गैस सब्सिडी: सोच बदलने की ज़रूरत

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हमारे देश में तमाम राजनीतिक दल ऐसे हैं जो सत्ता हासिल करने के लिए जनता को तमाम चीजें मुफ्त में देने की घोषणा करते रहते हैं. देखा गया है कि अनेक अवसरों पर राजनीती दलों की ये चाल कामयाब भी रहती है. परन्तु ऐसे समय में भी अगर देश का प्रधानमन्त्री लोगों से मुफ्त की गैस लेने से दूर हटने की सलाह दे, और उसकी एक सलाह पर लाखों लोग ऐसा कर भी दें तो कहा जा सकता है कि देश में सुधार की गुंजाईश अभी बाकी है.  गैस सब्सिडी तो इस कड़ी में एक छोटा कदम है. असली मुद्दा ये है कि देश के अर्थव्यवस्था के हित के लिए लोगों की मुफ्तखोरी की आदत बदलने की जरुरत है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऊर्जा पर आधारित एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए लोगों से अपील की कि वे लोग जो बिना सब्सिडी कि गैस खरीदने में सक्षम हैं, वे सब्सिडी वाली गैस लेना छोड़ दें. प्रधानमंत्री कि इस अपील का ये असर हुआ कि 2.8 लाख लोगों ने आगे बढ़कर सब्सिडी वाली गैस लेने से तौबा कर ली. अनुमान है कि इससे सरकार को लगभग सौ करोड़ रूपये की बचत होगी जिसका प्रयोग गरीबों के लिए रहत प्रदान करने में किया जा सकता है.

यहां यह बताना महत्वपूर्ण होगा कि अभी चंद दिनों पहले ही आप पार्टी ने भाजपा को दिल्ली में जबरदस्त शिकस्त देते हुए उसके विजय अभियान को रोक दिया था. विश्लेषकों के अनुसार आम आदमी पार्टी की इस ऐतिहासिक जीत के पीछे मुफ्त बिजली, पानी और इन्टरनेट की सुविधा देने की घोषणा करना था. इससे पहले भी समाजवादी पार्टी ने उत्तरप्रदेश में मुफ्त लैपटॉप बांटकर, नीतीश कुमार ने मुफ्त साईकिल बांटकर, दक्षिण की ताकत डीएमके ने टीवी सेट बांटकर सत्ता सुख भोगने में कामयाबी पाई है.

सवाल ये है कि जब हमारे देश की आर्थिक ताकत इतनी मजबूत नहीं है कि वह इतनी भारी मात्रा में सब्सिडी देना जारी रख सके तो इन राजनीतिक दलों को इस बात से कोई लेना देना क्यूँ नहीं है. सरकार की असली वित्तीय स्थिति को जानते रहने के बावजूद इस तरह चीजें मुफ्त देने की घोषणा करने को किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता. सरकार द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2013-14 में सब्सिडी का कुल बोझ लगभग 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो कुल जीडीपी के लगभग 14 फीसदी के आसपास है. यहां यह जानना भी जरुरी है कि हम अपने देश की शिक्षा व्यवस्था पर कुल जीडीपी का 3.4 फीसदी और स्वास्थ्य पर चार फीसदी से भी कम खर्च कर पाते हैं.

हमारे राजनीतिक दलों को समझना होगा कि जनता को मुफ्तखोरी की अफीम खिलाकर देश की राजनीति ज्यादा देर तक आगे नहीं चल सकती. अच्छा ही है कि देश के प्रधानमन्त्री ने एक राज्य में चुनावी हार के बावजूद वो रुख अपनाया है जो लम्बे समय में देश हित में है. परन्तु अन्य राजनीतिक दलों की तरफ से इसी तरह की पहल न होने और अन्य राज्यों में भी इसी तरह के परिणाम सामने आने के बाद भाजपा अपने इस रुख पर कितनी देर ठहर सकेगी, कहना मुश्किल है. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्यूंकि भाजपा भी २००९ के चुनाव में अपने चुनावी घोषणा पत्र में फ्री लैपटॉप देने का वायदा कर चुकी है. परन्तु उस बार यूपीए की मनारेगा योजना ने देश के गरीबों को अपनी तरफ ज्यादा खींचा और भाजपा की योजना कामयाब नहीं हो सकी.

मोदी जी कि इस सराहनीय पहल के बावजूद कुछ सवाल ऐसे हैं जिनकी तरफ मोदी जी का ध्यान जरुर जाना चाहिए. आखिर देख के उस वर्ग से सब्सिडी छोड़ने की अपील करना कहां तक उचित होगा अगर करोडपति और अरबपति होने के बावजूद खुद संसद के माननीय ही ऐसी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं, जिन्हें उन्हें नहीं करना चाहिए.

प्रधानमंत्री जी को यह समझना होगा कि उनके संसद की कैंटीन में महज 28 रूपये में खाना खाने से उनकी आम आदमी के करीब होने की साख जरुर मजबूत होती है, परन्तु देश की आम जनता को 28 रूपये में क्या मिलता है, यह अलग से बताने की जरुरत नहीं है.

वर्तमान लोकसभा के कुल 543 चुने सदस्यों में से 449 ऐसे हैं जिनकी संपत्ति करोड़ों में हैं, तो इन माननीयों को संसद की कैंटीन में एक रूपये में चाय और डेढ़ रूपये में दाल क्यूँ मिलनी चाहिए. इसी क्रम में उन्हें मुफ्त बिजली, पानी, फोन और अन्य अनेक सुविधाओं को उन्हें क्यूँ प्रदान किया जाना चाहिए. देश को विश्व अर्थव्यवस्था के सामने मजबूती से खड़ा करने केलिए जनता के मन से मुफ्तखोरी की आदत दूर करनी ही होगी, परन्तु एक अच्छा सन्देश देने के लिए क्या यह बेहतर नहीं होता कि इस तरह की पहल संसद से ही होती.

 

–अमित शर्मा

 

 

 

 

4 COMMENTS

  1. अमित जी आपने अच्छा सवाल उठाया है लेकिन जिस देश की 80% जनता 20₹ रोज़ से कम पर गुज़ारा करती हो उसे मुफ्तखोर कहना मुनासिब नहीं होगा। जब तक जनता की आय का स्तर ऐसा न हो जाए कि उसको सब्सिडी न देनी पड़े तब तक बीजेपी ही नहीं कोई भी सरकार सब्सिडी बन्द नहीं कर सकती लेकिन जिनकी ये हैसियत है कि वे सब्सिडी छोड़ सकते हैं वे तो ज़्यादातर पहले ही बिजली चोरी इनकमटैक्स सेलस्टेक्स और न जाने क्या क्या चुरा रहे हैं ब्लैक मनी विदेश में जमा कर रहे हैं जानलेवा मिलावट कर रहे हैं उनमें नैतिकता नहीं हैं जो वे खुद सब्सिडी छोड़ दें। उदाहरण तो अपवाद होते हैं। सरकार खुद ऐसे लोगों की सब्सिडी क्यों रोकने की हिम्मत नहीं दिखाती?

    • भाई इकबाल हिन्दुस्तानी जी…प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद…मेरा आशय उस गरीब वर्ग से बिलकुल भी नहीं है जो अत्यंत बुरी परिस्थिति में किसी प्रकार अपना जीवनयापन कर रहा है…मेरा सवाल तो उस सुविधा संपन्न वर्ग से है जो हर तरह से सक्षम होने के बावजूद फ्री का मिलने पर सुविधा लेने के लिए टूट पड़ता है…जो वर्ग करोड़ रूपये की कार खरीद सकता है उसे पेट्रोल-डीजल फ्री में लेने की चाहत क्यूँ हो…ये बुरी सोच मुफ्तखोरी की आदत नहीं तो और क्या है…शायद आप मेरा आशय समझ गए होंगे…

  2. ”माले मुफ्त दिले बेरहम ” ऐसी आदत हो गयी है.चाहे वह सांसद हो ,विधायक हो,वर्ग १ अधिकारी हो या अरबपति व्यापारी हो. मुफ्तखोरी हमारी रग रग में रच बस गयी है. राष्ट्र देश ,गरीब ,भगवांन किसी के दिमाग में है ही नही. १२५ करोड़ की आबादी में २५ करोड़ परिवार तो होंगे.उसमे २-३ लाख सब्सिडी का मोह छोड़ दें तो प्रतिशत क्या बैठेगा?और यदि सभी सांसद,विधायक, वर्ग २ और ३ अधिकारी. आयकर देने वाले व्यापारी, राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी ,अभिनेता जो ३०-४० करोड़ का मकान हँसते खेलते खरीद लेते हैं यदि ये सब गैस सब्सिडी छोड़ दें तो इतनी बचत होगी?और यह बचत उन परिवारों पर खर्च खर्च की जाय जिन परिवारों में केवल ३ बच्चे हो.जिन परिवारों में ३ से अधिक बच्चे हों उन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत नहीं है /

    • आदरणीय सुरेश जी..धन्यवाद..मेरा सवाल भी यही है कि हर तरह से सक्षम होने के बावजूद हमारे अन्दर सब कुछ फ्री में पाने की चाहत क्यूँ होती है. देश के विकास के साथ साथ हमारे अपने स्वाभिमान के लिए हमें ऐसी सोच का परित्याग करना ही चाहिए…

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