नाथूराम गोडसे को सिर्फ एक ही पंक्ति में चित्रित नहीं किया जा सकता

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nathuram godse को एक सोची -समझी रणनीति के तहत कथित सेक्यूलरों , इतिहासकारों और देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी और उसकी सरकारों ने सिर्फ गाँधी के हत्यारे के रूप में ही प्रस्तुत किया , गोडसे को सिर्फ एक ही पंक्ति में चित्रित नहीं किया जा सकता है। गोडसे ने गाँधी वध क्यों किया, इसके पीछे क्या कारण रहे , इन बातों का कही भी जिक्र नहीं किया जाता , व्याख्या-विवेचना नही की जाती।

 गोडसे ने गाँधी के वध करने के १५० कारण न्यायालय के समक्ष बताये थे। उन्होंने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर सुनाना चाहते है । अतः उन्होंने वो १५० बयान माइक पर पढ़कर सुनाए। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने नाथूराम गोडसे के गाँधी वध के कारणों से संबंधित बयान को सार्वजनिक होने की डर से बैन लगा दिया था , गोडसे का बयान भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पाये इसके पीछे की कॉंग्रेसी मंशा की विवेचना भी जरूरी है गोडसे को सिर्फ एक हत्यारे के रूप में चिन्हित -चित्रित किए जाने के पूर्व । गोडसे ने अपने बयान में गाँधी जी की हत्या करने के जिन कारणों का उल्लेख किया था उसे सुनकर जज ने टिप्पणी की थी कि “गोडसे के बयान को सार्वजनिक कर फैसला आम जनता पर छोड़ दिया जाए तो निःसन्देह गोडसे निर्दोष साबित होंगे l”

“मैंने गाँधी की हत्या क्यों की : नाथूराम गोडसे”

नाथूराम गोडसे ने अपने बयान में कहा था  ” सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी – कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है . मैं कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र  प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है l”
प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करने को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ ,  “मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थेकांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर चुकी थी और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाए जा रही थी अथवा ये कॉंग्रेस को तय करना है कि वो गाँधी या मुसलमानों के बिना काम चलाए या नहीं  गाँधी अकेले ही इस देश की प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।
महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे  गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओं की कीमत पर किये जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी  उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।
मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गए और १५ अगस्त १९४७ के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गया । नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया , क्या इसी को बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते हैं ?  औरकिसका बलिदान ?
जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते हैं तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।
मैं कहता हूँ की मेरी गोलियाँ एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थीं ,जिसकी नीतियों और कार्यों से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सकेइसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।
मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है , मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन मत करना।

 

नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गाँधी-वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: –

 

१. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया।

 

. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।

 

. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने सम्बोधन में गाँधी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

 

. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गाँधी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

 

. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।

 

. गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

 

. गाँधी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

 

. यह गाँधी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

 

. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

 

१०. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गाँधी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।

 

११. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गाँधी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

 

१२. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गाँधी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

 

१३. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गाँधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

 

१४. पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गाँधी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

 

१५. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गाँधी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

 

१६. जिन्ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समय लगता है और हवाई जहाज से जाने की सभी की औकात नहीं , तो हमको बिलकुल बीच भारत से एक कोरिडोर बना कर दिया जाए…. जो लाहौर से ढाका जाता हो, दिल्ली के पास से जाता हो….. जिसकी चौड़ाई कम से कम १६ किलोमीटर हो….४. १० मील के दोनों और सिर्फ मुस्लिम बस्तियां ही बनें , अगर गाँधी जिंदा रहते तो जिन्ना की यह माँग भी मान लेते l

 गोडसे के क्रमवार बयान सही मायनों में प्रश्न हैं , जिनका सार यही है ,मेरी समझ में, कि क्या गाँधी ही इस देश के भाग्यविधाता थे और अगर गाँधी ने अपने आप को इस देश का भाग्यविधाता मान ही लिया था तो ये अधिकार उन्हें किससे और कैसे प्राप्त हुआ था ?

अगर किसी विचारधारा विशेष को सिर्फ ‘हत्यारे’ की संज्ञा से नवाजा जाएगा तो हमारे देश के सारे ‘अमर-शहीद – क्रांतिकारी ‘ भी इसी में ‘ब्रैकेटेड’ हो जाएँगे l गाँधी जी की हत्या करने वाले को ‘राष्ट्रपिता’ का हत्यारा बताए जाने के पूर्व इसकी विवेचना व मीमांसा की जरूरत है कि गाँधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सबसे पहले किसने संबोधित किया और उसकी विचारधारा कहाँ गिरवी थी ?

 

आलोक कुमार

5 COMMENTS

  1. श्री आलोक कुमार जी ने अपने आलेख के माध्यम से जो प्रश्न न उठायें है,वे प्रश्न बहुत समय तक टाले जाते रहे हैं,पर आज जब गांधी जी को भगवान का दर्जा दिया जाने लगा है ,तो ये प्रश्न और महत्वपूर्ण हो जाते हैं.अच्छा तो यह होता की सरकार अपने तरफ से उन सब दस्तावेजों को सामने लाती ,जो दबे पड़े हैं.
    मेरे जैसे अनगिनत लोग होंगे,जो अज्ञान बसनाथूराम विनायक गोडसे को एक आम हत्यारे की श्रेणी में रख रहे होंगे,पर जब नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां चलाने के बाद भागने का कोई प्रयत्न नहीं किया था,बल्कि पकड़ने वालों को कहा भी था कि इस रिवाल्वर में तीन गोलियां अभी भी शेष हैं और इसका सेफ्टी कैच खुला हुआ है,अतः सावधानी रखिये कि कोई निरपराध इसका शिकार न हो जाए, तो उसकी मनः स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.मैं मानता हूँ की आज के जिहादी या माओवादी भी अपने कृत्य को सही ठहराते हैं,पर हमरी नजर में वे गुनाहगर हैं,उसी तरह नथुराम गोडसे के बारे में भी कहा जा सकता है,पर इस पर पुनर्विचार आवश्यक है. तथ्यों को रोकने का प्रयत्न आरम्भ से नहीं करना चाहिए था.अब तो बहुत देर हो चुकी है.अब और देर करना उचित नहीं है.

  2. I read the latest edition of Manohar Mulgaonkar’s book “The Men who Killed Gandhi.”
    After this my whole opinion about Godse and other accused in the Gandhi Murder
    case changed. Godse was as much a patriot, as Gandhi was. Gandhi’s
    patriotism reeked of appeasement of a certain religious group. His strange behavior
    after the Mopla atrocities on Hindus of Kerala was baffling. It is on record that Gandhi
    never had a word of reproach for Muslims, even though they were guilty of the
    most heinous crimes. Therefore, in fairness when assessing Godse in the light of
    History, Gandhi should be reexamined as well.

  3. यह भी उल्लेखनीय होगा कि पिछली मनमोहन सिंह जी की सरकार के समय सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत एक आवेदन के उत्तर में भारत सरकार द्वारा ये बताया गया था की गांधीजी को ‘राष्ट्रपिता’ का सम्बोधन किसी राजकीय घोषणा से आच्छादित नहीं है.
    गांधीजी महान थे.लेकिन महान से महान लोगों के जीवन के बारे में भी वस्तुनिष्ठ आधार पर विवेचन होता आया है.अगर आज लोग मर्यादा पुरुषोत्तम ‘भगवान’ राम के बारे में विश्लेषण कर सकते हैं तो गांधीजी के बारे में क्यों नहीं?
    सब जानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए गांधीजी ने बोअर युद्ध में अंग्रेजों का पक्ष लिया था जिसके बदले में अंग्रेजों द्वारा उन्हें अनेकों पुरुस्कार दिए गए थे.
    गांधीजी के अधिकृत जीवनीकार श्री ड़ी.जी.तेंदुलकर ने उनकी आठ खण्डों में लिखी जीवनी में उनकी भारत वापसी के विषय में कुछ उल्लेख किये हैं जिन्हे यहाँ लिखना समीचीन होगा.
    प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों को अपनी सेना के लिए भारतीय सैनिकों की आवश्यकता थी.ऐसे में भारतीयों को अंग्रेजी सेना में भर्ती के लिए प्रेरित करने के लिए उन्हें एक पैरोकार की आवश्यकता थी और ऐसे में गांधीजी उन्हें सबसे अनुकूल लगे. गांधीजी अफ्रीका से भारत आने के लिए जब चले तो सबसे पहले लन्दन गए और वहां दो माह तक रहे और अंग्रेज सरकार के अधिकारीयों से भारत से सैनिक भर्ती के विषय में मार्गदर्शन प्राप्त किया.भारत आने पर उन्हें अंग्रेजों द्वारा मुंबई के सामान्य बंदरगाह पर न उतार कर विशिष्ठ लोगों के लिए (अंग्रेजोंके लिए) बने अपोलो बंदरगाह पर उतारा गया.तेंदुलकर जी ने लिखा है कि वो पूरे मार्ग भर अंग्रेजी पोशाक पहने रहे लेकिन जैसे ही भारत का तट दिखाई दिया उन्होंने भारतीय पोशाक बदल ली.
    भारत आकर गांधी जी ने अंग्रेजों के लिए सैनिक भर्ती हेतु नारा दिया था “भर्ती दो,आज़ादी लो”.लेकिन आज़ादी युद्ध समाप्ति के पश्चात भी नहीं मिली.अंग्रेजों ने गांधीजी का भरपूर उपयोग अपने हित में किया.
    १९४२ में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटिश हाऊस ऑफ़ कॉमन्स की सदस्य लेडी विस्कोंसिन के एक वक्तव्य का उल्लेख किया था जिसमे लेडी विस्कोंसिन ने कहा था कि भारत में सबसे अच्छा ब्रिटिश सिपाही मोहनदास गांधी है.
    लिखने और कहने को बहुत कुछ है लेकिन विद्वत जनों को इस विषय में भावुकता और प्रचलित धारणाओं पर न जाकर समस्त तथ्यों की वस्तुनिष्ठ पड़ताल करनी चाहिए.लोकतंत्र का तकाजा है कि गोडसे के बयान पर भी चर्चा हो.

  4. न्याय को अंधा होना चाहिए।

    आलेख पढते समय जो पाठक सचमुच न्याय के उत्सुक है; उनसे आग्रह है, कि सारा आलेख “क्ष” “य” “झ” ऐसे निरपेक्ष नामों का उपयोग कर पढें।
    तभी सही न्याय क्या हो, यह पता चलेगा।
    नामों के पीछॆ पूर्वाग्रह से मुक्त होनेकी ऐसी पद्धति अपनाने पर शायद आप को निर्णय करने में सरलता होगी।
    लेखक ने विचारोत्तेजक पहलुओं को प्रस्तुत किया है।
    तुष्टीकरण आज तक संतुष्टीकरण सिद्ध या अनुभूत नहीं हुआ है।

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