सियासी जनादेश का हिस्सा है नाम बदलना

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अनिल अनूप 

शहरों, सड़कों, चौराहों, स्टेडियम और संस्थानों के नाम बदलना कोई राजनीतिक अपराध नहीं है। विभिन्न सरकारें केंद्र और राज्यों में अपनी राजनीतिक सुविधा के मुताबिक नाम बदलती रही हैं। उनकी एक लंबी फेहरिस्त है, जिसके मद्देनजर कांग्रेस पर सबसे ज्यादा सवाल हैं, क्योंकि 60 साल से अधिक उसी ने देश पर शासन किया है। भाजपा को अपेक्षाकृत कम समय के लिए सत्ता नसीब हुई है। दरअसल नामकरण बदलना भी सियासी जनादेश का हिस्सा है। सरकार की मंशा और मानसिकता पर संदेह किए जा सकते हैं, लेकिन यह प्रक्रिया अवैध नहीं है। ताजा संदर्भ भाजपा से जुड़ा है। उप्र में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने मुगलसराय, इलाहाबाद के बाद फैजाबाद का पुराना नाम बदलने की घोषणा की है, क्योंकि वे ‘मुगलिया गुलामी’ की याद दिलाते थे। गुजरात की भाजपा सरकार भी अहमदाबाद का नाम बदलकर ‘कर्णावती’ करना चाहती है। कुछ और सांस्कृतिक संशोधन विचाराधीन हैं। मसलन महाराष्ट्र में शिवसेना की प्रबल मांग है कि उस्मानाबाद और औरंगाबाद के नाम बदलकर क्रमशः धाराशिव और संभाजी नगर किए जाएं। भाजपा सरकार भी बुनियादी तौर पर सहमत है। उप्र में ही भाजपा सरकार आगरा को ‘अग्रवन’, मुजफ्फरनगर को ‘लक्ष्मीनगर’, लखनऊ को ‘लक्ष्मणपुर’, अलीगढ़ को ‘हरिगढ़’, आजमगढ़ को ‘आर्यमगढ़’ और देवबंद को ‘देववृंद’ आदि नए नामकरण देने की पक्षधर है। यदि ये संशोधन गलत, राजनीतिक और सांप्रदायिक हैं, तो कर्नाटक के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने हुबली का नाम बदल कर ‘हुब्बाली’, बेल्लारी का ‘बल्लारी’, बीजापुर का ‘वीजापुरा’, शिमोगा का ‘शिवामोग्गा’, चिकमगलूर का ‘चिकमगलुरू’ और बंगलौर का बंगलुरू आदि क्यों किया? मंगलुरू और बेलागावी नामकरणों के आधार क्या हैं? सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने भाजपा सरकारों के नाम बदलने की कवायद को ‘सांप्रदायिक साजिश’ करार दिया है। पश्चिम बंगाल में जब वाममोर्चा सरकार थी और बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री थे, तब कलकत्ता का पुराना नाम बदल कर ‘कोलकाता’ क्यों किया गया? इसी तर्ज पर मद्रास का नाम ‘चेन्नई’, विशाखापट्टनम का नाम ‘वालटेयर’, पांडिचेरी का नाम ‘पुडुचेरी’ क्यों किया गया? इन नामकरणों में स्थानीय और सांस्कृतिक प्राचीनता की सुगंध कहां आती है? सबसे बड़ा सवाल तो कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर पूछना चाहिए कि देश की राजधानी नई दिल्ली में ऐतिहासिक ‘इंडिया गेट’ की बगल में औरंगजेब रोड, शाहजहां रोड, अकबर रोड सरीखे नामकरण आज तक जिंदा क्यों हैं? लॉर्ड कर्जन रोड, लॉर्ड हेस्टिंग्ज रोड, कॉपरनिक्स रोड आदि किस संस्कृति और किस दौर की याद दिलाते हैं? भारत को आजाद हुए 70 साल से ज्यादा का समय हो चुका है। हम आज भी गुलाम प्रतीकों और नामों के साथ क्यों जी रहे हैं? क्या औरंगजेब, बाबर, खिलजी आदि नाम आज भी हमारे लिए आदर्श और प्रेरणा-स्रोत हैं, जिन्होंने हमारी सभ्यता-संस्कृति को कुचला, तोड़ा, ध्वंस किया और जबरन धर्म-परिवर्तन कराए गए? हम आज उनसे निजात क्यों नहीं पा सकते? यदि कोई शहर, राज्य के नाम में हमारे राम, लक्ष्मण, कर्ण, अर्जुन, शिवाजी, संभाजी, आर्य आदि की व्यंजना महसूस होती है, तो वह नाम बदलने में दिक्कत क्या है? यह हिंदू-मुसलमान का मुद्दा नहीं है, बल्कि भारतीय होने का सामूहिक गर्व है। मुगल हमलावरों और लुटेरों के नाम बदल देने से भारत ‘मुस्लिम मुक्त’ नहीं किया जा सकता। यह राष्ट्र हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी सभी समुदायों से ‘युक्त’ देश है, लेकिन गुलामी और अत्याचारों के प्रतीकों को मिटा देना ही ‘राष्ट्रहित’ है। यह कवायद न तो सांप्रदायिक है और न ही धर्मनिरपेक्ष है, बल्कि यह विशुद्ध रूप से ‘भारतीय’ है। इस पर सियासत करना अपराध है। नाम बदलने से न तो कांग्रेस का वोटबैंक बढ़ा और न ही भाजपा ‘अजेय’ हो जाएगी। इस संदर्भ में सिर्फ भाजपा पर ही ‘हिंदुत्व’ का मुलम्मा नहीं चढ़ाया जा सकता। यदि वह गलत है, तो पुरानी प्रक्रिया भी गलत थी। भाजपा को हिंदू वोट ज्यादा मिल सकते हैं, क्योंकि इस पार्टी का जन्म ही इस सोच के आधार पर हुआ था, लेकिन रोजगार, महंगाई, पेयजल, स्वच्छता, किसानी, अति गरीबी और पिछड़ापन, कुपोषण, बीमारियां और सबसे अहम भ्रष्टाचार आदि मुद्दे यथावत और प्रासंगिक हैं। विरोधी दल उनके आधार पर अपने राजनीतिक अभियान छेड़ सकते हैं, लेकिन हमारी अपनी संस्कृति और स्वर्णिम अतीत को बहाल करने की कोशिशों पर आपत्ति न उठाएं, उनके मद्देनजर सियासत स्वीकार्य नहीं है।

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  1. युगपुरुष मोदी ने जब १२५ करोड़ भारतीयों को कदम से कदम मिला कांग्रेस-मुक्त भारत के पुनर्निर्माण के लिए आवाहन किया तो मैं समझ गया कि कन्या राशि के जातक, वे स्वयं अपना कम दूसरों का अधिक सोचते अवश्य ही भारतवासियों के भाग्य जगाने आए हैं|

    आगामी लोक सभा निर्वाचनों हेतु अब कांग्रेस-युक्त इंडिया को हटा पूर्णतया कांग्रेस-मुक्त देश केवल भारत के नाम से पहचाने जाने का अभियान चलाया जाए| मात्र “भारत” शब्द के सगर्व उच्चारण में हमारी भारतीयता, हमारी भाषाएँ, हमारे भारतीय दर्शन व परम्पराएं उभर कर हमारे ह्रदय को प्रफुल्लित करने में समर्थ हैं और हम प्रेम मुदित मन से भारत माता की जय पुकारते हैं|

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