-डॉ. मनोज चतुर्वेदी-
कुशल नेतृत्व के लिए नेतृत्वकर्ता का कुशल संवादक होना अत्यंत आवश्यक है। संवादहीन होकर किसी समूह को प्रभावित करना असंभव है। 16वीं लोकसभा के चुनावों में नरेंन्द्र मोदी की अप्रत्याशित सफलता के पीछे उनका कुशल संवादक होना भी था। वह जितनी तेजी से सीमित समय में अधिकाधिक लोगों से जुड़े वह विपक्षियों के लिए भी हैरतगेंज ही रहा। खुद सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने भी यह माना कि वह जनता से जुड़ने में, संवाद स्थापित करने में असफल रही। वह केवल कुतर्कों पर आधारित विवाद ही करती रही। जबकि शास्त्रों, ग्रंथों में यह वर्णित है कि बहुत विस्तार और वाद विवाद, परिणामरहित होता है, इसलिए वितण्डावाद में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए। लेकिन आज हर जगह राजनीति हो या पत्रकारिता केवल विवाद किया जाता है, संवाद न हीं।
वर्ष 2014 के चुनावों में नरेन्द्र मोदी सफल संवादक साबित हुए क्योंकि उन्होंने केवल व्यक्तिगत रूप से जतना से संवाद किया अपितु वैज्ञानिक तकनीकों का भी बेहतर इस्तेमाल कर अपने विचार लोगों तक पहुंचाया। आज मानव संवाद क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवत्रन देखने को मिल रहे हैं। जिससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कुछ ही क्षणों में सैंकड़ों, हजारों, लाखों व्यक्ति तक यहां तक कि देश की भौगोलिक सीमाओं को पार कर हजारो किलोमीटर दूर विदेश में बैठे लोगों तक विचारों का आदान-प्रदान पहले की उपेक्षा सरल सहज एवं सुलभ हो चुका है। मोबाइल, टेलीफोन, नेट, ट्विटर, फेसबुक विडियो कांफ्रेंसिंग, स्काइप, जैसे सामाजिक संवाद के माध्यमों से व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने का गहनीय कार्य हुआ है। 3डी तकनीक हो या विडियों काफ्रेसिंग मोदी ने नवसंचार तकनीक का जनता से संवाद करने में बेहतर प्रयोग किया।
इनके पूर्व भारतीय राजनीति के इतिहास में महात्मा गांधी को महान, कुशल संवादक माना गया था। जिन्होंने अपने जीवन काल में देश-विदेश के अधिकाधिक लोगों तक अपना ‘सत्य प्रेम, अहिंसा’ का संदेश फैलाया। हालांकि उस समय दूरदर्शन, आकाशवाणी टेलीफोन, इंटरनेट, फेसबुक जैसी तमाम संचार की सुविधाएं नहीं थी आवागमन के लिए सहज साधन भी नहीं थे तब भी उस समय गांधी लोगों से जुड़ने के लिए पत्रोंाो माध्यम बनाया और अपने जीवन काल में विभिन्न लोगों को लगभग 1 लाख पत्र लिखे यानि प्रतिदिन लगभग 49 पत्र तक। यद्यपि इसके विपरीत आज दुनिया के पास समृद्ध संचार क्षमता है लेकिन इसमें कतई संदेह नहीं किया जा सकता कि नरेन्द्र मोदी ने इन माध्यमों का अत्यन्त कुशलता और बुद्धिमता से प्रयोग किया। हालांकि प्रश्न यह उठता है कि विपक्षी दलों के पास भी यही संचार माध्यम उपलब्ध थे तब उन्हें सफलता क्यों नहीं मिली। उनका जनता से संवाद क्यों नहीं स्थापित हो सका? तो इसका एकमात्र उत्तर यह हो सकता है, कि संवाद के लिए केवल माध्यमों की ही आवश्यकता नहीं होती वरन् कुशल संवादक का महान व्यक्तित्व, उसका आचार विचार, रहन-सहन, हाव-भाव, कार्यक्षमता, कार्यशैली सभी का प्रभाव सामने वाले पर पड़ता है। मोदी पर पिछले 12 वर्षों के दौरान मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग और विपक्ष लगातार आक्रामक रहा है। बार-बार गुजरात दंगों में मोदी को ऐसे घसीटा गया मानों उनके आदेश पर एक वर्ग विशेष को हानि पहुंचायी गयी हो। जैसे कि मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलवाने की खुली छूट का आदेश 1992 में दिया था और इसी कारण वे मुल्लाओं के प्रिय बने भी थे।
जबकि गुजरात सरकार ने ऐसा कभी नहीं किया। इस पर भी विपक्ष उनसे माफी की मांग करता रहा। लेकिन ‘न झुकेंगे न रूकेंगे’ की तर्ज पर केवल मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए मोदी ने माफी मांगना अस्वीकार कर दिया क्योंकि उन्होंने अपने शासन के मात्र तीन माह के अंदर हुए दंगों को रोकने की पूरी ईमानदारी से कोशिश की थी।
इसका उल्लेख वे लगातार भाषणों में करते रहे हैं। हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकारा कि संवेदनायुक्त हृदय को छोटे से छोटे जीव (पिल्ले) की मौत पर भी दुख होता है। जिसका पुनः तिल का ताड़ बना था। किंतु फिर भी मोदी जनता तक अपने भाव पहुंचाने में सफल हो गये।
इसके साथ ही वर्षों से मिथ्या अपमानित आरोपों से लांछित और पीड़ित होते हुए भी मोदी एकनिष्ठ भाव से अपने राज्य का उत्थान करने में लगे रहे। जिसके फलस्वरूप आज गुजरात ‘गांधी’ से ज्यादा ‘मोदी’ के नाम से जाना जाने लगा है। शिक्षा, तकनीक, प्रशासन, सड़क, परिवहन, कृषि, पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक सभी स्तरों पर आज गुजरात अव्वल है। एक कमजोर राज्य आज शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा है। ये सब पिछले 12 वर्षों में मोदी की कार्यकुशलता, बेहतर कार्यक्षमता का परिणाम रहा है जिसे मिथ्या आरोपों के हृदय आवरण से ढंकने में मोदी विरोधी पूरी तरह असफल रहे। और मोदी का कार्य ही उनका संवाद बन गया। यही कारण है कि अन्य राज्यों, प्रांतों, नगरों, कस्बों, गांवों की जनता मोदी के कार्यों की प्रगति पत्र से प्रभावित हुई।
वर्षों से गठबंधन सरकारों की लचर प्रशासन व्यवस्था, जातिगत, क्षेत्रगत वोटों की प्राप्ति के लिए कड़े नियमों के अभाव में मुस्लिम तुष्टिकरण के मोह, भाई-भतीजावाद की बढ़त ने देश में हिंदु-मुस्लिम के बीच खाई और गहरी की। अयोग्य पात्रों को कृपाकांक्षी बनाकर उच्च पदों पर आसीन किया। सीमा पर पड़ोसी देशों की घुसपैठ बढ़ती गई। इन सबके परिणाम स्वरूप असमान वितरण, असुरक्षित सीमाएं जनता के लिए सुविधाओं का अभाव, रोजगार की समस्या उत्पन्न हुई। इन सबके बीच एक दृढ़ संकल्प शक्ति के राष्ट्रवादी सेाच की जरूरत थी। जिससे आक्रांत हिंदुओं और, आशंकित मुस्लिमों को बेहतर और सुरक्षित भविष्य दिखाई दे और मोदी के व्यक्तित्व में उन्हें यह संभव होना दिखा। इस तरह मोदी के व्यक्तित्व ने स्वयं जनता के सामने एक पुष्ट संवाद स्थापित किया।
काशी में जब मोदी के चुनावी सभा पर प्रशासन द्वारा रोक लगायी गई। तब उन्होंने कहा था कि – ‘मेरी मौन भी मेरा संवाद है।’ और लोगों ने उनके ‘मौन संवाद’ की भाषा, भाव को भी अच्छी तरह समझ लिया। शायद यही कारण है कि काशी में तमाम बुद्धिजीवियों, धमगुरूओं तथा मजबूत विपक्ष के बीच भी मोदी को जनता ने तीन लाख वोटों से जिताया।
जनता के मल में जो सवाल थे, जिनका वह जबाव चाहती थी मोदी अपने भाषणों में उसी सवाल के जवाब देते थे। उनके सामने एक स्पष्ट कार्यनीति थी, जिसका स्वरूप वह लोगों को दिखाते। चुनाव प्रारंभ होने के बाद भी घोषणा पत्र लेकर आयी मोदी की पार्टी सफल रही, केवल इसलिए क्योंकि जनता, मतदाता ने मोदी के संवादों पर पूरा विश्वास किया उसे किसी मेनीफेस्टों की आवश्यकता ही नहीं रही।