
—–विनय कुमार विनायक
चाहे तुम बदल लो नाम जाति उपाधि
यहां तक कि धर्म भी
पर तुम्हारी जाति उपाधि वंशावली
खोज ही लेंगे धर्माधिकारी
तुम्हें अकुलीन/वर्णसंकर के बजाय
अपनी बराबरी का दर्जा देकर
गले लगाएंगे नहीं धर्माधिकारी!
कृष्ण बुद्ध महावीर शिवाजी तक की
जन्म कुंडली में वृषलत्व को ढूंढ लिया गया था
और वंचित किया गया था कृष्ण को अग्रपूजन से
और शिवाजी को तिलक उपनयन से!
शायद तुम्हें मालूम नहीं
कि धर्म से बड़ा होता है धर्माधिकारी
और धर्म संस्थापक एवं धर्मानुयायी की
अलग-अलग होती है जाति!
क्या बुद्ध बौद्ध थे या सनातनी
क्या महावीर जैन/नानक-गोविन्द सिख
दयानंद आर्य समाजी थे?
ईसा ईसाई थे या बहुदेववादी यहूदी!
हज़रत मुहम्मद मुहमडेन थे
या मूर्ति पूजक कुरैशी?
पूछो अपने-अपने धर्माधिकारियों से
धर्माधिकारी शासक,धर्मावलंबी शासित क्यों?
धर्माधिकारी शोषक,धर्मावलंबी शोषित क्यों?
पूछो अपने-अपने इष्ट धर्म संस्थापक से
जो धर्माधिकारी और धर्म संस्थापक के
बीच की कड़ी थे!
जो अब नहीं दृश्यमान
जिन्होंने अपने धर्मों की बुराइयों के खिलाफ
एक नया दर्शन दिया था
अपने भावी धर्मावलंबियों के लिए!
किन्तु दुर्भाग्य कि बुद्ध/महावीर/
नानक गोविन्द/ईसा/पैगम्बर के निर्वाण के बाद
फिर से गद्दीनशीन हो गए
उनके ही पूर्ववर्ती धर्मक्षत्रधारी!
जिन्हें मंजूर नहीं मानवीय समानता
जो तुम्हें उतना ही बताते धर्म-कर्म
जिससे बनी रहे उनके और तुम्हारे मध्य एक दूरी!
जो तुम्हें उतना ही पढ़ाते शिक्षा-तालीम
जिससे तुम बने रहो उनके अंधभक्त
बांकी ज्ञान प्रतिबंधित/बंधक रखते धर्माधिकारी
भविष्य के खुराफात के लिए!