नोबल पुरस्कार और गन्दगी

हम घर से निकले तो देखा कि कुडे करकट के ढेर के पास दडबे नुमा मकान में रहने वाला फटेहाल चितवन जो हमेशा ही मायूस और डरावनी सी खामोसी को चेहरे पर ओढे रखता था। आज अपनी बेगम को बडे ही उत्साह के साथ बता रहा था कि बेगम तुम्हे मालूम है कि समय सब का आता है और जब समय आता है तो गंदगी के ढेर के भी दिन फिर जाते है और लोग बडे ही सहज भाव से बिना नाक मुंह सिकोडे उसे सिर पर उठा कर ले जाते है।

हमारे पर्यावरण व वन मंत्री माननीय जयराम रमेश जी ने कहा है कि हमें भी नोबल पुरस्कार जरूर मिल सकता है। यह हमारे और हमारी आने वाली पीढी के लिये गौरव की बात है कि हम भी नोबल पुरस्कार पा सकते है और यह सब हमारे इन नेताओं की बदौलत ही हो रहा है जिन्होने इस हमारी सबसे महत्व पूर्ण बात को समझा है और हमें नोबल पुरस्कार के नजदीक लाकर खडा किया है। अब तुम्हें मन छोटा करने की आव यकता नही है।

हमने चितवन के घर में कदम रखा तो वह झट से खडा हुआ और मूंज की टूटी खाट की ओर इ ाारा करते हुए हमें सम्मान के साथ ले जाकर उस पर बैठाया। अन्यथा हम जब भी उसके पास आये है, वह गरीबी बेरोजगारी, भूखमरी का ही रोना ही रोता रहा है। हमने चितवन से जानना चाहा कि उसकी खु ाी का राज क्या है? उसने खुश्क एवं पपडी आये होटों पर सूखी जीभ को फिराया फिर उन्हें फैलाया और पीला पन लिये दांतों को दिखाते हुए बोला चचा आपने अखवार नही पढा शायद। अब हम भी नोबल पुरस्कार प्राप्त करने की लाईन में है। और यह पुरस्कार लेने से हमें कोई नही रोक सकता।

हमने चितवन की ओर देखा जो नोबल पुरस्कार प्राप्त कर लेने के बारे में इस प्रकार कह रहा था जैसे नोबल पुरस्कार गली कुचडों में ठोकरे खा खा कर पिचकाये हुए पुराने जंग खाये कनस्तर की तरह उसके सामने ही पडा हो ओर उसे ही उठा कर लेना हो। हमने चितवन से पुन: सारी बात तफसील से बताने को कहा। चितवन ने समाचार पत्र का एक फटा सा टुकडा हमारे सामने रखा और सारी स्थिति से अवगत कराया। समाचार पढ कर हमने अपने माथे पर हाथ मारा तो चितवन बोला चचा इस खु ाी के मौके पर आप मातम की ओर क्यों बढ रहे है। हमने चितवन की ओर देखा उसके फटे चिथडेनुमा कपडों को देखा, उसकी पत्नि जो दिवार का सहारा लिये पुराने फटे कपडों के बेतरतीब पडे गठ्ठर की तरह बैठी थी। उसके चेहरे की और देखा। यह भी देख कि चितवन के शरीर पर ही नही उसके घर में भी गन्दगी का ही सम्राज्य था।

इन सब बातों को लेकर मिलने वाले नोबल पुरस्कार पर चितवन का ही हक बनता है। यह बात उसकी जायज है। हमने पुन: चितवन के चेहरे की ओर देखा जो एक निरीह प्राणी की तरह लगातार हमें ताके जा रहा था। उसका चेहरा देख कर हमें बहुत दया आई। हमने चितवन से कहा चितवन तुम्हारी बात सही है कि हमें और किसी काम में नोबल पुरस्कार मिले या नही पर गन्दगी और कचरे के मामले में तो हमारा पहला हक बनता है। क्योंकि आजादी के बाद हमारे इन नेताओं ने हमें गन्दगी और कचरे के सिवा दिया ही क्या है।

चितवन रामायण में कहा गया कि जाकि रही भावना जैसी प्रभू मूरत देखी तिन तैसी। इन नेताओं कि भावना ही गन्दगी और कचरे के समान है ये चुनाव जीतने के लिये गन्दे हथकण्डे अपनाते है। इनका साम्राज्य बना रहे इसलिये ये गन्दें लोगों को सहेज कर रखते है। इसलिये ये गन्दगी और कचरे से ही नोबल पुरस्कार दिलाने की बात कर सकते है। जब इनकी सोच इससे आगे नही है तो जनता इससे आगे किस प्रकार सोच सकती है। क्योंकि हमारे यहां गुदडी के लालों को सहेजने की परम्परा नही है। हमारे यहां परम्परा फटेपुराने गुदडों को इक्टठा करने की है जो अब तक होता आया है।

चितवन इन नेताओं के साठ साला शासन में हमारे देश में जो कार्य हुआ है। विश्व स्तर पर उसी की चर्चा होगी। साठ साला शासन में इन नेताओं ने जो कुछ किया है उसी का परिणाम है कि आज हम चारों ओर गन्दगी और कचरे के ढेर पर है। हमारे देश के नेताओं को साधूवाद देना चाहिये कि गन्दगी और कचरे के ढेर पर आम आदमी को खडा करने के उपरान्त भी वे नोबल पुरस्कार दिलाने के सपने दिखाये जा रहे है। क्योंकि अब तक ये भूख व बेरोजगारी मिटाने के सपने दिखाते आ रहे थे। वह मिटि नही बल्कि ओर बढी और उसने भूखों व बेरोजगारों की संख्या को लाखों से करोडों में बढाया। इस संख्या को अब हजारों में नही लाया जा सकता इसलिये जिधर बहुमत हो उधर ही तो चलना चाहिये, यह हमारे नेताओं को अच्छी तरह आता है। फिर जब हमारे यहां की झुग्गी झोपडियों और उनमें रहने वाले गन्दें, मैले कुचेले बच्चों पर बनी फिल्म स्लमडोग मिलेनियर विश्व के पर्दे पर धूम मचा कर पुरस्कार प्राप्त कर सकती है तो हम गन्दगी को ओढने बिछाने व पहनने वाले नोबल पुरस्कार क्यों नही प्राप्त कर सकता।

-रामस्वरूप रावतसरे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here