रोज सबेरे उठकर हम ,शुद्ध पवन का स्पर्श पाकर;
प्रांगण जाया करते थे ,मंद गति से पैदल चलकर ;
मध्य प्रांगण में बैठकर हम , आत्म शांति का अनुभव कर ;
मन एकाग्रित करते थे ,पलक झपक कर ,हाथ जोड़ कर ;
हाथ फैलाकर , पैर मोड़कर , कमर झुका कर , गर्दन ऊपर कर ;
व्यायाम किया करते थे ,प्रांगण का चक्कर लगा , पंजो के बल चल कर ;
हिस्सा था ये सब , हमारी दिन चर्या का ;
अब न हो पाता ये सब हमसे ;
समय नहीं है | समय नहीं है |
स्नान कर , स्वयं वस्त्रो को धोना , सभी काम अपने से करना ,
अब तो बीती बात है ;
सज्जनता का आशीर्वाद लेना , प्रभु सम्मुख नत मस्तक कर;
तन ऊर्जान्वित करते थे ,सद्भाव से सात्विक अन्न ग्रहण कर;
घर से जाया करते थे ,मात -पिता और वृद्धजनों को नमन कर;
अब न हो पाता ये नमन , और स्वाबलंबन ;
समय नहीं है | समय नहीं है |
अवकाश में उद्यान भ्रमण कर , सुनते थे पंछी के मधुर स्वर ;
नदी किनारे समय बिता कर , चंचल जल के कलरव का श्रवण ;
खेल कूद कर प्रांगण में , मिलते थे सब सखा जन ;
कभी होता था गायन , तो कभी नाट्य का चित्रण ;
कोई बनता था राम ,लखन , तो कोई सुदामा और चक्रधर ;
कभी खेत की मेढ़ो पे चल , करते थे फसलों को निरीक्ष्रण;
कभी दर्शनीय स्थल जाकर , करते थे कला संस्कृति का दर्शन ;
अब न हो पता ये दर्शन , और ये भ्रमण ;
समय नहीं है | समय नहीं है|
समय नहीं है , तो गया किधर ;
पता नहीं है , पता नहीं है ;
सभी तीज त्योहारों का ; आनंद उठाया करते थे ;
हर निमत्रण का आदर होता , चाहे विवाह हो , या हो कोई संस्कार ;
बंधू और सम्बन्धी को सांत्वना देते थे , हर दुख और विपत्ति पर;
सहज सहयोग कर मानवता दर्शाते थे ,स्वयं उपस्थित होकर;
अब न हो पता ये मिलन , और ये सहयोग ;
समय नहीं है | समय नहीं है |
माँ कहती है आजा बेटा ; कब आएगा , कब आएगा ;
हम कहते हैं ,पता नहीं ;समय नहीं है , समय नहीं है ;
समय पे उठना , समय पे सोना ;
समय पे खाना , समय पे पीना ;
समय पे जाना , समय पे आना ;
समय पे कहना , समय पे सुनना ;
समय पे हसना , समय पे रोना ;
कब सीखेंगे ,कब जानेंगे ;
आजकल की भाग दौड़ में , कब और कैसे ये हो पायेगा ;
समय नहीं है | समय नहीं है |
अभिषेक कुमार