पाक के यह ‘‘नापाक’’ मदरसे

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तनवीर जाफ़री

फारसी भाषा में मदरसा शब्द का अर्थ होता है वह स्थान जहां ‘दर्स’ अर्थात् सबक़ पढ़ाया जाता हो यानी हम इसे पाठशाला का पर्यायवाची शब्द भी कह सकते हैं। आमतौर पर मदरसों में इस्लाम संबंधित धार्मिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाता रहा है। परन्तु धीरे-धीरे अब इन्हीं मदरसों में आधुनिक शिक्षा से जुड़े कई पाठ्यक्रमों को भी शामिल किए जाने के समाचार प्राप्त हो रहे हैं। यहां तक कि भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित कुछ मदरसों के संबंध में तो ऐसी खबरें ख़बरें भी आई हैं कि वहां गरीब हिंदू परिवारों के बच्चे भी अपनी आर्थिक तंगी के चलते शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से कई मदरसों में प्रवेश ले रहे हैं। यहां उन्हें उर्दू के अतिरिक्त हिंदी, सामान्य ज्ञान,इतिहास,विज्ञान,समाजशास्त्र तथा कम्पयूटर जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं।गोया भारतवर्ष में मदरसों के आधुनिकीकरण व समयानुसार उनके बदलते हुए स्वरूप का साक्षात दर्शन भी किया जा सकता है।

परंतु इस्लाम धर्म के नाम पर भारत को विभाजित कर 1947 में गठित राष्ट्र पाकिस्तान में तो मदरसों की हालत दिन-प्रतिदिन बद से बद्तर होती जा रही है। पूरी दुनिया पाकिस्तान पर यह आरोप लगा रही है कि पाकिस्तान में स्थित तमाम मदरसे आतंकवादियों विशेषकर तालिबानी विचारधारा का शिक्षण व प्रशिक्षण केंद्र बन चुके हैं। इन मदरसों में धार्मिक अथवा आधुनिक शिक्षा दिए जाने की तो बात ही क्या करनी बल्कि यहां छात्रों को अपनी कट्टरपंथी विचारधारा का पाठ पढ़ाने के अतिरिक्त अन्य विचारधाराओं व समुदायों के विरुद्ध ज़हर भरने, उन्हें उकसाने तथा उनके विरुद्ध युद्ध छेडऩे हेतु मानसिक रूप से तैयार किया जाता है। पाकिस्तान के इन्हीं मदरसों में उन्हें जेहाद शब्द को ग़लत तरीक़े से परिभाषित करना सिखाया जाता है तथा आत्मघाती हमलावर बनने तक के लिए बाध्य अथवा प्रोत्साहित किया जाता है। मदरसे के इन छात्रों को यह भी बताया जाता है कि उनके द्वारा छेड़ा गया यह ‘जेहाद’ अथवा इस रास्ते पर चलते हुए होने वाली उनकी मौत उन्हें सीधे ‘जन्नत’ में पहुंचा देगी। और इस प्रकार गुमराही का शिकार हुए मदरसों के यही बच्चे पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान तक आत्मघाती हमलावर के रूप में अब तक जगह-जगह हज़ारों बेक़ुसूर लोगों की हत्याएं कर चुके हैं और अब भी करते आ रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार इन तथाकथित जेहादियों के आत्मघाती हमलों का शिकार अब तक मुसलमानों के ही कई जलसे-जुलूस, दरगाहें, मजलिसें, महफिलें, भीड़ भरे बाज़ार, सैन्य केंद्र, पुलिस प्रशिक्षण केंद्र आदि होते रहे हैं। गोया स्वयं को मुसलमान बताने वाले इन कथित जेहादी छात्रों द्वारा अब तक सबसे अधिक हत्याएं मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों की ही की गई हैं।

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान पर इस प्रकार के आरोप भारत या किन्हीं पाक विरोधी शक्तियों द्वारा लगाए जाते हों। पाकिस्तान से आए दिन आने वाली ख़बरों से ही स्वयं इस बात का पता चलता है कि पाक में किस प्रकार नापाक होते ऐसे मदरसे फल फूल रहे हैं। अभी पिछले दिनों पाकिस्तान के कराची जैसे महानगर में स्थित एक प्रमुख मदरसे से पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों ने छापा मारकर 55 छात्रों को वहां से मुक्त कराया। मदरसे का प्रमुख मौलवी मौक़े से फ़रार हो गया। समझा जा रहा है कि 8 से 25 आयु वर्ग के इन ग़रीब छात्रों को मदरसा प्रबंधन की मिलीभगत से तालिबानी आतंकवादियों ने मदरसे के एक तहखाने में बंधक बनाकर रखा हुआ था। कई छात्रों के पैरों में बेडिय़ां पड़ी हुई थीं जबकि कई को लोहे की ज़ंजीरों से जकड़ा गया था। रिहा कराए गए छात्रों ने बाद में बताया कि उन्हें तालिबान लड़ाके व आत्मघाती हमलावर बनने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। उनसे युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा जाता था। जो छात्र उनके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा अथवा प्रशिक्षण का विरोध करता था उसे खाना नहीं दिया जाता था, उसकी बुरी तरह पिटाई की जाती थी तथा पैरों में रस्सियां बांधकर उल्टा लटका दिया जाता था। इनमें से अधिकांश छात्र खैबर पखतूनख्वाह प्रांत से संबद्ध थे। इस क्षेत्र के लोग इस तथाकथित मदरसे को ‘जेल मदरसा’ के नाम से जानते थे।

पाकिस्तानी मदरसों में आतंकियों की पनाहगाह होने का सबसे बड़ा प्रमाण पूरी दुनिया ने उस समय देखा था जबकि 2007 में इस्लामाबाद में स्थित लाल मस्जिद अथवा जामिया हफसा नामक पाक के एक प्रमुख धार्मिक शिक्षण संस्थान में पाक सेना द्वारा तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ के आदेश पर एक बड़ा सैन्य ऑप्रेशन किया गया था। लाल मस्जिद में हुई इस सैन्य कार्रवाई में भारी मात्रा में मस्जिद से हथियार व गोला बारूद बरामद हुए थे। मस्जिद के भीतर से सुरक्षाकर्मियों पर भीषण गोलाबारी की गई थी। जिसकी जवाबी कार्रवाई के परिणामस्वरूप लगभग 100 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। मरने वालों में जहां लाल मस्जिद में पनाह लेने वाले तमाम आतंकी तथाकथित छात्र तथा कई बेगुनाह राहगीर शामिल थे, वहीं इस मुठभेड़ में 11 सुरक्षाकर्मी भी मारे गए थे। यह वही घटनाक्रम था जबकि दूसरों को जेहाद का दर्स देने वाला तथा जन्नत की राह दिखाने वाला लाल मस्जिद का प्रमुख मौलवी अब्दुल अज़ीज़ स्वयं ‘जन्नत’ जाने के बजाए सुरक्षाकर्मियों से अपनी जान बचाने के लिए बुर्क़ा पहनकर बुर्क़ानशीन औरतों के बीच में छुपकर भाग निकलने की कोशिश कर रहा था। परंतु पाक सैनिकों ने उस भगोड़े ‘जेहादी’ को धर दबोचा था।

 

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर तो मदरसा रूपी शिक्षण संस्थान पाकिस्तान में दिन-प्रतिदिन नफरत , आतंकवाद, विध्वंस तथा वैमनस्य को परवान चढ़ाने का केंद्र बनते जा रहे हैं तो दूसरी ओर इसी खतरनाक व मानवता विरोधी विचारधारा में फलने-फूलने वाले असामाजिक व अराजक तत्व आधुनिक शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं का पुरज़ोर विरोध करते आ रहे हैं। इसी विचारधारा के लोगों द्वारा गत् पांच वर्षों में 500 से अधिक स्कूलों को ध्वस्त किए जाने के समाचार भी हैं। अभी पिछले ही दिनों इस्लामाबाद के समीप एक स्कूल को तालिबानी लड़ाकों ने विस्फोट कर उड़ा दिया था। मानवता के इन दुश्मनों की चाल व उनके चरित्र को देखकर पूरा विश्व इस समय हैरान है कि आख़िर यह ताकतें कैसी शिक्षा को प्रोत्साहित कर रही हैं और कैसी शिक्षा व शिक्षण संस्थाओं के विरुद्ध हैं। पूरी दुनिया यह बखूबी देख रही है कि जंगलीपन, वहशतपन, क्रूरता, बर्बरता तथा जुल्मो-सितम इनका प्रमुख आभूषण बन चुका है जबकि विकास, आत्मनिर्भरता, आधुनिकता, शांति, प्रेम व परस्पर सद्भाव जैसी दुनिया की सबसे आवश्यक चीज़ों से इनको कोई लगाव नहीं है। बल्कि यह वहशी लोग इन सच्चाईयों व ज़रूरतों के सबसे बड़े दुश्मन भी दिखाई दे रहे हैं।

इसी वर्ष गत् जून माह में मेरे पास इस्लामाबाद से यूथ आफ़ पाराचिनार की ओर से एक प्रेसनोट आया था जो अत्यंत हृदयविदारक था। हालांकि उस समय मैंने इस विज्ञप्ति पर कुछ नहीं लिखा परंतु आज इस आलेख में उसका उल्लेख करना प्रासंगिक समझ रहा हूं। इस्लामाबाद से लगभग 290 किलोमीटर पश्चिम में पाकिस्तान से काबुल जाने के मार्ग पर पाराचिनार नामक एक नगर है। पाराचिनार फाटा क्षेत्र में स्थित कुर्रम एजेंसी की राजधानी है तथा यह तोरा-बोरा रेंज का सीमांत क्षेत्र भी है। इस क्षेत्र के तमाम बच्चे आधुनिक शिक्षा लेने के उद्देश्य से राजधानी इस्लामाबाद के विभिन्न स्कूलों में पढ़ते हैं तथा वहां छात्रावास में रहते हैं। इनमें कई बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता अथवा अभिभावकों को तालिबानों द्वारा अकारण शहीद कर दिया गया। इसके अतिरिक्त पाराचिनार क्षेत्र में चल रही पाक सेना व तालिबानों के मध्य युद्ध जैसी स्थिति के चलते पाराचिनार मार्ग को बंद कर दिया गया था। इस वजह से छुट्टियों में यह अपने घरों को भी वापस नही जा पा रहे थे।

ऐसे दर्जनों छात्रों द्वारा नेशनल प्रेस क्लब इस्लामाबाद के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया गया था। तालिबानी ज़ुल्मोसितम के शिकार यह सुंदर व मासूम बच्चे अपने हाथों में बैनर व तख़्ितयां लेकर पूरी दुनिया को अपनी दर्दभरी दास्तान सुनाना चाह रहे थे। इनमें इरशाद अहमद नामक पांचवीं कक्षा के एक छात्र ने कहा कि मुझे नहीं पता कि आतंकियों ने मेरे अमनपसंद पिता को क्यों क़त्ल कर दिया। अब तो मुझे स्कूल की फ़ीस जमा करने में भी काफ़ी संकट का सामना करना पड़ा है। इसी प्रकार सातवीं कक्षा में पढऩे वाले एक अत्यंत सुंदर व होनहार छात्र मुज़म्मिल हुसैन का कहना था- तालिबान बहुत गंदे हैं। वह तो बच्चों को भी मार डालते हैं। क्या इन आतंकियों के अपने बच्चे नहीं हैं? इन सभी बच्चों ने इस्लामाबाद प्रेस क्लब के समक्ष प्रदर्शन कर राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी, प्रधानमंत्री युसुफ़ रज़ा गिलानी, पाक सेना अध्यक्ष जनरल अश्फाक परवेज़ कयानी तथा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इफ्तिखार चौधरी से अपील की कि कृप्या वे उन सब बच्चों की सहायता करें। पाक के यह हालात अपने आप में इस बात के पुखता सुबूत हैं कि वहां एक ओर तो मदरसे ‘नापाक’ होते जा रहे हैं, दूसरी ओर दुनिया की सबसे ज़रूरी व कीमती चीज़ यानी आधुनिक व सामयिक शिक्षा का गला घोंटने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान का भविष्य क्या होने वाला है, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है

 

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  1. “||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक है,इसीलिएप्रकृति के नियम क़ानून सबके लिए एक है |कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक,नागरिक एक तो नियम क़ानून क्यों अनेक है |
    सिद्ध सदन ,सुन्दर बदन,गणनायक महाराज दास आपका हु सदा कीजै जन के काज || जय शिव शंकर गंगाधर,जय जय उमा भवानी, सियाराम कीजै कृपा हरी राधा कल्याणी ||
    जय सरस्वती जय लक्ष्मी,जय जय गुरुदयाल देव विप्र गौ संतजन, भारत देश विशाल || चरण कमल मै गुरुजनों के नमन करू मै शीश | मेरे देश को भ्रष्टाचारियो से मुक्त करो देकर शुभ आशीष ||
    नेतृत्व ईमानदार हो तो भारत बनेगा सुपरपावरः और यदि काँग्रेस जैसों भ्रष्ट हो बनेगा सुपर् पुअर
    गरीब तो कांग्रेस का जूठा/बासी भोजन के दान और दारु के पाँव में ही मतदान कर देता है तो नेता गरीब की बस्ती में क्यों जायेगा ….और इनके गुंडे पार्टी कार्यकर्त्ता तो जाते ही है गरीबो की रोटी और उनकी बेटियों की बोटी नोचने के लिए …जब गरीब ..गरीबी के कुए से बहार आना ही नहीं चाहता है…..क्योकि उसे नेताओं से मिलने वाले दान और दारु की आदत हो गई है….
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार

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