नीतीश का विश्वास, विरोधियों के लिए खड़ी कर रही है बड़ी चुनौती !

                                                                                                     -मुरली मनोहर श्रीवास्तव

                                    एक तरफ कोरोना की दहशत तो दूसरी तरफ बिहार विधानसभा चुनाव। इन दोनों को लेकर सभी राजनीतिक दल संवेदनशील हैं। सुनकर चौंकिए मत, क्योंकि सभी दल का एक ही कहना है कि हम कोरोना संक्रमण के इस महामारी में एक साथ हैं। बात भी सही है, मगर जैसे ही चुनाव की बातें होती हैं आपसी बिखराव और छिंटाकसी का स्तर देखते बनती है। जनता समझती है। इनकी हर बातों से वाकिफ है, मगर करे भी तो क्या अपनों के बीच से ही जनप्रतिनिधि भी तो चुनना है। लेकिन बिहार की एक सबसे बड़ी ट्रेजडी है कि यहां के दल जो करते हैं सो तो है ही मतदाता भी अपनी बिरादरी और दबंगों को ही अपना नेता चुनकर सदन भेजने की कवायद में लगे रहते हैं। जैसे ही नेता जी सदन पहुंचे वो अपनी सियासत करना शुरु कर देते हैं। उसके बाद मतदाता को समझ आती है कि कार्यकर्ता को वोट देनी चाहिए थी, न कि अपने स्वजातीय और दबंग को।

एनडीए बनाम महागठबंधन

                                    बिहार में मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन है। कल तक जिस महागठबंधन के साथ पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी थे वो इस बार फिर से एनडीए में आने को उतावले हैं। वजह भी है पहले बेटा संतोष मांझी को महागठबंधन के साथ रहकर विधान पार्षद बनाए अब आगे अपने दामाद को भी सदन में पहुंचाने की फिराक में हैं और जुगाड़ लगी तो खुद भी जनाब किसी राज्य के महामहिम बन जाएं। अगर मांझी जी से बात कीजिए तो कहते हैं मैं परिवारवाद का विरोधी हूं। शायद उनकी इस मायने में गिनती कमजोर है तभी तो इस तरह के बयान देते हैं।

रुख करते हैं महागठबंधन की ओर तो राजद तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट मान रही है। मगर महागठबंधन में उनके नाम पर किसी की सहमति नहीं बन रही है। इसी से नाराज मांझी पुराने घर लौट रहे हैं, तो रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा दिल्ली जाकर कांग्रेस सुप्रीमो के साथ आगे की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वहीं वीआईपी अपना अलग ही राग अलाप रहा है। सभी अपने-अपने तरीके से पैंतरे बदल रहे हैं, आंखें राजद को दिखा रहे हैं। मगर राजद किसी पर वगैर ध्यान दिए अपने संगठन को मजबूत करने में लगी हुई है।

 

राजद के फार्डवर्ड कार्ड से सकते में एनडीए !

                                    राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को बिहार की राजनीति का धूरी कहा जाता है। किस समय कौन सी चाल चलनी है इसको वो बाखूबी जानते हैं। विधानसभा चुनाव से पहले फार्वरड कार्ड खेलते हुए अपने पुराने साथी जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर जातीय समीकरण को साधना शुरु कर दिए थे। उसके बाद लोजपा नेता बाहुबली रामा सिंह सहित कई और भी कदावर नेता राजद खेमें में दस्तक दे रहे हैं। इससे पार्टी की गिरी हुई साख ऊपर उठने लगी है। लेकिन रामा सिंह के आने की खबर से खफा रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा क्या दिया पार्टी ने रामा सिंह के इंट्री पर कुछ देर के लिए रोक लगा दी है। कल तक जिस राजद को लोग एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण तक ही सीमित मानते थे आज वही राजद फार्वर्ड कार्ड खेलकर अपने वोट में इजाफा करना चाह रही है। महागठबंधन की सुई को-आर्डिनेशन कमिटी पर आकर अटक गई है। महागठबंधन में साफ तौर पर मतभेद देखने को मिल रहा है, जिससे ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन का हाल पिछले लोकसभा चुनाव जैसे ही हो सकता है।

राजद के 5 एमएलसी जदयू के साथः

                                     विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे का सियासी पारा चढ़ता ही जा रहा है। एमएलसी चुनाव से पहले हर कोई अपनी दावेदारी को लेकर अपना प्रदर्शन करना शुरु कर दिया है। इन्हीं में से एक है राघोपुर के पूर्व विधायक उदय नारायण उर्फ भोला बाबू, इनके कार्यकर्ताओं ने राबड़ी आवास के बाहर हंगामा किया। इसके बाद राजद के पांच एमएलसी ने राजद से इस्तीफा देकर जदयू का दामन थाम लिया नतीजा राजद विधान परिषद में औंधे मुंह गिर गई और राबड़ी देवी की कुर्सी चली गई। इतना ही नहीं फिर जो नौ सीटों के लिए चुनाव हुआ उसमें तीन सीटें आने के बाद भी कुर्सी पर राबड़ी काबिज नहीं हो सकती हैं।

चुनाव से पहले राजद में बड़ी टूट !

                                    बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक जोड़ घटाव कर रहे हैं। वहीं महागठबंधन की सबसे बड़ी टीम राजद में लगातार टूट होता जा रहा है। 5 एमएलसी का राजद छोड़ने के बाद यह भी चर्चा है कि राजद से दर्जन भर से ज्यादा सीटिंग विधायक अपना पद छोड़कर जदयू का दामन थामने वाले हैं। भले ही यह बात राजद को नहीं पचती हो मगर लगातार हो रही टूट से साफ दिख रहा है कि इस बात में भी कहीं न कहीं सच्चाई हो सकती है कि राजद के दर्जन भर विधायक जदयू के नीतीश कुमार के साथ हो लें। अगर इस तरह की बाहर में चर्चाएं हैं और सूत्र इस बात पर मुहर लगा रहे हैं तो कहीं न कहीं इस बात की सच्चाई को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।

 

बेचैनी में लोजपाः

                                    हर बार सत्ता के साथ चिपके रहने वाले लोजपा नेता रामविलास पासवान जिसकी सत्ता उसकी दुहाई करते रहे हैं। लेकिन इससे थोड़ी अलग राय रखने वाले लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद चिराग पासवान अपनी बिसात बिछाने के लिए रिस्क लेने से बाज नहीं आ रहे हैं और वो भी अपने पिता के पुराने पैटर्न पर ही चलने लगे हैं। जनाब को ये जानना चाहिए कि वक्त के साथ नजाकत को भी समझनी होगी। कभी बिहार का मुख्यमंत्री बनने वाला बयान हो या फिर महागठबंधन के साथ जाने की अटकलों बाजार लगातार चर्चा में रहती है। वहीं मुंगेर के लोजपा जिलाध्यक्ष द्वारा एनडीए को अटूट बताने पर पार्टी से निकाल दिया जाना कहीं न कहीं चिराग की रणनीति को जरुर दर्शा रहा है।

‘हां मैं नीतीश कुमार हूं’

सूबे के मुखिया नीतीश कुमार का पोस्टर जारी करते हुए जदयू ने लिखा है – हां मैं नीतीश कुमार हूं आखिर इस तरह पोस्टर पर लिखकर क्या जताना चाहती है जदयू। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जदयू लगातार तैयारी में जुटी है। वर्चुअल मीटिंग के बाद अब ऑनलाइन पोस्टर भी जारी कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए जदयू ने ऑनलाइन चुनावी पोस्टर जारी कर दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर जनता तक पहुंचने के लिए इस बार नया स्लोगन गढ़ा गया है। पोस्टर में नीतीश कुमार की तस्वीर के साथ लिखा है कि विकास पथ पर चल पड़ा बिहार, मैं उसकी ही कतार में हूं, बिहार के विकास में, मैं  छोटा सा भागीदार हूं… हां मैं नीतीश कुमार हूं। इस पोस्टर के जारी करने का अंदाज पता चलता है कि कहीं न कहीं जदयू अपने साथी दलों और विरोधियों को भी अपनी उपस्थिति और ताकत का एहसास करा रही है।

                                                खैर, बात चाहे जो भी हो मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिहार की सत्ता में ज्यादा उछलने कूदने वाले औंधे मूंह गिर जाएंगे। क्योंकि बिहार की राजनीति में नीतीश मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। एनडीए को अपना नेता नीतीश को मानने में कोई परहेज नहीं है, जबकि महागठबंधन में तेजस्वी के नाम पर सहमति नहीं बन रही है। तभी तो मांझी अपनी नाव में सवार जदयू को डोरे डाल रहे हैं तो रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा कांग्रेस के साथ गलबहियां करने को तैयार हैं। वहीं पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का पटना में नीतीश सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकना और नीतीश खेमे से नाराज नेताओं का उनके साथ स्टेज शेयर किए जाने के बाद तीसरे गठबंधन का भी अंदाजा लगाया जा रहा है। अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आगे एनडीए को कहां महागठबंधन मात देने में सफल होती है, अब तो कुछ दिनों में ही पता चल जाएगा। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सधे लब्जों में बोलने वाले नीतीश कुमार की हर एक चाल समझने लायक होती है। नीतीश कुमार पक्ष और विपक्ष पर बयानाबाजी से काफी दूरी बनाकर रखते हैं। इसलिए नीतीश के सियासी गणित पर अगर कोई और चाल चलने की कोशिश करेंगी उनके सहयोगी तो उन्हें भी सतर्क रहना चाहिए कि बिहार में विकास के आधार पर नीतीश सरकार को दरकिनार नहीं किया जा सकता। नेताओं का लगातार विरोधी दलों को छोड़कर आना नीतीश के विश्वास को सत्ता के प्रति आश्वस्त कर रहा है तो विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती खड़ा कर रहा है।

 

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