पाकिस्तान की कम अक़ली

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अनिल अनूप 

पाकिस्तान फटे में टांग अड़ा रहा है। उसका राफेल विमान सौदे से कोई सरोकार नहीं है। उसकी न तो कोई कंपनी और न ही कोई दलाल इस लायक हैं कि अंतरराष्ट्रीय हथियार सौदेबाजी में प्रतियोगी बन सकें। पाकिस्तान की बौखलाहट और कुंठाओं के कई वाजिब कारण हो सकते हैं, लेकिन दिलचस्प है कि उसके पूर्व गृह मंत्री रहमान मलिक भविष्यवाणी कर रहे हैं कि राहुल गांधी भारत के अगले प्रधानमंत्री होंगे! प्रधानमंत्री मोदी भी उनसे घबराए हुए हैं! रहमान भारत के एक मतदाता भी नहीं हैं कि भारत का प्रधानमंत्री चुनने में लेशमात्र भूमिका भी निभा सकें! भारत कोई ‘केला गणतंत्र’ वाला देश नहीं है कि उसका प्रधानमंत्री यूं ही चुना जा सके। हैरानी तब हुई, जब पाकिस्तान के नए-नवेले प्रधानमंत्री इमरान खान की बेचैनी भी बेनकाब हो गई और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए घटिया शब्दों का इस्तेमाल किया। राफेल हमारा अपना मुद्दा है, भारत-फ्रांस के बीच एक संवेदनशील रक्षा-सौदा है। राफेल विमान कितने में खरीदे जाने हैं और उनके दाम क्यों बढ़े? इन सवालों का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि सवाल ये भी महत्त्वपूर्ण हैं कि पाकिस्तान राहुल गांधी की पैरवी क्यों कर रहा है? क्या कांग्रेस कोई अंतरराष्ट्रीय महागठबंधन तैयार करने जा रही है और पाकिस्तान भी उसका घटक होगा? क्या  पाकिस्तान नीति के मद्देनजर भारत के सभी राजनीतिक दलों को एकजुट हो जाना चाहिए? आखिर पाकिस्तान राफेल पर छिड़ी रार से इतना खुश क्यों है? वह मोदी के स्थान पर राहुल गांधी को भारत का अगला प्रधानमंत्री क्यों देखना चाहता है? इन सवालों का सरोकार देश की 135 करोड़ जनता से तो हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान का क्या मतलब है? बेशक राफेल सौदा एक विवादास्पद और संशय के मुकाम तक पहुंच गया है। हालांकि अभी तक एक भी विमान की सप्लाई नहीं हुई है और न ही भुगतान किया गया है। विवाद का आधार यह है कि सौदे में एचएएल (हिंदुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड) सरीखी राष्ट्रीय कंपनी को छोड़कर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड कंपनी को फ्रेंच कंपनी ‘दसॉल्ट एविएशन’ का भारत में ऑफसेट साझीदार क्यों बनाया गया? राफेल कंपनी ने रिलायंस को खुद चुना या प्रधानमंत्री मोदी के स्तर पर सिफारिश की गई? यह सवाल भी अति गोपनीय है। रक्षा सौदों की गोपनीयता बेहद कड़ी होती है। उसके बावजूद हमने बोफोर्स तोप घोटाले की परिणति देखी है। दुखद यह रहा कि वह घोटाला किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया। सवाल यह भी है कि यूपीए सरकार में रक्षा मंत्री रहे एके एंटनी ने 27 जून, 2012 को ही 126 राफेल विमानों का सौदा क्यों रद्द किया था? और प्रधानमंत्री मोदी ने 36 राफेल विमानों का सौदा क्यों किया था? आरोप-प्रत्यारोपों के इस दौर में सब कुछ सशंकित लगता है, लेकिन हम तभी यकीन करेंगे, जब प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांस के मौजूदा राष्ट्रपति इमैन्युल मैक्रों साझा तौर पर खुलासा करेंगे। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद का बयान आज प्रासंगिक नहीं है, क्योंकि वह हितों के टकराव के शिकार हो सकते हैं। बेशक सौदा उन्हीं के कार्यकाल में हुआ। अलबत्ता भारत में सीवीसी और सीएजी जैसी एजेंसियां अपने स्तर पर जांच करती ही हैं, लिहाजा संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन का कोई औचित्य नहीं है।  हालांकि कांग्रेस ने सीवीसी से मिलकर राफेल सौदे के सभी दस्तावेज जब्त कर जांच  करने की मांग की है और वह जेपीसी पर भी अड़ी हुई है। यदि कांग्रेस के पास पुख्ता दस्तावेज और साक्ष्य हैं, तो वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। यूपीए सरकार के दौरान कोयला आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों को लेकर भाजपा तमाम दस्तावेजों सहित सुप्रीम कोर्ट में गई थी। शीर्ष अदालत के निर्देश पर ही जेपीसी का गठन किया गया था। फिलहाल सवाल पाकिस्तान और हमारी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का है। क्या राफेल पर हम सरेआम पाकिस्तान तक ये जानकारियां पहुंचा दें कि विमान  में परमाणु मिसाइल, हथियार कहां लगाए गए हैं? राफेल की अन्य विशेषताएं क्या हैं? बेशक ऐसा करना राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ होगा। कांग्रेस फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद के बयान से चिपक कर अपनी राजनीति न करे। उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया है। फ्रेंच विदेश मंत्री ज्यां बैपतिस्ते लिमोयने ने कहा है कि ओलांद ऐसे बयान देकर अपने देश का हित नहीं कर रहे हैं, लेकिन विदेश मंत्री ने ओलांद के बयान को गलत करार भी नहीं दिया है। बहरहाल हमारे देशहित में यही है कि राफेल की सच्चाई का खुलासा किया जाए, ताकि जनता भ्रमित न हो और यह सौदा भी बोफोर्स न बन सके।

1 COMMENT

  1. कांग्रेस जानती है कि कोर्ट में इस मुकदमे का क्या होगा , वह अभी दीपक मिश्रा के रिटायर होने व गोगई के आने का इंतजार कर रही है ताकि सुनवाई हेतु बेंच अपनी मर्जी के अनुसार बनवा सके , वह पहले वाले कुछ फैसलों से सीख ले चुकी है , कुल मिला कर देश का माहौल खराब करना ही इस सारे हो हल्ले की जड़ है वह केवल राजनीतिक लाभ की तिकड़म में है ,
    सरकार को भी यह खुलासा कर देना चाहिए कि कांग्रेस के सौदे में केवल विमान की कीमत थी व इस सरकार ने किन किन कम्पोनेंट को लगवाने की वजह से यह कीमत चुकाई है , जहाँ तक गोपनीयता का सवाल है इस विमान की सारी क्षमताओं का जिक्र रफाल की वेबसाइट पर लिखा पड़ा है जिसे कोई भी दशतृ देश देख सकता है
    कांग्रेस भी यह जानती है ल्वः भी देख सकती है , देख चुकी है लेकिन वोटों के लिए खुद के अपराधों को छिपाने व मोदी को आरोपी बनाने के लिए यह सब किया जा रहा है , फालतू में देश का पैसा समय खराब किया जा रहा है जिस की परवाह दोनों ही दलों को नहीं है
    रही पकिस्तान की बात , उसे तो अपनी घरेलु शांति के लिए , व मोदी सरकार को तंग करने के लिए ऐसा करना जरुरी है ,उसके आतंकियों का खेल जिस तरह यह सरकार खत्म कर रही है उस से उसे चिंता है , कांग्रेस उनके प्रति कुछ सॉफ्ट थी जिस का आज ये अंजाम है , कांग्रेस इस खेल को समझती है लेकिन वह सत्ता के लिए कुछ भी कुर्बान कर सकती है उन नेताओं को सत्ता से मतलब है और कुछ भी नहीं

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