आजकल ज़िंदगी का भरोसा नहीं….

life1इक़बाल हिंदुस्तानी

उसको शिकवा है उसको समझा नहीं,

उसके बारे में मैंने तो सोचा नहीं।

 

क़र्ज़ के वास्ते देश भी बेच दो,

तुमने तारीख़ से कुछ भी सीखा नहीं।

 

आईना तोड़कर आप धोखे में हैं,

अपने चेहरे के दाग़ों को देखा नहीं।

 

ज़िंदगी तल्खि़यों से बचा लीजिये,

आजकल ज़िंदगी का भरोसा नहीं।

 

सच्चाइयों का छलनी बदन देख रहा हूैं…..

 

जलता हुआ मैं अपना वतन देख रहा हूं,

माली के हाथ लुटता चमन देख रहा हूं।

 

फ़ौलादी सीना चाहिये सच बोलने को आज,

सच्चाइयों का छलनी बदन देख रहा हूं।

 

उसने प्यार भरके नज़र मुझपे डाल दी,

दिनभर की दूर होती थकन देख रहा हूं।

 

जब से किसी ग़रीब के मैं काम आ रहा,

कम होती अपने दिल की चुभन देख रहा हूं।।

 

 

नोट-शिकवा-शिकायत,तारीख़-इतिहास,तल्ख़ी-कड़वाहट,फ़ौलादी-मज़बूत।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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