रोजगार सृजन व श्रमिक कल्याण में मील का पत्थर” साबित होगा नया श्रम कानून

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अवधेश कुमार सिंह

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मंत्र रहा है। रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म। इसी मंत्र पर अमल करते हुए वर्तमान एनडीए सरकार ने 2014 से लेकर अब तक श्रमिकों के कल्याण हेतु अनेक कदम उठाए हैं तथा इन श्रम संहिताओं के माध्यम से समग्र श्रम सुधार का सपना साकार हो रहा है। नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल के आरम्भ में ही यह स्वीकार किया है कि जितना महत्व ‘सत्यमेव जयते’ का है, उतना ही महत्व राष्ट्र के विकास के लिए ‘श्रमेव जयते’ का है। इसलिए सरकार का यह प्रयास रहा है कि अपने श्रमिक को ‘श्रम योगी’ बनाते हुए उनके जीवन को सहज बनाने की कोशिश की जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पिछले 6 वर्षों में लगातार प्रयास किए, जैसे:

। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और छोटे व्यापारियों को पेंशन देना, महिलाओं के मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना, ईपीएफ तथा ईएसआईसी का दायरा बढ़ाना, विभिन्न कल्याणकारी सुविधाओं की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करने का प्रयास करना, न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाना इत्यादि। इसी क्रम में श्रम सुधारों की प्रक्रिया भी 2014 में आरम्भ की गई थी, जिसका उद्देश्य यह था कि अनेक श्रम कानूनों को समाहित कर उसे सरलीकृत रूप में 4 श्रम संहिताओं में परिवर्तित किया जाए। श्रम सुधारों का उद्देश्य यह है कि अपने श्रम कानूनों को, बदलती परिस्थितियों के अनुरूप किया जाए तथा श्रमिकों और उद्योगों की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाते हुए एक प्रभावी और पारदर्शी व्यवस्था दी जाए। इसी के तहत लोकसभा के मॉनसून सत्र में बुधवार को श्रम कानून से जुड़े तीन अहम विधेयक पास हो गए हैं। जिनमें सामाजिक सुरक्षा बिल 2020, आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020 और औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020 शामिल हैं। सरकार का कहना है कि ऐतिहासिक श्रम कानून कामगारों के साथ साथ कारोबारियों के लिए मददगार साबित होगा। वहीं श्रमिक संगठनों को डर है कि मुनाफे के चक्कर में कामगारों के अधिकार छिन जाएंगे।

नए श्रम कानूनों से देश के संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के श्रमिकों को कई प्रकार की नई सुविधाएं मिलेंगी। सभी मजदूरों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा और उनके वेतन का डिजिटल भुगतान करना होगा। साथ ही साल में एक बार सभी श्रमिकों का हेल्थ चेकअप भी अनिवार्य किया गया है। हालांकि अब जिन कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या 300 से कम है, वे सरकार से मंजूरी लिए बिना ही कर्मचारियों की छंटनी कर सकेंगी। अब तक ये प्रावधान सिर्फ उन्हीं कंपनियों के लिए था, जिसमें 100 से कम कर्मचारी हों। अब नए बिल में इस सीमा को बढ़ा दिया गया है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को मिलेगी सुरक्षा, नए श्रम कानून से देश के संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के श्रमिकों को कई प्रकार की नई सुविधाएं मिलेंगी सभी श्रमिकों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा उनके वेतन का डिजिटल भुगतान करना होगा साल में एक बार सभी श्रमिकों का हेल्थ चेकअप भी अनिवार्य किया गया है वहीं, उद्यमियों के कारोबार को आसान बनाने के लिए कई प्रावधान लाए गए हैं वर्तमान कानून में दुर्घटना होने की स्थिति में जुर्माने की राशि पूरी तरह से सरकार के खाते में जाती थी लेकिन नए कानून में जुर्माने की राशि का 50 प्रतिशत पीड़ित को देने की बात कही गई है वहीं, ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन बिल कंपनियों को छूट देगा कि वे अधिकतर लोगों को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर नौकरी दे सकें साथ ही कॉन्ट्रैक्ट को कितनी भी बार और कितने भी समय के लिए बढ़ाया जा सकेगा इसके लिए कोई सीमा तय नहीं की गई है वो प्रावधान भी अब हटा दिया गया है, जिसके तहत किसी भी मौजूदा कर्मचारी को कॉन्ट्रैक्ट वर्कर में तब्दील करने पर रोक थी इसके अलावा महिलाओं के लिए वर्किंग आवर (काम के घंटे) सुबह 6 बजे से लेकर शाम 7 बजे के बीच ही रहेगा शाम 7 बजे शाम के बाद अगर काम कराया जा रहा है, तो सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की होगी एक साल में मिल सकेगी ग्रेच्युटी सोशल सिक्योमरिटी कोड के नए प्रावधानों में बताया गया है कि जिन लोगों को फिक्सड टर्म बेसिस पर नौकरी मिलेगी उन्हें उतने दिन के आधार पर ग्रेच्युटी पाने का भी हक होगा इसके लिए पांच साल पूरे की जरुरत नहीं है अगर आसान शब्दों में कहें तो कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम करने वालों को उनके वेतन के साथसाथ अब ग्रेच्युटी का फायदा भी मिलेगा वो ग्रेच्युटी कितने दिन का भी हो अगर कर्मचारी नौकरी की कुछ शर्तों को पूरा करता है तो ग्रेच्युटी का भुगतान एक निर्धारित फॉर्मूले के तहत गारंटी तौर पर उसे दिया जाएगा एक ही कंपनी में लंबे समय तक काम करने वाले कर्मचारियों को सैलरी, पेंशन और प्रोविडेंट फंड के अलावा ग्रेच्युटी भी दी जाती है ग्रैच्युटी किसी कर्मचारी को कंपनी की ओर से मिलने वाला रिवार्ड होता है नये श्रम कानून से कामगारों में भय और चिंता की लकीर देखी जा रही है जानकारों का कहना है कि कानून का उद्देश्य श्रमिकों को सुरक्षा देना और जटिल नियमों को सरल बनाना है लेकिन श्रमिक संगठनों का कहना है कि इसका मकसद हजारों छोटे कारखानों को छूट देना है और श्रमिकों को हड़ताल और अन्य लाभ अधिकारों से रोकना है ऐसे में कामगारों के मन में कुछ सवाल और चिंता होना लाजमी है तीन कोड कर्मचारियों को कैसे प्रभावित करेंगे? सुधार उद्योगों को काम पर रखने और छंटनी में लचीलापन देते हैं वे नई शर्तों को ताक पर रखकर औद्योगिक हमलों को और अधिक कठिन बना देंगे और औपचारिक और अनौपचारिक श्रमिकों दोनों के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल का विस्तार करेंगे हायरिंगफायरिंग नियमों में क्या बदलाव हैं? औद्योगिक संबंध संहिता के तहत, सरकार की अनुमति के बिना सरकार ने 300 कर्मचारियों के साथ कंपनियों को काम पर रखने या पौधों को बंद करने की अनुमति दी है पहले, अनुमोदन की आवश्यकता थी 300 से अधिक श्रमिकों वाली फर्मों को अभी भी अनुमोदन के लिए आवेदन करने की आवश्यकता है हालांकि, यदि अधिकारी उनके अनुरोध का जवाब नहीं देते हैं, तो सेवानिवृत्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जाएगी पूर्व श्रम कानूनों में 30 से 90 दिन के नोटिस की आवश्यकता होती है “काम करने वालों” को पीछे करने से पहले की अवधि, जो मुख्य रूप से दुकान के फर्श श्रमिकों का एक वर्ग है विनिर्माण इकाइयों, वृक्षारोपण और 100 या अधिक श्रमिकों के साथ खानों के मामले में, लेऑफ को भी सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होती है यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत के 90% कार्यबल, जो कि अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, इन परिवर्तनों से प्रभावित नहीं होंगे इसके लिए आर्थिक औचित्य क्या है? अर्थशास्त्रियों ने लंबे समय से तर्क दिया है कि भारत पुराने श्रम कानूनों में बदलाव की जरूरत है 100 से अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों के लिए हायरिंगहायरिंगफ़ेयरिंग नियम लागू किए गए, जिससे श्रमिकों को रखना लगभग असंभव हो गया इसने छोटी कंपनियों को छोटे बने रहने के लिए प्रोत्साहन के रूप में प्रतिकूल कार्य किया ताकि वे नियमों से बच सकें विश्व बैंक के अनुसार, कम प्रतिबंधात्मक कानूनों के साथ, भारत लगभग वार्षिक आधार पर “28 मिलियन अधिक अच्छी गुणवत्ता वाले औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों” को जोड़ सकता है यह श्रमिकों के हड़ताल के अधिकार को कैसे प्रभावित करता है? औद्योगिक संबंध संहिता श्रमिकों की हड़ताल पर जाने के लिए नई शर्तों का पालन करती है यूनियनों को अब 60 दिनों की हड़ताल का नोटिस देना होगा यदि श्रम न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही लंबित है, तो निष्कर्ष निकालने के बाद श्रमिक 60 दिनों के लिए हड़ताल पर नहीं जा सकते ये शर्तें सभी उद्योगों पर लागू होती हैं इससे पहले, कार्यकर्ता दो सप्ताह और छह सप्ताह के नोटिस के बीच देकर हड़ताल पर जा सकते थे फ्लैश स्ट्राइक अब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है नए कार्यस्थल सुरक्षा नियम क्या हैं? व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम की स्थिति संहिता, 2020, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कर्मचारियों की काम करने की स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन करती है कोड राज्य सरकार को किसी भी नए कारखाने को अधिक आर्थिक गतिविधि और रोजगार बनाने के लिए संहिता के प्रावधानों से छूट देने का अधिकार देता है यह प्रतिदिन आठ घंटे की अधिकतम दैनिक कार्य सीमा को तय करता है महिलाएं सभी प्रकार के कार्यों के लिए सभी प्रतिष्ठानों में नियोजित होने की हकदार होंगी और यदि उन्हें खतरनाक या खतरनाक कार्यों में काम करने की आवश्यकता होती है, तो सरकार को रोजगार से पहले नियोक्ता को पर्याप्त सुरक्षा उपाय करने की आवश्यकता हो सकती है क्या सामाजिक सुरक्षा का जाल चौड़ा हो गया है? हाँ सामाजिक सुरक्षा, 2020 पर संहिता पहली बार सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का वादा करती है, जिसमें संगठित और अनौपचारिक दोनों श्रमिकों के साथसाथ टमटम और प्लेटफॉर्म श्रमिक भी शामिल हैं सरकार, कोड बताती है, समयसमय पर, उपयुक्त कल्याणकारी योजनाएं, जिनमें “भविष्य निधि” से संबंधित योजनाएं शामिल हैं, अधिसूचित करेंगी; रोजगार की चोट लाभ; आवास; बच्चों के लिए शैक्षिक योजनाएं; श्रमिकों का कौशल उन्नयन; अंतिम संस्कार सहायता; और वृद्धाश्रम ” सरकार कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड्स (कंपनी अधिनियम, 2013 के अर्थ के भीतर) या इस तरह के किसी अन्य स्रोत को योजना में निर्दिष्ट कर सकती है सामाजिक सुरक्षा कोड असंगठित श्रमिकों के लिए केंद्र सरकार की उपयुक्त योजनाओं की सिफारिश करने के लिए एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की स्थापना करता है श्रम मंत्री संतोष गंगवार के अनुसार “श्रमिक कल्याण में यह मील का पत्थर” साबित होगा। “देश की आजादी के 73 साल बाद जटिल श्रम कानून सरल, ज्यादा प्रभावी और पारदर्शी कानून से कानून से बदल दिए जाएंगे।” गंगवार मुताबिक “लेबर कोड श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा और यह उद्योगों को आसानी से चलने में मदद करेगा। कारोबार चलाने के लिए अलग।अलग जगह पंजीकरण और लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी।” इससे पहले तक देश में 44 श्रम कानून थे जो कि अब चार लेबर कोड में शामिल किए जा चुके हैं। श्रम कानूनों को लेबर कोड में शामिल करने का काम 2014 में शुरू हो गया था। ये श्रम सुधार नियोक्ता ओं के लिए कर्मचारियों की छंटनी और भर्ती करना आसान बनाएंगे। वहीं, सभी वर्कर्स किसी न किसी प्रकार से सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आएंगे। नये श्रम कानून के अमल में आ जाने के बाद श्रम कानून लागू करने में आसानी होगी, कई कानूनी प्रावधान एक जगह आ जाएंगे, देश का लेबर मार्केट ग्लोबल इकोनॉमी के मुताबिक होगा, कंपनियों को अस्थायी नियुक्ति में आसानी होगी, कर्मचारी रखना, हटाना आसान होगा, छंटनी के शिकार कर्मचारी की मदद हो सकेगी, री स्किलिंग फंड से मदद मिलेगी, स्किल बढ़ेगी तो बेहतर नौकरी मिलेगी, हड़ताल के पहले नोटिस का प्रावधान, नौकरियों में पारदर्शिता, जिम्मेदारी आएगी, कारोबार में आसानी का फायदा होगा, नया निवेश होगा, रोजगार के मौके बढ़ेंगे। 

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