सुनियोजित अपराध की श्रेणी में शामिल हो मिलावटख़ोरी

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-तनवीर जाफ़री

भारत वर्ष को त्यौहारों व पर्वों का देश कहा जाता है। अपने सीमित संसाधनों में ही अनगिनत त्यौहारों के अवसर पर झूमने व खुशियां मनाने वाले भारतीय नागरिक इस विशाल देश के किसी न किसी क्षेत्र में किसी न किसी त्यौहार में अक्सर खुशियां मनाते देखे जा सकते हैं। ज़ाहिर है इन भारतीय त्यौहारों का खाने पीने, स्वादिष्ट व लज़ीज़ व्यंजनों खा़सतौर पर मिठाईयों से सीधा संबंध है। अत: अमीर भारतवासी से लेकर गरीब से गरीब व्यक्ति तक की यह कोशिश होती है कि वह त्यौहारों के अवसर पर अपने मित्रों, रिश्ते-नातेदारों अथवा अपने परिवारवालों के लिए खाने हेतु किसी न किसी किस्म की मिठाई का तो अवश्य ही आदान प्रदान करे। गोया हम कह सकते हैं कि भारतीय समाज में मिठाई को त्यौहारों के शगुन के रूप में स्वीकार कर लिया गया है।

परंतु हमारे ही देश में हरामख़ोरी की कमाई का आदी हो चुका एक तीसरे दर्जे का गिरा हुआ वर्ग ऐसा भी है जिसे अपने चंद पैसों की कमाई की खातिर त्यौहारों में खुशियां मनाते व झूमते गाते आम लोगों की खुशी संभवत: सहन नहीं होती। और यह बेशर्म तबक़ा आम लोगों की खुशियों में रंग में भंग डालने का काम करता है। बजाए इसके कि यह वर्ग आम लोगों की खुशी में शरीक हो कर खुद भी खुशियां मनाए तथा आम लोगों को भी प्रोत्साहित करे। परंतु ठीक इसके विपरीत यह हरामख़ोर वर्ग आम लोगों को मिठाईयों के नाम पर ज़हर बेचने का काम करता है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी त्यौहारों के इन दिनों में देश में चारों तरफ से मिलावटी, सड़ी गली, बदबूदार, ज़हरीली तथा रासायनिक पद्धति से तैयार की गई मिठाइयों की बरामदगी के अफसोसनाक समाचार प्राप्त हो रहे हैं। जोधपुर,बीकानेर,चंडीगढ़,दिल्ली व कानपुर जैसे बड़े शहरों से लेकर अंबाला जैसे छोटे शहरों तक से प्रदूषित व ज़हरीली मिष्ठान सामग्री के बरामद होने के समाचार निरंतर प्राप्त हो रहे हैं।

समाचार पत्रों व विभिन्न टीवी चैनल्स के माध्यम से यह बार बार चेतावनी दी जा रही है कि ऐसी मिलावटी,ज़हरीली व रासायनिक पद्धतियों से तैयार मिष्ठान सामग्रियों के सेवन से आम आदमी के स्वास्थय पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। स्वास्थय विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी मिलावटी मिठाईयां दिल की बीमारी,रक्तचाप,कैंसर,पीलिया,अलसर तथा चमड़ी रोग जैसी तमाम जानलेवा बीमारियों के द्वार तक पहुंचा देती हैं। परिणाम स्वरूप जाने अनजाने में तमाम लोग इन्हीं मिठाईयों के सेवन से मौत के मुंह तक पहुंच जाते हैं। परंतु मिलावट खोरी के इस कारोबार से जुड़े तथा ऐसी कमाई के आदी हो चुके व्यापारी इन सब बातों की परवाह किए बिना अपने इस काले कारोबार को पूर्ववत् जारी रखते हैं। और यदि कभी इत्तेफाक से कोई मिलावटखोर कहीं पकड़ा भी जाता है तो आम लोगों की जान से खेलने वाला वह व्यक्ति भारतीय कानून के अंतर्गत होने वाली नर्म व लचीली कार्रवाई का सामना करते हुए जल्द ही सलाखों से बाहर आ जाता है। बाद में वही अपराधी अपने उसी हौसले के साथ फिर मिलावटखोरी के काम में जुट जाता है। इस प्रकार कम लागत में अधिक पैसे कमाने का आदी हो चुका यह वर्ग आम लोगों की जान से निरंतर खिलवाड़ करने से हरगिज़ नहीं चूकता।

सवाल यह है कि भारतीय समाज को ऐसे कलंकों से कभी मुक्ति मिलेगी भी या नहीं और यदि मिलेगी तो उसके उपाय क्या हो सकते हैं? भारतीय न्यायालयों में हत्या व हत्या के प्रयास को लेकर चलने वाले मुकद्दमों में आमतौर पर माननीय न्यायाधीश गवाहों के बयान व साक्ष्यों के आधार पर जहां यह जानने की कोशिश करते हैं कि अमुक व्यक्ति की हत्या या हत्या का प्रयास आरोपी व्यक्ति द्वारा अंजाम दिया गया है या नहीं। वहीं माननीय अदालतें मुकद्दमे के दौरान यह पता लगाने की भी पूरी कोशिश करती हैं कि आखिर जुर्म को अंजाम देने का कारण क्या था। अर्थात् जुर्म जानबूझ कर किया गया है या परिस्थितियों वश हो गया। और इन सभी नतीजों पर पहुंचने के बाद अदालतें जुर्म की उसी गंभीरता को ध्यान में रखते हुए दोषी को सज़ा सुनाती हैं। उस आरोपी को सबसे अधिक व सख्त सज़ा सुनाई जाती है जिसने जानबूझ कर तथा सुनियोजित ढंग से किसी अपराध को अंजाम दिया हो। यहां गौरतलब है कि किसी एक व्यक्ति की हत्या जैसे सुनियोजित षड्यंत्र रचने वाले अपराधी को फांसी या आजीवन कारावास तक की सज़ा सुनाई जाती है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब सुनियोजित तरीके से किसी एक व्यक्ति की हत्या करने के आरोपी को सज़ा-ए-मौत या आजीवन कारावास जैसी सख्त सज़ा का सामना करना पड़ता है फिर मिठाई,जीवन रक्षक दवाईयां अथवा खाने-पीने की अन्य तमाम वस्तुओं में मिलावट करने वाले तथा इनमें ज़हरीली रासयानिक सामग्री मिलाकर सैकड़ों व हज़ारों लोगों की एक साथ सामूहिक हत्या का प्रयास करने वालों के विरुद्ध ऐसी ही सख्त सज़ा का प्रावधान क्यों नहीं है? ज़ाहिर है इस प्रकार की मिलावटखोरी करने का इनका मकसद कम से कम लागत में ज्य़ादा से ज्य़ादा पैसे कमाना ही होता है। और अपने इस एक सूत्रीय लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह मिलावटखोर व्यापारी प्रत्येक स्तर पर मिलावटखोरी को अंजाम देते हैं। यह भली भांति जानते हैं कि ऐसी मिठाईयों अथवा अन्य खाद्य सामग्रियों के खाने से स्वास्थय पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ेगा। परंतु मात्र धन कमाने की चाहत में यह वर्ग समाज को सामूहिक रूप से स्वास्थ्य क्षति पहुंचाने से कतई नहीं हिचकिचाता। अत: आम लोगों को ऐसी ज़हरीली व प्रदूषित खाद्य सामग्री बेचकर उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करने जैसा जानबूझ कर रचे जाने वाले षड्यंत्र का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।

आज हम अपने ही समाज के बीच स्वास्थय संबंधी तरह-तरह की ऐसी समस्याएं देख रहे हैं जो प्राय: हमें हैरान कर देती हैं। उदाहरण के तौर पर छोटे बच्चों को दिल का दौरा पडऩे लगा है। कम उम्र में लोग पीलिया के शिकार हो रहे हैं। छोटी उम्र में ही कैंसर व अलसर जैसी बीमारियों के लक्षण पाए जा रहे हें। चर्म संबंधी रोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। समय पूर्व लोगों की आंखें कमज़ोर हो रही हैं तथा दांतों पर प्रभाव पड़ रहा है। और इस तरह की और समय पूर्व होने वाली तमाम बीमारियों से जूझने वाला आम आदमी कभी सही इलाज न मिल पाने के कारण तो कभी आर्थिक संकट की बदौलत प्राय: अकाल मौत के मुंह तक चला जाता है। ज़रा कल्पना कीजिए कि यदि हम आज किसी छोटे बच्चे को ऐसी ही मिलावटी मिठाईयां अथवा अन्य खाद्य सामग्रियां आज खिलाना शुरु करें तो बड़ा होते-होते उसके शरीर की बुनियाद आखिर किन ज़हरीली खुराकों पर खड़ी होगी।

लिहाज़ा मिलावटखोरी के इस निरंतर बढ़ते जा रहे नेटवर्क से आम लोगों को निजात दिलाने का एक ही उपाय है कि इसमें शामिल लोगों को पकड़े जाने पर एक तो उनकी ज़मानत हरगिज़ नहीं होनी चाहिए। और दूसरे यह कि ऐसे व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को हमेशा के लिए सील कर सरकार को अपने अधीन ले लेना चाहिए। और तीसरी व सबसे अहम बात यह कि मिलावटखोरी जैसे अपराध को भी फांसी या उम्रकैद जैसी सज़ा की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। जब तक ऐसी सख्त सज़ा का प्रावधान हमारे कायदे व कानूनों के अंतर्गत नहीं होता तब तक मिलावटखोरी के शिकंजे से मुक्ति पाने की कल्पना करना हमारे लिए बेमानी है। यहां एक बात यह भी गौरतलब है कि मिलावटखोरी के इस नेटवर्क में केवल आम आदमी ही नहीं पिस रहा बल्कि बड़े से बड़ा,विशिष्ट,रईस तथा स्वयं को वी आई पी समझने वाला व्यक्ति भी इस त्रासदी से अछूता नहीं है। इस समय बाज़ार में बिकने वाली तमाम मिलावटी वस्तुएं विशिष्ट व्यक्तियों के हिस्से में भी आती हैं। चाहे वह फल अथवा सब्ज़ी के रूप में या फिर दूध,खोया,पनीर या देसी घी की शक्ल में ही क्यों न हों।

यहां एक बार फिर चीन में गत् वर्ष घटी उस घटना का उल्लेख करना ज़रूरी है जिसमें कि दूध में मिलावट करने वाले एक व्यापारी को मात्र 6 महीने तक मिलावटी कारोबार करने के आरोप में उसे मृत्युदंड दे दिया गया। यदि हमें देश व समाज के हितों का ध्यान रखना है तो हमारे देश में भी ऐसे ही सख्त कानून लागू होने की अविलंब ज़रूरत है। अन्यथा कोई आश्चर्य नहीं कि हमारी नस्लें बचपन के बाद सीधे बुढ़ापे में ही कदम न रखने लग जाएं और जवानी उनके भाग्य में ही न लिखी जा सके। और यदि देश को ऐसे बुरे दिन देखने पड़े तो इन मिलावटखोरों से ज्य़ादा दोष हमारे देश के कानून तथा उस व्यवस्था का होगा जो इन हरामखोर मिलावटखोरों की सुनियोजित हरकतों को देखते हुए भी अंजान बना बैठा है तथा इन्हें सख्त दंड देने के बजाए इन्हें प्रोत्साहन या छूट देने की मुद्रा में नज़र आ रहा है।

2 COMMENTS

  1. जाफरी साहेब आपकी बात बहुत अच्छी है. मिलावट करने के अपराधों के लिए चीन की तरह कठोर दंड होने चाहियें. १-२ हत्याएं करने से कहीं बड़ा अपराध है मिलावट करना. मिलावट करनेवाला अनेक लोगों के जीवन को खतरे में डालता है.
    इस अछे लेख के लिए आपका धन्यवाद.

  2. सुनियोजित अपराध की श्रेणी में शामिल हो मिलावटख़ोरी – by – तनवीर जाफ़री

    तनवीर जाफ़री साहेब ने मिलावटखोरी से निजात दिलाने के निम्न उपाय सुझाये है :

    (१) लोगों को पकड़े जाने पर ज़मानत नहीं होनी चाहिए
    (२) उनके व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को सील कर देना चाहिए
    (३) मिलावटखोरी अपराध को मृत्यु / उम्र सज़ा की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.

    चीन में दूध में मिलावट करने वाले एक व्यापारी को मात्र 6 महीने तक मिलावटी कारोबार करने के आरोप में उसे मृत्युदंड दे दिया गया.

    तनवीर जाफ़री साहेब से मेरा सुझाव होगा कि :

    Let us straight approach Hon’ble National Commission at New Delhi under the Consumer Protection Act for enquiry and appropriate relief in the matter for which the National Commission has jurisdiction AND further act as per its directions and guidance.

    Let us act, at our level, in this prime cause of public interest.

    – अनिल सहगल – .

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