महत्वपूर्ण लेख

पाणिनि का संगणक(कॉम्प्युटर) की आंतरिक भाषा में योगदान

डॉ. मधुसूदन

-पाणिनि बाकस फॉर्म? या बाकस-नॉर्म-फॉर्म?

ॐ-फ्रिट्स स्टाल : ”ईसा पूर्व ५ वी शती के, भारतीय भाषा विज्ञानी १९ वी शती के, पश्चिमी भाषा विज्ञानियों की अपेक्षा अधिक जानते थे और समझते थे।”

ॐ-पाणिनि को ”आधुनिक गणितीय तर्क” का भी ज्ञान था।

ॐ_नओम चोम्स्की : ”आधुनिक अर्थ में भी, पहला ”प्रजनन-शील” व्याकरण, पाणिनि का व्याकरण ही है। {First generative grammar in the modern sense was Panini’s grammar.}

ॐ-पाणिनि का अकेला व्याकरण ही त्रुटि रहित है।अन्य किसी भाषा का व्याकरण ऐसा नहीं है। न लातिनी का, न ग्रीक का, न चीनी का, न हिब्रु का, न अरबी का, न फारसी का, न अंग्रेज़ी का।

ॐ-पाणिनि की अष्टाध्यायी, का उपयोग संगणकों में सशक्त (पॉवरफुल) आंतरिक परिचालन-क्रम (इंटर्नल प्रोग्रामिंग) में हुआ है।

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(१) अचरज की बात

बडे अचरज की बात है, कि आज भी भारत के, फटे पुराने, टूटे फूटे, अतीत के

खण्डहरों से, ज्ञान-विज्ञान की घण्टियाँ बज ही रही है, और उन घाण्टियों की मंजुल ध्वनि संसार भर में फैल कर गूंज रही है। सारे भूमंडल को ऊर्जा भी प्रदान कर रही है। यह हो भी रहा है, पर बिना किसी नियोजन; बिना किसी प्रोत्साहन, बिना किसी उत्तेजन।

यह हो रहा है, पर हमें पता तक नहीं है। और पता हो, तो कोई बोलता भी नहीं।

हम ही भौचक्के हैं, वास्तविक चकित हैं, कि ऐसा क्या है, हमारे पास ?

वास्तव में हम तो इन्हीं वस्तुओं को त्यागने के लिए उत्सुक है। कुछ पढे लिखे विद्वानों को तो यही हमारे र्‍हास का कारण भी दिखाई देता है।

 

(२) मनुवादी, ब्राह्मणवादी

ऐसे, लोगों ने मनुवादी, ब्राह्मणवादी, दकियानुसी इत्यादि, सभ्यता-पूर्ण गालियाँ भी, रच ली है। ऐसे कुछ पढे लिखे, बहुत अच्छा प्रशंसनीय काम करने वाले हिंदी के विद्वान पुरस्कर्ता भी, संस्कृत के विरोधक मिलते हैं। और वे, अपने आप को, उदार-मतवादी मानते हुए, अन्य सभी संस्कृतियों का उदारता पूर्वक बखान ही करेंगे, पर जब बात हमारे (उनके) अपने भारतीय मान-चिह्नों की आएगी तो, सकुचा जाएंगे। अन्य सभी संस्कृतियाँ ग्राह्य है, स्वीकार्य है, पर जिस संस्कृति ने यह उदारता सिखायी है, वही त्याज्य है? यह कैसे? मेरी समझ के परे है।

 

(३) प्राचीन भारतीय ज्ञान विज्ञान का औचित्य

पर,

आज भी प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान की, उपलब्धियों का, नये नये क्षेत्रो में औचित्य और उपयुक्तता प्रमाणित हो रही है। इसका महत्त्व-पूर्ण उदाहरण, है, संगणक (कंप्युटर) की, संरचना में ,आयोजित किया जाने वाला तर्क-क्रम। संगणकों का सर्जन, मानव मस्तिष्क के तर्क-क्रम को प्रतिबिंबित करता है; इस लिए, गत चार-पाँच दशकों से, यह क्षेत्र सघन शोध का विषय रहा है।

माना जाता है, कि (क) नव्य न्याय का तर्क शास्त्र, और (ख) पाणिनि की अष्टाध्यायी, का उपयोग संगणकों में सशक्त (पॉवरफुल) परिचालन-क्रम (प्रोग्रामिंग) के संदर्भ में शोध कर्ताओं के ध्यान में आया था। इसका स्पष्ट उल्लेख करनेवाले प्रामाणिक विद्वान हैं, प्रतिष्टित भाषा विज्ञानी फ्रिट्ज़ स्टाल, और नओम चोम्स्की।

 

(४) फ्रिट्स स्टाल कौन है?

अभी एक वर्ष पहले ही, फ़रवरी १९ को, २०१२ में, जिनका निधन हुआ, वे फ्रिट्स स्टाल युनिवरसिटी ऑफ़ कॅलिफोर्निया, बर्कले के दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक हुआ करते थे। (क) वैदिक कर्मकाण्ड और मन्त्र ,(ख) गूढवाद और कर्म-काण्ड, उनके वैज्ञानिक संशोधन के विशेष क्षेत्र थे। (ग) वे ग्रीक और भारतीय तर्क शास्त्र, और (घ)दर्शन एवं संस्कृत व्याकरण के भी विद्वान थे। भारतीय दर्शन और संस्कृत के अध्ययन हेतु, आपके सतत सम्पर्क में, बनारस और मद्रास का भी उल्लेख मिलता है।

 

(५) स्टाल कहते हैं, कि,——

”प्राचीन भारतीय वैयाकरणियों ने, विशेषतः पाणिनि ने सभी भाषा वैज्ञानिकी सिद्धान्तों पर प्रभुत्व पाया था। पाणिनि द्वारा योजित सारे सिद्धान्त, नॉम चोंस्की ने, १९५० में (२४०० वर्षों पश्चात) पुनः शोधे थे।”

आगे कहते हैं, कि, ”आधुनिक गणितीय तर्क” का भाषाविज्ञान में प्रयोग भी पाणिनि को ज्ञात हुए बिना ऐसा संभव नहीं है।

इसका अर्थ हुआ, कि पाणिनि को ”आधुनिक गणितीय तर्क” का भी ज्ञान था। कब? तो बोले ईसा पूर्व ५ वी शताब्दि में? (२४०० वर्ष पहले)

स्टाल का मंत्रों के विषय का अध्ययन भी, उस विषय पर, नया प्रकाश फेंकता है, वह अध्ययन हमारे कर्मकाण्ड को भी प्रमाणित करता है। और उसे पुनर्-जीवित करने की क्षमता रखता है।( लेखक: इस विषय पर प्रस्तुत लेख नहीं है।)

 

(६)”युगान्तरकारी व्यक्तित्व”-नोएम चोम्स्की——

 

दूसरे इस क्षेत्र के निर्विवाद, विद्वान, जिन्हें भाषाविज्ञान के क्षेत्र में युगान्तर कारी व्यक्तित्व वाले सर्वोच्च विद्वान माना जाता हैं, वे हैं, नोएम चोम्स्की। उन्हें भाषा विज्ञान क्षेत्र में, इस युग (गत ५० वर्ष ) का, ”युगान्तरकारी व्यक्तित्व” माना जाता है।

उन्हों ने भी कहा है, कि ”आधुनिक अर्थ में भी, पहला ”प्रजनन-शील” व्याकरण, पाणिनि का व्याकरण ही है।

{प्रजनन शील = जिस के नियमों में बार बार योजना करने की अंतहीन क्षमता होती है} { Chomsky himself has said that the—> ”First generative grammar in the modern sense was Panini’s grammar.”}

 

(७) भारत का भाषा विज्ञान पश्चिम से २४०० वर्ष आगे।———

एक अन्य स्थान पर, फ्रिट्ज़ स्टाल जो कहते हैं, उसे पढने पर आपका गौरव जगे बिना नहीं रहेगा। वे कहते हैं, कि,

”अब यदि हम पीछे मुड के देखें, तो निःसंदेह, दृढता पूर्वक कह सकते हैं, कि, ईसा पूर्व ५ वी शती के, भारतीय भाषा विज्ञानी १९ वी शती के, पश्चिमी भाषा विज्ञानियों की अपेक्षा अधिक जानते थे और समझते थे।”

निश्चित, वे पाणिनि के योगदान की ही बात कर रहे हैं। यह साधारण सी बात नहीं है। मैं ने इसे बार बार पढा, एक एक शब्द पर रुक रुक कर पढा। यह असामान्य बात हैं। मेरा अनुरोध : भारत हितैषी सारे पाठक इस उद्धरण को ही आत्मसात कर लें; जैसे आप भगवत गीता के श्लोकों को पाठ कर लेते हैं। यह स्टाल और चोम्स्की दोनो के कथनों का भी सारांश है।

 

(८)भारत का भाषा विज्ञान———-

अचरज नहीं है? जब ५ वी शती में, भारत भाषा विज्ञान में २४०० वर्ष आगे था। तो, आजका भारतीय़ भाषा विज्ञान भी जो पाणिनि की परम्परा की धारा से ही जुडा हुआ है, वह पश्चिम से आज भी आगे ही है; ऐसा वास्तव में है ही। उसे केवल भ्रांति त्यागनी पडेगी। ढकोसला विनय त्यागना पडेगा। उचित गौरव जगाना पडेगा। गुलामी त्यागनी पडेगी।

फ्रिटस स्टाल के अनुसार, जब ईसा पूर्व, ५वी शतीका भारतीय भाषा विज्ञानी, १९ वी शती के पश्चिमी भाषा विज्ञानी से भी आगे था। तो, आजका भारतीय भाषा विज्ञानी पश्चिम के भाषा विज्ञानी के पीछे होना असंभव है।

 

(९) अष्टाध्यायी का व्याकरण :———

अष्टाध्यायी के व्याकरण में वाक्य रचना और रचना-क्रम के निरपवाद (बिना अपवाद) और त्रुटि-रहित नियम है। व्याकरण पूर्णातिपूर्ण है। उसमें सुधार के लिए कोई अवकाश ही नहीं।यह सारा ३९६५ आधी आधी पंक्ति के सूत्रों में गठित किया गया है।

वाक्य रचना, रचना क्रम, और व्याकरण इन तीन बिंदुओं पर ही संगणक (कंप्युटर) चलता है। यह तीनों उसे त्रुटि रहित चाहिए। और पाणिनि का व्याकरण ही एकमेव (एक अकेला ही) ऐसा व्याकरण है। संसार की किसी भी अन्य भाषा का व्याकरण ऐसा नहीं है। न लातिनी का, न ग्रीक का, न चीनी का, न हिब्रु का, न अरबी का, न फारसी का, न अंग्रेज़ी का।

 

(१०)डॉ. ब्लुमफ़िल्ड और डॉ. हॅरीस:———

डॉ. ब्लुमफ़िल्ड और डॉ. हॅरीस नाम के, दो भाषा विज्ञानी २० वीं शती में हो गए। दोनो भाषाविज्ञानी ”अंग्रेज़ी भाषा वैज्ञानिकी” के अनेक सिद्धान्त ढूंढ पाए थे, जिनका उपयोग पुराने पहली पीढि के संगणक संचालक प्रक्रियाओं (प्रोग्रामिंग) में, किया गया था।

उपर्युक्त दोनों भाषा विज्ञानी डॉ. ब्लुमफ़िल्ड और डॉ. हॅरीस २० वी शताब्दी के प्रारंभ में जर्मनी जाकर वैदिक व्याकरण (प्रतिशाख्यम् ) और पाणिनि का व्याकरण आत्मसात करके आये थे। उनका यह अध्ययन जर्मनी में,एक दो नही, पूरे सात वर्ष तक चला था। मानता हूँ, कि, वापस आने पर भी उनका अध्ययन अबाधित ही रहा होगा।

 

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(११)पाणिनि व्याकरण की प्रक्रियाओं का उपयोग——

नओम चोम्स्की ने पाणिनि व्याकरण की प्रक्रियाओं का उपयोग करके संगणक की जनन शील प्रक्रियाओं का निर्माण किया।

जिनका उल्लेख पहले, युगान्तरकारी भाषा विज्ञानी के नाते कर चुका हूँ, वे, नओम चोम्स्की ऊपरि उल्लेखित संस्कृत व्याकरण के ज्ञाता डॉ. हॅरीस के छात्र रह चुके थे।

और कह चुका हूं, कि यह डॉ,

हॅरीस जर्मनी जाकर सतत ७ वर्षतक पाणिनिका व्याकरण, और वैदिक व्याकरण पढकर आए थे। निः संदेह उनके विद्यार्थी नओम चोम्स्की भी पाणिनि से प्रभावित होंगे ही। चोम्स्की को, संगणक परिचालन हेतु, संगणकी आज्ञाओं को क्रमबद्ध रीति से परिचालित करने के लिए जननशील व्याकरण चाहिए था। वे, भाषा की संरचना को निर्देशित करना, चाहते थे। ऐसा करने में उन्हें ऐसे नियमों को बनाने की आवश्यकता थी; जो नियम बार बार उपयोग में लाया जा सके। जो स्वचालित हो और जिसका पुनः पुनः उपयोग किया जा सके। तो, नओम चोम्स्की ने पाणिनि व्याकरण की प्रक्रियाओं का उपयोग करके संगणक की जनन शील प्रक्रियाओं का निर्माण किया।

 

(१२) बॅकस-नॉर्म-फॉर्म या पाणिनि बाकस फॉर्म?—-

आगे, जॉहन बॅकस नामक

एक, आय. बी. एम. के, प्रोग्रामर ने, पहला (Backus-Norm Form) बॅकस-नॉर्म-फॉर्म नामक, संकेत चिह्न (Notation) विकसाया था, जो पूरा संस्कृत व्याकरण प्रणाली पर ही आधारित था। यही आगे चलकर कुछ सुधारित रूप में सफल हुआ।

फिर, १९६३ में पिटर नाउर (नौर) ने ALGOL 60 संगणक भाषा का विकास किया, और बॅकस नॉर्मल फॉर्म बनाया, और उसका सरलीकरण कर संक्षिप्त रूप बनाया।

उस समय भी तर्क और सुझाव दिया गया था, कि उस फॉर्म को, पाणिनि बाकस फॉर्म नाम दिया जाना चाहिए। क्यों कि पाणिनि ने स्वतंत्र रूप और रीति से उसी संगणक में उपयुक्त हो ऐसा या उसी प्रकारका संकेतक (नोटेशन) खोज निकाला था। ऐसा सुझाव पी. झेड इंगरमन ने दिया था। यह क्यों न हुआ, इस विषय में शोध पत्र मौन है। पाणिनि तो वहाँ थे, नहीं।

अब सोचिए मित्रों, कहाँ ईसा पूर्व ५वी शताब्दी के पाणिनि, और कहाँ २० वी शताब्दी का संगणक कंप्युटर ? २५०० वर्ष पूर्व पाणिनि ने आधुनिक संगणक भाषा पर काम करना कैसा संभव है? पर यह प्रक्रियाऒं की बात है। संकल्पना की बात है।

 

 

 

 

(१३) हमारा उत्तरदायित्व———

फ्रिटस स्टाल के अनुसार, जब ईसा पूर्व, ५वी शतीका भारतीय भाषा विज्ञानी, १९ वी शती के पश्चिमी भाषा विज्ञानी से भी आगे था। तो, क्या आजका भारतीय भाषा विज्ञानी पश्चिम के भाषा विज्ञानी से पीछे है? यह कैसे हो सकता है?

मुझे तो तिल मात्र भी संदेह नहीं है, कि आज का भारतीय भाषा विज्ञानी भी पश्चिम के भाषा विज्ञानी की अपेक्षा आगे ही है, यदि वह अपनी भाषा परम्परा का ही अवलम्बन करें, हीन ग्रंथि को त्यजे, संस्कृत की शब्द रचना क्षमता का गहन अध्ययन करे, और ढकोसला विनय त्यागे।

पर, भारत में शब्द रचना शास्त्र में पारंगत ऐसे कितने हज़ार विद्वान बचे होंगे?

 

संदर्भ सहायता : पारुल सक्सेना, कुलदीप पांडे, विनय सक्सेना, डॉ.सुभाष काक, डॉ. टी. आर. एन. राव, सी. जी. कृष्णमूर्ति, अन्य नाम ऊपर आलेख में, आ ही गए हैं।