
—विनय कुमार विनायक
अमृत और विष अपने हिय में होता है,
अमृत के नाम से चहक उठता मानव,
विष के नाम पर वह व्यर्थ ही रोता है!
अमृत और विष अपने हिय में होता है!
विकसित करो आत्म बल को, दूर करो
सारे हतबल को,छल को,मन के मल को,
डर कर मानव यूं ही क्यों कर सोता है!
अमृत और विष अपने हिय में होता है!
हार-जीत औ विजय-पराजय रण में नहीं,
मानव के मन में ही सर्वदा से होता है!
जीवाणु-विषाणु से लड़ने-भिड़ने का खम,
पौधे-जीव-जन्तुओं के तन में ही होता है!
आज फिल्टर पानी पीकर बीमार पड़ते,
कल कुआं-चुआड़ी का जल पीते थे हम,
पशु गंदी नाली का पानी पी जी लेता है!
अमृत और विष अपने हिय में होता है!
डरो नहीं लड़ो,लड़नेवाला विजेता होता है!
हाथ पर हाथ धरे सिर्फ सोच में पड़े जो,
वह अपने नसीब को कोस यहां रोता है!
अमृत और विष अपने हिय में होता है!
मरते दमतक जो आत्मबल नहीं खोता,
यमराज भी ऐसे लोगों को सावित्री और
नचिकेता समान समझकर परे हो लेता,
अमृत और विष अपने हिय में होता है!
—विनय कुमार विनायक,
दुमका,झारखंड-814101.