करप्शन फ्री इंडिया के लिए रामबाण साबित हो सकती है यह सोच
-दानसिंह देवांगन-
रायपुर। पिछले दिनों मुझे घर बनाने के लिए हाउसिंग लोन की जरूरत थी। मैंने एक प्रतिष्ठित बैंक में फोन घुमाया, आधे घंटे में बैंक का एक्जिक्यूटिव मेरे सामने बैठा था। उसने 15 मिनट के भीतर बता दिया कि कितना लोन मिल सकता है और कौन-कौन से कागज मुझे देने होंगे। दूसरे दिन आकर वह सारे कागजात ले गया। दो दिन बाद बैंक का क्रेडिट मैनेजर आया, उसने मुझसे कुछ सवाल-जवाब किए और सातवें दिन हाउसिंग लोन का चेक मेरे हाथ में था। वह बैंक मुझे लाखों रूपए का लोन दे गया, लेकिन न तो मुझे बैंक जाने की जरूरत पड़ी, न ही किसी की सिफारिश की। मैं तो उन दोनों महानुभावों के अलावा बैंक में तीसरा व्यक्ति कौन है, ये भी नहीं जानता। इससे पहले जब मुझे अपने आफिस में लैंडलाइन फोन लगाना था, तब भी मुझे न तो टेलीफोन ऑफिस जाना पड़ा और न किसी सिफारिश की जरूरत पड़ी। क्या ये दोनों उदाहरण भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के उस बयान की बानगी नहीं है, जब उन्होंने चाय पर चर्चा करते हुए कहा था कि जिस तरह डाकिया या पोस्टमैन आपकी चिट्टी आप के लिखे पते तक पहुंचाता है, उसी तरह अब वक्त आ गया है कि सरकारी योजनाओं को भी उनके हितग्राहियों तक आन डिमांड पहुंचायी जाए।
आश्चर्य है, मोदी की छोटी सी छोटी बातों को भी ब्रेकिंग न्यूज बनाने वाली खबरिया चैनलों ने इसे खास तवज्जो नहीं दी। हो सकता है उन्हें यह मूर्खतापूर्ण लगा हो, पर न तो उनका बयान मूर्खतापूर्ण था और न ही उसे जमीन पर उतारना। बस जरूरत है तो सिर्फ इच्छाशक्ति की। कल्पना कीजिए आज से दस-पंद्रह साल पहले टेलीफोन या गैस कनेक्शन के लिए महीनों विधायक और सांसदों के घर के चक्कर लगाने पड़ते थे, उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि कनेक्शन मिल ही जाए। पर अब स्थिति बदल गई है। किसी का एक्सीडेंट या अचानक तबियत खराब होने पर आप रिक्शे या उसके घरवालों के आने का इंतजार नहीं करते, बल्कि अपने मोबाइल से 108 नंबर घुमाते हैं और चंद मिनटों में सायरन बजाते हुए एम्बुलेंस घटनास्थल पर पहुंच जाती है। जब एम्बुलेंस आपके घर तक पहुंच सकती है, तो फिर सरकारी योजनाएं क्यों नहीं।
अब जरा वर्तमान सरकारी योजनाओं पर नजर दौड़ाइए। आपके घर में किसी को दिल का दौरा पड़ा या किसी का एक्सीडेंट हो गया हो, उसके इलाज के लिए तत्काल सरकारी मदद की जरूरत है, तो आप क्या करेंगे। ऐसी दुर्घटनाओं के लिए सरकार के पास योजना है फंड भी है, लेकिन चक्कर इतने है कि जब फंड मिलता है, मरीज हाथ से निकल चुका होता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ऐसे संवेदनशील मामलों में सीएमओ स्वयं अपनी टीम भेजकर स्थिति की जांच करे और यदि यह साबित हो जाए कि वह मरीज सरकारी योजनाओं के सारे नियमों का पालन कर रहा है तो ऑन-स्पॉट फंड एप्रूव कर हॉस्पिटल को इलाज के लिए निर्देशित कर दे।
आपके आसपास ऐसे कितने ही लोग मिल जाएंगे, जो बेचारे जीवन भर नौकरी करने के बाद पेंशन के लिए भटक रहे हैं, या कोई पुलिस अफसर नक्सली हमले में शहीद हो गए और उनके बच्चों को अनुकंपा नियुक्ति के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। क्या ऐसे संवेदनशील मामलों में कोई काल सेंटर डेवलप नहीं हो सकता, जहां फोन करते ही सरकारी कर्मचारी आपके घर तक पहुंचे और सारे दस्तावेजी छानबीन के सात या दस दिन बाद उस बुजुर्ग के पास फोन आ जाए कि सर,आपके बेटे की अनुकंपा नौकरी लग गई है, कल से ज्वाइन करा लीजिए या आपके एकाउंट में पेंशन भेज दिया गया है, कृपया बैंक एकाउंट चेक कर लेंगे।
ऐसे ही आपने नगर निगम दफ्तर में एक फोन घुमाया और दो दिन के भीतर आपके घर में नल कनेक्शन लग गया। बिजली मीटर लगाना है तो बस एक फोन घुमाया, आधे घंटे में बिजली विभाग का कर्मचारी आपके पास बैठा होगा। कागजात वेरीफिकेशन के बाद अगले ही दिन आपके घर में मीटर लग गया। राशन कार्ड चाहिए, फोन घुमाया, दो दिन बाद राशन कार्ड आपके घर में।
आप सोच रहे होंगे कि लेखक नरेंद्र मोदी के अंधभक्त है या फिर कोई मूर्ख है, पर याद कीजिए टेलीफोन के अविष्कार करने वाले ग्राहम बेल को भी लोगों ने मूर्ख ही समझा था। 30 साल पहले जिन्होंने 24 घंटे न्यूज चैनल की बात सोची होगी, उसे भी लोग मूर्ख ही समझे होंगे। जब लोग दूरदर्शन में केवल 20 मिनट के समाचार को नहीं झेल पाते थे, कोई 24 घंटे के न्यूज चैनल के बारे में कैसे सोच सकता है, पर आज देखिए होड़ लगी है न्यूज चैनलों की। यदि सरकारी योजनाओं की ही बात करें तो क्या आपने कभी सोचा था कि आपके एक फोन पर एंबुलेस आपके घर तक पहुंच जाएगी।
जिस तरह प्राइवेट कंपनियां लोगों को राहत देने के लिए प्रोसेसिंग फीस लेती है, वैसी ही सरकार भी अपनी योजना को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए प्रोसेसिंग फीस ले सकती है। वैसे भी आम आदमी को प्रोसेसिंग फीस देनी ही होती है, भले ही वह रिश्वत के रूप में हो या अन्य रूप में। दफ्तरों के चक्कर काटने में समय खराब होता है सो अलग। देश में केवल 5 प्रतिशत लोग ही होंगे, जो स्वाभाव से चोर होंगे, अधिकतर लोग सिर्फ इसलिए गलत रास्ते अख्तियार करते हैं, क्योंकि उन्हें उचित सपोर्ट नहीं मिलता।
उदाहरण के लिए जब एक फोन पर नल कनेक्शन लगने लगेगा तो कोई अवैध कनेक्शन क्यों लगाना चाहेगा। जब टैक्स एक व्यक्ति से एक ही बार लिया जाएगा, तो वह टैक्स चोरी क्यों करेगा। इस देश में ऐसा कोई घर या व्यक्ति नहीं होगा, जो दुर्गा, गणेश, क्रिसमस, ईद या अन्य किसी सामाजिक कार्यक्रमों में चंदा नहीं देता हो, पर टैक्स की बारी आते ही वह अपना इन्कम छुपाने लगता है, आखिर क्यों? व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में इतने प्रकार के इनडायरेक्ट टैक्स देकर थक चुका होता है, उपर से जिन राजनेताओं और अफसरों पर आम आदमी के टैक्स को संभालने की जिम्मेदारी है, उनकी काली करतूत उन्हें टैक्स चोरी करने पर मजबूर कर देता है।
जैसे मनुष्य मां की कोख से चोर पैदा नहीं होता, हालात उसे चोर बनाता है। उसी तरह कोई भी जन्म से करप्ट नहीं होता, ये सरकारी सिस्टम से ही उसे करप्ट बनाता है। इसलिए इस देश से करप्शन मिटाना है तो सबसे पहले नियम ऐसे बनाने होंगे, जो व्यवहारिक व सरल हो और उसका क्रियान्वयन आसानी से आम आदमी तक हो सके।
जब छत्तीसगढ़ में पहली बार भाजपा की सरकार बनी थी, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ग्रामीण सचिवालय की रचना कर इस दिशा में एक कदम उठाया था, लेकिन दुर्भाग्य से मानीटरिंग की कमी और सरकार की उदासीनता से वह संभव नहीं हो पाया। श्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में सख्त प्रशासनिक क्षमता वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं, इसलिए उनसे उम्मीद है कि चाय पीते हुए उन्होंने जो विजन देशवासियों को दिया है, भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद उसका क्रियान्वयन भी करेंगे और इस देश को करप्शन से निजात दिलाएंगे।
भारतीय राजनीति में विकल्प का अभाव है. नरेन्द्र मोदी के अलावा कोई भी नेता शासन संभालने के लायक नजर नहीं आता. मोदी के कमियों की चर्चा तो तब होती, जब कोई विकल्प होता. केजरीवाल तो छलिया है.
मोदी ही भारत की “समृद्धि का मार्ग” है।
मोदी ही कारण है, कि, गुजरात आगे बढा है?
कारण है उनका भ्रष्टाचार हीन शासन॥
===>देश की समृद्धि का और भ्रष्टाचारहीनता का गहरा संबंध है। भ्रष्टाचार हीनता देश की उन्नति कर प्रत्येक प्रजाजन की भी उन्नति करवाती है।<===
गुजरात के विकास का प्रतिमान यही है, कारण यही है।
लेखक को धन्यवाद—इस प्रक्रिया को समझने की, और इसका प्रचार करने की प्रखर आवश्यकता है।
सरकारी नीतियां बेशकाछी हों, पर जनता के पास यदि घर बैठे पहुंचा प्रोसेसिंग शुल्क लगा कर पहुंचा दी जाये तो वह सब सरकार की ज़ेब में जायेगा बेचारे बाबू को क्या मिलेगा? वे कोई नया विकल्प ढूंढेंगे .रिश्वत जब मुहं लगती है तो निकम्मापन भी साथ ही शुरू हो जाता है.वैसे तो सरकारी नौकरी लगना ही इसकी शुरुआत है.यह सब प्राइवेट सेक्टर mrn इसलिए सम्भव है क्योंकि वहाँ आरम्भ से ही इन सब पर रोक है.शायद आप किसी सरकारी बैंक में जाते तो यह सब इतना आसान न होता .आपका सुझाव अच्छा है इसे ईमानदारी से लागू करने की जरुरत है.