बी एन गोयल
गत दिनों कुछ लोगों ने विकिपेडिया विश्वकोश में पंडित जवाहर लाल नेहरू के पृष्ठ पर कुछ नकारात्मक बदलाव करने का प्रयत्न किया। बदलाव नहीं कर सके तो अपनी तरफ से अपनी व्याख्या की एक नई वेब साइट बना कर लगा दी। विकिपेडिया – ओन लाइन पर एक ऐसा विश्वकोश है जिस में पाठकों को यदि किसी प्रविष्टि में, कुछ ठीक न लगे तो, उन्हें उस प्रविष्टि के संपादन, संवर्धन, संशोधन अथवा परिवर्तन करने का प्रावधान है। इस का अर्थ है कि यदि पाठक किसी प्रविष्टि के संशोधन के बारे में आश्वस्त हैं और ऐसा करना आवश्यक समझते हैं तो वे कर सकते हैं। लेकिन इस में किसी प्रविष्टि में आमूल चूल परिवर्तन का अधिकार किसी को नहीं दिया गया। इस संदर्भ में यह बताना उचित होगा कि कुछ वर्षों से कुछ नेहरू विरोधी समूह नेहरू के ही नहीं वरन उन के चार पाँच पीढ़ियों के पूर्वजों का नामों निशान भी इतिहास से मिटाना चाहते हैं। यह कितना संभव है – नहीं कहा जा सकता।
इन व्यक्तियों के अनुसार नेहरू वंश ने भारत के इतिहास, संस्कृति, कला अथवा साहित्य का सर्वनाश किया है और पंडित नेहरू के काल में देश की अपूरणीय क्षति हुई है। ‘महानता’ यह है कि इस समूह के किसी सदस्य ने न तो पंडित नेहरू को देखा है, न उन का लिखा कुछ पढ़ा है और न ही उनके बारे में पढ़ा है, न ही उन्हें जाना है और न ही जानने की चेष्टा की है। मेरे विचार से इस तरह का कार्य शालीनता के विरुद्ध, अत्यधिक घृणित और निंदनीय है। नई साइट बनाने वाले सज्जन ने कहा है कि ‘उन्होंने स्वयं कश्मीर जाकर पंडित नेहरू के वंशजों के बारे में खोज बीन की है और उन्हें कुछ नहीं मिला।‘ मैं इन की प्रशंसा करता हूँ साथ ही निवेदन भी करता हूँ कि दुनिया में और भी बहुत से ऐसे काम हैं जहां आप जैसे कर्मठ व्यक्ति की आवश्यकता है। समाज में ऐसे कार्यकर्ता की अत्यधिक मांग है। इस से उन का लोक भी सुधरेगा और परलोक भी ।
वैसे कहावत प्रसिद्ध है कि इतिहास कभी किसी को क्षमा नहीं करता और यह स्वयं को दोहराता है। आज जो आप किसी के बारे में सोचते हैं संभव है आने वाली पीढ़ी कल आप के बारे में भी ऐसा ही सोचे।
अभी हाल ही में ऐसी ही एक घटना और हुई है कि सरकार ने तीन मूर्ति भवन में स्थित नेहरू संग्रहालय और पुस्तकालय में भी कुछ ऐसा ही परिवर्तन करने की सोची है। ऐसा सोचने वाले शायद देश के बौद्धिक जगत में इस संस्था के स्थान के बारे में अनभिज्ञ हैं। वे नहीं जानते कि इस संस्था के बनने के पीछे क्या कारण थे ? इस संस्था का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या मान सम्मान है? क्या यह मात्र एक पुस्तकालय है ? क्या इस में केवल नेहरू से ही संबन्धित पुस्तकें अथवा सामग्री है? वास्तविकता यह है कि इस संग्रहालय में स्वतंत्रता के पहले प्रारम्भिक संग्राम (१८५७) से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति अर्थात १९४७ तक की सभी सामग्री और दस्तावेज़ मौजूद हैं । स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी न केवल पुस्तकें वरन अन्य सामग्री जैसे फिल्म, डोकूमेंटरी, पत्र व्यवहार, फोटो आदि सभी कुछ है। इस कार्य में किसी दल विशेष या व्यक्ति विशेष के साथ कोई दुराग्रह/ पक्षपात जैसा कुछ भी नहीं है।
जैसे कि इस के आर्काइव में गुरु गोलवलकर, डॉ0 हेडेगवार, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, श्यामा प्रसाद मुकर्जी, भीमराव अंबेडकर आदि नेताओं के समग्र हैं । इस के प्रबन्धक समिति से गांधी – नेहरू परिवार के किसी व्यक्ति का कोई लेना देना नहीं है। गत दिनों इस संस्था के निदेशक डॉ0 महेश रंगनाथन की इस लिए छुट्टी कर दी गई क्योंकि उन्हें नेहरू समर्थक माना गया जबकि वह एक विद्वान और बौद्धिक व्यक्ति है ।
मेरी मान्यता है कि नेहरू ने इस देश में प्रजातन्त्र प्रणाली की नींव रखी और उसे पल्लवित पुष्पित किया। अपने 17 वर्ष के कार्य काल में नियमित रूप से चुनाव कराना, चुनाव के दिन स्वयं वोट डालना, चुनाव में सन्यासी प्रभु दत्त ब्रह्मचारी सरीखे अपने विरोधी के साथ मान सम्मान रखना आदि पंडित नेहरू ही कर सकते थे। आज के इन तथाकथित विरोधी पक्षों को शायद मालूम भी न हो कि संसद में नेहरू के विरोध पक्ष में उस समय राजा जी, जे बी कृपलानी, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ0 राम मनोहर लोहिया आदि दिग्गज थे। 1962 के चीन आक्रमण के समय संसद में नेहरू के विरोध में सब से मुखर उन की ही पार्टी कांग्रेस के नेता सांसद महावीर त्यागी थे। 1957 में विपक्ष की पार्टी तत्कालीन जन संघ के युवा नेता अटल बिहारी वाजपेयी के पहले भाषण की सब से पहली प्रशंसा नेहरू ने ही की थी और उन्हें एक दिन देश का प्रधान मंत्री बनने का आशीर्वाद दिया था। यह स्वयं वाजपेयी जी ने ही बताया था। क्या आज के किसी नेता में है यह उदात्त भाव।
हर महीने के प्रथम सप्ताह में उन की खुली प्रैस कान्फ्रेंस में आने के लिए सभी वरिष्ठ पत्रकार लालायित रहते थे। आज कोई भी कार्टूनिस्ट किसी भी नेता का कार्टून बनाने का साहस नहीं रखता लेकिन ये पंडित नेहरू ही थे जिस ने तत्कालीन देश के अग्रणी कार्टूनिस्ट शंकर से कहा था ‘ मेरे साथ कोई रियायत नहीं होनी चाहिए’। शंकर के पास किसी के लिए कोई विशेष सद्भाव अथवा दुर्भाव नहीं था। कितने लोगों को मालूम होगा कि कोलकाता (उस समय के कलकत्ता) की अँग्रेजी पत्रिका Modern Review के अक्तूबर 1937 के अंक में नेहरू की कटु और कठोर आलोचना करने वाला ‘चाणक्य’ नाम का लेखक और कोई नहीं स्वयं जवाहर लाल नेहरू ही थे।
अपने 14 वर्ष के जेल प्रवास के दौरान पंडित नेहरू ने Glimpses of World History (विश्व इतिहास की झांकी ), Discovery of India (भारत की खोज), My Story (मेरी कहानी) और Letters from a Father to his Daughter (पिता के पत्र पुत्री के नाम) किताबें लिखी। जब नेहरू गाँधी जी से पहली बार मिले थे तो गाँधी ने उन से भारत देश को देखने और समझने की सलाह दी। उन से कहा कि पूरे देश को पहले अच्छी तरह जानो और नेहरू ने पूरे देश धुंवा धार भ्रमण किया। उन्हीं अनुभव के आधार पर भारत की खोज पुस्तक लिखी। पिता के पत्र पुस्तक में जेल से अपनी बेटी इन्दिरा के नाम लिखे पत्र हैं – इन पत्रों में मानव के विकास के कहानी है। इन पुस्तकों के आधार पर प्रायः यह कहा जाता है की यदि नेहरू राजनीति में न गए होते तो वे एक सफल लेखक होते । कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि नेहरू ने देश को क्या दिया – इस का उत्तर है – नेहरू ने देश को प्रजातन्त्र दिया, देशवासियों को आजादी का अर्थ बताया, सब को कुछ भी बोलने और कहने की अधिकार दिया। इसी अधिकार के अंतर्गत आज लोग विकिपेडिया में परिवर्तन कर रहे हैं। इस का एक दुष्परिणाम यह हुआ है कि हमने शालीनता की सभी सीमाएं तोड़ दी हैं । यह आजकल के चुनाव प्रचार से यह स्पष्ट है ।
पंडित नेहरू ने प्रधान मंत्री रहते हुए गलतियाँ की हैं। ये कुछ भीषण गलतियाँ थी । वे एक इंसान थे – भगवान नहीं। गलतियाँ किस से नहीं होती । जो काम करता है वह गलतियाँ भी करता है ।
गलतियाँ जानबूझ नहीं की जाती वरन हो जाती हैं। किसी भी बड़े काम को करते समय आदमी सावधानी रखता है लेकिन परिस्थिति प्रतिकूल भी हो सकती हैं। प्रधान मंत्री के पद पर रह कर नेता की गलती का परिणाम देश को भुगतना पड़ता है। पंडित नेहरू की सब से बड़ी भूल चीन के साथ मित्रता करने की थी – चीन को मित्र नहीं भाई समझा और उस पर विश्वास किया। यह एक भयंकर गलती थी और इस गलती का गम उन्हें ले डूबा। 53 वर्ष के बाद इस की इतनी बड़ी सज़ा कि आज उस का ही नहीं वरन उस की पीढ़ियों का भी नामों – निशान मिटाने की कोशिश की जाए। सच में यह देश बहुत ही विकट परिस्थितियों से गुज़रा है।
एक समय भारत के नेता और बाद में पाकिस्तान के एक जनक, भारत के क़ौमी तराने (सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा के लेखक) और विख्यात शायर डॉ0 अलल्मा इकबाल ने नेहरू से अपनी आखरी भेंट (इकबाल उस समय शय्या पर थे) में कहा था – “तुम में और जिन्ना में क्या बात एक सी है ? वह एक राजनीतिज्ञ है और तुम देश भक्त हो। “
भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ.0 राधा कृष्णन ने लिखा है, “जवाहर लाल नेहरू हमारी पीढ़ी के एक महानतम व्यक्ति थे । वह एक ऐसे अद्वितीय राज नीतिज्ञ थे जिन की मानव मुक्ति के प्रति सेवाएँ चिरस्मरणीय रहेंगी । स्वाधीनता संग्राम के योद्धा के रूप में वे यशस्वी थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उन का योग दान अभूतपूर्व था।“
bilkul goyal jee, hame neharu ki vastavikta se parichay nahi karaya jata…. kyoki ham puri tarah se media par nirbhar ho gaye hain,,, wahi media jo hamesha glamour aur raja-rani ki kahaniyan bechta aaya hai… hai naa…
आप ठीक कहते हैं –