राष्ट्रवादी शक्तियों के विरोध में विपक्ष कहाँ तक जा सकता है

— डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
पिछले दिनों लंदन में किसी सैयद शुजा ने लंदन की एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि हिन्दुस्तान में मतदान के लिए प्रयुक्त होने वाली ईवीएम मशीनें को मनचाहे मतदान के लिए प्रयोग किया जा सकता है और 2014 के संसदीय चुनावों में ऐसा ही हुआ था । यह सैयद शुजा अमेरिका में रहने वाला है और भारत के संसदीय चुनावों को लांछित करने के लिए प्रेस कान्फ्रेंस हेतु उसने लंदन का चुनाव किया । इस कान्फ्रेंस को लंदन के स्थानीय मीडिया ने तो बहुत ज़्यादा महत्व नहीं दिया लेकिन इधर अपने खाँटी देसी मीडिया की साँस फूल गई ।  कुछ साल पहले जब ग़ुलाम नबी फ़ाई जम्मू कश्मीर को लेकर अमेरिका में विचार गोष्ठियों का आयोजन करता था और लगभग कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का पक्ष ही प्रस्तुत करता था तो अमेरिकी मीडिया तो उसको उतना नहीं छापता था लेकिन भारतीय मीडिया उन विचारगोष्ठियों की महत्ता से अभिभूत होकर अपनी साँस फुला लेता था । अब वह ग़ुलाम नबी फ़ाई जेल में है क्योंकि बाद में पता चला की वह विदेशी शक्तियों का दलाल था । लेकिन भारतीय मीडिया के लिए उसके शब्द इसलिए मायने रखते थे क्योंकि कश्मीर को लेकर वह सारा बकबास अमेरिका में बैठ कर  करता था । यही स्थिति सैयद शुजा वाले मामले में हो रही है । सैयद लंदन से बोल रहा है तो उसकी बात का वज़न  हमारे मीडिया के लिए इतना बढ़ गया कि उसे ढोते हुए वह हकलान हो रहा है । कभी महाकवि नागार्जुन ने कहा था कि हम भारतीय इंग्लैंड की महारानी की पालकी अपने कंधों पर उठाने के लिए तैयार हैं क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री जवाहर लाल की हम भारतीयों को यही आज्ञा हुई है । उधर सैयद शुजा लंदन में सक्रिय हुआ इधर सोनिया गान्धी के बेटे से लेकर ममता बनर्जी बरास्ता अन्य विपक्षी दलों के नेता सैयद शुजा की पालकी ढोने में मशगूल हो गए । आम भारतीय के लिए यह मंनोरंजन से ज़्यादा महत्व नहीं रखता था लेकिन फिर भी यह रहस्य जानने की जिज्ञासा तो बनी हुई ही थी कि लंदन में बैठ कर भारत के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए आख़िर यह सारा एपिसोड कौन चला रहा है ?                             इसके बाद चौंकाने वाला ख़ुलासा हुआ । पता चला जाने माने वकील और सोनिया गान्धी की अदृश्य किचन कैबिनेट के सबसे प्रभावी सदस्य कपिल सिब्बल भी उस समय इंग्लैंड में ही थे । ज़ाहिर था इस नई जानकारी से महागठबन्धन के शेयर होल्डर को छोड़ कर बाक़ी सभी राष्ट्रवादी शक्तियों का हतप्रभ रह जाना स्वभाविक ही था । ऐसा हुआ भी । तब कपिल सिब्बल की ओर से एक स्पष्टीकरण आया । उनसे यह स्पष्टीकरण किसी ने माँगा नहीं था । यह स्पष्टीकरण उन्होंने स्वयं ही दिया । ऐसा करने की उन्हें जरुरत क्यों पड़ी , यह तो सिब्बल ही बेहतर जानते होंगे । इस स्पष्टीकरण में उन्होंने कहा कि वे उस समय इंग्लैंड में अपने किसी व्यक्तिगत काम के लिए गए थे ,उनका सैयद शुजा के मामले से कुछ लेना देना नहीं है । लेकिन कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर इसका खंडन नहीं किया कि सैयद शुजा से यह नाटक करवाने में उसका कोई हाथ नहीं है । यह भी चर्चा है कि ग़ुलाम नबी फ़ाई की तरह सैयद शुजा भी पाकिस्तान की आई एस आई का दलाल है । लेकिन प्रश्न है कि पाकिस्तान के इन दलालों के साथ भारतीयों के नाम कैसे और कहाँ से जुड़ते हैं ? इसके पीछे रहस्य क्या है ? कपिल सिब्बल की ही बात की जाए , वे हर उस जगह मौजूद हो सकते हैं जहाँ की हवा भी रहस्यमयी लगती है । कुछ महीने पहले कपिल सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि अयोध्या  में राम मंदिर के मामले की सुनवाई 2019 के चुनावों के बाद की जाए । उस समय लगता था कि यह सोनिया कांग्रेस की या कपिल सिब्बल की राजनैतिक लाभ हानि को देखते हुए अपनी इच्छा हो सकती है लेकिन उच्चतम न्यायालय भला इतने महत्वपूर्ण मामले को टाल कैसे सकता है ? उस समय न्यायालय ने ऐसा संकेत दिया भी । लेकिन कपिल सिब्बल और सोनिया कांग्रेस को दाद देनी पड़ेगी कि सुनवाई सचमुच टलती रही और अब लगता है कि मामला चुनावों के बाद तक जा सकता है । कपिल सिब्बल और सोनिया कांग्रेस यह सब कुछ कैसे कर पाते हैं ? राम मंदिर के निर्माण कार्य में पेचीदगियाँ पैदा करके वे हिन्दुस्तान की फ़िज़ा क्यों ख़राब करना चाहते हैं ?                       इससे पहले भी सोनिया कांग्रेस एक बार पाकिस्तान के चक्कर में फँस चुकी है । उसके वरिष्ठ सांसद और सोनिया परिवार के खासुलखास मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर वहां के इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान से माँग कर चुके हैं कि वह हिन्दुस्तान से नरेन्द्र मोदी को हटाए तो दोनों देशों के सम्बंध सुधर सकते हैं । जब चीन के साथ भारत का डोकलाम विवाद शुरु हुआ था , उस समय भी सोनिया गान्धी के सुपुत्र राहुल गान्धी दिल्ली में चीन के दूतावास में चीन     के पक्ष  की जानकारी लेने के लिए स्वयं चोरी छिपे गए थे । उन्हें भारत सार्वजनिक पक्ष में विश्वास नहीं था । इतना ही नहीं , जब उनके इस कृत्य का भांडाफोड हो गया तो पहले तो वे चीनी दूतावास में जाने की घटना से ही इन्कार करते रहे लेकिन बाद में उन्हें अपने इस कृत्य को स्वीकार ही करना पड़ा क्योंकि दूतावास ने ख़ुद ही कह दिया कि राहुल वहाँ आए थे । परन्तु राहुल गान्धी के चीनी दूतावास में जाने के रहस्य का पर्दाफ़ाश  हो जाने का सोनिया गान्धी के  परिवार या उनकी कांग्रेस को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा । क्योंकि उनका मक़सद किसी भी तरीक़े से राष्ट्रवादी सरकार को घेरना है , चाहे उसके लिए किसी की भी सहायता क्यों न लेनी पड़े । भारत में राष्ट्रवादी सरकार को बनने ही न देना , यदि बन जाए तो उसकी नैतिक स्थापना को ही प्रश्नित  करने के इस  पूरे अभियान में सोनिया कांग्रेस तो मात्र एक पुर्ज़ा है । इस मशीन के और भी कई यन्त्र एक साथ सक्रिय हैं ।                       इस अभियान का पहला हिस्सा था , किसी भी तरह भारत में राष्ट्रवादी सरकार को बनने ही न देना । 2013 के आसपास ही यह स्पष्ट होने लगा था कि भ्रष्टाचार के घोटालों में आकंठ डूब चुकी सोनिया कांग्रेस से देश के लोगों का विश्वास उठता जा रहा है । सोनिया कॉंग्रेस की सारी चतुराई राबर्ट बाड्रा का व्यवसाय बढ़ाने में ही लग रही है । देश की राजनीति में एक शून्य उत्पन्न होता जा रहा था । तब यह लगने लगा था कि इस शून्य को , भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश राष्ट्रवादी शक्तियाँ भर सकती हैं । ज़ाहिर है कुछ देशी विदेशी रणनीतिकारों को लगा होगा कि किसी भी स्थिति में भारत की बागडोर देश की राष्ट्रवादी ताक़तों के हाथ में नहीं आनी चाहिए । इसी रणनीति में से आम आदमी पार्टी , जादूगर की छड़ी को घुमाते हुए , देश की राजनीति में हाज़िर की गई । एक मेंढक में हवा भर कर उसे बैल दिखाने की जादूगरी की गई । मीडिया की मदद से यह वातावरण बनाया गया कि सोनिया कांग्रेस से निराश भारत की जनता अब आशा के लिए आम आदमी पार्टी की ओर टकटकी लगाए देख रही है । केजरीवाल को वाराणसी में नरेन्द्र मोदी के मुक़ाबले उतार कर इस भ्रम को विश्वसनीय बनाने का प्रयास किया गया । लेकिन जल्दी ही भारतीयों को पता चल गया कि यह सारी रणनीति देश में राष्ट्रवादी शक्तियों के अभियान को रोकने के लिए ही थी । इसलिए आम आदमी पार्टी अपनी जड़ें नहीं जमा सकी और राष्ट्रवादी शक्तियों के विजय अभियान को रोका नहीं जा सका ।               ज़ाहिर है राष्ट्रवादी शक्तियों को सत्ता केन्द्र में देखकर उन शक्तियों में घबराहट मचती जो अभी तक केन्द्र में नियंत्रण कर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत के विसंस्कृतिकरण अभियान में लगी हुई थी । इसलिए नरेन्द्र मोदी सरकार को अपदस्थ करने के लिए इस टोले ने तरह तरह के हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए । हद तो तब हो गई जब यह टोले दिल्ली में टुकड़े गैंग के साथ भी जाकर मिल गया । यह गैंग सार्वजनिक रूप से नारे लगा रहा था , भारत तेरे टुकड़े होंगे हज़ार – इंशा अल्लाह , इंशा अल्लाह । राष्ट्रवादी शक्तियों को अपदस्थ करने  के लिए , टुकड़े टुकड़े गैंग और उसके राजनैतिक साथी पहले तो हिन्दुस्तान के अन्दर ही अपनी गतिविधियाँ चला रहे थे लेकिन अब जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं पैसे पैसे घबराहट में उनके विदेशी संगी साथी भी अपने बुरक़े उतार कर मैदान में निकल आए हैं । 
हरियाणा उपचुनाव का परिणाम—  जब से मध्य प्रदेश राजस्थान में सोनिया कांग्रेस के पैरों के नीचे बटेर आ गया है तब से ही उसे शिकारी होने का भ्रम हो गया है । जनता में यह भ्रम बना रहे इसके लिए ज़रूरी था कि हरियाणा में भी यह घटना किसी तरह दोहराई जाती । इसी लिए सारे हरियाणा में तांकझांक करने के बाद हरियाणा के जींद में हुए उपचुनाव के लिए राहुल गान्धी को पार्टी का प्रत्याशी बनाने के लिए रणदीप सिंह सुरजेवाला से बड़ा पहलवान कोई नज़र नहीं आया । वैसे भी जींद जाट बहुल क्षेत्र माना जाता है । इसलिए जाति के लिहाज़ से भी सुरजेवाला इक्कीस ठहरते थे । हरियाणा में जीत का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पूरे पश्चिमोत्तर भारत, जिसे वेदों में सप्त सिन्धु कहा गया है , पर पड़ता है । तो राहुल गान्धी , सुरजेवाला को आगे करके छक्का मारने निकले थे । उपर से जींद ऐसी सीट है जो जब से चुनाव शुरु हुए हैं , भाजपा ने कभी नहीं जीती । यह सीट चौटाला परिवार और कांग्रेस में ही बँटती रही है । लेकिन हरियाणा के लोगों ने सुरजेवाला को पराजित कर , राहुल गान्धी को भविष्य की राजनीति का संकेत अवश्य दे दिया है । भारतीय जनता पार्टी ने 50578 वोट प्राप्त कर, लगभग तेरह  हज़ार  मतों के अन्तर से यह सीट जीत कर हरियाणा की राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया है । राहुल गान्धी के प्रत्याशी सुरजेवाला को यदि आठ नौ सौ वोट कम पड़ते तो उनकी ज़मानत ज़ब्त हो जाती ।              सैयद शुजा का माक़ूल उत्तर तो हरियाणा के लोगों ने दे दिया लेकिन जिनको भारतीय चुनाव व्यवस्था पर आस्था नहीं है वे सैयद शुजा के साथ ही ताल ठोंकते दिखे ।उनके लिए , यदि कांग्रेस जीतती है तो मशीन ठीक है , लेकिन यदि कोई और जीतता है तो मशीन गड़बड़ है । कपिल सिब्बल इस पर कुछ बोलेंगे क्या ? अब तक तो वे लन्दन से भारत वापिस आ ही गए होंगे । वैसे यह भी चर्चा है कि राबर्ट बाड्रा का मकान भी लन्दन में है । 

                                        ममता बनर्जी का कोलकाता में नाटक— हरियाणा के जींद उपचुनाव में सोनिया कांग्रेस की हुई पराजय से राष्ट्रवादी शक्तियों के विरोध में महागठन्धन के प्रयास कर रहे राजनैतिक दलों में खलबली मचना स्वभाविक ही था । लेकिन सबसे ज़्यादा चिन्ता ममता बनर्जी को हुई । उसका भी कारण है । सभी ज़िन्दा मुर्दा राजनैतिक दलों को ढाल बना कर ममता , बंगाल से चालीस सीटें जीत कर प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी होने की दावेदार बनने की आकांक्षा पाल रही थीं । लेकिन एक तो महागठन्धन का मामला जम नहीं पा रहा था , दूसरा मायावती ममता से भी ज्यादा क़द्दावर साबित हो रही  थी । हरियाणा के चुनाव में भाजपा की जीत ने महागठबन्धन के लिए शुरु में ही अपशकुन कर दिया था । सबसे बढ़ कर पश्चिमी बंगाल में भाजपा के प्रति बढ़ता जन उत्साह सभी को आश्चर्य चकित कर रहा है । ममता सरकार भाजपा को जनसभाएँ करने की आज्ञा नहीं दे रही है । भाजपा की प्रस्तावित रथयात्रा का मामला तो उच्चतम न्यायालय तक गया । यहाँ तक की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक का जहाज़ बंगाल में उतरने नहीं दिया । लेकिन इसके बावजूद बंगाल में भारतीय जन सभाओं में इतनी ज़्यादा भीड़ जुट रही है कि पिछले दिनों उत्तरी चौबीस परगना के ठाकुरनगर में  भगदड़ के भय से नरेन्द्र मोदी को चौदह मिनट में ही अपना भाषण समाप्त कर देना पड़ा । निश्चय ही ममता सरकार की जमीन हिलने लगी है । ममता ने अपनी ज़मीन बचाने के लिए प्रदेश में सांविधानिक संकट ही खड़ा कर दिया । पुलिस के एक कर्मचारी राजीव , जो आजकल कोलकाता के पुलिस कमिश्नर हैं, के ख़िलाफ़ शारदा चिटफ़ंड मामले में , सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जाँच चल रही है । इस घोटाले में अनेक प्रान्तों के लाखों लोगों के करोड़ों अरबों रूपए कुछ शातिर लोग डकार गए । इनमें राजनीतिज्ञों से लेकर नौकरशाह तक शामिल हैं । दलालों की भूमिका तो है ही । जिन लोगों की ख़ून पसीने की कमाई ये लोग खा गए उनकी हालत का अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है । इसलिए उच्चतम न्यायालय ने स्वयं इस घोटाले की जाँच के आदेश दिए । उस वक़्त भाजपा की सरकार नहीं थी । लेकिन न्यायपालिका के दबाव के चलते तत्कालीन सरकार को भी जाँच के आदेश करने पड़े । कई सांसद भी गिरफ़्तार किए गए । इसी से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि ग़रीबों का पैसा खा जाने वालों की जड़ें कितनी गहरी थीं । इस जाँच के घेरे में कोलकाता के पुलिस प्रमुख राजीव बाबू भी आ गए । सीबीआई उन्हें अनेक बार जाँच में सहयोग करने और पूछताछ के लिए हाज़िर होने के लिए कहती रही । लेकिन राजीव बाबू ठहरे मुख्यमंत्री ममता दीदी के खासुलखास । वे इस प्रकार की जाँच को अपमानजनक मानते हैं । अपना अपना रुतबा है । लेकिन ममता दीदी तो उससे भी एक क़दम आगे हैं । वे इस जाँच को पूरे बंगाल का ही अपमान मानती हैं । उनके लिहाज़ से लाखों बंगालियों का पैसा डकार जाना तृनमूल कांग्रेस का घरेलू मसला है । यदि वह पैसा डकार जाने वालों के पेट से निकलवाने की कोशिश की जाए , उससे संविधान का अपमान होता है ।
यही कारण था कि जब सीबीआई की टीम कोलकाता में राजीव बाबू से पूछताछ के लिए पहुँची तो राजीव बाबू को ही साथ लेकर ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं । इतना ही नहीं , भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जाँच को रुकवाने के लिए प्रदेश के पुलिस अधिकारी भी ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठ गए । ममता बनर्जी प्रदेश में अपने लिए सहानुभूति बटोरने के लिए संविधान की धज्जियाँ उड़ाने से भी पीछे नहीं हटीं । वे प्रदेश में स्वयं अराजकता फैला कर जनता का ध्यान बँटाना चाहती हैं । लेकिन राहुल गान्धी के लिए इन सब चीज़ों का कोई अर्थ नहीं हैं । वे टुकड़े गैंग में भी , भारत के टुकड़े करने वालों के साथ खड़े होते हैं और देश में सांविधानिक संकट पैदा कर रही ममता बनर्जी के साथ भी उतने ही उत्साह से खड़े होते हैं । उनको भीड़ चाहिए । चाहे वे माओवादियों की हों या फिर अर्बन नकसलवादियों की । वे भीड़ में अपनी पार्टी के लिए बित्ते भर ज़मीन तलाश रहे हैं । ममता को बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकना है । राहुल गान्धी को अपने ख़ानदान से छिन गई गद्दी पर फिर से अपना कलेम स्थापित करना है । केजरीवाल को जिस उद्देश्य से राजनीति की चौसर पर उतारा था , वे वह उद्देश्य पूरा करके अपने आकाओं को दे नहीं सके , इसलिए भारत की राजनीति में अनाथ हो चुके हैं । इसलिए उन्हें जहां भी कहीं आश्रयस्थल की मृगमारीचिका दिखाई देती है , उसी ओर भागते नज़र आते हैं । सीपीआई और सीपीएम भारत की पावन धरती में अप्रासंगिक हो चुके हैं । उनके लिए अब विचारधारा ही अप्रासंगिक हो गई है । उनके लिए अब मसला केवल इतना ही है कि किसी तरह लोकसभा में चन्द सीटें मिल जाएँ । यदि ऐसा न हुआ तो आगे से गठबन्धन के नाम पर निराश और अप्रासंगिक हो चुके राजनीतिज्ञों का क्लब उन्हें चर्चा के लिए भी आमंत्रित करना बन्द कर देगा । राजनीति के वीयाबानों में भटक रही इन तथाकथित नेताओं की टोली अपने अस्तित्व के लिए किसी सीमा तक भी जा सकती है , ममता बनर्जी का हाल ही का नाटक इसका एक उदाहरण है । इनके लिए अपने अस्तित्व रक्षा के लिए , देश विदेश की सीमाएँ भी समाप्त हो गई है । अब देखना केवल इतना ही है कि सैयद अहमद शाह गिलानी और विजय माल्या को महागठबन्धन का हिस्सा बनने का निमंत्रण कब मिलता है ? विभुक्षति किम न करोति पापम ? भूखा आदमी कौन सा पाप नहीं करता ? सत्ता की भूख का शिकार आदमी ओम प्रकाश चौटाला बन जाता है , लालू प्रसाद यादव बन जाता है । सत्ता जन सेवा के लिए होनी चाहिए न कि लोगों का गला घोंट कर अपना घर भरने के लिए । सत्ता पाने की भूख ने महागठबन्धन को महागठबन्धन में बदल दिया है । कबीर ने कभी कहा था , जो घर फूंके आपने वह चले हमारे साथ । लेकिन इक्कठे होकर वे चल रहे हैं जो दूसरे का घर फूँक कर अपना घर भरना चाहते हैं । नरेन्द्र मोदी दूसरों का घर फूंकने वाले इन्हींअपराधियों की गर्दन पकड़ना चाहते हैं लेकिन उसी समय ममता के साथ न जाने ऐसे कितने राजनीतिज्ञ आकर खड़े हो जाते हैं । लेकिन फ़िलहाल उच्चतम न्यायालय ने साफ़ कर दिया है कि राजीव बाबू से पूछताछ से संविधान का अपमान नहीं होगा , इसलिए वे शिलांग में जाँच का सामना करने के लिए पहुँचें । तब तक ममता और उनके गठबन्धन वाले क्या करते हैं , इसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए । परन्तु एक प्रश्न तो पूरे पूर्वी भारत में गूंजने ही लगा है कि ममता की क्या मजबूरी है कि वे उन लाखों मध्यवर्गीय बंगालियों , जिनकी ज़िन्दगी भर की कमाई चिटफ़ंड वालों ने लूट ली , के साथ न खड़ी होकर उनके साथ खड़ी हो गई हैं जिन पर शक है कि वे लुटेरों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं ? ममता की यही मजबूरी उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बनती जा रही है जिसे छिपाने के लिए वे विभिन्न मुद्राओं में अलग अलग नाटक कर रही हैं । 

पाकिस्तान की सक्रियता— नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में संगठित राष्ट्रवादी शक्तियों को पराजित करने के व्यापक अन्तर्राष्ट्रीय षड्यन्त्र गिरोह में पाकिस्तान भी शामिल हो गया है । मोदी को हराने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष  रूप से , टुकड़े टुकड़े गैंग से जुड़ गए लगते हैं । या फिर टुकड़े टुकड़े गैंग ही उनसे जुड़ गया है ।या फिर दोनों एक ही नाभिनाल से जुड़ गए हैं ।  इमरान खान ने   कहा कि अल्पसंख्यकों से कैसा व्यवहार करना  चाहिए , यह भारत को पाकिस्तान से सीखना चाहिए । यह भारत के मुसलमानों से संवाद रचना का प्रयास है कि आपके साथ अच्छा व्यवहार मोदी राज में तो हो नहीं सकता , इसलिए अपने देश में सरकार बदलिए । पाकिस्तान ने भी स्पष्ट किया है कि भारत में चुनाव होने वाले हैं , इसलिए अब द्विपक्षीय बातचीत नई सरकार से ही की जाएगी । कौन सी सरकार बनाएँ , इसकी अपील करने  मणिशंकर अय्यर अरसा पहले पाकिस्तान हो आए थे । पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मोहम्मद क़ुरैशी ने भारत में दो नेताओं मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ और सैयद अली शाह गिलानी से फ़ोन पर विस्तृत बातचीत की । इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी विरोध के तार कहाँ तक जुड़े हुए हैं । 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,761 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress