जगदीश्वर चतुर्वेदी
भारत ने 50 ओवरों वाला विश्वकप क्रिकेट टूर्नामेंट अपने नाम कर लिया है। इस टूर्नामेंट का कई मायनों में महत्व है। यह टूर्नामेंट क्रिकेट के साथ महानतम सामाजिक -राजनीतिक और आर्थिक भूमिकाओं के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा। यह टूर्नामेंट मंदी के दौर में हो रहा था और इसने भारत के उपभोक्ता बाजार को चंगा करने और मीडिया उद्योग को मस्त बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है। बाजार को आर्थिकमंदी के चंगुल से बाहर निकालने में यह एक महत्वपूर्ण हथियार साबित हुआ है।
भारत में क्रिकेट खेल नहीं जुनून है। ऐसा जुनून जिसमें सारा देश अपनी सुधबुध खो देता है। क्रिकेट अकेला बड़ा खेल है जिसने भारत के नागरिकों को मनोरंजन का अधिकार दिलाया है। भारत में एक जमाने में लोग मनोरंजन करते थे लेकिन टीवी आने ,मैचों के प्रसारण,विभिन्न निजी चैनलों के प्रसारण और खेल के अहर्निश प्रसारण ने मनोरंजन को अधिकार बना दिया। आज मनोरंजन मानवाधिकारों का हिस्सा है। यह चैनलों, व्यवसायी घरानों,खिलाडियों ,कलाकारों आदि की आय का भी बड़ा जरिया है।
भारत में क्रिकेट का पहलीबार ऐसा टूर्नामेंट हुआ है जिसमें पाक ने भाग लिया हो और शिवसेना चुप रही हो। पाक के आने पर वे अमूमन हंगामा करते हैं। मीडियातंत्र की इसबार प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने भारत-पाक मैच के मौके पर राष्ट्रवादी उन्माद को नहीं उछाला। समूची कमेंट्री,न्यूज और लिखित रिपोर्टिग राष्ट्रोन्माद से एकदम मुक्त थी। यहां तक कि मोहाली मैच के अवसर पर खेल का उन्माद था राष्ट्रोन्माद नहीं था। इस परिप्रेक्ष्य में भारत में क्रिकेट ने राष्ट्रवाद का अंत कर दिया है। यह संयोग की बात है कि 26/11 मुम्बई आतंकी हमले से आरंभ हुआ पाकविरोधी राष्ट्रोन्मादी अभियान फाइनल के साथ मुम्बई में ही खत्म हुआ। भारत-पाक संबंध सामान्य बनने की दिशा पकड़ चुके हैं और पड़ोसी देशों और आम हिन्दुस्तानियों में ऐसा शानदार विरेचन या कैथार्सिस पहले कभी नहीं देखा गया। यह राष्ट्रवाद का रोमांचक अंत है।
मंदी के कारण बाजार पस्ती थी और मीडिया के आर्थिक हालात भी ज्यादा बेहतर नहीं थे ऐसी अवस्था में विज्ञापनों की बाढ़ और प्रचार ने बाजार में पूंजी को व्यापक रूप में प्रसारित किया है। भारत सरकार ने क्रिकेट प्रेम दिखाते हुए आईसीसी को 45 करोड़ रूपये की आयकर में छूट दी है। विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट से आईसीसी को 1476 करोड़ रूपये की आमदनी हुई और उसने 571 करोड़ रूपये खर्च किए।
जो मीडिया भ्रष्टाचार के महाख्यान में आकंठ डूबा था उसे क्रिकेट ने आनंद के पैराडाइम में ले जाकर बिठाया है। उल्लेखनीय है 2जी स्पैक्ट्रम और भ्रष्टाचार के समस्त मीडिया प्रचार को उसने कब्र में सुला दिया है। उल्लेखनीय है कि जब मैच पीक पर था तब 2जी स्पैक्ट्रम की चार्जशीट दाखिल की गयी और इस खबर पर टीवी दर्शकों की नजर नहीं थी ,सबकी नजर खेल पर थी। यह भ्रष्टाचार के प्रचार की मनमोहनी क्रिएटिव सफाई है।
दूसरी ओर क्रिकेट ने लोकतंत्र को ठप्प कर दिया। राजनीति के महानायकों को खेल के महानायकों के सामने नतमस्तक होकर बैठे देखना,विधानसभा चुनावों में राजनीति से ज्यादा क्रिकेट के जुनून का होना इस बात संकेत है कि क्रिकेट का खेल लोकतंत्र के राजनीतिक खेल से भी बड़ा है। देश की आम जनता के मन को स्पर्श करने,रोमांचित करने और एकजुट करने में क्रिकेट पुख्ता लोकतांत्रिक सीमेंट है। यही वजह है कि मनमोहन सिंह से लेकर ममता तक,सोनिया से लेकर राहुल गांधी तक क्रिकेट का आनंद लेते नजर आए। इससे यह भी संदेश निकलता है कि क्रिकेट लोकतंत्र है,मित्रता है,मनोरंजन है और सबसे ऊपर आनंद है। एक ऐसा आंनंद जिसका गरीब-अमीर सभी एक साथ मजा लेते हैं और एक ही जुनून में डूबे रहते हैं। मुकेश अम्बानी से लेकर मनमोहन सिंह,घासीराम से लेकर अभिजन बुद्धिजीवियों तक सबमें क्रिकेट के प्रति जुनूनी भाव भारत की महान उपलब्धि है।
क्रिकेट का मतलब दौलत कमाना नहीं है। क्रिकेट खेल है व्यापार नहीं है। एक ऐसा खेल जिसे भारत के खिलाडियों ने अपनी प्रतिभा और लगन से साहबों के खेल की बजाय आम जनता का खेल बनाया है। ये जेंटिलमैन गेम था,लेकिन भारत के खिलाडियों ने इस जनता का खेल बनाया दिया। गंवार-अशिक्षित जनता का सबसे प्रिय खेल बना दिया। भारत में यह अमीरों और अभिजनों का खेल नहीं है।यह आम जनता का सबसे प्रिय खेल है। यह बाजार और बाजारवाद का खेल नहीं है। यह मुनाफे का खेल नहीं है। हमने आजतक किसी कारपोरेट घराने के मुनाफों में आए उछाल पर कभी जनता को जुनूनी भाव में नहीं देखा। इस अर्थ में देखें तो भारत में क्रिकेट बाजारवाद का नहीं जनता के विरेचन का हिस्सा है। इसमें बाजारवाद गौण है। लोकतंत्र,मित्रता और मनोरंजन प्रमुख हैं।
हमें क्रिकेट को बाजारवाद का औजार देखने की मूर्खताओं से बचना चाहिए। बल्कि क्रिकेट तो बाजार को मंदी से बाहर लाने का अस्त्र बना है।
भारत में क्रिकेट की अवस्था इश्क जैसी है,इस पर गालिब ने लिखा है- “इश्क से तबीयत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया। दर्द की दवा पाई दर्दे बेदवा पाया।”
गालिब को मैं क्रिकेट के लिए बहुत प्रासंगिक मानता हूँ थोड़े फेर के साथ उनका शेर है- “तुमको हम दिखाएँगे क्रिकेट ने क्या किया। फ़ुर्सत कशाकशे-ग़मे-पिन्हाँ से गर मिले।”यानी हम अपनी व्यथा को छिपाए रखना चाहते हैं परन्तु वह सब पर प्रकट होने के लिए व्याकुल है। इस खींचातानी से फ़ुर्सत मिल जाए तब हमारा क्रिकेट (प्रेम)में पागलपन देखना। क्रिकेट के साथ भारत की जनता का संबंध वैसे ही है जैसे इश्क के प्रति प्रेमीजनों का होता है। भारत की जनता इश्क की हद तक प्यार करती है और उसे आप किसी भी हालत में इश्क करने से रोक नहीं सकते। यह भी कह सकते हैं कि क्रिकेट भारत की जनता की आदत का हिस्सा है। और दुष्यन्त के शब्दों में कहें- “एक आदत सी हो गई है तू। और आदत कभी नहीं जाती.”
ji haan kyo nahi sab kuch bhoolkar bas criket dekhte raho. yahi hamare raja chahte hai aur ham sab unke changul में hai. mahaan sachin ko bharat ratna hi nahi nobal puraskar bhi dena chahiye kyonki is mahaan khiladi ne desh ke liye apna sab kuch daav par laga diya apna sab nyochavar kar diya. puraskaro, vigyapno aur khelne se hui apni sari kamai desh ke गरीबो में बाँट di. में to kahta hoon ki sarkar ko udyog dhandhe band karke jagah jagah criket turnament hi karate rahna chaiye.