नेपाल जनविद्रोह: ये तो होना ही था

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                                                                 निर्मल रानी

बिहार में दरभंगा-जयनगर के रास्ते 5 वर्ष पूर्व नेपाल जाने का अवसर मिला था ।  भारत नेपाल के सीमावर्ती नेपाली शहर जनकपुर के बीचोबीच देवी सीता को समर्पित हिन्दू-राजपूत वास्तुकला का एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर एवं ऐतिहासिक स्थल है जिसे राम जानकी मंदिर के नाम से जाना जाता है। मेरे नेपाल प्रवास के उस दौर में जयनगर से लेकर जनकपुर तक की पूरी सड़क पर अधिकांश क्षेत्र में सिर्फ़ मिटटी पड़ी हुई थी। केवल कहीं कहीं बजरी पड़ी दिखाई देती थी। डामर रोलर और काली सड़कों का तो कहीं दूर तक नामो निशान ही नहीं था। रास्ते में कहीं बस का पहिया ज़मीन में धंसा दिखाई दे रहा था तो कहीं थ्री व्हीलर उल्टी पड़ी थी। बसों का तो आलम यह था कि टूटे शीशे व खिड़कियां, टूटी कष्टदायक सीटें,गोया कबाड़ख़ाने से लाकर बसें चलाई जा रही हों। जनकपुर जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल व पर्यटन नगरी की शहर की सड़कों में गड्ढे,बदबूदार और रुकी हुई नालियां ,शहर में खाने पीने का उपयुक्त होटल नहीं। जिस होटल में ठहरना हुआ उस होटल के प्रबंधक ने दोपहर क़रीब 12 बजे होटल में पहुँचने पर पहले ही बता दिया कि लाइट नहीं आ रही है रात 8 बजे आयेगी,रूम बुक कराना हो तो कराइये वरना तशरीफ़ ले जाइये। जब होटल प्रबंधक से नेपाल की इस दुर्दशा के बारे में पूछा तो उसने एक ही बात कही। ‘भ्रष्टाचार तो भारत में भी है परन्तु वहां 50 प्रतिशत खाकर 50 प्रतिशत तो लगा ही देते होंगे। मगर हमारे नेपाल में तो 90 प्रतिशत खा जाते हैं केवल 10 प्रतिशत ही किसी योजना में लगाते हैं।’ उसी दिन यह एहसास हो गया था कि एक न एक दिन पानी सिर से ऊपर होगा और आज नहीं तो कल इसी नेपाल में भ्रष्टाचार के विरुद्ध विद्रोह ज़रूर पनपेगा। 

                  ख़ैर, नेपाल में लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद,आर्थिक असमानता, युवा बेरोज़गारी के विरुद्ध आख़िरकार जनविद्रोह फूट ही पड़ा। सोशल मीडिया पर लगाये गये प्रतिबंध यानी युवाओं की सत्ता विरोधी आवाज़ को दबाने का सरकारी प्रयास इस हिंसक जनविद्रोह का बहाना बना। 8 सितंबर 2025 को शुरू हुये इस  जनविद्रोह में राजधानी काठमांडू सहित नेपाल के अन्य प्रमुख शहरों में हज़ारों युवा सड़कों पर उतर आए। आंदोलनकारियों ने सरकार की भ्रष्ट नीतियों के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की, जो जल्दी ही हिंसक हो गई। प्रदर्शनकारियों ने राजधानी काठमांडू स्थित संसद भवन,सरकारी प्रशासनिक मुख्यालय,सिंह दरबार,प्रधानमंत्री कार्यालय, मंत्रालयों और संसदीय कार्यालयों के परिसर ,सुप्रीम कोर्ट भवन,राष्ट्रपति भवन,राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल के निवास,नेपाली कांग्रेस पार्टी मुख्यालय,कम्युनिस्ट पार्टी मुख्यालय, निवर्तमान प्रधानमंत्री ओली के पार्टी मुख्यालय,5 सितारा हिल्टन होटल,नेपाल के सबसे बड़े मीडिया समूह कांतिपुर मीडिया हाउस,स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय भवन, तथा प्रांतीय विधानसभा भवन जैसी प्रमुख इमारतों को आग के हवाले कर दिया। काठमांडू की इन इमारतों के अलावा भी देशभर में अनेक सरकारी कार्यालयों, पुलिस स्टेशनों और नेताओं के घरों को निशाना बनाया गया। इस दौरान त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अस्थायी रूप से बंद रहा, और गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा को भी क्षति पहुंची । इन्हीं हिंसक वारदातों में मृतकों की संख्या 51 पार कर गई। इनमें 21 प्रदर्शनकारी, नौ क़ैदी , तीन पुलिस अधिकारी और 18 अन्य शामिल हैं। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इस्तीफ़ा दे दिया। सेना को कर्फ़यु लगाकर सड़कों पर तैनात किया गया। कई मंत्रियों व उद्योगपतियों के घर कार्यालय व संस्थान आग के हवाले कर दिये गये। नेपाल में चले इन विरोध प्रदर्शनों के बाद आंदोलनकारियों की सहमति से सुशीला कार्की को नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। 

               इस आंदोलन की आग में भी शातिर राजनीतिज्ञ अपनी अपनी रोटियां सेकने की कोशिश करते दिखाई दिये। जहाँ तक राजनैतिक विश्लेषकों का सवाल है तो कोई इसे हिन्दू राष्ट्र का पक्षधर जन विद्रोह साबित करना चाह रहा है तो कोई इसे राजशाही की वापसी का संकेत बता रहा है। कोई इसमें अमेरिकी षड़यंत्र की गंध महसूस कर रहा है तो कोई इसे चीनी साज़िश महसूस कर रहा है। परन्तु हक़ीक़त यही है कि चाहे वह नेपाल में 240 वर्षों की पुरानी शाह वंश की राजशाही परंपरा रही हो या उसके बाद 28 मई, 2008 को स्थापित हुआ 17 वर्ष पुराना गणतंत्र। किसी भी दौर में नेपाल के समग्र विकास पर कोई भी काम नहीं हुआ। हद तो यह है कि सड़क बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं पर भी नेपाल किसी ज़माने में भारत पर ही पूरी तरह आश्रित रहा करता था। नेपाल का बेरोज़गार आज बड़ी संख्या में भारत में काम करता व काम की तलाश में आता दिखाई देता है। 

            सही पूछिए तो राजधानी काठमांडू के सिवा किसी प्रान्त शहर या ज़िले का नाम भी भारत या अन्य देशों के आम लोग नहीं जानते। आम लोगों को यह भी नहीं पता कि नेपाल 7 अलग अलग प्रांतों में बंटा हुआ कुल 77 ज़िलों का देश है। इस अनभिज्ञता  का कारण यही है कि राजशाही से लेकर गणतांत्रिक सरकारों तक ने केवल राजधानी काठमांडू के विकास व इसके सौंदर्यीकरण पर ही ज़ोर दिया। प्रायः सभी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन काठमांडू में ही हुआ करते थे। वैसे भी काठमांडू की प्रसिद्धि का कारण राजधानी होने के अतिरिक्त वहां का विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर भी है। इसलिये नेपाल का कोई अन्य ज़िला या शहर न तो विकसित हो पाया न ही प्रसिद्धि प्राप्त कर सका। इसे पूरे नेपाल के प्रति शाह घराने से लेकर गणतांत्रिक व्यवस्था संचालित करने वाले सभी राजनैतिक दलों के राजनेताओं तक की उदासीनता नहीं तो और क्या कहें ?

           श्री लंका व बांग्लादेश के बाद अब नेपाल में भड़का विद्रोह दुनिया के हर उन भ्रष्ट व बेलगाम सत्ताधीशों के लिये चेतावनी है जोकि जनता के मतों के बल पर उन्हें सुनहरे सपने दिखाकर सत्ता में तो आ जाते हैं परन्तु उसके बाद जनसरोकारों की बात करने के बजाये अपने सगे सम्बन्धियों को फ़ायदा पहुँचाने में जुट जाते हैं। जनता सब देखती व समझती है कि किस तरह सत्ता मिलते ही नंगे भूखे राजनेता करोड़पति व अरबपति बन जाते हैं। किस तरह उनका अहंकार चौथे आसमान पर पहुँच जाता है। जनता देखती है कि किसतरह जनसमस्याओं से ध्यान भटका कर व्यर्थ के भावनात्मक मुद्दे उछालकर उन्हें वरग़लाया जाता है। और जब इसी जनता के सिर के  ऊपर से पानी बहने लगता है फिर वही होता है जो नेपाल में हुआ। चूँकि नेपाल भी दशकों से भ्रष्टाचार,बेरोज़गारी व भाईभतीजावाद का शिकार था इसलिये नेपाल में एक न एक दिन जनविद्रोह तो होना ही था। 

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