
Ugta Bharat | ||
राकेश कुमार आर्य
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसका यह लोकतांत्रिक स्वरूप इसके गणतांत्रिक स्वरूप में समाहित है । बहुत कुछ उतार-चढ़ाव देखने के उपरांत भी हमारे लोकतंत्र की यह महानता है कि यहां कभी भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच सत्ता संघर्ष होते नहीं देखा गया । पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच मतभेद तो अवश्य उभरे परंतु मतभेदों को भी उन दोनों नेताओं ने बड़ी सावधानी के साथ निभा लिया था , या कहिए कि छुपा लिया था । इस प्रकार भारत का गणतांत्रिक लोकतंत्र कभी भी उपहास का पात्र नहीं बना । राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने अपने पदीय दायित्वों का बहुत ही गंभीरता के साथ निष्पादन किया है । यही कारण है कि हमारे देश के गणतांत्रिक स्वरूप को दूसरे देश बड़े कौतूहल और आश्चर्य की दृष्टि से देखते हैं । हमारे इस गणतंत्रात्मक लोकतंत्र का गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है । यह पर्व प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। 30 – 31 दिसंबर 1929 की मध्यरात्रि को रावी नदी के किनारे कांग्रेसी नेताओं ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पूर्ण स्वराज्य लेने का पहली बार संकल्प लिया था । उसी दिन यह भी संकल्प लिया गया था कि आगामी बसंत पंचमी को भारत का पूर्ण स्वराज दिवस मनाया जाएगा । सौभाग्य की बात थी कि जिस दिन बसंत पंचमी थी ,उस दिन 26 जनवरी थी । इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। क्या ही अच्छा होता कि जब भारत स्वाधीनता के पश्चात अपना संविधान लागू कर रहा था तो उस दिन 26 जनवरी को प्राथमिकता न देकर बसंत पंचमी को ही प्राथमिकता दी जाती ? बसंत पंचमी हमारे यहां पर ऋतु परिवर्तन का सटीक प्रमाण होता है और दीर्घकालीन पराभव के काल से गुजर कर भारत स्वाधीनता के पश्चात अपने संविधान के अनुसार जब आगे बढ़ने का संकल्प लेते हुए राजपथ पर अपने कदम रख रहा था तो यह भी उसके लिए किसी वसंत पंचमी अथवा ऋतु परिवर्तन से कम नहीं था । इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत के तत्कालीन नेतृत्व ने भारतीय तिथियों को प्राथमिकता न देकर अंग्रेजी कैलेंडर की तिथि 26 जनवरी को प्राथमिकता दी । यदि बसंत पंचमी को प्राथमिकता दी जाती तो भारत का जनमानस भारत को समझने की दिशा में कुछ गंभीरता से सोचता। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस में शपथ ग्रहण की थी । 1950 से लेकर 1954 तक गणतंत्र दिवस की परेड के लिए कोई स्थान निश्चित नहीं था । कभी इस परेड का आयोजन रामलीला मैदान में होता तो कभी लाल किले में होता रहा था , लेकिन 1955 से इसके लिए राजपथ को निश्चित कर दिया गया । 1950 में जब पहली गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन किया गया था तो उस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो वहां पर उपस्थित रहे थे । जबकि राजपथ पर जब 1955 से परेड का आयोजन होना आरंभ हुआ तो उसके पहले मुख्य अतिथि पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद बने थे । 26 जनवरी भारत के तीन राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है, अन्य दो – स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती हैं ।गणतंत्र का अभिप्राय है कि भारत का अपना एक राष्ट्रपति है जो शासन प्रमुख न होकर राष्ट्र प्रमुख है और अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से उस का चुनाव होता है। इसके अतिरिक्त गणतंत्र का अभिप्राय यह भी है कि भारत में अंतिम शक्ति जनता में निहित है। जनादेश ही यहां पर सबसे बड़ा आदेश है। इसे भी भारत का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक जनता ने चाहे जो आदेश दिया उसी को हमारे प्रत्येक प्रधानमंत्री या नेता ने अपने लिए अंतिम आदेश मानकर सत्ता सहज ही अपने उत्तराधिकारी को सौंप दी । भारतीय राजनीति का यह उज्ज्वल पक्ष अब भारत का राष्ट्रीय संस्कार बन चुका है। कांग्रेस में पूर्ण स्वराज मांगने की शुरुआत 1921 से प्रारंभ हो गई थी , लेकिन गांधीजी की जिद के कारण इस प्रस्ताव को कांग्रेस स्वीकार नहीं कर रही थी । सुभाष चंद्र बोस और उनके कई क्रांतिकारी साथी जिनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी योगदान था , अपने इस पूर्ण स्वाधीनता संबंधी प्रस्ताव को कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में प्रस्तुत करने लगे । अंत में एक मुस्लिम सदस्य मोहाली के माध्यम से यह प्रस्ताव 1929 में जाकर पूर्ण रूप से स्वीकृत हुआ । सन् 1929 के दिसंबर में प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई थी कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वायत्तयोपनिवेश (डोमीनियन) का पद नहीं प्रदान करेगी, जिसके तहत भारत ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित ईकाई बन जाता, तो भारत अपने को पूर्णतः स्वतंत्र घोषित कर देगा। 26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। इसके पश्चात स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1946 से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। डॉ० भीमराव आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। संविधान निर्माण में कुल 22 समितियां थी। जिनमें प्रारूप समिति सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण समिति थी और इस समिति का कार्य संविधान सभा में होने वाली बहस को संपादित कर लिखित कर लेना था । प्रारूप समिति के अध्यक्ष विधिवेत्ता डॉ० भीमराव आंबेडकर थे। संविधान सभा के अथक परिश्रम के पश्चात हमारा संविधान 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में बनकर तैयार हुआ । इसमें एक-एक अनुच्छेद पर लोगों ने जमकर अपने विचार व्यक्त किए और कई अनुच्छेद ऐसे रहे जिन पर कई कई दिन तक हमारे संविधान निर्माताओं ने बहस की । बहस के निचोड़ के पश्चात जो निष्कर्ष निकला उसे हमारी प्रारूप समिति ने लिपिबद्ध किया । संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान सौंपा , इसलिए 26 नवम्बर भारत में संविधान दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है। संविधान सभा ने संविधान निर्माण के समय कुल 114 दिन बैठकें कीं। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। अनेक सुधारों और बदलावों के बाद सभा के सभी सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित प्रतियों पर हस्ताक्षर किये। इसके दो दिन बाद संविधान 26 जनवरी को देश भर में लागू हो गया। 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए इसी दिन संविधान निर्मात्री सभा द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई ।26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय राष्ट्र ध्वज को फहराया जाता हैं और इसके बाद सामूहिक रूप में खड़े होकर राष्ट्रगान गाया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले मुख्य कार्यक्रम में राष्ट्रपति को इक्कीस तोपों की सलामी दी जाती है । यह सलामी राष्ट्रगान के प्रारंभ होने से पूर्व और समाप्ति के पश्चात दी जाती है। गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि के रूप में फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम को पांच-पांच बार अभी तक आमंत्रित किया गया है । जबकि भूटान और रूस को यह सुअवसर चार चार बार प्राप्त हुआ है । पिछले वर्ष 2018 में 10 देशों के शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्षों को इस परेड के लिए आमंत्रित किया गया था ।परेड का समापन — सारे जहां से अच्छा —- गीत से होता है । गणतंत्र दिवस को पूरे देश में विशेष रूप से भारत की राजधानी दिल्ली में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस अवसर के महत्व को चिह्नित करने के लिए हर वर्ष एक भव्य परेड इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन (राष्ट्रपति के निवास) तक राजपथ पर राजधानी, नई दिल्ली में आयोजित की जाती है। इस भव्य परेड में भारतीय सेना के विभिन्न रेजिमेंट, वायुसेना, नौसेना आदि सभी भाग लेते हैं। इस समारोह में भाग लेने के लिए देश के सभी आंचलों से राष्ट्रीय कैडेट कोर व विभिन्न विद्यालयों से बच्चे आते हैं, समारोह में भाग लेना एक सम्मान की बात होती है। परेड प्रारंभ करते हुए प्रधानमंत्री अमर जवान ज्योति (सैनिकों के लिए एक स्मारक) जो राजपथ के एक छोर पर इंडिया गेट पर स्थित है पर पुष्प माला डालते हैं| इसके बाद शहीद सैनिकों की स्मृति में दो मिनट मौन रखा जाता है। यह देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़े युद्ध व स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लिए बलिदान देने वाले शहीदों के बलिदान का एक स्मारक है। इसके बाद प्रधानमंत्री, अन्य व्यक्तियों के साथ राजपथ पर स्थित मंच तक आते हैं, राष्ट्रपति बाद में अवसर के मुख्य अतिथि के साथ आते हैं।परेड में विभिन्न राज्यों की प्रदर्शनी भी होती हैं, प्रदर्शनी में हर राज्य के लोगों की विशेषता, उनके लोक गीत व कला का दृश्यचित्र प्रस्तुत किया जाता है। हर प्रदर्शिनी भारत की विविधता व सांस्कृतिक समृद्धि प्रदर्शित करती है। परेड और जुलूस राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित होता है और देश के हर कोने में करोड़ों दर्शकों के द्वारा देखा जाता है। 2014 में, भारत के 64वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर, महाराष्ट्र सरकार के प्रोटोकॉल विभाग ने पहली बार मुंबई के मरीन ड्राईव पर परेड आयोजित की, जैसी हर वर्ष नई दिल्ली में राजपथ में होती है।इस दिन हमारा प्रयास होता है कि भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पूरी झलक परेड के माध्यम से राजपथ पर दिखाई जाए । साथ ही जल ,थल और नभ में भारत ने किस प्रकार उन्नति कर शत्रु को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं? – उनका भी सही तरीके से प्रदर्शन हो जाए । कुल मिलाकर यह सारे कार्यक्रम जहां हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करते हैं वही हमारे मजबूत इरादों को भी स्पष्ट करते हैं कि हम अपने मतभेदों के बावजूद शत्रु के लिए एक हैं और एकता की यह भावना ही हमारे गणतंत्र दिवस की सबसे बड़ी ताकत है।