मध्यप्रदेश की राजनीति के नए मास्टर ब्लास्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया

जन्मदिन पर आलेख
जीहां 2018 विधानसभा चुनाव ने मध्यप्रदेश की राजनीति को नया मास्टर ब्लास्टर दिया है। भले ही कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान समिति प्रमुख को जीत के बाद मप्र की कुर्सी पर न बिठाया हो मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया हिन्दुस्तान के दिल मप्र के चहेते राजनेता जरुर बन गए हैं। सवा सौ चुनावी सभाएं करके मप्र के अंगद मतबल शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी को कांग्रेस ने डिगाया है तो इसमें युवा और सुदर्शन चेहरे वाले ज्योतिरादित्य का कम प्रताप नहीं है। ये बात चुनाव में कांग्रेस के दूसरे जोड़ीदार और मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ भी बखूबी जानते हैं। दो लोगों की जुगलबंदी से मिली सीएम कुर्सी पर सहमति के लिए वे सिंधिया को विधायक दल की बैठक में धन्यवाद देकर इसको जता भी चुके हैं। आज कांग्रेस को वनवास से मुक्ति दिलाने वाले युवा सेनापति सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्मदिन है ऐसे में लगे हाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के सियासी सफर और भविष्य की यात्रा पर कुछ बात हो जाए।हो सकता था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके पिता माधवराव सिंधिया जिस कदर अपने प्रचार में ले जाते थे उसी तरह वे खुद वक्त आने पर उनके सियासी सफर की राह खुद तय करते मगर जिंदगी में सब कुछ पहले से तय नहीं हो पाता। कानपुर में कांग्रेस के प्रचार के लिए जाने वाले माधवराव उसी हवाई यात्रा से कभी लौटकर नहीं आएंगे ये किसे पता था। इस एक घटना ने सिंधिया परिवार के इकलौते बेटे पर पिता की विरासत और गरिमापूर्ण राजनीति की जिम्मेदारी ला दी। माधवराव सिंधिया जिस समय दुनिया से अलविदा हुए वे ग्वालियर की पूरे देश में सशक्त और मजबूत आवाज थे। उनके निधन पर हर ग्वालियरवासी में एक उदासी इसलिए भी कि भारतीय राजनीति में ग्वालियर की आवाज कौन बुलंद करेगा। ज्योतिरादित्य पर अपने पिता के बड़े कद के कारण बड़ा दवाब था। उन पर सिंधिया रियासत की शान को बरकरार रखने का जिम्मा भी था। बदलते वक्त के साथ सिंधिया ने वो गरिमा और विरासत बरकरार रखी ये ज्योतिरादित्य सिंधिया के व्यक्तित्व को तमाम राजनेता पुत्रों से जुदा बनाती है। याद कीजिए भाजपा के दिग्गज प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन को। वे पिता से मिले स्टारडम को बरकरार नहीं रख पाए जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने निरंतरता के साथ गरिमामय पारी खेली और आज करीब 16 साल के बाद वे मप्र की राजनीति के त्रिदेवों में सबसे युवा और संभावनशील चेहरे हैं। सिंधिया अभी केवल 47 साल के हैं और उनके बास मप्र से लेकर देश की राजनीति में चमकने का बेहतर वक्त है। वे 2018 में दौड़ में रहकर सीएम नहीं बन पाए मगर उनकी दौड़ खत्म नहीं हुई है। वे कांग्रेस की तरफ से आगामी दिनों में मप्र के सबसे मजबूत चेहरे होंगे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी का दिखाया वक्त और धैर्य का सफर सिंधिया कितने समय में पूरा करते हैं। 

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