जी के राज्य में भी ऐसा हो रहा है। वहां भी कमी नहीं आई है, जैसे देश में कमी आई है, उसी हिसाब से कमी आई है, लेकिन आत्महत्याएं रुकी नहीं हैं। इसलिए किसानों की आत्महत्याएं नहीं रुक रही है, नहीं रुक रहीं, हंगर डैथ्स नहीं रुक रही हैं, लोगों का मैलन्यूट्रीशियन नहीं रुक रहा। आपको मालूम होना चाहिए कि विश्व के पटल पर कुपोषण दूर करने में अभी बहुत पीछे हैं, हमने उसे पूरा नहीं किया है। तो आप क्या करना चाहते हैं, किस तरह से आप देश की इस खाद्य सुरक्षा को संरक्षित करना चाहते हैं? हमें बताया गया कि कानून बनाना चाहते हैं। मैं आज कृषि पर बात नहीं कर रहा, वरना मैं आपको बता सकता था कि उत्पादकता के मामले में भी आप क्या कर रहे है। आप उत्पादकता नहीं बढ़ा सकते, क्योंकि जिन देशों के साथ आप समझौता कर रहे हैं, मैं उस पर बाद में आऊंगा। वह उत्पादकता बढ़ाने का सवाल नहीं है, वह एग्रीकल्चर को को एग्री बिजनेस में बदलते हैं, उनकी रूचि आपके देश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने में नहीं है। आपकी मार्केट्स को लेने में उनकी रूचि है। आपके बीज के व्यापार को लेने में उनकी रूचि है। आपके यहां अपने पेस्टीसाइड्स फेंकने में उनकी रूचि है। आपके यहां उत्पादकता बढ़ाने में उनकी रूचि नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पास सरप्लस फूड है। आपके यहां अगर अनाज कम होगा, आप उनके वहां से इम्पोर्ट कर लेंगे। इसलिए उस नीति पर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे। लेकिन देखिए कि इस तरह से कैसे आप देश की खाद्य सुरक्षा करेंगे। कहते हैं कि हम कानून बनाकर करेंगे। मुझे कभी-कभी हंसी आती है कि सरकार के लोग शायद यह समझते हैं कि मॉल्स में, सुपर मार्केट्स में अगर अच्छे पैकेट्स में रखा हुआ विदेशी अनाज है तो खाद्य सुरक्षा हो गई और उत्पादकता बढ़ गई। अनाज की उत्पादकता मॉल्स में नहीं बढ़ती है, दुकानों में नहीं बढ़ती है, अनाज की उत्पादकता खेतों में बढ़ती है, खलिहानों में बढ़ती है और उसकी तरफ आपका ध्यान नहीं है, किसानों की तरफ आपका ध्यान नहीं है। इसलिए महामहिम राष्ट्रपति जी के अभिभाषण से मुझे हैरत होती है कि वह बार-बार कह रही हैं, लेकिन आपके कान पर जूं नहीं रेंगती है। आप उस तरफ कुछ ध्यान नहीं देते हैं। जब तक आपकी नीति किसान फोकस नहीं होगी, तब तक न तो आपके देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी, न आपको आंतरिक और बाह्य सुरक्षा में मदद मिलेगी, आप इस देश का विकास नहीं कर सकेंगे। भूखे पेट का हिन्दुस्तान किसी रास्ते पर नहीं चलेगा। इसलिए पहली जरूरत है हिन्दुस्तान को हंगर फ्री बनाएं, भूख मुक्त हिन्दुस्तान बनाएं, ज़ीरो हंगर की पॉलिसी बनाएं। मैं आपको बहुत स्पष्ट कहना चाहता हूं कि जब तक आप ज़ीरो हंगर पॉलिसी नहीं बनाएंगे, तब तक हिन्दुस्तान आग नहीं बढ़ेगा।
आप कहते हैं कि हम कानून बना रहे हैं फूड सिक्योरिटी के लिए। मुझे बड़ी खुशी होती, अगर इस कानून से आप ज़ीरो हंगर ले आते। लेकिन पहले यह देखें कि इस देश में भूखे कितने हैं। इसी पर आपके यहां एकमत नहीं है। आप बिलो पावर्टी लाइन की सीमा को निश्चित नहीं कर पाए हैं। कोई सरकार नहीं कर पाई, हमने भी कुछ किया था, आप भी कुछ कर रहे हैं, लेकिन वह ग्राउंड रिएलिटी से बहुत दूर है, इस बात को स्वीकार करना चाहिए। आपने एक कमेटी बनाई, उसकी रिपोर्ट मेरे पास है।
“Expert Group to advise the Ministry of Rural Development in the Methodology for conducting the Below Poverty Line Census for the Eleventh Five Year Plan ”
इस रिपोर्ट को आप गहराई से पढ़ें और देखें। मैं नहीं समझता आप इसे स्वीकार करेंगे, क्योंकि यह एक बिल्कुल जमीनी स्थिति को हमारे सामने रखती है। इसलिए इसे गहराई से समझें और इसमें राजनीति न करें। हमने 28 प्रतिशत किया और आपने 27 प्रतिशत किया, यह बराए मेहरबानी मत करिए। यह देखें कि जमीन पर कितने लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। कौन गरीब है, कौन दरिद्र है। खाली गरीब ही नहीं, दरिद्र कौन है। कौन ऐसा है जो दो जून खाना तो क्या, एक जून भी खाना प्राप्त नहीं कर सकता है। वह गरीबी की सीमा के नीचे बहुत दूर तक नीचे है। इन सारी चीजों को आप देखें तो यह कमेटी कहती है,
“Food security is need for all – and not only for those who are officially Below the Poverty Line…””
भोजन की सुरक्षा सबको मिलनी चाहिए, फिर वे यह कहते हैं
“This issue is particularly relevant for combating food-related hunger because as we will argue later in this Section, the number of food deficit people has at least doubled the number of officially declared people in India, thus there is every case for enlarging the category of those entitled to cheaper food from the Government.”
उन्होंने यह संख्या 50 प्रतिशत तय की है कि कम से कम 50 प्रतिशत होनी चाहिए। इसी कमेटी के कुछ सदस्यों ने कहा है कि यह 50 प्रतिशत क्यों, अगर सही आंकड़े लाए जाते हैं तो सारी स्थिति को देखकर शायद यह संख्या 70-75 प्रतिशत तक जाएगी, 50 प्रतिशत पर ही क्यों। मैंने जब इसे देखा है, इसमें एक भावना उनके दिमाग में भी काम कर रही थी कि सरकार के लिए ज्यादा कठिनाइयां पैदा न हों। यह केवल सरकार का सवाल नहीं है, सारे देश का सवाल है। आपके लिए हो या हमारे लिए हो, अगर इस देश के अंदर 80 प्रतिशत गरीब हैं तो इस सदन का कोई सदस्य ऐसा नहीं होगा कि जो 80 प्रतिशत के लिए इंतजाम करने के वास्ते सरकार के सामने आगे न आए। वह चाहे बिहार में हमारी एनडीए सरकार हो, चाहे मध्य प्रदेश या गुजरात में बीजेपी की सरकार हो या पंजाब में हमारी सरकार हो। अगर 80 परसेंट लोगों के लिए इंतजाम करना है तो करना है। इस देश के किसी भी आदमी को भूखा नहीं रहने देना है और इसके लिए हम साथ देने को तैयार हैं। लेकिन अगर आप इसका रास्ता अमरीका के साथ समझौता करके निकालना चाहते हैं, अगर आप इसके लिए बीटी कॉटन, बीटी ब्रिंजल और जिनेटिकली मोडिफाइड फूड देकर करना चाहते हैं तो उस पर बहस होगी और देश में तीव्र मतभेद होगा।
आप देश की कृषि-व्यवस्था को देखिये। कालाहांडी के बारे में कहा जाता है कि वह भूखग्रस्त क्षेत्र है, लेकिन आंकड़े यह बताते हैं कि कालाहांडी से हजारों टन धान संग्रहीत भी होता है और वहां सबसे ज्यादा भूख भी होती है।
मुलायम सिंह यादव (मैनपुरी): आप माननीय आडवाणी जी को समझाइये।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : जी, वह तो अलग बात है, पहले आपको समझा लूं फिर उनको समझा लूंगा।
अध्यक्ष महोदया : आप चेयर को एड्रेस करें।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : मेरा कहना यह है कि आप इस रिपोर्ट को गहराई से देखें। एक दूसरी रिपोर्ट हमारे माननीय तेंदूलकर साहब की है। उन्होंने आपको कुछ मापदंड दिये हैं। आप उन्हें जरा जमीन के साथ जोड़िये, कीमतों के साथ जोड़िये, लोगों की बदहाली के साथ जोड़िये और आप मेहरबानी करके सबसे पहले गरीबी की परिभाषा ठीक कीजिए। आज हालत यह है कि दुनिया के बहुत से देशों में अनाज की समस्या है, खाने की समस्या है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि इसके लिए लोगों ने क्या किया? ब्राजील में, वर्ष 2003 में, वहां के प्रेसीडेंट ने कहा कि हम हरेक आदमी को दिन में तीन बार खाना खिलाएंगे और चार करोड़ साठ लाख आदमियों को उन्होंने खाना खिलाया और उसके लिए 12 मिलियन डालर वर्ष 2005 में खर्च किये। फिर इजीप्ट ने अपने यहां यह काम किया और दो मिलियन यूएस डालर अपने यहां खाना खिलाने पर खर्च किये। फिर मैक्सिको ने यह काम किया। उनका ह्यूमन डिवेलपमेंट प्रोग्राम वर्ष 1997 में शुरु हुआ और 40 लाख घरों को एक मिलियन यूएस डालर खर्च करके खाना खिला रहे हैं। इसी तरह से अमरीका में भी 31.6 मिलियन आदमी यानी दस में से एक,आदमी फूड स्टेम्प प्रोग्राम से लाभान्वित होता है। अगर अमरीका की यह हालत है जो दुनिया में सबसे ज्यादा फूड सरप्लस देश है तो हमारी क्या हालत होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं। आप किधर जा रहे हैं? आप इस देश को भूखों का, बीमारों का, अशिक्षितों का देश क्यों बनाते जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, पिछले साल ही, डेढ़ करोड़ आदमी इस देश के अंदर गरीबी की सीमा रेखा में चला गया है। हर साल अगर गरीबी बढ़ेगी, गरीबी बढ़ेगी तो किस आधार पर हमारी महामहिम राष्ट्रपति जी ने यह कहा है कि हम आने वाले समय में, इस देश को विश्व की महानतम समिति में खड़ा करेंगे। आप वर्ष 2015 तक भूख को आधा करने के लिए कमिटेड हैं। लेकिन मुझे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है कि आप वर्ष 2015 तक, इस देश में भूख को आधा कर पाएंगे। मुझे खुशी होगी अगर यह काम किया जाता है और उसके लिए कोई रोड-मैप होगा तो सारा सदन आपकी सहायता करेगा, मगर मुझे कुछ नजर नहीं आता है। कभी इस पर चर्चा होगी तो हम आपको रास्ता बता सकते हैं, दिशा दे सकते हैं, मगर अमरीका से जो आप समझौता कर रहे हैं, जिसे आपकी कैबिनेट ने मंजूरी दी है, जिसे आपने सदन के सामने नहीं रखा है, भगवान के वास्ते उसका पुनःरीक्षण करें और हिंदुस्तान के किसान को अमरीका का पिछलग्गू न बनाएं। हम 8000 साल से इस देश में खेती कर रहे हैं, वे 300 साल से खेती करना जानते हैं। हमारी जैव-विविधता को आप नष्ट होने से बचाएं। हमारी धान की हजारों जातियां खत्म हो चुकी हैं, हमारे फूल-पत्ते, जड़ी-बूटियां खत्म हो रही हैं। आप भगवान के वास्ते किसान को, आम आदमी को साथ लें, ये अमरीकन वैज्ञानिक हमारे देश के लिए उपयोगी नहीं हैं। मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं, विज्ञान को थोड़ा-बहुत समझता हूं और जितना मैं अमरीकन्स को समझता हूं, उनकी दुरनीति को समझता हूं, इसलिए अध्यक्ष महोदया, मैं आपके माध्यम से बहुत स्पष्ट रूप से महामहिम महोदया को चेतावनी दे रहा हूं कि इस देश की खेती अगर आपने अमरीका का गुलाम किया, तो आप इस देश की आजादी को नहीं बचा सकेंगे।
आप पता नहीं इस देश को कहां ले जाएंगे? यह देश भूखे नंगों का देश बन जाएगा, इसके लिए मुझे स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री जी से कहना पड़ता है कि आज आप मुस्कुरा रहे हैं। मुझे अफसोस होगा कि किसी दिन आप रोएंगे कि आपकी नीतियों ने देश को इस स्थिति में पहुंचा दिया है। इस देश को इसके लिए रोना होगा। मैं आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं कि इस देश की खेती को, इसकी परम्परा को स्वाधीन रहने दीजिए। इस देश के किसानों को काम करने दीजिए, इसे अमरीका के हाथ में गिरवी मत रखिए।
महामहिम राष्ट्रपति महोदया ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात देश की आंतरिक सुरक्षा और बाहृय सुरक्षा के बारे में कही है। खाने के बाद अगर कोई चीज जरूरी है, तो वह सुरक्षा है। बहुत समय से संसद में डिफेंस के बारे में चर्चा नहीं हो पाई है। आप कभी चर्चा कराइए कि देश में सुरक्षा के क्या हालात हैं। आज भी हमने अखबार में पढ़ा है कि कश्मीर में घुसपैठ हुई है। हमारे गृहमंत्री जी कहते हैं कि सिक्योरिटी में ढील हुई है, गिरावट आई है। यह क्या बात है? देश का व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित महसूस क्यों कर रहा है? बाहर से जो आक्रमण होने की संभावना रहती है, उसके लिए हम क्या करें? हम जैसे खेती को अमरीका के साथ जोड़ रहे हैं, वैसे ही हम समझते हैं कि समय आने पर वह शायद अपना न्यूक्लियर ट्रिगर हमारे लिए छोड़ देगा और हमें बचा लेगा। आपकी प्रतिरक्षा की जो सामग्री बन रही है, वह बहुत विचित्र है। वह केवल पाकिस्तान ओरिएंटेड है, लेकिन खतरे दूसरी तरफ से भी हैं। इस बारे में ध्यान देने की जरूरत है। भारत सिकुड़ रहा है।
अध्यक्ष महोदया : माननीय सदस्य कृपया अपनी बात समाप्त कीजिए।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : तिब्बत हमारा बार्डर था, उसे आज आपने हिमालय के फुटहिल्स में ला दिया है। नेपाल जो कभी हमारा एक प्रमुख समर्थक होता था, उसे आपने असहाय बना दिया है। एक तरफ से चीन पाकिस्तान के माध्यम से गोडार तक पहुंचा हुआ है। बंगाल की खाड़ी तक पहुंचा हुआ है, सारे दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के देश आज चीन की गोद में जा रहे हैं। चीन आज सारे क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बनाता जा रहा है। आपकी सामरिक शक्ति और आर्थिक शक्ति अभी चीन से बहुत पीछे है। जो स्थितियां हैं, उन्हें हमें स्वीकार करना चाहिए। हम किस आधार पर विश्व की महाशक्ति बनना चाहते हैं? हम तो आज के समय में क्षेत्रीय शक्ति भी नहीं हैं। मुझे इस बात का अफसोस है कि जहां हम थे, उससे बहुत पीछे हम चले गए हैं। 1947, 48, 49 में हमारी जो स्थितियां थीं, वे आज बहुत पीछे छूट गई हैं।
अध्यक्ष महोदया : आप अपनी बात समाप्त कीजिए।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : महोदया, बहुत महत्वपूर्ण बात है।
अध्यक्ष महोदया : ठीक है, लेकिन आपके बोलने का समय समाप्त हो गया है।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : चीन ने हिंदुस्तान को बीस-तीस टुकड़ों में बांटने की कोशिशें की हैं। सारे हथियार उसने इस तरह से समायोजित किए हैं। अरूणाचल के ऊपर वह अपना कब्जा बनाना चाहता है। सिक्किम में वह मांग कर रहा है। अक्साइ चीन वह कब्जे में लिए बैठा है। अब जब अक्साइ चीन की बात आती है, तो कश्मीर भी मुझे याद आता है। श्रीमान आडवाणी जी ने इस सवाल को उठाया था। मैं चाहता हूं कि वह सवाल सही परिप्रेक्ष्य में सदन के सामने बना रहे। सदन का प्रस्ताव था कि कश्मीर हमारा है, हमारा था और हमारा रहेगा। मैं चाहता हूं कि माननीय प्रधानमंत्री जी इस मामले में सदन को आश्वस्त करें। श्रीमान आडवाणी जी ने यही सवाल उठाया था। अगर आप इस मामले को दोहराकर कहते हैं…( व्यवधान) सिर्फ यही नहीं, कृपया करके आप मेरी बात सुनिए। इन्हीं बातों से संदेह पैदा होता है कि आप कश्मीर मामले में कुछ ढील कर रहे हैं।
अध्यक्ष महोदया : माननीय सदस्य, आप अपनी बात समाप्त कीजिए। आपका बोलने का समय समाप्त हो गया है।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : आप इस मामले में बेबाक हो कर कहिए। फारूख साहब बैठे हुए हैं। यह प्रस्ताव इसी सदन में पास हुआ था।…( व्यवधान) हम हैं, हम तो कह ही रहे हैं। हम तो इसकी मांग कर रहे हैं कि इसे दोबारा दोहराएं। प्रधानमंत्री दोबारा प्रस्ताव रखें और हम उसका समर्थन करेंगे।…( व्यवधान) हाँ, हमारे शरद पंवार उसे दोहराएं। हम उसे दोहराना चाहते हैं। देश को आश्वस्त करना चाहते हैं।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : आप बैठ जाएं। आप क्यों बीच में खड़े हो जाते हैं।
माननीय सदस्य आप भी बैठ जाएं। आपके बोलने का समय समाप्त हो गया है।
…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : माननीय सदस्य के भाषण क अलावा कुछ भी रिकार्ड में नहीं जाएगा।
(Interruptions) …*
अध्यक्ष महोदया : मुरली मनोहर जोशी जी, अब आप अपनी बात जल्दी से समाप्त कर दीजिए। It is time to conclude.
… (Interruptions)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : महोदया, मैं दो और बातें कहना चाहता हूं।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : लाल सिंह जी, आप बैठ जाइए।
…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : अगर टोकाटाकी नहीं होगी तो जल्दी बात समाप्त हो जाएगी।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : आप जल्दी समाप्त कीजिए। तुंत समाप्त कीजिए। I will give you one minute to speak.
… (Interruptions)
THE MINISTER OF NEW AND RENEWABLE ENERGY (DR. FAROOQ ABDULLAH): I would like to respond to Joshi ji. I would like to inform him हिंदुस्तान ने चूड़ियां नहीं पहनी हैं।…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : मैं यही बात माननीय प्रधानमंत्री जी से सुनना चाहता हूं कि कश्मीर भारत का अंग था, है और रहेगा।…( व्यवधान)
MADAM SPEAKER: Dr. Farooq Abdullah, please address the Chair.
… (Interruptions)
डॉ. फ़ारूख़ अब्दुल्ला: माननीय प्रधानमंत्री कहें या न कहें। …( व्यवधान) आप सुनिए, मैं आपसे कहना चाहता हूं कि मुझे याद आता है कि आपके ही लीडर वाजपेयी जी ने भी यही कहा था – कभी यह मत समझिए कि देश इतना कमजोर है कि कोई भी हमें खा सकता है, चाहे वह अमरीका हो, चीन हो या कोई और मुल्क हो। चीन कुछ भी कर ले, हिन्दुस्तान का भूखा भी कुल्हाड़ी उठाकर मुल्क की सेवा के लिए निकल पड़ेगा।…( व्यवधान)
श्री मुलायम सिंह यादव : चीन आपकी सीमा में प्रवेश कर चुका है।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : यह क्या हो रहा है?
…( व्यवधान)
MADAM SPEAKER: Hon. Minister, please take your seat. Mulayam Singh ji, please take your seat.
… (Interruptions)
अध्यक्ष महोदया : मुलायम सिंह जी, आप बैठ जाइए।
…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : मुरली मनोहर जोशी जी, अब आप समाप्त कीजिए।
…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : महोदया, मैं दो बातें कहूंगा। एक बात तो यह है कि मैंने प्रस्तावक महोदय का भाषण सुना। इसमें लगभग कोई ऐसी चीज नहीं थी जिस पर कोई टिप्पणी की जाए। लेकिन एकवाक्य ऐसा था जो उन्होंने लालू प्रसाद जी को संबोधित करते हुए कहा कि हम आपसे हिंदी में तब बात करेंगे जब आप और हम वृंदावन में गाय चराने जाएंगे। इसका क्या मतलब है? इसमें बहुत गहरी बात कही गई है। इसके दो पक्ष हैं – वे वृंदावन में गाय चराने तो तब जाएंगे जब गाय इस देश में बचेगी। जिस रफ्तार से गायों का वध हो रहा है, मुझे शक है कि उन्हें गाय के बजाय किसी और जानवर को चराने के लिए वहां जाना पड़ेगा। जिस भाषा की बात की है, शायद उस पक्षी का जिक्र किया था, वे केवल उसी की भाषा में उससे बात करते रहेंगे, इस सदन को जो भाषा लगती है। हिंदी सदन की भाषा है। भारत की राजभाषा है, संविधान की भाषा है इसके लिए गाय चराने की जरूरत नहीं है। इसके लिए पहले अपने दिमाग को चलाइए, ठीक रखिए। आपको हिंदी में बात करनी चाहिए, करनी होगी। आप न करें तो अलग बात है लेकिन आप उसे चरवाहों के साथ जोड़ रहे हैं।…( व्यवधान)
श्री मुलायम सिंह यादव : भारतीय भाषाओं में करें।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : मुलायम सिंह जी, आप चुप रहिए।
…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : भारतीय भाषाओं में करें। मुझे इस बात का फLा है कि आपने कहा कि आप चरवाहों से हिंदी में बात करेंगे।…( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदया : आप इधर देखकर बात कीजिए। आप आपस में क्यों बात कर रहे हैं?
…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : देश का चरवाहा भी हिंदी बोलता है, अंग्रेजी नहीं बोलता है।…( व्यवधान) आप इस बात का ध्यान रखें कि हम इस बात को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे कि आप हिंदी के प्रति इस प्रकार के अपमानयुक्त शब्दों का प्रयोग करें। …( व्यवधान)
MADAM SPEAKER: Joshi ji, address the Chair. Your time is up.
… (Interruptions)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : मैं अंतिम बात कहना चाहता हूं। प्रस्तावक महोदय के बाद समर्थक महोदय ने भाषण किया, मुझे भाषण के बारे में उन्हें बधाई देनी है। उन्होंने एक बहुत गहरा सवाल पहचान का उठाया। उन्होंने पहचान यूनीक आइडेंटी कार्ड से जोड़ी लेकिन वह जरा कुछ हल्की हो गई क्योंकि आप इस देश की पहचान एक नंबर से देना चाहते हैं, यूनीक आइडेंटी नंबर। आप इस देश के आदमियों को नंबर बनाना चाहते हैं। यह बुद्ध का देश है, महावीर का देश है, गांधी का देश है, सूफी-संतों का देश है, राम और कृष्ण का देश है, इसकी पहचान नंबर से नहीं होती। आपकी मेहरबानी होगी, आप इस देश को नंबर में मत बदलिए। उसे इंसान रहने दीजिए, उसकी इंसानियत की पहचान रखिए, उसकी परंपरा की पहचान रखिए, उसकी संस्कृति की पहचान रखिए। आप ध्यान दीजिए और भारत की भारतीयता की पहचान दीजिए लेकिन आप क्या पहचान दे रहे हैं कि आप गरीब हैं। आप गरीबों को इस देश के गरीबों की पहचान दे रहे हैं। …( व्यवधान) गुरबत की पहचान देना चाहते हैं। आप क्या देना चाहते हैं?
अध्यक्ष महोदया : जगदम्बिका पाल जी, आप क्यों खड़े हो गए। आप बैठ जाइए।
…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : हम भारत को गौरवशाली पहचान देना चाहते हैं। भारत की पहचान दुनिया में महान संस्कृति और परंपरा के तौर पर रहेगी।…( व्यवधान) वे नंबर नहीं हैं।…( व्यवधान)
MADAM SPEAKER: Your time is up. अब आप अपनी बात समाप्त कीजिए।
…( व्यवधान)
डॉ. मुरली मनोहर जोशी : नंबर में बदलने की नीतियों को देश कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। …( व्यवधान) मेहरबानी से देश को सही पहचान देने का काम करें। भगवान आपको ऐसी शक्ति दे, बुद्धि दे कि आप इस देश को समझें, इसकी सही पहचान को समझें, परंपराओं को समझें, संस्कृति को समझें, इतिहास को समझें। आप तब जाकर इस देश की नीतियां ठीक बना सकेंगे।
बहुत सही और समसामयिक आलेख . डॉ मुरली मनोहर जोशी ने कभी भी उन सिध्धान्तों और मूल्यों से तौबा नहीं की जिन्हें प्रगतिशील तबके में प्रतिक्रियावादी कहा जाता है और दक्षिणपंथी कतारों में जिसे प्रतिद्वंदिता का सबब माना जाता है.