13 अगस्त को अंगदान दिवसःजागरूकता अभियान अभी से जोर पकड़े,ताकि बच सके लाखों जिंदगियां

संजय सक्सेना,लखनऊ
अंगदान के मामले में भारत की स्थिति अन्य देशों के
मुकाबले काफी खराब हुई है। जनता में जागरूकता के अभाव
के साथ-ंउचयसाथ धार्मिक एवं रू-सजय़ीवादी सोच के चलते लोग
अंगदान करने में हिचकते हैं। देश-ंउचयप्रदेश की सरकारों की
तरफ से भी अंगदान को लेकर कभी कोई बड़ा अभियान
नहीं चलाया गया है। अंगदान नहीं होने की वजह से अंग
प्रत्यारोपण की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं। कहने को
तो भारतवर्ष में आम आदमी को अंगदान के लिए प्रोत्साहित
करने को सरकारी संगठन और दूसरे व्यवसायों से संबंधित
लोगों द्वारा प्रत्येक व-ुनवजर्या 13 अगस्त को अंगदान दिवस मनाया
जाता है,जिसमें यह बताया जाता है कि कौन व्यक्ति किस तरह से
अंगदान कर सकता है। अंगदान कोई भी व्यक्ति, कभी भी
सकता है। अंगदान ही नहीं, देहदान की भी अपनी महत्ता
है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी देह दान के
लिए इसके लिए अधिकृत संस्था और मेडिकल कालेज आदि में
स्वीकृति पत्र दे सकता है। अंगदान किसी संस्था के अलावा परिवार
के सदस्यों के अलावा रिश्तेदारों, जानने-ंउचयपहचानने वालों
को भी किया जा सकता है। हाॅ, यह हकीकत है कि अन्य
देशों के मुकाबले अभी भारत में अंगदान और
प्रत्यारोपण की प्रक्रिया काफी जटिल है। औपचारिकताएं पूरी
करने में काफी समय लग जाता है,लेकिन धीरे-ंउचयधीरे यह बाधाएं
दूर की जा रही हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में किसी भी समय किसी व्यक्ति के
मुख्य क्रिया-रु39याील अंग के खराब हो जाने की वजह से प्रति व-ुनवजर्या कम से
कम 5 लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत हो जाती है। अंग
प्रतिरोपित व्यक्ति के जीवन में अंग दान करने वाला व्यक्ति एक ई-रु39यवर
की भूमिका निभाता है। अपने अच्छे क्रिया-रु39याील अंगों को
दान करने के द्वारा कोई अंग दाता 8 से ज्यादा जीवन को बचा
सकता है। अंग दान दिवस अभियान, जो 13 अगस्त को मनाया जाता
है, एक बेहतरीन मौका देता है। हर एक के जीवन में कि वो
आगे ब-सजय़े और अपने बहुमूल्य अंगों को दान देने का
संकल्प लें।
चिकित्सा -रु39याोधकर्ताओं की ये लगन और मेहनत है
जिन्होंने अंग प्रतिरोपण के क्षेत्र में महत्वपूर्णं सफलता
हासिल की। मेडिकल सांइस ने इतनी तरक्की कर ली है कि किडनी,
कलेजा, अस्थि मज्जा, हृदय, फेफड़ा, कॉरनिया, पाचक ग्रंथि, आँत
आदि अंगांे को सफलतापूर्वक प्रतिरोपित किये जा सकता हैं।
आधुनिक युग में विकसित तकनीक और समृद्धशाली उपचार पद्धति के
चलते अंग प्रत्यारोपण ब-सजय़े पैमाने पर हो सकता है,बशर्ते इसके
लिए अंगदान करने के लिए लोग आगे आएं। यह दुखद है कि
अच्छी तकनीक और उपचार की उपलब्धता होने के बाद भी
मृत्यु-ंउचयदर ब-सजय़ रही है क्योंकि प्रतिरोपण लायक अंग ही उपलब्ध
नहीं रहते है।
आज यह बहुत जरूरी हो गया है कि सरकार और सामाजिक संगठन
आगे आकर अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करें,उनकी
हिचकिचाहट दूर करें। अंग दान के बारे में लोगों को
जागरुक करना, पूरे दे-रु39या में अंग दान का संदे-रु39या को फैलाना,
अंग दान करने के बारे में लोगों की हिचकिचाहट को
हटाना, अंग दाता का आभार प्रकट करना, अपने जीवन में अंग
दान करने के लिये और लोगों को प्रोत्साहित करना समय की

मांग बन गई है।समाज में यह जागरूकता फैलाई जाना चाहिए कि
किसी भी व्यक्ति की ब्रेन डेथ के बाद उसके अंग दान की
प्रक्रिया के द्वारा किसी जरूरतमंद की अंग प्रतिरोपण की जरुरत पूरी की जा
सकती है। हमारे दे-रु39या में अंग डोनर्स की कमी के कारण
अंगों के लिए इंतजार करते-ंउचयकरते 90 प्रति-रु39यात रोगियों की मृत्यु
हो जाती है।

बहरहाल, जितनी जरूरत अंगदान को प्रोत्साहन देने की है,
उतना ही जरूरी है कि इनका रखरखाव ठीक तरीके से हो। यह
सुनकर आश्चर्य होगा कि भारत में लगभग 60 आंखों का
दान बर्बाद हो जाता है क्योंकि समय पर आंख बैंक में जमा
नहीं किया जाता है। इंडियन जर्नल आॅफ
आॅप्थैल्मोलाॅजी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक देश
में 2017-ंउचय2018 में 69 हजार 243 काॅर्निया नेत्रदान में
मिले, जिन्हें 238 नेत्र बैंकों में सुरक्षित रखा गया, लेकिन
49.5 फीसदी का प्रत्यारोपण में इस्तेमाल हो सका। अप्रैल
2013 से मार्च 2014 के बीच इन नेत्र बैंकों को 20 हजार
564 काॅर्निया दान में मिले। इनमंे से 59.6 फीसदी
काॅर्निया अस्पताल के 49.5 फीसदी काॅर्निया स्वैच्छिक दान
से व 40.4 फीसदी काॅर्निया अस्पताल के रिट्रिवल कार्यक्रम के
तहत मिले। लेकिन 49.5 फीसदी काॅर्निया का प्रत्यारोपण में
इस्तेमाल नही हो सका। जबकि देश में लाखों दृष्टि बाधित
लोग है। और काॅर्निया प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे है।
नेत्रदान के मामले में लिंग भेद भी नजर आता है।
अध्ययन के मुताबिक स्वैछिक नेत्रदान करने वालों में 59.5
फीसदी पुरूष व 40.5 फीसदी महिलाएं होती हैं। देश में
77.3 फीसदी नेत्रदान व्यक्ति की मौत के छह घंटे के भीतर
ही हो जाता है। यह आदर्श समय है। 18.1 फीसदी  नेत्रदान 6

से 12 घंटे के दौरान होता है। शेष नेत्रदान में 12
घंटे से अधिक लग जाता है। अक्सर नेत्रदान में देरी का बड़ा
कारण लंबी कानूनी प्रक्रिया को माना जाता है। नेत्रदान में
मिले 50.5 फीसदी काॅर्निया को हर दूसरी मरीजों का
प्रत्यारोपित किया जा सका । 49.5 फीसदी काॅर्निया का
प्रत्यारोपण नही हो सका, जिसमें 58.6 व 40.6 फीसदी का
इस्तेमाल शोध में किया गया। इनमें से सिर्फ 2.87 फीसदी
काॅर्निया संक्रमण(सेप्सिस, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी,
ल्यूकेमियां इत्यादि) की वजह से प्रत्यारोपण किए गए।

ऑर्गन इंडिया के आकड़े बताते हैं कि भारत में दो
लाख कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत है लेकिन सिर्फ 50 हजार
कॉर्निया ही डोनेट हो पाते है। ऑर्गन ट्रांसप्लांटे-रु39यान का
इंतजार करने वाले करीब पांच लाख लोग ट्रांसप्लांटे-रु39यान के
इंतजार में दिन गिन रहे हैं।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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