अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

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अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है
जब दीवारों को चूने से पुतवाते थे
चूने को बड़े ड्रमों में घुलवाते थे
उसमे थोडा सा नील डलवाते थे
सीडी पड़ोसी से मांग कर लाते थे
अगर पुताई वाला नहीं आता तो
खुद ही सीडी पर चढ़ जाते थे 
अब दिवाली के पुराने दिन या आते है

पहले मकान कच्चे होते थे
पर दीवारे पक्की होती थी
अब मकान पक्के होते है
पर दिवारे कच्ची होती है
पहले रिश्ते पक्के होते थे
अब रिश्ते जल्दी ढह जाते है
दिवाली के पुराने दिन याद आते है

पहले मकान हर साल पुतवाते थे
महीनो साफ सफाई में लग जाते थे
अब मकान को पेंटर से पेंट कराते है
वह भी पांच-छ:साल में कराते है
अब पेंट में जितना खर्च आते है
उतने में पहले मकान बन जाते थे
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

पहले छतो पर झालर लटकाते थे
रंग-बिरंगे छोटे बल्ब लगाते थे
अब चाइना मेड झालर लगाते है
वो जल्दी ही फूस हो जाते है
पहले बाजार से कंडील लाते थे
उसको मुख्य दरवाजे पर लगाते थे
अब ये कंडील कम मिल पाते है
अब दिवाली केपुराने दिन आते है

पहले पटाखे खूब छुडाते थे
फुलझड़ियाँ भी खूब लाते थे
दूर थोक की दूकान पर जाते थे
मुर्गा ब्रांड पटाखे खूब लाते थे
अब तो चाइना मेड पटाखे आते है
वो तो हमारे व्यापर में आग लगाते है
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते हे

पहले धनतेरस को बाज़ार जाते थे
कटोरदान या कुछ बर्तन खरीद लाते थे
पहले मिट्टी के गणेश लक्ष्मी लाते थे
वही दिवाली के दिन पूजे जाते थे
अब मेटल के गणेश लक्ष्मी लाते है
अब दिवाली के पुराने दिन आते है

पहले छोटी बड़ी दिवाली मनाते थे
खुशियों के मिट्टी के दीये जलाते थे
उनको मुडेरो पर जाकर सजाते थे
चार पांच दिन के बाद उठकर लाते थे
अब तो केवल खाना पूर्ति कर पाते है
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

आरे के रस्तोगी  

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जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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