पिछले दिनों केंद्र सरकार ने कॉमनवेल्थ गेम्स में घोटाले के आरोपी सुरेश कलमाड़ी और २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आरोपी ए राजा और कनिमोझी को संसदीय समिति का सदस्य बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की थी भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ी जा रही लड़ाई से उसका कोई सरोकार नहीं है| किन्तु अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने नैतिकता दिखाते हुए साफ़ कर दिया है कि जब तक कलमाड़ी अपने ऊपर लगे आरोपों से बरी नहीं हो जाते, वे समिति में किसी भी पद हेतु चुनाव नहीं लड़ सकते| गौरतलब है कि हाल ही में कलमाड़ी ने ऐसे संकेत दिए थे कि वे अगले माह होने जा रहे ओलंपिक संघ के चुनाव लड़ सकते हैं| अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति का यह निर्णय कलमाड़ी के साथ ही सरकार के लिए करारा तमाचा है| एक पूर्व केंद्रीय मंत्री जिस पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों, एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संस्था का चुनाव कैसे लड़ सकता है? दरअसल यह हमारी राजनीतिक भीरुता और नैतिकता के पतन की पराकाष्ठ है| जिस सीबीआई ने कलमाड़ी को कॉमनवेल्थ गेम्स में घोटाले के चलते गिरफ्तार किया था, राजनीतिक दबाव के चलते उसी ने उन्हें दोष मुक्त भी कर दिया| वो तो भला हो न्यायालय का जिसने अभी तक कलमाड़ी पर शिकंजा कसा हुआ है वरना जिस बेशर्मी से कलमाड़ी ओलंपिक में जाने के लिए उतारू थे उसी बेशर्मी से वे ओलंपिक संघ का चुनाव भी लड़ लेते| उन्हें रोकता भी कौन? हाँ दिल्ली उच्च न्यायालय ने अवश्य कलमाड़ी के ओलंपिक चुनाव में लड़ने बाबत टिप्पड़ी की थी कि समिति के चुनाव आचार संहिता के दायरे में ही होना चाहिए किन्तु जब सरकार ही अपने सांसद को दोषमुक्त होने से पूर्व ही संसदीय समिति का सदस्य बना रही है तो उसकी हिम्मत तो बढ़नी ही है| फिर सरकार ने भी ओलंपिक संघ को कलमाड़ी के बारे में अनभिज्ञ रखा ताकि वे अपनी मनमानी कर सकें| यह साबित करता है कि सरकार शुरुआत से ही कलमाड़ी को निर्दोष मानकर बचाने में लगी हुई है| इसका तो यही अभिप्राय हुआ कि सरकार भ्रष्टाचारियों को आश्रय दे रही है ताकि मामले को तूल न दिया जाए| आखिर सरकार भ्रष्टाचार पर दोहरा रवैया क्यों अख्तियार किए हुए है?
ऐसी भी खबरें हैं कि कलमाड़ी की ओलंपिक समिति में चुनाव लड़ने की मंशा पर कांग्रेस के ही एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और कद्दावर नेता ने कुठाराघात किया है| उन्होंने ही कलमाड़ी के भ्रष्टाचार से जुड़ा समस्त काला-चिट्ठा ओलंपिक समिति को मुहैया करवाया है और वे स्वयं समिति का चुनाव लड़ने के इच्छुक बताये जाते हैं| हालांकि दामन तो उनका भी दागदार है पर उसका कारण अलग है| पर सवाल यह है कि क्या सरकार ओलंपिक समिति की भांति भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कड़ा रुख नहीं अपना सकती? आखिर अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपनी छवि दागदार करवाकर सरकार को क्या प्राप्त हो रहा है? हाल के वर्षों में वैसे भी भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध अलग-अलग मोर्चों पर लड़ाई छिड़ी हुई है और अब तो जनता की भागीदारी भी इसमें दृष्टिगत होने लगी है| केजरीवाल की नई प्रस्तावित पार्टी इसी भ्रष्टाचार की उपज है| केंद्र की संप्रग सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनों के ही निशाने पर है| तब कलमाड़ी, ए राजा और कनिमोझी को लेकर उसका लचीला रुख संदेह पैदा करता है कि क्या यह वही सरकार है जो खुद को भ्रष्टाचार के विरुद्ध बताती आई है| अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर अपनी नीतियों के क्रियान्वयन में लगी सरकार को अब तो सबक लेना चाहिए|