मेरे छोटे भाइयों, माफ कर दो इन ‘बड़े’ लोगों को

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-पंकज झा

देश के कोने कोने से मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा और हौसला लेकर माखनलाल आने वाले प्रिय छोटे भाइयों. कोई भी लड़ाई या किसी भी तरह के संघर्ष का जो एक आम परिणाम होता है वह ये कि सबसे ज्यादे प्रभावित सबसे कनिष्ठ ही होते हैं. लड़ने वाले हर समूह का अपना एक पक्ष होता है और जिससे बात करो वो अपने को सही ठहराने की कोशिश करेगा. तो गलत कौन है यह तो ‘इतिहास’ तय करता है लेकिन ‘वर्तमान’ तो तबाह छात्रों का होना ही नियति है. अपने संस्थान के प्रकरण में भी कौन सही कौन गलत यह तय अपन तो नहीं कर सकते. प्रशासनिक अधिकारियों की क्या मजबूरी होती है ये हमें नहीं पता क्युकी कभी वो नहीं रहे हैं अपन. शिक्षकों एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के बारे में भी अपने को नहीं पता. ना ही हर मामले में अपनी नाक घुसेड देने वाले राजनीतिकों की प्राथमिकता या उनके सरोकार के बारे में हम ज्यादा जानते हैं . लेकिन आप ही की तरह कभी अति सामान्य परिवार से किसी तरह, कुछ पैसों का जुगाड कर ‘रोटी’ की तलाश में संस्थान तक पहुच जाने के कारण आपकी तकलीफों के बारे में अपने को पाता है.

बड़े लोगों से बेहतर निश्चित इस मामले में अपनी समझ होगी, अपन ज़रूर यह समझ सकते हैं कि मन में नायक फिल्म के अनिल कपूर की तरह हो जाने या आज के दीपक चौरसिया, वरखा दत्त बन जाने का सपना, वह जोशो-खरोश किस तरह दम तोड़ता नज़र आता होगा. दोस्तों, जैसा कि अपन ने पहले भी लिखा है लाख विसंगतियों, गंदी राजनीति के बावजूद माखनलाल ने छोटे-छोटे कस्बों-गावों के बच्चों का सपना कुछ हद तक पूरा करने में सफलता प्राप्त की है. दिल्ली स्थित सभी संस्थान जहां केवल उच्च वर्ग के छात्रों की जागीर बनी रही है वहां माखनलाल ने खुद को एकमात्र ऐसा संस्थान साबित किया है जिसमें किसान और मजदूर परिवार के बच्चों के लिए भी जगह है. हालाकि यह वहां फ़ैली गंदी राजनीति के बावजूद संभव हुआ है. और इसमें अगर सबसे ज्यादा योगदान किसी का रहा है तो आप जैसे छात्रों की लगन मिहनत और समर्पण का.

निश्चित ही वर्तमान पैदा किये गए हालात में छात्रों की विवशता समझी जा सकती है. खास कर नए आने वाले आप जैसे छात्र तो ज़ाहिर है खुद को ठगा हुआ ही महसूस कर रहे होंगे. जहां आपको पत्रकारिता का ककहरा सीखना था, इस्तेमाल हो रहे लोगों की आवाज़ बुलंद करने लायक स्वयं को बनाना था वहां खुद ही इस्तेमाल हो जाने को मजबूर हैं. पक्ष और विपक्ष के बीच जहां निष्पक्ष होने, तटस्थ दिखने की पाठ पढनी थी वहां खुद ही एक ‘पक्ष’ हो जाने को आप मजबूर कर दिए गए हैं. तो मेरे कनिष्ठ मित्र, आप सबलोगों से यही विनम्र प्रार्थना है कि कम से कम आप लोग किसी भी तत्व के बहकावे में ना आयें. ऐसे लोगों से सीधा कहें कि सर, हम लोग अपने मां-बाप के सपने के साथ यहां आये हैं. उसे पूरा करने, कल आने वाले चुनौतियों का सामना करने का पाठ हमें पढ़ाएं ना की धरना प्रदर्शन का.

एक अपने समय का किस्सा सुनाता हूं दोस्त. पता नहीं अब क्या प्रावधान है लेकिन हमारे समय में हर क्लास से एक-एक छात्र प्रतिनिधि के चयन का प्रावधान था. उस प्रतिनिधि को क्लास की समस्यायों को संस्थान प्रशासन के समक्ष रखना था. आश्चर्य लगा था मुझे देख कर कि मात्र पचीस छात्रों में से एक प्रतिनिधि का चुनाव होना ऐसा हो गया जैसे किसी विधानसभा का चुनाव लड़ा जा रहा हो. पढ़ाई-लिखाई बाधित, मार-पीट शुरू, छात्रों का निष्कासन आदि-आदि. तो अपन ने तात्कालीन विभागाध्यक्ष से निवेदन किया कि सर हमें किसी भी प्रतिनिधि की कोई ज़रूरत नहीं है. हमें जो भी बात रखनी होगी व्यक्तिगत तौर पर खुद ही रख लेंगे. उनको बात ज़मी और देखते-देखते क्लास में पढ़ाई का माहौल कायम हुआ. आपस में मार-पीट कर लेने वाले छात्र भी दोस्त बन गए और बिना किसी प्रतिनिधि के ही अपना दो साल आराम से कट गया. अपनी-अपनी मिहनत एवं भाग्य से सब लोग अलग-अलग जगह रोजी-रोटी कमाने निकल पड़े. तो केवल इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि संस्थान में के राजनीति से अलग रहने के क्या फायदे हैं.

और अपने ही संस्थान में क्यू. अपन तो यह कहते हैं कि कभी भी छात्रों को किसी भी तरह की राजनीति से अलग रहना चाहिए. राजनीति जैसी गंदी जगह कम से कम सीखने की तो नहीं होती. अगर वहां कुछ सीखना संभव होता तो आप सोचें. राज परिवार के लोग कभी अपने बच्चे को गुरुकुल नहीं भेजते….है ना? अगर ‘राजनीति’ करके कुछ सीखने की बात होती तो उन राजकुमारों को सियासत से अलग होकर जंगल में गुरु के सानिध्य में जाने की ज़रूरत नहीं होती. उन्हें बाद में राजनीति ही करनी थी, राजा ही बनना था बावजूद इसके पढ़ाई-लिखाई पूरी करने तक इन पचडों से अलग रखा जाता था. राजनीति वह क्षेत्र है जहां आप पूरी तरह से पढ़-लिख-सीख लेने के बाद आयें और समाज को दिशा दिखाने का काम करें. अन्यथा हर छात्र आंदोलन इस बात का गवाह है जहां – कुछ अपवादों को छोड़कर- छात्रों का केवल इस्तेमाल ही किया गया है. अगर परिस्थितियाँ बिल्कुल ही प्रतिकूल हो तब तो कोई भी वंचित नहीं रह सकता अन्यथा वास्तव में छात्रों का हित केवल इसीमें है कि वह पढ़ाई के अलावे अपना ध्यान कही नहीं बटाएं.

जहां तक माखनलाल का सवाल है तो यह भी राजनीति से अछूता नहीं रहा कभी. जब हमलोग थे तो कांग्रेस की सरकार थी. उस समय भी दोनों दलों द्वारा छात्रों का इस्तेमाल करने के लिए हर तरह के डोरे डाले जाते थे. अपना प्रभाव अपनी विचारधारा छात्रों पर लादने का प्रयास किया जाता था. अब जब भाजपा की सरकार है तो शायद वह भी यही करती हो और विपक्षी कांग्रेस भी इसमें अपना हित देखना चाहे. लेकिन बिगडना ना सत्ता या विपक्ष के नेताओं का है, ना ही संसथान प्रशासन के लोगों का या फिर शिक्षकों का. ज़ाहिर है उन सबके तो ब्रेड-बटर का इंतज़ाम हो गया गया है. अब अगर लड़ते भी हैं तो केवल अपने अहं के लिए. लेकिन नुकसान केवल आपका है और इस संस्थान का है जिसका नाम लेकर हम कल होकर विभिन्न मीडिया समूहों में आप जाने वाले हैं.

तो मित्रों…..! स्थितियां वास्तव में विकट कर दी गयी है. कौन सही है और कौन गलत यह ना ही अपने फैसले का विषय है और ना ही हमें उसकी ज़रूरत. हमारी ज़रूरत तो बस इतनी है कि अच्छी तरह से पठन-पाठन का इंतज़ाम हो और अपने दो साल का सम्यक उपयोग कर इस लायक बन सकें कि कहीं अपनी जगह बना सकें. किसी भी पक्ष के अहं का हम शिकार नहीं हों. हम छोटे लोग तो यीशु की तरह बस ‘बड़े लोगों’ के लिए यही प्रार्थना कर सकते हैं कि….हे प्रभु, इन्हें माफ करना, इन्हें पता नहीं है कि यह क्या कर रहे हैं…मेरी अन्य शुभकामना….!

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प्रवक्‍ता डॉट कॉम पर प्रकाशित अन्‍य लेख

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4 COMMENTS

  1. ताज़ा समाचारों में माखनलाल पत्रकारिता विश्विद्यालय में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष श्री पुष्पेन्द्र पाल सिंह जी को महिला आयोग ने क्लीन चिट दे दी है, आरोप लगाने वाली शिक्षिका डॉ ज्योति वर्मा आज महिला आयोग के समक्ष पेश नहीं हुई. पहली सुनवाई में ज्योति वर्मा का अनुपस्थित रहना इशारा करता है कि पी पी सिंह जी के खिलाफ ये आरोप किसी सुनियोजित साजिश के तहत लगाये गए थे,, इसके साथ ही कुलपति के निर्णय भी गलत साबित हो रहे है.

  2. माखनलाल ने इतने सारे कोर्स अभी लॉच किए है एक विषय ‘ कैसे करे राजनीति ? ‘ भी शुरु कर देना चाहिए , निश्चित तौर पर कई छात्रों का कैरियर सवर जाऐंगा

  3. हा हा हाह…………हम्मममममममम…………कौन देस कौन रंग…ना जाने तू ना जानू मैं………….

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