भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपनी प्रथम स्वतंत्र भारत यात्रा पर आकर अपने को इस्लाम से सशक्तरूप से जुड़ें रहने की मनोवृति का परिचय दिया है। एक अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यक्रम में शुकवार (01.12.2017) को नई दिल्ली में उनके संबोधन व साक्षात्कार में कुछ ऐसा आज के समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला। श्रीमान ओबामा ने एक बार पुनः हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति “वसुधैव कुटुम्बकम” जो पूर्णतः धार्मिक सहिष्णुता व मानवीय मूल्यों पर आधारित है पर बड़े सभ्य ढंग से प्रहार किया हैं।इस अवसर पर ओबामा जी ने अपने संबोधन में स्पष्ट कहा है कि “भारत की मुसलमान आबादी संगठित हैं और स्वयं को भारतीय मानती हैं , इसलिए भारत को अपनी मुस्लिम आबादी को संजोना चाहिये और उनका बड़े दुलार से पालन पोषण करना चाहिये”। उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार करण थापर के साथ हो रहें साक्षात्कार में एक प्रश्न के उत्तर में यह भी जोड़ा कि भारत में असंख्य मुस्लिम आबादी हैं , जो अधिक सफल , एकजुट हैं और स्वयं को भारतीय मानती हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ अन्य देशों में ऐसा नही हैं”।
इससे यह स्पष्ट होता है कि एक ( तथाकथित ) मुसलमान के मन में “सर्व धर्म समभाव” व “सर्वे भवंतु सुखिनः” का विचार आता ही नहीं है , चाहे वह अमरीका जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रमुख ही क्यों न रह चुका हो। बराक हुसैन ओबामा के ऐसे विचारों से हमारे देश में साम्प्रदायिकता व वैमनस्यता का भाव स्वाभाविक रुप से बढ सकता है। क्या ओबामा जी को यह ध्यान नही कि परिस्थितिवश आज भारत व अमेरिका सहित विश्व के अधिकांश देश भी कट्टरपंथी मुस्लिम आतंकवादियों से जूझ रहे हैं ? धर्म के आधार पर एक दर्दनाक विभाजन झेल चुके हमारे देश में पुनः अल्पसंख्यक मुसलमानों को बिना कारण भयभीत करके व उनको भड़काने के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों से कब तक हमको अवनति के मार्ग पर ढकेलने का कुप्रयास जारी रहेगा ? ऐसे में क्या हमको अपने राष्ट्र की बर्बादी के नारे लगाने वालों और पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों के प्रति और अधिक सावधान नही रहना होगा ?
सम्भवतः ओबामा जी हमारे देश में अरबो-खरबों रुपयों के बजट से अल्पसंख्यक विशेषरुप से मुसलमानों की सहायतार्थ प्रतिवर्ष चलायी जा रही भारी-भरकम योजनाओं से अनभिज्ञ होंगे अन्यथा वे ऐसा न कहते कि “उनका ( मुसलमानों ) बड़े दुलार से पालन पोषण” करना चाहिये ।उनको यह ज्ञान भी होना चाहिए कि भारत में मुसलमानों को बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार प्राप्त हैं। जबकि विश्व के किसी भी अन्य देश यहां तक कि मुस्लिम देशों में भी मुसलमानों को इतना नही दुलारा जाता जितना कि भारत में इनको सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती हैं।
वैसे भी यह विचित्र ही है कि साम्प्रदायिक सौहार्द, धार्मिक सहिष्णुता व आपसी भाईचारे पर केवल हम राष्ट्रवादियों को ही उपदेश देने की एक गलत परम्परा चली आ रही है। सामान्यत लोगों की “धर्मनिरपेक्ष मानसिकता”, महात्मा कहे जाने वाले गांधीजी के समान , केवल हिंदुओं को ही अपना परामर्श देने के दुराग्रह से बाहर नहीं निकलना चाहती, क्यों ? क्योंकि हिन्दू प्रायः सहनशील हैं ,उदार हैं , सहिष्णु हैं , विवादों व संघर्षो से बचते हैं और विस्फोट व विनाशकारी कार्यो से दूर रहते हैं। हमारे इन गुणों /अवगुणों के कुछ ऐसे ही कारणों से उत्साहित होकर ओबामा जैसी मानसिकता वाले प्रभावशाली लोग हमको ही कटघरे में खड़े करने का दुःसाहस करते हैं। आपको स्मरण होगा कि अमरीका के राष्ट्रपति के रुप मे अपनी 2015 की भारत यात्रा के अंतिम दिन ओबामा जी ने हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 की चर्चा करके हमें धार्मिक सहिष्णुता का पाठ याद कराने का ही प्रयास किया था। परंतु उसी संविधान के सन्दर्भ से “समान नागरिक संहिता” के अनच्छेद 44 व कश्मीर के लिए “अनुच्छेद 370” पर कोई चर्चा न करके उनके ऊपर थोपी गई छदम धार्मिक असहिष्णु मानसिकता के ही दर्शन हुये थे।
इसलिए राष्ट्र का स्वस्थ निर्माण केवल सत्यमेव जयते व शुद्ध धर्मनिरपेक्षता के ही आधार पर होना चाहिये न कि गांधीगिरी व मुन्नाभाई के भ्रमित करने वाले क्रिया – कलापों पर । हमारी वर्तमान सरकार का भी यही मत है कि “राष्ट्र प्रथम” की मान्यता से ही “सबका साथ सबका विकास” संभव होगा । अतः साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने के लिए इसप्रकार के अतिविशिष्ट व्यक्तियों के वक्तव्यों को सरकार को रोकना चाहिए एवं मीडिया को भी ऐसे संवेदनशील विषयों को प्रसारित करने से बचना चाहिए।साथ ही यह सुनिश्चित होना चाहिये कि किसी भी विदेशी को हमारी आंतरिक राष्ट्रीय व सामाजिक व्यवस्थाओं पर हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नही होना चाहिये।
विनोद कुमार सर्वोदय