नवगीत

अविनाश ब्यौहार

पावस ने
जग नहलाया
खुद भी
नहा गई।

वर्षा से अपना
ऐसा नाता है।
है रेनसूट या
खोला छाता है।।

हरीतिमा की अप्सरा
धरती पर
आ गई।

है बारिश औ खग
दुबके नीड़ों में।
क्यों दमघोंटू
कोलाहल भीड़ों में।।

झरनों की
निर्मल हँसी
आँखों को
भा गई।

अविनाश ब्यौहार
जबलपुर

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