विपिन किशोर सिन्हा
भारतीय जनता पार्टी की जीत को हमारा सेकुलर मीडिया, चुनावी विश्लेषक और कांग्रेसी पचा नहीं पा रहे हैं। नरेन्द्र मोदी द्वारा अर्जित चुनावी सफलता से हतप्रभ विशेषज्ञों ने चुनाव परिणाम के बाद जो वक्तव्य दिए वे इतने हास्यास्पद थे कि उनका उल्लेख करना किसी चुटकुले को पढ़ना और सुनाने जैसा है। जनता की इच्छाओं का सम्मान करने और मोदी को बधाई देने के बदले हमारे वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बयान दिया कि भाजपा को पिछले चुनाव से दो सीटें कम मिली हैं, इसलिए इसे भाजपा या मोदी की जीत नहीं कहा जा सकता। दूसरे बड़बोले मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मोदी के ३-डी प्रचार का २-डी परिणाम है। एक चुनावी विश्लेषक के अनुसार मोदी ने चूंकि ५१% मत नहीं प्राप्त किए हैं अतः इसे मोदी की स्पष्ट जीत नहीं कहा जा सकता। अभी डिग्गी राजा का (अ)विद्वतापूर्ण बयान आया ही नहीं; शायद वे होमवर्क कर रहे हैं। लोग यह भूल जा रहे हैं कि गुजरात के कद्दावर नेता विद्रोही भाजपायी केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी द्वारा सभी १८२ सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने के बावजूद भाजपा ने ११५ सीटों पर जीत हासिल की। यह मोदी का जादू नहीं तो और क्या है? अगर केशुभाई पटेल अलग चुनाव नहीं लड़ते तो भाजपा का आंकड़ा १५० को छू रहा होता।
भारत की वह जनता जो सुशासन और विकास चाहती है, मोदी की ऐतिहासिक जीत से अत्यन्त उत्साहित और आशान्वित है। भारतीय जनता पार्टी को अटल बिहारी वाजपेयी के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार एक योग्य नेता जिसके पास जनता तक सीधे अपनी बात पहुंचाने वाली वक्तृत्व क्षमता और स्पष्ट दृष्टि है, मोदी के रूप में प्राप्त हुआ है। निश्चित रूप से भाजपा पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी नहीं रही, फिर भी अपनी अपनी तमाम कमियों के बावजूद वह कांग्रेस से हजार गुना अच्छी है। जनता भी भाजपा को वोट देना चाहती है, परन्तु भाजपा वोट नहीं ले पाती है। इसी वर्ष उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों के बाद १५ महानगरों के नगर निगम के चुनाव हुए। भाजपा ने ११ महानगरों में मेयर के पद पर जनता का विश्वास प्राप्त किया। केजरीवाल, अन्ना और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का भाजपा को सीधे लाभ पहुंचना चाहिए था लेकिन इस पार्टी ने अपने प्रतिगामी निर्णयों से लगता है वह अवसर गंवा दिया है। नितिन गडकरी को लाल कृष्ण आडवानी का अनुशरण करते हुए क्लीन चिट मिलने तक अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए था। तब भ्रष्टाचार के विरुद्ध उसके संघर्ष में स्वाभाविक पैनापन आ जाता। पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करके भाजपा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। उत्तर प्रदेश जहां लोकसभा की ८० सीटें हैं, की अनदेखी कर कोई भी राष्ट्रीय पार्टी केन्द्र में सत्तारुढ़ नहीं हो सकती। मुलायम सिंह यादव ने २०१४ के चुनावों को दृष्टि में रखकर ही प्रोमोशन में आरक्षण का पूरी शक्ति से विरोध किया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा या सपा लाख उपाय करें, वे मायावती के अनुसूचित वोट बैंक में सेंध लगाने की बात तो दूर, एक छोटा सा सुराख भी नहीं कर सकते। मुलायम सिंह ने इस तथ्य को भलीभांति समझ लिया है। यहां पहलवान मुलायम सिंह अरुण जेटली और सुषमा स्वराज से अधिक समझदार प्रतीत होते हैं। भाजपा ने हाथ आए इस अवसर को खो दिया है। अब सिर्फ नरेन्द्र मोदी ही भाजपा के लिए आशा के एकमात्र केन्द्र हैं। देखें, भाजपा नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और विकास पुरुष की छवि को जनता के सामने रख लोकसभा का अगला चुनाव लड़ती है या वातानुकूलित संसद में जोरदार भाषण देनेवाले जड़विहीन नेताओं के सहारे?
गुजरात के लिए नरेन्द्र मोदी मोदी ने वे कार्य किए हैं जो किसी भी राज्य में किसी भी नेता या मुख्यमंत्री ने नहीं किया है। इस चुनाव में गुजरात के दौरे पर गए मोदी के धुर विरोधी अर्थशास्त्रियों और पत्रकारों ने जब गुजरात में विकास की चकाचौंध देखी तो उनकी आंखें भी चौंधियाए बिना नहीं रह सकीं। गुजरात के लगातार और स्थायी विकास, दूर तक विस्तृत आधुनिक सिंचाई सुविधाओं से संपन्न खेत-खलिहान, निर्धूम कल-कारखाने, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और नर्मदा के जल-विद्युत गृहों के बल पर पर्यावरणमित्र निर्बाध विद्युत आपूर्ति, सुन्दर और गड्ढ़ामुक्त सड़कें, विकसित जनजाति, नियंत्रित कानून-व्यव्स्था और अपेक्षाकृत स्वच्छ तथा प्रभावी प्रशासन देखकर सभी आश्चर्यचकित थे। गुजरात देश का आज की तिथि में पहला राज्य है जहां बिजली का उत्पादन मांग से अधिक है। इस बरसात में अपने कई ताप विद्युत गृहों में उत्पादन कम करके – जिसे थर्मल बैकिंग कहते हैं – गुजरात ने पश्चिमी क्षेत्र के ग्रीड की फ्रिक्वेन्सी मेन्टेन की। पूरे देश में किस राज्य के पास ऐसा उदाहरण है? गुजरात में बिना गए गुजरात की प्रगति का साक्षात्कार संभव नहीं है। वहां जाने पर एक ही प्रश्न मस्तिष्क में कौंधता है – क्या गुजरात भी हिन्दुस्तान में ही है?
हमारा देश १८५७ की क्रान्ति की असफलता के बाद जब निराशा के अंधकार में डूब रहा था, तब भी गुजरात ने ही रोशनी दिखाई थी। बांस की एक लाठी लिए और आधे तन पर वस्त्र धारण किए महात्मा गांधी ने दुनिया के सबसे विशाल साम्राज्य को घुटने टेकने पर विवश किया था। द्वापर में द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण ने ही संपूर्ण आर्यावर्त को धर्म की राह दिखाई थी। अब बारी नरेन्द्र मोदी की है। सारा देश उनकी ओर टकटकी लगाए देख रहा है। बस भाजपा के कुछ नेताओं की आंखें खुलनी बाकी हैं।