उम्र नौकरी की चल बसी अर्ज़ियोें का क्या करें जनाब,
सबकी सब जला के आ गये डिग्रियों का क्या करें जनाब।
पार आके फिर ना जायेंगे उसने ये क़सम दिलाई है,
कश्तियां जला रहे हैं हम कश्तियों का क्या करें जनाब।
डस रहे हैं दौलतो के नाग दानिशो ज़हीन को यहां,
सर्विसें ख़रीद लीं गयीं डिग्रियों का क्या करें जनाब।
जो बेटियां बहूं बनीं जल रही हैं रोज़ आजकल,
कशमकश में पड़ गये हैं लोग बेटियों का क्या करें जनाब।
प्यार कच्चे सहनों में ज़्यादा पाये जाते हैं…..
जो हमारी जानों की बोलियां लगाते हैं,
ऐसे लोग जाने क्यों फिर भी पूजे जाते हैं।
चमचमाती कोठी में चाहतें नहीं मिलती,
प्यार कच्चे सहनों में ज़्यादा पाये जाते हैं।
खून से सजे ख़ंजर हाथ में तुम्हारे हैं,
आप फिर मुहब्बत का ढोंग क्यों रचाते हैं।।
दोस्ती है चेहरों पर दुश्मनी दिलों में है,
लोग फिर दिखावे को हाथ क्यों मिलाते हैं।।
नोट-अर्जि़यां-आवेदन, दानिशो ज़हीन-बुध््िदमान एवं योग्य,खं़जर-चाकू।।